देश किसी जमीन के टुकड़े मात्र का नाम तो है नहीं
इलिका प्रिय, कथाकारयह उस राज्य की बात है, जहां के नागरिकों का यानि खास कर पत्रकारों, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जजों, सुरक्षा एजेंसियों, की जासूसी एक बहुत ही ताकतवर मालवेयर द्वारा की गई थी।

उस देश की सरकार खुद उस मालवेयर की खरीददार थी और जिस कम्पनी का वह मालवेयर था, उनका दावा था कि ये मालवेयर वे उन्हीं देशों को बेचते हैं, जो उनकी खरीददार है, और सरकारें इसे इसलिए खरीदती हैं ताकि देश के दुश्मनों के खिलाफ उसे उपयोग कर देश की सुरक्षा कर सके।
कुल मिलाकर उसका काम देश की सुरक्षा था। और देश तो कोई चार जमीन के टुकड़े का नाम तो है नही!ं जिसकी रक्षा सिर्फ सैनिक तैनात कर कर ली जाए। देश करोड़ों लोगों से बने समाज का नाम है। जिनके जीने-खाने, रहने-सहने के अलग-अलग ढंग है, जरूरतें हैं, उन सबकी सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला सिस्टम ही तो देश की सुरक्षा है।
जमीन का टुकड़ा तो उन्हीं जरूरतों में से एक है, रहने के लिए। खाने-पीने, काम करने और हर तरह की समस्याओं से निजात पाने के लिए बनाया गया कानून असल में देश की सुरक्षा का प्रतीक है। इसलिए हर क्षेत्र में सुरक्षा नजरें होनी चाहिए ही थी, सो थी।
उसी देश में भ्रष्टाचार, लूटपाट, आतंक भी था, जिसे खत्म करने के लिए सरकार कर्तव्यबद्ध थी और सरकारी उस हर आदमी के खिलाफ जो सरकारी पद पर रहकर जनता को लूट रहे थे, पोल-पघार खोलने वाले मीडियाकर्मी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं पर सरकार को नाज था, होना भी चाहिए।
कितने पत्रकारों ने अपनी जानें गंवा दी थी सच्ची पत्रकारिता करते हुए, कितने समाजसेवी शहीद हो गये थे समाज की सेवा में, वे सच्चे मायने के समाज के सिपाही थे।
पर जब सरकार को यह मालूम चला कि वही स्पायवेयर जिसकी वह ग्राहक है के द्वारा उनके ही देश के चुनिंदे पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य की जासूसी की गई, तो सरकार के तो होश ही उड़ गये। जो अपने देश की सच्ची कहानी लिख रहे हो, उनकी जासूसी किसने करवाई? सरकार के सामने एक पेचिदा सवाल था।
अब सरकार यह तो नहीं बता सकती थी कि वे वास्तविक दुश्मनों के खिलाफ कौन-कौन से उपाय अपना रही है, कैसी-कैसी सुरक्षा व्यवस्था कर रही है, इंटरनेट के जमाने में किन-किन सॉफ्टवेयर के द्वारा असली दुश्मनों की जासूसी करवा रही है, क्योंकि इन सारे सवालों का जवाब पूरे देश की सुरक्षा से जुड़े हुए थे, मगर यह तो पता लगाना उसका पहला काम बन गया कि उनके देश के समाज के सिपाहियों की जासूसी कौन करा रहा है भला?
उनके लिए यह भी उतना ही जरूरी था जितना देश की सुरक्षा, वरना लोगों की सुरक्षा को नजरअंदाज करके भला कैसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती थी, आखिर देश उन्हीं से तो तैयार होता है। देश किसी जमीन के टुकड़े मात्र का नाम तो है नहीं।
सरकार का नजरिया साफ था।
उनके लिए यह बताना कि वह उस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है या नहीं जिसके द्वारा जासूसी की गई, शायद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक था, उससे देश के दुश्मन सतर्क हो जाते, पर यह बताना तो बिल्कुल जरूरी था कि अपने इन समाज के सिपाहियों की जासूसी उसने नहीं कराई और यह पता लगाना तो राष्ट्रीय सुरक्षा का ही सवाल था कि हमारी सारी निगरानी सिस्टम को भेदकर आखिर यह कौन जासूस है जिसने इन समाज के सिपाहियों की जासूसी की है।
इससे पहले की कोई न्यायालय का दरवाजा खटखटाता, सरकार दौड़ी हुई खुद न्यायालय के पास गयी और उसने अपनी सफाई में कह दिया- ‘हम तो अपने इन समाज के सिपाहियों की जासूसी जैसा गुनाह कर ही नहीं सकते क्योंकि किसी भी सॉफ्टवेयर को हम दुश्मनों से लडऩे के लिए खरीद रहे हैं, या इस्तेमाल कर रहे हैं इन श्रेष्ठ लोगों की जासूसी के लिए नहीं। हम बेहद शर्मिंदा है कि हमारी नजर से बचाकर किसी ने इतने बड़े स्तर पर हमारे देश के लोगों की जासूसी करा दी और हमें भनक तक नहीं लगी।'
हम अभी अपनी पूरी जांच एजेंसी को लगाकर उस जासूस का पता लगाकर ही रहेंगे, क्योंकि यह हमारे देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन है, समाज के लिए खतरनाक है और हमारी नजर से बचाकर इसे अंजाम दे देना तो हमारे देश के लिए भी खतरनाक है। एक तरह से यह देश की सुरक्षा का ही सवाल है। हम इनसे अपने नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर सकते, तो देश की सुरक्षा क्या खाक करेेंगें?
सरकार अब पूरी जी जान से लग गई, उस जासूस का पता लगाने। जिसने उनके श्रेष्ठ नागरिकों की जासूसी कराई, देश की सुरक्षा कवच को भेदा और चंूकि उस मालवेयर की वह खुद खरीदार है, सो उसे भी बदनाम किया, आखिर दुनिया तो यही सोचेगी न! कि सरकार ने खुद अपने लोगों की जासूसी कराई? इन सारे सवालों का जवाब देना उस सरकार का फर्ज है जो जनता के हित के लिए है।
तो यह थी उस काल्पनिक देश की कहानी, जिस देश की सरकार ने अपने देश के समाज के सिपाहियों की किसी भी हालत में जासूसी नहीं कराई।
पर जिस सरकार ने अपने ही देश के श्रेष्ठ लोगों की जासूसी कराई, वह मुंह छुपाए फिर रही है, वह सवालों का गोल-मोल जवाब दे रही है, हर सवाल को देश की सुरक्षा के जवाबी कवच से ढक रही है और हर सवाल पर जैसे उसके कानों में जूं तक न रेंग रहा हो, चाहे सवाल देश की सुरक्षा का ही क्यों न हो, अपनी जुबान पर बस एक ही जवाब का पट्टा चिपका लिया है जिस पर लिखा है किसी सवाल का जवाब जरूरी नहीं समझते, देश की सुरक्षा के खातिर।
लेखिका जानी मानी कथाकार हैं और बोकारो, झारखंड में रहती है।
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