दर्शकों को थियेटर तक खींच लाने में कामयाब रही मोर जोड़ीदार 2

द कोरस टीम

 

एन. माही फिल्म्स प्रोडक्शन के बैनर तले बनी मनोरंजक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मोर जोड़ीदार 2,' कोरोना काल के विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है। अपने भरपूर मनोरंजन से दर्शकों के चहेती बनी फिल्म 'मोर जोड़ीदार 2' ने 3 सिम्बर को रिलीज होकर सिनेमाघरों में दूसरा सप्ताह में प्रवेश कर लिया है।

वहीं और 6 नए सिनेमाघरों में 10 सितम्बर से रिलीज हो रही है। जहां दर्शकों को इसका बेसब्री से इंतजार है। निर्माता मोहित साहू फिल्म रिलीज को लेकर जोखितभरा काम किया है। जो कोरोना महामारी जैसे विपरीत परिस्थितियों में जहां बड़े-बड़े बैनर की फिल्म रिलीज होने के लिए समय के सामान्य होने का इंतजार कर रही हैं वहीं निर्माता मोहित कुमार साहू  ने 'मोर जोड़ीदार 2' को रिलीज करके वाकई छत्तीसगढ़ी फिल्म  रिलीज में साहस का काम किया है।

साथ ही निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी को भी अपनी फिल्म और अपने निर्माता के इस फैसले पर पूरा भरोसा था की 'मोर जोड़ीदार 2' दर्शकों के बीच अपनी जगह बनाने में जरूर कामयाब होगी। निर्माता मोहित साहू और निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी ने अपनी इस फिल्म की कामयाबी का श्रेय अपनी पूरी टीम, प्रमोटर्स, दर्शकों और  प्रिंट और इलेक्ट्रिॉनिक मीडिया को दिया है।

मोर जोड़ीदार 2 का ऐसी विपरीत परिस्थितियों में आना और उस पर भी दर्शकों का भरपूर प्यार पाने में कामयाब होना निश्चित ही छॉलीवुड को संजीवनी प्रदान करने के जैसा है। परिस्थितियों की भेंट चढक़र हांफते हुए छॉलीवुड को ऑक्सीजन देने जैसा है।

इस फिल्म के लिये एसोसियेट डायरेक्टर नेहा साहू, कैमरामेन पवन रेड्डी, म्युजिक जितेंद्रियम देवांगन, सुनील सोनी, एडीटर सतीश देवांगन, कोरियोग्राफर नंदु तांडी और विलास राउत, सहायक निर्देशक दामिनी पटेल, कल्पना ढीमर, अमर तिवारी, सहायक कैमरामेन मनमोहन तिवारी, कला-निर्देशक करीम खां हैं।

दिलेश साहू, मुस्कान साहू, रियाज खां के अलावा, दामिनी पटेल, योगेश अग्रवाल, उपासना वैष्णव, पवन गुप्ता, शैल सोनी, विनायक अग्रवाल, आरूषि पॉल, शीतल साहू, संतोश निषाद, रूपेंद्र टेकाम, नवीन देशमुख, सृष्टि तिवारी, हनी शर्मा, प्रियांश तिवारी ने काम किया है। मां फिल्म्स वितरण ने इसका वितरण किया है।

‘जो थिएटर करता है वो अच्छी फिल्म बना पाए। जो ड्रामा नहीं करता वो भी बेहतर फिल्म बना सकता है।’

साल 2016 को रिलीज हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म 'प्रेम सुमन' छालीवुड की सफल फिल्मों में शुमार है। इसके निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी अपनी नई फिल्म 'मोर जोड़ीदार 2' को लेकर उत्साहित हैं। फिल्म निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी अपनी फिल्मी यात्रा ‘द कोरस’ को शेयर करते हुए कहा कि 'जरूरी नहीं जो थिएटर करता है वो अच्छी फिल्म बना पाए। जो ड्रामा नहीं करता वो भी बेहतर फिल्म बना सकता है। इसके लिए उसका आईक्यू, विजन और सोच मायने रखती है।' 

हैदर बताते हैं हमारे मोहल्ले में एक सेलून था। वहां जो लडक़ा बैठता था वो चन्द्रचूढ़ सिंह की तरह दिखता था। एक बार शादी में कुछ थिएटर आर्टिस्ट आए तो वे उसे देखकर कहने लगे कि तुम चन्द्रचूढ़ जैसे दिखते हो। हमारे साथ थिएटर में जुड़ जाओ। उसको इसमें कोई शौक नहीं था।

वे कहते हैं कि- 'मैं उसी के पास बाल कटवाने जाया करता था। जब मैंने उससे एक्टिंग वाली बात शेयर की तो रंगकर्मियों का वाकया साझा किया और नितेश शिंदे से मिलवाने ले गया। पहली बार मैंने उनकी टीम के साथ काम किया। लेकिन टीम लंबी नहीं चली तो मैंने 'मुट्ठी नाट्य संस्था' बनाई।' उसी दौरान मैंने 1 - 1 घंटे की 2 फिल्में ‘समधिन पटगे’ और ‘दामाद चाही फोकट म’ को असिस्ट भी किया। 

रंगकर्मी के अलावा मैंने फिल्म लेखन में भी काम किया है। बंधना, टूरी नम्बर वन, तरी नरि नाना, तोर खातिर लिखेंव। बाप बड़े न भैया सबसे बड़े रूपैया असिस्ट की।

अपनी पहली बड़ी फिल्म ‘प्रेम सुमन’ के संबंध में कहते हैं कि 'मुट्ठी नाट्य संस्था' में हमारी फ्रेंड थी दिव्या नागदेवे। वे शादी के बाद दूसरे शहर चली गई थी, जब भिलाई लौटी तो संस्था के सदस्य आपस में मिले। तब ‘प्रेम सुमन’ बनाने पर सहमति बनी जिसे दिव्या ने प्रोड्यूस किया था। 

हैदर कहते हैं कि फिल्म बनाते वक्त आपको अपनी संतुष्टि भी देखनी होगी। अगर सिर्फ आप गेलेमराइज होने के लिए काम करेंगे तो कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं कर पायेंगे। वे उदाहरण देकर बताने की कोशिश में कहते हैं कि पंकज त्रिपाठी या नवाजुद्दीन सिद्दीकी अगर कहीं चूक गये तो खुद की आलोचना करते हैं। 

हैदर कहते हैं कि -‘मैंने 10 - 12 लिखी और डायरेक्ट भी किया। एक प्ले ‘जब मैं सिर्फ औरत होती’ इसे मैंने नहीं लिखा। लिखने के लिये अध्ययन जरूरी है। हैदर आगे कहते हैं कि इसीलिए मैंने 'मुंशी प्रेमचंद', 'गुलजार' और 'मुक्तिबोध' को पढ़ा। इसके बाद जब भी किसी टॉपिक पर काम करना होता था तो उसके बारे में पढ़ा करता हूं।

फिल्मकार सत्यजीत रे का हवाला देते हुवे कहते हैं कि -‘आप तभी महान हो सकते हैं जब अपनी जमीन के विषयों पर काम करते हों। छत्तीसगढ़ में इतने कन्टेन्ट हैं कि अगर अच्छे से काम हो तो 'आस्कर' भी मिल सकता है।’

आगे बातचीत में कहते हैं कि यहां की राजनीति, स्वतंत्रता संग्राम और माओवाद के अलावा कई कन्टेन्ट हैं। जिस पर अच्छा काम हो सकता है। माओवाद से संबंधित लव स्टोरी ‘धुर्वा’, मेडिकल से रिलेटेड फिल्म ‘सब बने बने’। स्त्रीप्रधान फिल्म गौरी बहुत जल्द आने वाली है। 


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