बीएनसी मिल के उत्थान और पतन की कहानी मजदूरों के पसीने की जुबानी

वे नए समाज के सपनों के साथ लडऩे वाले योद्धा थे

उत्तम कुमार

 

बीएनसी मिल औद्योगिक क्रांति व श्रमिक क्रांति का इतिहास हमें बताता है। यह मिल कब व कैसे बनी इसके इतिहास को समझना जरूरी है। क्या यह मिल पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी व तत्कालिन मुख्यमंत्री रमन सिंह को माफ कर सकेगी, यह भी एक तरह का ऐतिहासिक सवाल है, जिसका जवाब इन राजनेताओं को देना चाहिए। लगभग 116 वर्ष पहले साल 1892 में बीएनसी मिल का निर्माण हुआ। उस समय राजनांदगांव रियासत के राजा बलरामदास ने सीपी कॉटन मिल के रूप में बलदेव बाग इलाके में इसकी स्थापना की थी।

उस समय यह अंग्रेजों के साम्राज्य में आता था, लेकिन रियासत के अधीन थी। अंग्रेजों ने सबसे पहले इस क्षेत्र में रेलवे का विकास किया। जिसे बंगाल-नागपुर रेलवे कहा जाता था। रेलवे के बनने से छत्तीसगढ़ मजदूर का कोयला खदानों, चाय बागानों व बड़े-बड़े बहुमंजिली इमारतों के निर्माण के लिए निर्यात होना सुगम हो गया। अंग्रेजों ने रायपुर से धमतरी तक एक छोटी रेल लाइन भी बिछाई।

यह मिल उच्च स्तर के सूती कपड़ों के उत्पादन और मच्छरदानियों के निर्माण में प्रसिद्धि हासिल कर ली थी। हजारों लोगों को एक साथ काम देने का इसने कीर्तिमान स्थापित कर लिया था। साल 1892 में इस क्षेत्र में सीपी कॉटन मिल के रूप में मजदूरों को काम देने वाली एक मात्र बड़ी मिल थी। जहां तक रेलवे से विकास का सवाल है, बैलाडीला से वाल्टेयर तक एक लंबी रेलवे लाइन बिछाई गई, जिससे जापान व कोरिया भारत का एक नंबर क्वालिटी का लोहा कौडिय़ों के मोल खरीद सके।

सब कुछ यहां पहली बार हुआ

एक दूसरी रेलवे लाइन दल्लीराजहरा से दुर्ग के बीच खींची गई, जिससे भिलाई कारखाने का पेट भरा जा सके। इससे आज साफ है रेलवे लाइन से स्थानीय जनता का न तो विकास हुआ न ही कुछ हासिल हुआ। इस मिल का इतिहास लोगों को चौंका देने वाले है। सब कुछ यहां पहली बार हुआ। पहली बार ठाकुर प्यारेलाल सिंह, रूईकर, शंकर गुहा नियोगी ने यहां संघर्ष किया।

इस मिल की तालाबंदी तब हुई जब छत्तीसगढ़ एक राज्य का दर्जा हासिल कर चुका था। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए बालको के निजीकरण को रोकने पांच सौ करोड़ अदा करने की घोषणा की थी। वहीं इस प्रतिष्ठित व ऐतिहासिक मिल को बंद करने से रोकने के लिए उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया था। एक मजेदार बात यह है कि विकास पुरूष कहे जाने वाले रमन सिंह, उस दौरान केंद्रीय उद्योग मंत्रालय में उद्योग राज्यमंत्री हुआ करते थे।

इस मिल ने भाप से लेकर बिजली की शक्ति के रूप में कार्य करते हुए राजा बलरामदास, शॉ वैलेस, हनुमान प्रसाद पोद्दार, राज कुमार अग्रवाल जैसे मालिक देखे। इस मिल ने अद्भुत संघर्षों का एक बड़ा इतिहास भी रचा है। तीन बर्बर पुलिस गोली चालन का यह मिल गवाह है। यह वह मिल है, जहां जरहू गोड़ से लेकर मासूम राधे ठेठवार का खूनी शहादत दर्ज हैं। उस मूल्यवान जमीन को आज 12 करोड़ 51 लाख में नीलाम कर बेच दिया गया।

कम मात्रा में ही सही 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में यहां कपास उत्पादन की संभावनाओं के साथ रियासत के राजा बलराम दास ने 1892 में रेलवे लाइन के समीप सीपी कॉटन मिल बनवाई। जिसे कुशलतापूर्वक नहीं चला सकने के कारण पूरे तीन वर्ष पश्चात 1895 में शॉ वालेस इसका मालिक बन बैठा। मालिक ने बंगाल नागपुर की तर्ज पर इस मिल का नाम बदलकर बंगाल नागपुर कॉटन मिल अर्थात बीएनसी मिल रख दिया।

बीएनसी मिल संरचना

प्रारंभ में मिल में 478 करघे, 28 हजार 224 तकुए पर 833 मजदूर अपने श्रम दो पालियों में लगाता था। हर एक पाली 12 घंटे की होती थी। चादर, धूसा और धोतियों का यहां मुख्यत: उत्पादन होता था। बाद में यहां फैक्ट्री एक्ट का सरेआम उल्लंघन होने लगा। फैक्ट्री में सूत भाप के माध्यम से बनाया जाने लगा। जिसमें तापमान का उपयोग 110'15 डिग्री फैरनहाइट तक हो जाता था। उस समय भीषण गर्मी में मजदूर पानी में भींगकर कार्य करते थे। जिससे उनके पैर गीले होकर सफेद पड़ जाते थे। पहले 5 हजार 500 मजदूर कार्य करते थे।

जिससे प्रतिदिन 55 हजार मीटर कपड़ा बनता था। बाद में मजदूर कम कर दिए। जो 4 हजार 700 की संख्या में आकर थम गई। उत्पादन बढक़र 65 हजार मीटर हो गया। मिल के गिरते स्तर को देखते हुए आगे चलकर पोद्दार ने 1956 को राजकुमार अग्रवाल को मिल बेच दिया। 1956 से 1962 तक मिल घाटे में चलने लगी। 29 दिसंबर 1962 को मिल बंद हो गया। जिससे 300 शेष रहे मजदूर बेकार हो गए।

मध्यप्रदेश सरकार ने 1963 में बीमार ईकाई के रूप में बीएनसी मिल को अधिग्रहित कर मध्यप्रदेश टेक्सटाइल कार्पोरेशन को सौंपा। जिसके मैनेजिंग एजेंट राजाराम गुप्ता बनाए गए। दो साल बाद 1964 में यह बंद मिल पुन: प्रारंभ हुई। मच्छरदानी के उत्पादन में यह मिल फिर एक बार सुर्खियों में आई। साल 1972 आते तक घाटे का यह मिल 90 लाख का मुनाफा कमाया। टेरीकाट और टेरीलीन के चलन के बाद सूती कपड़े पिछड़ गए। यह कमजोर बीमार मिल 1974 में नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन ने अपने हाथ ले लिया।

साल 1984 तक फिर एक बार 11.5 करोड़ रुपए के घाटे पर चलते हुए रिकार्ड उत्पादन 10 करोड़ तक पहुंच गया। अस्थायी मजदूरों की संख्या ज्यादा और स्थायी मजदूरों की संख्या घटने लगी। यदि कोई मजदूर कार्य पर न आए तो उसके स्थान पर बदली मजदूरों से कार्य कराया जाता था। बदली मजदूरों को ग्रेच्युटी नहीं मिलती थीं और न ही स्थायी होने का कोई उम्मीद ही थी। जो आगे चलकर बदली मजदूरों के स्थान पर कैजुअल मजदूरों से काम लिया जाने लगा। जिन्हें न छुट्टी मिलती थी न ही कार्य की गारंटी।

श्रमिक, सर्वहारा वर्ग के हित में शहादत का जज्बा लेकर मर मिटने वाले प्रथम शहीद

स्थापना से 1919 के पूर्व तक इतिहास में किसी मजदूर आंदोलन की जानकारी यहां नहीं मिलती है, लेकिन इतिहास बताता है कि बीएनसी मिल  के मजदूरों ने मालगुजारों व अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ शुरू से ही संघर्ष में अगुवाई की थी। मिल के मजदूरों ने साल 1919 में ठाकुर प्यारेलाल के नेतृत्व में रोलैट एक्ट यानी आज के छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम जैसे काले कानून को हटाने के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी। यहां के श्रमिक, सर्वहारा वर्ग के हित में शहादत का जज्बा लेकर मर मिटने वाले प्रथम शहीद कहलाए।

साल 1908 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लडऩे वाले बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी पर बीएनसी के मजदूरों ने हड़ताल की थी। मजदूरों ने एक के बाद एक संघर्ष कर राजा के दांत खट्टे कर दिए और अंग्रेजों की नींद हराम कर दी। बीएनसी मिल का आंदोलन तेज तब हुआ, जब उसका नेतृत्व ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने संभाला। छत्तीसगढ़ में मजदूर आंदोलन के नेता के रूप में उनका नाम सबसे ऊपर है। दो पालियों में चलाई जा रही इस मिल को मुद्दा बनाकर साल 1920 में ठाकुर साहब के अगुवाई में 37 दिनों की हड़ताल हुई।

उन्होंने आर्थिक मांगों को लेकर रात्रि पाली का संपूर्ण बहिष्कार कर दिया। साल 1923 के इतिहास के पन्नों ने एक नया इतिहास लिखा। जब ठाकुर साहब के नेतृत्व में 7 माह तक हड़ताल चलाने वाले मजदूरों पर ब्रिटिश हुकूमत ने गोली चलाई। जिसमें जरहू गोड़ नाम का श्रमिक मारा गया। जिन्हें भारत के मजदूर आंदोलन का पहला शहीद माना जाता है।

साल 1936 में ठाकुर साहब को अंग्रजों ने जिला बदर कर दिया। उनका राजनांदगांव रियासत में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। इसे चुनौती देते हुए उन्होंने रेलवे की जमीन जो राजनांदगांव रियासत में नहीं आती थी, उस पर बैठकर आंदोलन का नेतृत्व करते रहे और कानूनी लड़ाई लड़ते रहे। उनकी लड़ाई का लोहा मानकर उनके जिला बदल की कार्रवाई रद्द कर दिया गया। वे बाद में राजनांदगांव छोडक़र रायपुर आ बसे। ठाकुर साहब के नाम पर अंग्रेज कांपते थे।

रायपुर में आने के बाद ठाकुर साहब ने नागपुर से सुभाषचंद्र बोस के करीबी रूईकर को बुलवाया। यह दायित्व उन्होंने साल 1936 में सौंपा। रूईकर के आने के बाद आंदोलन ने भीषण रूप ले लिया। पहली बार 23 दिन और दूसरी बार 65 दिन की हड़ताल हुई। उन पर कई बार जनलेवा हमले हुए। उनको बोरे में बंदकर बाघ नदी की पुलिया में डाल दिया गया। उनकी हड्डी टूट गई। कुछ केवट लोगों ने उन्हें बामुश्किल बचाया। वे नए समाज के सपनों के साथ लडऩे वाले योद्धा थे। 

1938 में राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ के नाम से कांग्रेस समर्थित संगठन के रूप में यह संघ पंजीकृत हुआ। साल 1948 में मिल में मजदूरों की स्थिति को केंद्र में रखकर फिर हड़ताल हुआ। इस बार गोलीबारी में रामदयाल और ज्वाला प्रसाद शहीद हुए। धीरे-धीरे सोशलिस्ट पार्टी की नींव कमजोर होने लगी। उसी समय साल 1968 में प्रकाश राय पहली बार राजनांदगांव आए। प्रकाश राय बीड़ी मजदूरों के बीच काम करते थे। परंतु बीएनसी मिल में आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर सके।

साल 1977 में कांग्रेस की सरकार बनने पर जनता पार्टी के समर्थन पर छत्तीसगढ़ वस्त्र उद्योग बना। जिसका पंजीयन साल 1978 में हुआ। कांग्रेसी राज्य होने के कारण वहां पर इंटक मान्यता प्राप्त यूनियन बनकर खड़ा हुआ। इंटक के दो भाई थे। बड़ा भाई खजान सिंह खनूजा मैनेजमेंट का वकील था और छोटा भाई बलवीर खनूजा मजदूरों का वकील था। यूनियन की लड़ाई उनके बीच की आपसी लड़ाई बनकर रह गई थी। 

बीएनसी मिल में 350 महिलाएं कार्य करती थी। इतना आतंक था कि पेशाब जाती हुई महिला मजदूरों का सुपरवाइजर पीछा करता था। महिलाएं मजबूरी के कारण बोल नहीं सकती थीं। श्रमिक जब अपनी बदतर हालात के खिलाफ आवाज उठाता, उसे चार्जशीट दे दी जाती थी। वहां मजदूरों का बेसिक वेतन 26 रुपए प्रतिमाह यानी 1 रुपए रोज से भी कम थी। इसी दौरान राजनांदगांव की बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने स्वस्फूर्त संगठन बनाया। राजनांदगांव कपड़ा मिल मजदूर संघ। जिसका पंजीयन 8 जुलाई 1984 को हुआ।

यूनियन के रजिस्ट्रेशन के बाद मिल में एक नई हलचल उत्पन्न हो गई। मजदूरों को बेरहमी से तंग किया जाने लगा। मिल के अंदर तापमान 110'20 डिग्री फैरनहाइट तक बढ़ा दिया गया। 13 जुलाई की घटना है। तराशनखाने में बहुत अधिक गर्मी थी। एक महिला बेहोश होकर गिर गई। जिस पर मजदूरों ने मैनेजर का घेराव कर दिया। आंदोलन शांतिपूर्ण था। नए कलेक्टर मिंज, एसपी पेंडारकर व इंस्पेक्टर त्रिपाठी जो साल 1977 में दल्ली राजहरा गोलीकांड में शामिल थे।

कंधे पर दो के बदले तीन फूल के साथ आ धमके। पुलिस ने रात 2 बजे गोली बरसाई। जिसके बाद 1 हजार मजदूर घायल हुए तथा 75 गंभीर रूप से घायल हुए। सभी आंदोलनकारियों को धारा 151 के तहत जेल में ठूंस दिया गया। नियोगी के नेतृत्व में मजदूरों में एक नया उत्साह दिखा। जो प्यार कभी ठाकुर साहब व रूईकर ने मजदूरों को दिया। उसे नियोगी ने अपने कुशल नेतृत्व में पूरा किया।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा पर हमला

12 सितंबर 1984 को पुलिस ने मजदूरों पर गोली चलाया। जिसमें धनाराम देवांगन, जगतराम, मतेहतरू कसार सहित एक मासूम राधे ठेठवार मारे गए। अनेक घायल हुए। ऐसे तनावग्रस्त माहौल में 1963 में भारत सरकार द्वारा इस मिल के मैनेंजिंग एजेंट राजाराम गुप्ता ने बंद मिल को फिर से चालू करवाया। 31 जुलाई 1984 में गुप्ता ने मिल के जनरल मैनेजर को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने लिखा कि तीव्र संघर्ष के दौरान भी उद्योग और मजदूरों का साझा हित ही नियोगी का मुख्य उद्देश्य होता था न कि अपनी रानैतिक रोटियां सेंकना।

10 जुलाई 1990 को कलकता में नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन लिमिटेड के निर्देशक कनक राय ने नियोगी को एक पत्र लिखा। जिसका मजमून इस प्रकार है। ‘बंगाल-नागपुर कॉटन मिल्स में मेरे कार्यकाल के दौरान आपने मुझे जो सहयोग दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूं। जैसे कि आप जानते हैं कि बंगाल-नागपुर कॉटन मिल्स को मेरे कार्यकाल में वर्ष 1988-89 का  सर्वश्रेष्ठ कामकाज का पुरस्कार दिया गया है। कृपया मेरी ओर से अपने यूनियन के तमाम पदाधिकारियों को मेरा अभिवादन और धन्यवाद दें एवं साथ ही अपने परिवार को मेरा प्रणाम कहें।’

उस समय की उस वीभत्स, गोलीकांड की न्यायिक जांच कमेटी ने अपनी रपट में स्पष्ट रूप से गोलीकांड के लिए प्रशासन को दोषी ठहराया था। इतने संघर्षों व मजदूरों की कुर्बानी के बाद भी मिल को तालाबंदी से बचाया नहीं गया। आज वह उघोग राज्यमंत्री छत्तीसगढ़ का विकास पुरूष कहलाते हैं। अब वे किसान यात्रा में व्यस्त हैं। उस समय 6 स्पंज आयरन उद्योग थे। आज 100 से अधिक है। सरकार ने पूंजीपतियों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सांठगांठ कर मई 2001 से फरवरी 2008 तक 39 हजार 500 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 49 निवेशकों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया है।

उद्योग एवं औद्योगिक क्षेत्रों के लिए तिल्दा, चौरेंगा, बेमता, भूमिया, कठिया (रायपुर), प्रेमनगर (सरगुजा), लोहंडीगुड़ा, धुरली (दतेवाड़ा) गारे, खम्हरिया (रायगढ़), जोरातराई (राजनांदगांव), बिल्हा (बिलासपुर), लाटा (रायगढ़) के लिए 6 हजार 834 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। अधिग्रहित की जाने वाली जमीन में 1 हजार 359 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। अधिग्रहित की जाने वाली जमीन में 1 हजार 359 हेक्टेयर शासकीय जमीन, 345 हेक्टेयर जंगल जमीन एवं 5 हजार 98 हेक्टेयर जमीन किसानों की निजी जमीन है। ये सारे विकास की उपलब्धियां है।

एबीस ग्रुप का कब्जा

अंत में 4 जनवरी को 5.86 एकड़ भू-भाग वाली बीएनसी की जमीन को 12 करोड़  51 लाख रुपए में राजनांदगांव के एबीस ग्रुप के बहादुर अली को सर्वोच्च बोली पर जमीन का मालिक बना दिया गया। बिलासपुर उच्च न्यायालय के रजिस्टार (विजिलेंस) आरएस शर्मा एवं डिप्टी रजिस्टार दिवाकर प्रसाद सिंह की अगुवाई में इस ऐतिहासकि मिल को नीलाम कर बेच दिया गया। इस नीलामी में 50 लाख रुपए जमा कराने पर ही व्यापारी भाग ले सकते थे।

4 घंटे तक चली  मैराथन नीलामी प्रक्रिया में राजनांदगांव के एबीस ग्रुप के मालिक बहादुर अली ने 12 करोड़ 51 लाख की बोली लगाई। दूसरी बोली रायपुर के गुलाब जैन ने बारह करोड़ 37 लाख की लगाई। तीसरी बोली दिल्ली के लक्ष्मीनारायण भसीन ने 12 करोड़ 25 लाख की लगाई। बीएनसी मिल का अंतिम चिन्ह उसका विशाल दरवाजा आज भी अपने संघर्षों व नीलामी का इतिहास लिए खड़ा है।

क्या कहते हैं मजदूर नेता

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेता शेख अंसार इस पर विस्तार से लिखते हुवे कहते हैं कि भारत के स्वाधीन हो जाने के हमारे देश की जितनी भी सरकारें बनी सभी सरकारों ने मजदूरों पर गोलियां चलाई। 

भारत के मजदूर आन्दोलन का पहला गोली चालन ब्रिटिश हुकूमत ने राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मजदूरों के उपर चलाई गयीं, जिसमें एक नवजवान मजदूर जरहूगोंड़ की शहादत हुई। स्वाधीन भारत का पहला गोली चालन सन 1948 को राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मजदूरों पर चलाई गई, जिसमें रामदयाल और ज्वाला प्रसाद शहीद हुए।

12 सितम्बर 1984 को अविभाजित मध्यप्रदेश के अर्जुनसिंह सरकार की पुलिस ने बीएनसी मिल्स राजनांदगाँव के मजदूरों पर बर्बर गोलियां बरसाई  जिसमे दो मजदूरों जगत सतनामी, घनाराम देवांगन और बालक राधे ठेठवार को मोतीपुर बस्ती में गोली लगने से शहादत हुई।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शहीद

जबकि शहीद मेहतरू देवांगन को एक दिन पहले 11 सितम्बर को मैनेजमेंट के गुण्डों ने लाठी-तलवारों से लैस होकर उस समय प्राणघातक हमला किया, जब जुलूस शांतिपूर्वक नारा लगाते हुए बीएनसी मिल्स के जीएम बंगला का पार रही थी। इस अनापेक्षित हमले से जुलूस मे अफरा-तफरी मच गयीं। हमलावरों ने जुलूस के अंतिम छोर पर  प्राणघातक हमला किया जबकि जुलूस का एक हिस्सा मोतीपुर यूनियन कार्यालय पहुंच गयीं थी। हमला इतना संघातिक और सुनियोजित था कि साथी मेहतरू देवांगन अगले ही दिन रायपुर के डी. के. अस्पताल मे उनकी शहादत हो गयीं।

वे बताते हैं कि साल 1984 में राजनांदगांव की बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के लाल-हरे झंडे के तले राजनांदगांव कपड़ा मिल मजदूर संघ नाम की यूनियन का गठन किया। इसके नेतृत्व में मजदूरों ने मिल की कार्यदशा, अत्यधिक तापमान और श्रम कानूनों के तहत उपलब्ध सुविधाओं के लिए जुझारू संघर्ष किया।

दल्लीराजहरा के खदान मजदूरों ने इस संघर्ष को सक्रिय समर्थन दिया। खदान मजदूरों की एक सभा मे अपनी गिरफ्तारी के पहले कॉमरेड नियोगी द्वारा 28 अगस्त 1984 को दिया गया भाषण नीचे प्रस्तुत है। खदान मजदूरों के शिक्षण की दृष्टि से नियोगी जी ने जिस तरह राजनांदगाँव में मजदूर संघर्ष का इतिहास तराशा है वह उनकी जन शिक्षण के बारे में गहरी समझ की मिसाल है।

बीएनसी मिल्स (बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स) राजनांदगांव के दो माह के आन्दोलन के अन्दर पूँजीपति वर्ग और प्रशासन ने इस बात को महसूस किया है कि लाल-हरे झंडे की राजनीति केवल खदान मजदूरों की राजनीति नही, केवल किसान वर्ग और आदिवासियों की राजनीति नही है। लाल -हरे झंडे की राजनीति तमाम मेहनतकश वर्ग की राजनीति है। सारी दुनिया की दौलत मजदूर और किसान के खून, आंसू और पसीने से पैदा हुई है। लेकिन इस पर सफेदपोश लुटेरे वर्ग ने कब्जा कर लिया है। मजदूर वर्ग जन आन्दोलन और संघर्ष के जरिये ही इसको पा सकता है।

बीएनसी मिल्स का निर्माण कब हुआ? इसके साथ छत्तीसगढ़ के इतिहास का क्या सम्बंध है? इसको समझना जरूरी लगता है। लगभग 1886 के आसपास बीएनसी मिल्स का निर्माण हुआ। उस समय देश मे ब्रिटिश हुकूमत थी, मिल रियासत के अधीन थी।

अंग्रेजी हुकूमत देश के दूरस्थ इलाकों तक अपना प्रशासन तंत्र का पहुंच बनाने के लिए रेल्वे का विकास किया उसी क्रम में बीएनआर (बंगाल नागपुर रेल्वे) का निर्माण किया। इससे एक ओर छत्तीसगढ़ी जनता के लिए दूर देश जाने का रास्ता बना। दूसरी ओर शोषण करने का रास्ता भी बना। मेहनती छत्तीसगढ़ी जनता को ठेकेदारों ने अन्य स्थानों पर जैसे कोयला खदानों, चाय बागानों, ईंट भट्ठों-मिट्टी कटाई के काम दूर-दराज प्रान्तों ले जाने लगे।

भारत के मजदूर आन्दोलन मे बीएनसी मिल्स के मजदूरों कीअहम् भूमिका रही है। साल 1908 मे जब ब्रिटिश हुकूमत ने बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार किया तब तिलक की गिरफ्तारी के विरोध में अपनी राजनीतिक चेतना की मिसाल प्रस्तुत करते हुए बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने हड़ताल कर दिया। 1920 मे उभरते जंगल सत्याग्रह को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकूमत सत्यग्राहियो पर गोली चलाई उस गोलीकाण्ड मे बादराटोला के नवजवान रामाधीन गोंड शहीद हुआ। इस गोलीबारी के विरोध मे बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने काम बंद किया था।

1948 में बीएनसी मिल्स के हड़ताली मजदूरों पर मोतीतालाब के पास गोली चलाई गयीं जिसमें दो मजदूर साथी रामदयाल, ज्वालाप्रसाद शहीद हूए। 9 जनवरी 1953 को छुईखदान के तहसील कचहरी से कोषालय का खैरागढ़ स्थानांतरित किये जाने के विरोध मे जो प्रदर्शन हुआ उस जंगी प्रदर्शन को तितर - बितर करने लिए भयंकर गोलियां बरसाई गयीं जिसमें 5 लोगों की जाने गयीं 34 प्रदर्शनकारी बुरी तरह जख्मी हूए इस गोलीबारी में पं. द्वारिकाप्रसाद तिवारी, पं.बैकुण्ठप्रसाद तिवारी, समसीरबाई, भूलिनबाई और कचराबी शहीद हुए।

प्रख्यात मजदूर नेता दत्ता सामंत ने बम्बई के टेक्सटाइल मजदूरों के मांगो के समर्थन के लिए 20 दिसम्बर 1982 को अखित भारतीय हड़ताल का आह्वान किया तो बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने बाबू प्रेमनारायण वर्मा की अगुवाई मे उस हड़ताल का समर्थन किया था, जिसके लिए बीएनसी मिल मैनेजमेंट ने साथी प्रेमनारायण वर्मा निलम्बित कर दिया था।

640 करोड़ देकर पुन: चालू करवाने की मांग

कपड़ा मजदूर संघ प्रेम नारायण वर्मा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति, हेमा मालिनी, संतोष पाठे  जैसे सांसद को पत्र लिखकर याद दिलाया है कि प्रधान मंत्री जन्म दिवस का राजनांदगांव की जनता को तोहफा स्वरूप छत्तीसगढ़ एवं राजनांदगाव जिला का एकमात्र सूची उद्योग कारखाना बीएनसी मिल्स राजनांदगांव को प्रोटेक्शन लिवड इसेटिव स्कीम की स्वीकृत राशि से 640 करोड़ देकर पुन: चालू करवाने की मांग की है। 

वर्मा पत्र में लिखते हैं कि 17 सितम्बर विश्वकर्मा जयन्ती के दिन आपका जन्मदिन होने पर राजनांदगांव के मजदूर एवं निवासियों की ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार हो। राजनांदगांव के तत्कालीन राजा बलराम दास ने जिले के लोगों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से वर्ष 1865 में अपनी समस्त पूंजी लगाकर बीएनसी मिल के लिए 50 एकड़ जमीन मुहैया कराया था।

तथा मजदूरों क निवास हेतु 11.58 एकड़ जमीन दिया था तथा रेल्वे लाईन के लिए रेल विभाग को भी जमीन दिया था। उक्त मिल में करीब 4000 से 5000 हजार मजदूरों का जीवन यापन चलता था तथा यहां का प्रसिद्ध मच्छरदानी लट्ठा तथा उत्पादन पर द्वितीय पुरुस्कार प्राप्त हुआ था। नई औद्योगिक नीति के तहत इसे वीआईएफआर डाल दिया गया तथा इस मिल को जानबूझकर वर्ष 2002 में बंद कर दिया गया। 

एनटीसी के नियमानुसार प्रत्येक राज्य में एक सूती मिल का संचालन होना था। परन्तु छत्तीसगढ़ के साथ सौतेला व्यवहार करके इसे बंद कर दिया गया। जिसके कारण क्षेत्र के हजारों मजदूर एवं नौजवान शिक्षित लोग बेरोजगार हो गये हैं। तथा राजनांदगांव का व्यापार भी समाप्त हो गया है। इस मिल को चालू करवाने के लिए राजनांदगांव की जनता एवं मजदूर संगठनों द्वारा कई बार ज्ञापन एवं आवेदन पत्र आपके समक्ष दिनांक 21 जुलाई 2016 एवं 12 सितम्बर 2016 प्रस्तुत किया जा चुका है। 

मार्च 2018 विधान सभी चुनाव के दौरा तत्कालीन कपड़ा मंत्री स्मृती ईरानी ने भी अपने राजनांदगांव चुनाव प्रसार के दौरान मिल की पुन: चालू करवाने का आश्वासन दे चुकी है। हेमामालिनी ने इस मिल को चालू करवाने के लिए चुनाव प्रचार के दौरान चालू करवाने का वादा जनता से कर चुकी है फिर भी आपके द्वारा अभी तक मिल को चालू कराने सम्बन्धी कोई कार्यवाही नहीं हुई है जिससे राजनांदगाव की जनता काफी दुखी एवं निराश है पूर्व में आपको प्रेषित पत्र में स्पिनिंग मिल के लिए 240 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया था। 

मोर्चा द्वारा मिल शुरू करवाने का ब्लू प्रिंट

जो धागा उत्पादन तक ही सीमित था बारदाना कपड़ा उत्पादन प्रिंटिंग के लिए कुल 600 करोड़ की राशि की आवश्यकता होगी। एनटीसी उक्त मिल की खाली जमीन बेकार पड़ी है जिसको कोई उपयोग नहीं रहा है। वर्तमान में दिनांक 8 सितम्बर 2021 को यूनियन के कैबिनेट बैठक में टेक्सटाईल सेक्टर के लिए प्रोडक्शन लिवंड इन्सेटिव (पीएलआई) स्कीम को मंजूरी दे दी गई है तथा इसके लिए 10683 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है।

उक्त मंजूरी मिलने से राजनांदगांव की जनता में उत्साह का माहौल है तथा बीएनसी मिल्स को पुन: चालू होने की उम्मीद जागी है तथा इससे बेरोजगारों को रोजगार एवं शहर की आर्थिक स्थिति पर अनुकुल प्रभाव पडऩे की संभावना है। उन्होंने कहा कि प्रधान मंत्री अपने जन्म दिन पर राजनांदगांव की मिल चालू करने का सौगात देकर जनता को मिले आश्वासन की भरपाई हो सकेगी ।


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