जो मारे गये वे निहत्थे लोग थे माओवादी नहीं
एडसमेटा जांच रिपोर्ट
हिमांशु कुमारसीआरपीएफ की टुकड़ी ने इन आदिवासियों को घेर लिया और बिना किसी चेतावनी के इन आदिवासियों को गोलियों से भून दिया। इन आदिवासियों पर कुल 44 गोलियां चलाई गयीं थीं। जिनमें से 18 गोलियां मात्र एक ही जवान ने चलाई थीं। मारे गए आदिवासियों में से चार नाबालिग थे।

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एडसमेटा गाँव में आठ साल पहले 2013 की बात है। आदिवासी एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपना त्यौहार मना रहे थे। आदिवासी खेती शुरू करने से पहले माटी त्यौहार मनाते है।
इस घटना के बारे में उसी वख्त हम लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा। स्थानीय मीडिया ने भी मामले को उठाया। हमारे साथी इस मामले को कोर्ट में लेकर गये।रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया गया।
अब जांच आयोग की रिपोर्ट की आ गई है। रिपोर्ट में लिखा है कि मारे गये लोग निहत्थे थे। उनके पास कोई हथियार नहीं था। मारे गये लोग गाँव के ही आदिवासी थे उनमें से कोई भी माओवादी नहीं था।
इस रिपोर्ट के आने के बाद आपको ज्यादा खुश होने की ज़रुरत नहीं है। इस रिपोर्ट के बाद भी कुछ नहीं होगा। कोई गिरफ्तार नहीं होगा कोई जेल नहीं जाएगा। मारने वाले और भी हत्याएं करने के लिए स्वतंत्र रहेंगे।
आप कहेंगे ऐसा थोड़े ही होता है। होता है जनाब आदिवसियों के मामले में ऐसा ही होता है।आपको याद होगा इस घटना से ठीक एक साल पहले छत्तीसगढ़ के ही बीजापुर ज़िले के सारकेगुडा गाँव में भी ठीक इसी मौसम में माटी त्यौहार मनाते हुए सत्रह आदिवासियों को सीआरपीएफ ने गोलियों से भून दिया था।
जिनमें नौ बच्चे थे। सरकार कहती रही कि यह लोग माओवादी थे। लेकिन 2019 में जांच आयोग की रिपोर्ट आई कि मारे गये लोग निर्दोष आदिवासी थे। और निहत्थे थे।
जांच दल की रिपोर्ट आने के बाद मैं और सोनी सोरी कमला काका और हजारों आदिवासी बासागुडा थाना गये। हमने दोषी सिपाहियों अफसरों और भाजपाई मुख्यमंत्री रमन सिंह पर एफआईआर दर्ज करने की मांग करी।
पुलिस नहीं मानी तो मैंने आदिवासियों के साथ थाने में अनशन शुरू कर दिया। अगले दिन मेरे पास मुख्यमंत्री के सलाहकार का फोन आया कि आप अभी उपवास समाप्त कर दीजिये हमें तीन महीनें का समय दीजिये हम दोषियों पर ज़रूर कार्यवाही करेंगे।
इस बात को भी डेढ़ साल बीत चूका है। आज तक कांग्रेस सरकार ने जांच आयोग की रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं करी है। इससे पहले मानवाधिकार आयोग की जांच दल की रिपोर्ट में माना गया था कि कम से कम सोलह आदिवासी महिलाओं के पास इस बात के सबूत मौजूद हैं कि उनके साथ सुरक्षा बलों के जवानों ने बलात्कार किये हैं।
लेकिन उस रिपोर्ट के बाद भी किसी जवान के ख़िलाफ़ ना कोई रिपोर्ट लिखी गई ना किसी को सज़ा हुई। आज भी जवान लगातार हत्याएं बलात्कार कर रहे हैं कोई रोकने वाला नहीं है।
इन मामलों पर बोलने वाले अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासियों के मुकदमें लड़ने वाले अनेकों वकीलों को मोदी सरकार ने जेल में डाला हुआ है। गाँव को लूट कर शहरों के विकास का यह माडल खून से भरा हुआ है।
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