अंतागढ़ चुनाव और जनपक्षधर पत्रकारिता की नई शुरूआत
उत्तम कुमारफेसबुक का शुक्रिया कि इसने मेरे जिंदगी में आई नई शुरूआत का दिन 3 सितम्बर 2014 की याद ताजा कर दी। हालांकि फेसबुक ने ‘कश्मीर पर लिखना अभी बाकी है’ लिखने से मुझे 30 दिन के लिये प्रतिबंध कर दिया है लेकिन यादों से रूबरू करवा रहा है। अक्सर यादों को मैं साझा करता हूं लेकिन इस याद से मानो जैसे मैंने नई कॅरियर की शुरूआत करी है। बड़े अखबारोंं से पत्रकारिता तो करते ही आ रहा था। लेकिन पत्रकारिता को नई राजनीति के करीब ले जाने और देखने का नजरिया बदला। इस वर्ष के अगस्त माह को मैंने आदिवासी नेता अर्जुन सिंह ठाकुर के साथ झारखंड की लंबी यात्रा में निकल गया था। और सितम्बर के महीने में नक्सलवाद के आरोप से मुक्त होने रूपधर पुड़ो से आंबेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया (एपीआई) ने पहली बार नई राजनीति की शुरूआत की थी।

चुनाव में मुर्गा-बकरा पार्टी चला। सारे चुनावी आचार संहिताओं का खुलेआम उल्लंघन हुआ। एपीआई ‘कोट’ चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ रही थी। जिन लोगों को कहा जाता है कि ईव्हीएम में मनमाफिक चुनाव चिह्न में वोट का बटन दबाने नहीं आता वह सबसे भ्रष्ट पार्टी भाजपा के प्रत्याशी को चुनाव में जीता कर ले लाया था।
मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा लेकिन केस कमजोर होने के नाते सारे आरोपियों को कोर्ट एक एक कर आरोपों में फंसने से पहले मुक्त करता गया। इस चुनाव में मैंने तीन पर्चा इस पार्टी के लिये लिखा था।
चुनाव के सुगठित संचालन की एक छोटी कोशिश भी इस चुनाव में करने को मिला था।
एक तो अंतागढ़ उप चुनाव के लिये दूसरा नमोशुद्रों के लिये तथा तीसरा आदिवासियों के लिये। हमने अधिवक्ता नरेन्द्र बन्सोड़ के साथ भानुप्रतापपुर से बांदे के बीच कोंडे से 3 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में दरगढ़ में अपना ऑफिस बनाया था।
इस चुनाव में कांग्रेस ने किसी अपरिहार्य कारणवश चुनाव नहीं लड़ा था। इस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। उस पर अभी समय बर्बाद नहीं करूंगा।
कांग्रेस के प्रत्याशी और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर कई आरोप लगे थे। लगभग सभी प्रत्याशियों को बैठा दिया गया था या फिर खरीद लिया गया था। भाजपा के खिलाफ एकमात्र प्रत्याशी रूपधर पुड़ो चुनाव मैदान में अपने अस्मिता और अस्तित्व के साथ नक्सलवाद के आरोप से मुक्ति की लड़ाई भी लड़ रहे थे।
चुनाव के दौराव उन्हें भूूमिगत तक होना पड़ा। उन्हें भी खरीदने की कोशिश हुई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भाजपा को निर्विरोध चुनाव जीतने के लिये उनके पक्ष को गलत ढंग से खबरों में चलाया गया। चुनाव के बाद पुड़ो का कद काफी ऊंचा हो गया था। अब पुलिस या सुरक्षा बल उनके घर में जाकर दबिश देने का साहस नहीं करते हैं।
इस अंतागढ़ उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ एकमात्र प्रत्याशी एपीआई के रूपधर पुड़ो का मुकाबला दो धु्रवी ब्राह्मणवाद व आंबेडकरवाद की लड़ाई का रूप ले लिया था।
पुड़ो ने चर्चा में जो जमीनी हकीकत बताई, वह किसी आतंक से कम नहीं था। बस्तर मेें चुनावी स्थिति किस से छुपा हुआ है यह लोकतंत्र के लिये परीक्षा और शर्मनाक घड़ी था।
और देश में शासन के नाम पर तानाशाह शासन करेंगे जैसी स्थितियों को यहां रूबरू देखा गया था। मैंने ऐसी भयानक ग्राउंड रिपोर्टिंग पहली बार किसी कान्फिलिक्ट जोन में किया था। जिसे आप ‘दक्षिण कोसल’ के पहला अंक अक्टूबर 2014 में पढ़ सकते हैं।
जो खबरे छन कर आ रही थी उससे जाहिर है कि सभी प्रत्याशियों को भाजपा ने खरीदने की पूरजोर कोशिश की। अंतिम समय तक पुड़ो को विरोधियों द्वारा मनमाफिक प्रलोभन व उन्हें तौलने की कोशिश की गई। बैठा दिये गये सारे प्रत्याशियों को लालच और डराने-धमकाने की कोशिश की गई।
एपीआई के प्रत्याशी रूपधर पुड़ो ने बताया कि -‘भाजपा ने निर्विरोध चुनाव जीतने के लिए चुनाव मैदान में तानाशाही के साथ सभी प्रत्याशियों को खरीदने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति के साथ सभी हथकंडे अपनाएं।’
उन्हें व उनके प्रस्तावकों व समर्थकों को खरीदने के साथ झूठे पुलिस केस में फंसाने के साथ डराने-धमकाने की कोशिश की गई। वे कहते है कि इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव में मुख्यधारा में आकर कोई भी भारतीय नागरिक चुनाव लडक़र शासक बन सकता है।
लेकिन उस समय शासन में बैठी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रतिद्वंदियों के साथ छोटी पार्टियों को भी खरीदने में जोर आजमा कर अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था।
भाजपा मुख्यमंत्री का नाम लेकर उनके प्रतिनिधि मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों को ऐन-केन-प्रकरण हटाने जुटी दिखी। पुड़ो ने चुटकी लेते हुए कहा था कि- ‘सच कुछ समय के लिए हैरान व परेशान हो सकता है लेकिन सच मरता नहीं है।’
आदिवासी होने के साथ आदिवासियों का दर्द को मैं बखूबी जानता हूं। आज भी वे प्राचीन इतिहास के पन्नों से आगे तथाकथित आधुनिक भारत में गायब हैं।
अधिकांश आदिवासियों को आज ‘नक्सवाद’ के नाम पर झूठे प्रकरणों में फंसाकर जेलों में ठूंसा जा रहा है। गोलियों से भूना जा रहा है और महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। उनके हक व अधिकार सरकार के योजनाओं व क्षेत्र में पहुंच रहे धन-दौलत के नीचे पट गए हैं।
एपीआई पार्टी के पास घोषणा पत्र के बरक्स नीति अभिवचन थे। इस तरह यह देश की पहली पार्टी थी जो अपनी शासनकर्ती नीतियों की घोषणा चुनाव के पूर्व कर दी थी। वे कहते हैं कि उनकी पार्टी 22 नीतियों के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी।
वह बस्तर की सूरत बदलना चाहते हैं। संविधान को कड़ाई से लागू करने के साथ संविधान में 244 (1) 5वीं, 6वीं अनुसूचियों व पेसा कानून को जमीनी स्तर पर लागू करवाएगी।
यहां यह बता देना चाहता हूं कि हाल ही में देश में इस पार्टी की पहल पर पेसा नियम लिखा गया है। और उसकी प्रति को राज्यपाल को देने की कोशिश हो रही है।
राज्यपाल ने अब तक इस पार्टी के नेताओं को नये बनाये गये पेसा नियम पर बातचीत के लिये बुलाने और नई पेसा नियम पर चर्चा के लिये समय नहीं दिया है।
पुड़ो उस समय कहते थे कि पूरे क्षेत्र को शांतिमय बनाने के लिए पुलिस व अर्धसैनिक बलों की तैनाती को खत्म कर उन्हें बैरक में भेजने के लिए माहौल बनाने कार्य करेंगे। विशेषकर आदिवासियों की जमीन व उसकी संस्कृति के रक्षा करने के लिए आंबेडकराईट पार्टी कार्य करेगी।
पार्टी सीमित संसाधनों के साथ आंबेडकराईट विचारधारा को बस्तर सहित पूरे भारत में फैलाकर मूलनिवासियों की राजसत्ता के लिए कार्य करने की वकालत करती है। उन्होंने कहा था कि सत्ता पक्ष द्वारा भय का माहौल के बावजूद वह सच्चे लोकतंत्र के लिए कार्य करेंगे व चुनाव लड़ेंगे।
उन्होंने यह भी बताया था कि 2019 तक वह लोकसभा, विधानसभा सहित निगम व पंचायत चुनाव में उतरकर देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी की मान्यता हासिल कर लेंगे।
उनका भविष्यवाणी गलत साबित हुआ लेकिन पार्टी के चंद लोग आज भी एपीआई के नीतियों और अभिवचनों को लेकर आदिवासियों के बीच आदिवासी मुख्यमंत्री और आदिवासी राजसत्ता की बात करते नजर आते हैं। सोशल मीडिया में लाखों लोग उनके सपनों में जीते हैं।
उनका कहना था कि उनकी पार्टी बाबा साहब आंबेडकर की विचारधारा, उनकी संविधान व उनके बौद्ध धम्म पर चलकर पूरे देश से गुलामी की जंजीरों को तोड़ेंगे। आज भी वे कहते हैं कि देश की जातीय पूंजीपतियों व जातिवाद के खिलाफ ब्राह्मणवाद को खत्म करने संघर्ष करेंगे।
वे कहते हैं कि उनकी पाटी कैडर आधारित संगठन एंबस (आल इंडिया मूल निवासी बहुजन समाज सेंट्री संघ) के तले एपीआई (आंबेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया) के सभी कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव में लोगों के घर-घर जाकर आदिवासियों व बांग्लादेशी विस्थापितों के अधिकारों के लिये लगातार संघर्ष करने की बात करते हैं।
इस चुनाव के समाप्ति की बाद एंबस और एपीआई को आदिवासी क्षेत्रों में हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन यह हार जैसे हम सभी के लिये नये जीत का जश्र उत्सव था।लेकिन उन्हें कार्य करने का व्यापक अवसर मिला।
लेकिन यह पार्टी अब तक अपने जन समर्थन और जनाधार पर कार्य नहीं किया है। और ना ही लोगों को एकजुट करने में सफल हो सका है। हां उनके नेताओं के चौंकाने वाले भाषण सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना रहता है।
इस चुनाव के बाद एक और ऐतिहासिक घटना घटती है मैंने 'दक्षिण कोसल'का सम्पादन की जिम्मेदारी उठाई और लगभग सात सालों तक इस जिम्मेदारी को पूरा किया।
अपरिहार्य कारणों से अब ‘द कोरस’ के रूप में नई जिम्मेदारी मार्च 2021 से अपने हाथों लिया है। पत्रिका के डिजीटल वर्सन को लोगों तथा पाठकों ने अच्छा प्रतिसाद दिया है।
बहरहाल पार्टी के अध्यक्ष विजय मानकर ने हाल ही में राजनांदगांव में चुनावी मिशन विधान सभा तथा लोक सभा 2023-24 की घोषणा कर दी है। खुद विजय मानकर चुनाव लडऩे के लिये आतुर हैं।
उनका दावा है कि वे छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी क्षेत्रों से जीत कर सांसद के रूप में चुनकर लोक सभा पहुंचेंगे। और आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों के लिये संविधान में व्यापक बदलाव लाकर पेसा नियम को लागू कर आदिवासियों को उनका जल, जंगल, जमीन के साथ संस्कृति की रक्षा के लिये कार्य करेंगे।
अब देखना है कि पार्टी के अध्यक्ष विजय मानकर का यह भविष्यवाणी क्या आने वाले चुनाव में सच साबित होता है या नहीं?
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