ओबीसी की जातियां क्षत्रिय मेहनतकश जातियां हैं?
द कोरस टीमजाने माने पत्रकार दिलीप सी मंडल ने अपने फेसबुक वॉल में ‘कृष्ण’ का जिक्र कर सोशल मीडिया में कोहराम मचा दिया है। उन्होंने अपने वॉल में लिखा है कि जो ब्राह्मणों के खिलाफ विरोध में डटे, उनका उपनयन (जनेऊ) बंद कर दिया गया, वे शूद्र कहलाए। उन्होंने दावे के साथ कहा है कि ओबीसी की जातियां हमेशा वर्ण क्रम में नीचे नहीं रही हैं। ये क्षत्रिय मेहनतकश जातियां है।

जनता के लोकप्रिय राजा कृष्ण ने वर्ण को कर्म के हिसाब से ही बनाया था। खुद खेतिहर-पशुपालक समुदाय के थे। अपने लोगों को नीचे क्यों रखते? लेकिन आगे चलकर, धर्म ग्रंथों के व्याख्याता होने का अनुचित लाभ उठाकर ब्राह्मणों ने खुद को सबसे ऊपर रखने और विशेषाधिकार की जिद कर दी।
उनकी मांग थी कि वे धरती पर देवता के अवतार यानी भूदेव हैं, इसलिए उन्हें अपराध करने पर भी सजा न हो और वे लगान वग़ैरह कुछ नहीं देंगे। इस बात पर, उनका क्षत्रियों के साथ संघर्ष हो गया। जिन्होंने दबदबा मान लिया वे क्षत्रिय बने रहे। लेकिन उनको ब्राह्मणों की श्रेष्ठता माननी पड़ी।
जो विरोध में डटे, उनका उपनयन (जनेऊ) बंद कर दिया गया, वे शूद्र कहलाए। ओबीसी की जातियां हमेशा वर्ण क्रम में नीचे नहीं रही हैं। ये क्षत्रिय मेहनतकश जातियां है। नंद, मौर्य, पाल, शाक्य, वाडियार, अहीर, निषाद, चोल ये सब राजा ही तो थे। बल्कि ज़्यादातर राजा यही लोग थे। इन जातियों को बाद में नीचे गिराया गया। इन्होंने ब्राह्मण वर्चस्व को स्वीकार नहीं किया। इसलिए इनका जनेऊ संस्कार बंद कर दिया गया।
पहले तीन ही वर्ण हुआ करते थे। ब्राह्मण-क्षत्रिय संग्राम में चौथे वर्ण का प्रादुर्भाव हुआ। ज्ञान पर कंट्रोल न होने के क वीारण क्षत्रिय वर्ण के एक बड़े हिस्से का शूद्रों के रूप में पतन हुआ।
इसलिए ओबीसी को शिक्षा पर खूब निवेश करना चाहिए। यही चीज उन्हें फिर से श्रेष्ठ बनाएगी। दिलीप मंडल के वॉल में बहस यहीं तक नहीं रूकती है। पूणम मौर्या लिखती है कि दिलीप सर क्या बात पोस्ट आप अपने अध्ययन के अनुसार डालते हैै, लेकिन जो हमारा ओबीसी नौ जवान और युवा है, जो सिर्फ क्लास दर क्लास 14 - 16 दर्जा को ही पढ़ाई समझता है वो गोवरिष्ट नामधारी यादव, मौर्य, जाटव ये क्यों बिलबिला जाते हैं।
जहां तक मैं समझती हूं हो सकता है कि संघ भाजपा आईटी सेल के नाम है अन्यथा गोबर को गणेश माने वाले तो हैं ही इनको क्या मालूम कि महिषासुर/दुर्गा की असली कहानी क्या हैै? बेचारे अपने महापुरूषों को पढ़ते ही कहां हैं। बस अपनों से लडऩे आ जाते हैं।
दिनेश पॉलीवाल लिखते हैं अखिल ब्रह्मांड नायक, राधारमण श्री कृष्ण के अवतरण दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। कृष्ण जी का अवतरण वैवस्वत मनवंतर के 28 वें द्वापर युग मे हुआ था। भगवान के अवतरण का प्रमुख उद्देश्य होता है शास्त्रीय मर्यदा के अनुसार धर्म की स्थापना करना व भक्तों को आनंद प्रदान करना। जिस प्रकार आज धर्म के नाम मे मनमानी की जा रही है वो दरसल धर्म नही अपितु राजनीतिक दलों व गैर परंपरा के व्यक्तियों के द्वारा प्रायोजित भ्रम है।
कृष्ण जी का वंश परिचय
वंश - चंद्रवंश
कुल - यदुकुल/यदुवंश/यादव
शाखा - वृष्णि
कुलगुरु - महर्षि गर्ग जी
वर्ण - क्षत्रिय
भगवान कृष्ण अपने अवतार के संबंध में कहते हैं?
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
भगवान अवतार लेने के विषय में कहते हैं जब जब धर्म की हानि होती है धर्म की हानि से तात्पर्य है शास्त्रीय नियमों से हीन आचरण व वैदिक नियमों की अवेहलना। तब तब भगवान अवतार लेकर दुष्टों का अंत करके पुन: धर्म की स्थापना करते हैं, धर्म की स्थापना से तात्पर्य शास्त्र में बताये मार्गो को पुन: प्रसस्त करना-
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
भगवान कहते हैं साधुओं की रक्षा करने के लिए (साधु से तात्पर्य भगवान के भक्त, शास्त्र के बताए मार्ग में चलने वाले सज्जन, वर्ण आश्रम धर्म का पालन करने वाले) व दुष्टों का संहार करने के लिये (दुष्ट से तात्पर्य शास्त्रीय मर्यदा से हीन मनुष्य, निसिद्ध करने न योग्य कर्म करने वाला,वर्ण आश्रम धर्म का पालन न करने वाला) भगवान हर युग अवतर ग्रहण करते हैं व धर्म की स्थापना करते हैं।
अंतत: जो योगेश्वर स्वयं मुख्यत: शास्त्र अनुसार धर्म स्थापना के लिए आते हैं, शास्त्रीय मर्यदा से हीन पतितों का संहार करते हैं उन योगेश्वर का नाम लेकर अधिकतर लोग शास्त्र द्रोह व ब्रह्मद्रोह करते हैं। कृष्ण कभी भी पतितों को नही छोड़ते जो कृष्ण शास्त्रीय मर्यदा से इतर आचरण करने वाले अपने कुटुंब का स्वयं संहार कर देते हैं व चेहरे में शिकन तक आती नही वो कृष्ण भला शास्त्र द्रोही व ब्रह्मद्रोही पतितों को कैसे छोड़ सकते हैं।
अगर कृष्ण को मानते हो तो कृष्ण की बात भी मानो अन्यथा पतितों का नाश करने में उन्हें क्षण भर भी समय नही लगता जीवन के अंतिम पड़ाव में कृष्ण के द्वारा दंड पतितों को मिलता ही है।
सुनील खोब्रागढ़े लिखते हैं कि सर वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर हो या कर्म के आधार पर हो, किसी भी रुप मे इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। कृष्ण एक लिटररी कॅरेक्टर है, उसे एक ऐतिहासिक पुरुष बनाकर शूद्र - बहुजन लोगों पर मत थोपिये।
चौधरी अजातशत्रु मौर्य लिखते हैं आखिर मंडल घूम फिर के क्षत्रिय वाला इतिहास में घुस ही गया। कुछ भी हो जाए इस ब्राह्मणी वयवस्था में ही बने रहना चहते हो। और मौर्य वंश शूद्र या क्षत्रिय नहीं बल्की लड़ाकू लोग थे जो अवर्ण थे और गैर-हिंदू थे। ना मौर्य हिंदू क्षत्रिय था ना अशोक, सारे श्रामण सम्प्रदाय (जैन व बौद्ध) के लोग थे।
आर आर बेग लिखते हैं कि इसमें और भी मजे की बात है। देवकी जी अपने संबोधन में हमेशा वसुदेव को ‘हे आर्यपुत्र’ कहके हमेशा संबोधन करती है। इसमें समझने वाली बात यही है की वसुदेव जी अगर आर्य थे तो उनके पुत्र आर्य होंगे ना कि अहिर होंगे। आप इसमें पुराण या टीवी सीरियल को भी संदर्भ के रूप में ले सकते हैं।
हमारा मानना है की अहीर जो शब्द है यह प्राचीन है और यादव शब्द से भी प्राचीन है अहीर शब्द। अगर हम देखेंगे अहीर शब्द और ही शब्द से निकला हुआ है। ‘अही’ का मतलब नाग है।
नाग नाम से रामायण और पौराणिक काल में बहुत सारे नाम और किससे वर्णित है और उनके नाम सारे के सारे बुद्धिस्ट नागवंशी राजाओं से मेल खाते है। गीता में अहीर शब्द का मेरे ख्याल में एक बार भी जिक्र नहीं हुआ है। याने अहीरों की यादवकरण मतलब ब्राह्मणी करण हुआ है।
छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थित अहीर धर्मशाला जो कि भारत के प्राचीन धर्मशाला में उस में से एक है। जब मैं उनको पूछा कि आप यादव धर्मशाला के बजाय अहिर धर्मशाला क्यों लिखे हो तो उनका मानना था कि जब धर्मशाला बना तो यादव शब्द हमारे दिमाग में ही नहीं आया। दिमाग में अगर आधा चम्मच दिमाग भी डाल दिया जाए और थोड़ा बहुत समझा जाए तो भी यह विषय को समझा जा सकते हैं।
यह विमर्श यहीं नहीं थमता है छत्तीसगढ़ के गुरुघासीदास सेवादार संघ के मुखिया लखन सुबोध में मुझे लिख भेजा है कि लोक - गोप समाज के सम्पत्ति - सम्मान हड़पने वाले आर्यों के सर्वोच्च देव/ सेनापति इंद्र से जन युद्ध कर विजयी हुए।
लोक युद्ध के नायक श्री कृष्ण की जन्म उत्सव तिथि [कृष्ण जन्माष्टमी] पर क्रांतिकारी शुभकामनाएं। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में लोक - गोप समाज ने जिन लोकदमनकारी सत्ता से विजयी संघर्ष किया था, वे आज पुन: नए संस्करणों में उग आऐ हैं। उनके खिलाफ जन संघर्ष का बिगुल बजाऐं और श्रीकृष्ण की बांसुरी की प्रेम धुनों से समतावादी सत्ता- समाज बनाने आगे बढ़े।
श्रीकृष्ण के वास्तविक इतिहास को लोकदमनकारीयों ने उसे अपने पक्ष में झूठे-मैथोलोजी गढऩे-बसाने के खिलाफ सजग बनें। यहां इस संबंधी ‘कैडर बुक’ के कुछ संकलित अंशों को पढऩे कहा कि -‘लोकसमाज के पाले हुए पशुओं को धर्म के नाम पर लूटना और यह लूट सिर्फ अनाज दूध, दही लूटने तक सीमित नहीं था यज्ञों में पशुओं की बलि चढ़ाना भी था। वेद एवं पौराणिक कथाओं में आर्यों के प्रधान देव इंद्र का लोक समाज [अनार्यसमाज] के जननायक श्री कृष्ण के साथ हुए गोवर्धन युद्ध को याद कीजिए।
श्री कृष्ण ने इंद्र - देव समाज के दूध,दही, गौ - लूट के खिलाफ एक विजयी अभियान चलाया था। इस महान संघर्ष - इतिहास को आज आर्य पंडितों ने मिथक रूप से प्रचारित कर हमसे वास्तविक अंर्तकथा को लुप्त कर दिया है। लेकिन खोजी नजरिया से इसे भलीभांति समझा जा सकता है।
रावतनाचा आज भी छत्तीसगढ़ में जोर - शोर से मनाते देखा जा सकता है।लेकिन विडम्बना है कि, इसे सिर्फ नाचा मानकर लोगों को इसके वास्तविक इतिहास से भिन्न नहीं कराया जाता है।
यह रावत नाचा की पृष्ठभूमि एक क्रांतिकारी घटना से संबंधित है। जब आर्य देवों-इंद्र द्वारा लोकसमाज से अन्न, धन, दूध, दही, गौधन के लूट के खिलाफ श्री कृष्ण के नेतृत्व में लोकसमाज द्वारा इंद्र के हमले के खिलाफ एक युद्ध लड़ा गया था। जिसमें लोकसमाज की विजय हुई।
इस विजय के उपलब्ध में पारंपरिक रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार ही रावत नाचा है। चूंकि श्री कृष्ण को आर्यों ने बाद में विशेष रणनीति के तहत [जैसा की आज भी विशेष कूटनीति के तहत बहुप्रचारित रूप से गुरुघासीदास, डॉ. अम्बेडकर आदि महापुरुषों को अपनी मंडली में शामिल कर इनके अनुयायिओं को अपने जाल - फांस में रखने के लिए यह कसरत करते हैं कि, ये हमारे देव हैं।] चालाकी पूर्वक अपने देवमंडली में शामिल कर उनके वास्तविक कार्यो को दबाते -छिपाते अनान्य चीजों को प्रचारित किया गया।
श्री कृष्ण का एक नाम [ संज्ञा विशेषण रूप में ] ‘इंद्र दमन’ भी है। स्पष्ट है कि, इंद्र देवों/आर्यों के प्रधान देव - सेनापति प्रधान थे। श्री कृष्ण इंद्र दमन है तो निश्चित रूप से वे अनार्य लोकसमाज के नायक रहे। वेदों में राम का जिक्र कहीं नहीं आता क्योंकि इनकी कथा को वेदकाल के बाद रचा- गढ़ा गया।
लेकिन शिव, कृष्ण का नाम वेदों में मौजूद है और यह भी कि, वे देवों/आर्यों के विरोध पक्ष के नायक रहे। शिव और कृष्ण देव तानाशाही के खिलाफ लोक सामाजिक सत्ता [लोकशाही] के पुरोधा रहे। इसलिए शिव के साथ गण (जन) एवं श्रीकृष्ण के साथ ‘ग्वाल बाल’ (गोपालक लोग बाग) के जुड़े होने के ‘मर्म’ को समझा जा सकता है।
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31/08/2021
कैलाश दहिया
गलत आलेख। यह दलितों-पिछडों को ब्राह्मण के चंगुल में फंसाए रखने का जाल है।iyxm
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