मृत्युभोज नहीं किया, विद्यालय का प्रवेश द्वार बनवा दिया!

भंवर मेघवंशी

 

उन्होंने न बारह दिनों में अतार्किक रिवाजों को माना और न ही बारह दिन बाद होने वाले मृत्युभोज के लिए सहमति दी.

बड़े बुजुर्गों ने कहा कि लड्डडु न सही, हलवा पूड़ी ही बना दो.

जब उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया तो सामाजिक पंचों ने दाल रोटी ही कर देने की सलाह दे दी, ताकि मरण भोज की प्रथा तो जीवित रहे.

लेकिन पुखराज बोस और उनके पिताजी फगलू राम, बड़े भाई चेला राम,  छोटे भाई देदा राम सब एकमत रहे और तय किया कि ग़ैर क़ानूनी मृत्यु भोज किसी भी क़ीमत पर नहीं करेंगे.

इसके बाद राणीगाँव के बोस परिवार ने अपने विद्यालय का प्रवेश द्वार अपनी माँ की स्मृति में बनवा कर शिक्षा के प्रति अपने अनुराग और सामाजिक जागरूकता का परिचय देकर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है.


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