सोनेसिली में 51 साल से कृषि मामले में उच्च न्यायालय से मिला स्टे
चर्चित भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सोनेसिली के ग्रामीणों को सरपंच गोमेश्वरी साहू, सरपंच पति अजय साहू और उपसरपंच ताराचंद साहू तथा ग्राम के अन्य लोगों को गुमराह कर उस भूमि को अवैध कब्जा बताकर बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाकर कास्तकारी कर रहे 23 परिवारों को जबरदस्ती जमीन से बेदखल कर दिया गया था। मामले पर प्रभावित परिवारों ने राजधानी रायपुर में मंत्रियों के घर में जाकर दस्तक दी तथा बूढ़ातालाब में प्रदर्शन किया लेकिन उन्हें कहीं भी राहत नहीं मिली। आखिर थकहार के परिवार बिलासपुर उच्च न्यायालय में न्याय की गुहार लगाई जिस पर न्यायालय ने मामले में आगामी आदेश तक उक्त भूमि पर पूर्व की भांति यथास्थिति बनाए रखने का सुकूनभरा आदेश पारित किया है।

अब गरीबों की आजीविका छिनकर गौठान निर्माण, खेल मैदान और वृक्षारोपण पर लगी रोक लग गई है। प्रभावितों के चेहरे में मुस्कान लौट आई है।
गोबरा नवापारा तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत सोनेसिल्ली के 23 गरीब भूमिहीन परिवारों को 1970 में तत्कालीन ग्राम पंचायत कुर्रा आश्रित ग्राम सोनेसिल्ली में शासन द्वारा जीवन यापन के लिए सामूहिक कृषि समिति बनाकर भूमि प्रदान की गई थी।
जिस पर प्रभावित परिवार 51 साल से कास्तकारी करते आ रहे थे। अब यह परिवार आज 58 परिवार में तब्दील हो चुका है। इस प्रभावित परिवार में करीब 350 सदस्य हैं।
लेकिन हाल ही में सरपंच गोमेश्वरी साहू, सरपंच पति अजय साहू और उपसरपंच ताराचंद साहू ग्राम के अन्य लोगों को गुमराह कर दादागिरी के साथ उस भूमि को अवैध कब्जा बताकर बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाकर कास्तकारी कर रहे 23 परिवारों को जबरदस्ती जमीन से बेदखल कर दिया था।
5 अगस्त को उस भूमि पर सरपंच, उपसरपंच, सरपंच पति और अन्य पंचायत पदाधिकारियों के द्वारा गौठान निर्माण हेतु जबरन भूमि पूजन कर दिया गया था। साथ ही खेल मैदान तथा वृक्षारोपण हेतु उसी भूमि में से आरक्षित करने की कार्यवाही शुरू कर गई थी।
हद तो तब हो गई जब बोई गई धान फसल को प्रशासन की मौजूदगी में पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा मवेशी से चरा दिया गया था। 51 सालों से संजो कर कास्तकारी कर जीवन यापन करने वाले 23 परिवार के समक्ष खून के आंसू रोने के आलावा कुछ बचा ही नहीं था।
.अपने जमीन और आजीविका को बचाने प्रभावित किसान मय परिवार शासन प्रशासन और मंत्रियों के दरवाजे तक जाकर अपनी गुहार लगा चुके थे लेकिन मजाल है, किसी ने उनकी एक ना सुनी।
इससे छुब्ध होकर अध्यक्ष बिसहत साहू और सदस्यों द्वारा अधिवक्ता श्रिया मिश्रा के माध्यम से राज्य के उच्च न्यायालय बिलासपुर के न्यायधीश गौतम भादुड़ी के समक्ष रिट याचिका दायर किया गया था। जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय न्यायधीश ने 16 अगस्त को इन प्रभावित किसान परिवारों के पक्ष में सुकूनभरा फैसला सुनाई।
न्यायालय ने कहा कि आगामी आदेश तक उक्त भूमि पर पूर्व की भांति यथास्थिति बनाए रखा जाये। इससे स्पष्ट है कि ये गरीब और दमित किसान अब पूर्व की तरह अपने जमीन पर उत्पादन ले सकेंगे।
पीडि़त किसान बिसहत राम साहू, विजय यादव, पंचूराम साहू, त्रिलोचन यादव, नंदलाल तारक, रामकुमार, साहू, उमा बाई साहू, दूमेश्वरी साहू, लिखेश्वर साहू, लीलाबाई यादव, युवराज तारक आदि का कहना है कि हम शासन प्रशासन और मंत्रियों से फरियाद करते करते थक चुके थे ऐसे में माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा स्टे मिलने से हमारी जमीन और आजीविका दोनो सुरक्षित हुआ है।
मामले में शुरू से नेतृत्व दे रहे प्रख्यात किसान नेता तेजराम विद्रोही ने कहा कि न्यायालय का यह फैसला प्रभावित किसानों के जमीन और आजीविका को सुरक्षित तो करता ही है साथ ही लोकतंत्र में न्याय के प्रति लोगों के भरोसे को मजबूत भी करता है।
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