भारत की गुलामी के गुनाहगार कौन?
एम एल परिहारआज हम देश की उस आजादी का जश्न मना रहे हैं जिसके लिए हर क्षेत्र के देशप्रेमियों ने अपना त्याग व बलिदान दिया था. मेहनतकश किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, सेनानी, क्रांतिकारी, लेखक, विचारक, नेता आजादी के मतवालों ने अपना योगदान दिया. सभी को याद कर नमन करते हैं. यह हमारा गौरव दिवस है.

लेकिन यह भी सवाल ज़हन में आता है कि आखिर इस देश की गुलामी के गुनाहगार कौन थे, जिनके स्वार्थ व देश के साथ दगेबाजी के कारण अपार धन, सम्पदा, गौरवशाली संस्कृति वाला देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा? जिसकी शिक्षा व संस्कृति को सिखने के लिए लंबी जोखिम भरी यात्राएं पार कर जिज्ञासु इस भू-भाग पर आते थे.
आखिर वे कौन लोग थे जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों को अपने स्वार्थ के खातिर भारत में आमंत्रित किया? अशोक महान के शासन काल तक सीमाएं इतनी सुरक्षित थी कि किसी विदेशी ने भारत पर आंख उठाने की हिम्मत नहीं की लेकिन बाद में ऐसा किसने कराया कि एक के बाद एक आक्रमणकारी कबीले आकर यहां लूटते पीटते रहे और यहां के शासक आपस में ही लड़ते रहे. आखिर बौद्ध काल तक सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश हर लिहाज से कंगाल कैसे हो गया?
आज यह विचार करना भी जरूरी है कि विदेशियों की सत्ता को लंबे समय तक बनाए रखने में मददगार कौन थे? वफादार दलितों आदिवासियों ने विदेशियों को रोकने व खदेड़ने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर किया जबकि कई लोगों ने विदेशियों के लिए पलक पांवड़े बिछाए. आखिर मुगलों के खिलाफ बगावत क्यों नहीं हुई?
शोषित वंचित उपेक्षित समाज का सदियों तक शोषण कर सत्ता पर कौन काबिज रहे? नई पीढी को मालूम होना चाहिए कि अग्रेजों के पिट्ठू कौन थे? विदेशी शासकों को यहां लंबे समय तक जमाए रखने के मददगार कौन थे?
गरीबों का शोषण कर खुद की विलासिता का जीवन जीने वाले कौन थे? विदेशी बार बार लूटपाट मारकाट करते रहे लेकिन बहुसंख्यक बहादुर कौमों को लड़ने से वंचित कर हांसिए पर पटकने वाले और खुद पूजा स्थलों व महलों की विलासिता में डूबे रहने वाले कर्णधार कौन थे?
जिस सम्राट को अशोक महान कहा जाता है बुद्ध की शिक्षाओं के साथ एक चौथाई धरती पर जिसका मानवीय साम्राज्य फैला हुआ था, प्रजा सुखी थी ऐसे समाज व शासन के खात्मे के लिए विदेशी आक्रमणकारी की मदद किसने की थी?
कौन थे वे लोग जिनके सह पर नालंदा, तक्षशिला जैसे दसों विश्वविख्यात केन्द्र भस्म कर दिए गये? जानना जरुरी है ताकि गुलामी का इतिहास फिर न दोहराया जाए.
आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम1857 माना जाता है लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल तो 1780 से 84 और 1804 से 07 मे ही बज चुका था जब दलितों आदिवासियों ने बगावत की थी. कई जनों को फांसी पर चढाया. अलीगढ़ गनौरी किले में 250 अग्रेज सिपाहियों को मारने वाला शहीद उदइया चमार ही था.
1857 के सिपाही विद्रोह का नायक भी मातादीन मेहतर था जिसे फांसी दी थी. 1857 के संग्राम में शहीद होने वाले चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर ने सोरो, एटा की क्रांति के अग्रणी थे जिन्हें सजा मिली, पेड़ पर बांधकर गोलियों से उड़ा दिया.
राजस्थान के बांसवाड़ा आदिवासी क्षेत्र के मानगढ़ में डेढ हजार आदिवासी एक साथ शहीद हुए थे. खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी की झलकारी थी. दलित वीरांगना महावीरी मेहतर की बाईस महिलाओं की टोली ने दर्जनों अग्रेजों को मारा था.
1919 मे जलियांवाला बाग नरसंहार के मुजरिम जनरल डायर को कई साल बाद मारने वाले शहीद उधमसिंह को इतिहास के पन्नों में स्थान क्यों नहीं मिला ? यह जानना जरूरी है ताकि आगे इतिहास सही लिखा जाए.
26 जनवरी1942 को सुभाषचंद्र बोस ने जब "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा" की अपील की तो दलित समाज के कैप्टन मोहनलाल कुरील के नेतृत्व में हजारों दलित आजाद हिंद फौज में शामिल हुए, यहां तक चमार रेजिमेंट पूरी तरह से आजाद हिंद फौज में विलीन हो गई थी.
दूसाध व महार रेजिमेंट की वीरता की कहानियां किताबों में दर्ज ही नहीं की गई. ऐसे उदाहरण अनेक हैं इतिहास गवाह है कि मेहनतकश दलितों आदिवासियों ने अपने स्वार्थ के खातिर देश की छाती पर कभी छूरा नहीं घोंपा. चाहे कितना भी शोषण,अपमान हुआ, दम तोड़ देने वाली विपदाएं झेली लेकिन समाज व राष्ट्र के साथ हमेशा वफादारी की. अपनी गौरवशाली श्रमण संस्कृति व परम्पराओं का निर्वाह किया.
आखिर वे कौन हैं जो आजादी के बाद भी देश के साथ पग पग पर गद्दारी कर रहे है. जो सोने के चंद सिक्कों के खातिर देश को बेच देते हैं? जो देश की गुप्त सुरक्षा सूचनाएं देश तोड़ने वालों तक पहुंचाते हैं. मेहनतकश कौम के पसीने की कमाई को दबाए हुए है? इतिहास से सीख मिलती है इसलिए यह जानना जरूरी है.
और वे कौन है जिन्होंने बौद्ध काल तक सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश को विदेशों के सामने कटोरा लिए कंगाल की दशा तक गिरा दिया है. लंबे भूभाग तक फैले जम्बूद्वीप के टुकड़े टुकड़े करवा कर अलग देश बनवा दिये?
गौरवशाली भूगोल,धन ,सम्पदा, स्वास्थ्य, संस्कृति वाला देश आज गरीब, पिछड़ा, भ्रष्ट, रोगी, अनपढ, अंधविश्वासी, बेरोजगार, अशांत व हर समय समस्याओं से जूझ रहा देश बना दिया?
और आज भले ही हम राजनीतिक दृष्टि से आजाद है लेकिन सामाजिक व आर्थिक लिहाज से गुलाम बने हुए हैं. भले ही 'वसुदेव कुटंबकम' का ढोंग करें लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण सामाजिक ताना बाना बुरी तरह बिखरा हुआ है.
धन दौलत पर कुछ परिवार ही सांप की तरह कुंडली मारे बैठे हुए हैं. आर्थिक गैरबराबरी की खाई निरंतर बढ रही हैं. सदियों से शोषित वंचित मेहनतकश वर्ग के आगे बढने के सारे रास्ते साजिश के तहत बंद कर दिए हैं.
बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने आखरी ऐतिहासिक भाषण में देश को चेताते हुए कहा था," क्या इतिहास खुद को फिर दोहरायेगा? समय समय पर जब विदेशी आक्रमणकारियों के सामने सेनानी लड़ रहे थे तो यहीं के कई शासक दुश्मन के समर्थन में लड़ रहे थे.
इसलिए हमें अपने रक्त की अंतिम बूंद बहाकर भी देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए. क्या जनता अपने मत,धर्म, पंथ या पक्ष की अपेक्षा देश को अधिक महत्व देगी? यदि धर्म, पंथ या पक्ष को प्रधानता दी गई तो देश फिर एक बार मुसीबत में फंस जाएगा."
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