चीटिंयों को शक्कर खिलाने से डायबिटीज़ दूर नहीं होती
आपको डायबिटीज़ हो अथवा न हो वैज्ञानिक जानकारी पर आधारित यह लेख अवश्य पढ़ें
डॉ. क्रांतिभूषण बन्सोड़ेडायबिटीज़, मधुमेह, शुगर या शक्कर की बीमारी के बारे में कुछ तथ्यगत वैज्ञानिक जानकारी पर बात करें। इस बीमारी की पहचान इंसानी सभ्यता की शुरुवात के समय ही अर्थात बहुत पहले हो चुकी थी। अन्य बीमारियों की तरह इसका उपचार भी कठिन था। इसका उपचार सम्भव नहीं था इसलिये इसे 'राजरोग' का नाम दे दिया गया था। लेकिन जड़ी बूटी से लेकर चीटियों को शक्कर खिलाने जैसे टोने –टोटके सहित अनेक उपाय बेकार साबित होते रहे।

संभव है पिछले दिनों डाइबिटीज संबंधी एक ऐसी पोस्ट आपके पास पहुँची हो जिसमें यह बताया गया है कि दवा कंपनियों द्वारा बिक्री बढ़ाने के लिए जानबूझकर डायबिटीज़ के मानदंड कम किये जाने की बात की जा रही है। ऐसी अनेक भ्रांतियाँ उत्पन्न करने वाले इस अवैज्ञानिक पोस्ट का जवाब देने का मैंने प्रस्तुत लेख में प्रयास किया है।
वस्तुतः उक्त अवैज्ञानिक पोस्ट के लेखक आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा क्षेत्र में हो रही नई खोजों से पूरी तरह अनभिग्य हैं। उन्हें डाइबिटीज तथा उसके लक्षण परिणाम आदि के बारे में सही जानकारी नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह पोस्ट किसी नॉन मेडिकल व्यक्ति अथवा किसी चालाक व्यक्ति द्वारा लिखी गई है जिसका उद्देश्य आम व्यक्ति को मूर्ख समझना है तथा उसे मूर्ख समझते हुए हमेशा बीमार बनाकर रखना ही है।
पहले के लोग डायबिटीज़ होने पर चीटी को शक्कर खिलाते थे
चलिए डायबिटीज़, मधुमेह, शुगर या शक्कर की बीमारी के बारे में कुछ तथ्यगत वैज्ञानिक जानकारी पर बात करें। इस बीमारी की पहचान इंसानी सभ्यता की शुरुवात के समय ही अर्थात बहुत पहले हो चुकी थी। अन्य बीमारियों की तरह इसका उपचार भी कठिन था। इसका उपचार सम्भव नहीं था इसलिये इसे 'राजरोग' का नाम दे दिया गया था। लेकिन जड़ी बूटी से लेकर चीटियों को शक्कर खिलाने जैसे टोने –टोटके सहित अनेक उपाय बेकार साबित होते रहे।
फिर धीरे धीरे इस बीमारी पर अध्ययन हुआ, अनेक शोध हुए। आधुनिक विज्ञान ने जो तरक्की की है, उसका नतीजा आज यह है कि डाइबिटीज की बीमारी की पहचान आजकल जल्द हो जाती है और उपचार भी प्रारंभ हो जाता है। डाइबिटीज की रोकथाम शुरुवात में ही हो जाने से लोगों की मृत्यु दर काफी कम हो गई है। तथा जनता की औसत उम्र बढ़ गई है।
ध्यान दीजिये आज से लगभग 100 साल पहले आम व्यक्ति की औसत आयु 50 वर्ष मानी जाती थी। यानी यदि कोई व्यक्ति 50 साल की उम्र में ही मर जाता था तो लोग कहते थे कि उसने अपनी पूरी उम्र गुजार ली है । साठ साल तक जीने वाले को महान योगी की उपाधि दे दी जाती थी ।
लेकिन आज आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा एवं विभिन्न शोध के कारण विभिन्न बीमारियों की पहचान तथा उपचार से मनुष्य की औसत आयु लगभग 70 साल हो गई है और यह लगातार बढ़ती ही ज रही है । आज 70 साल में भी कोई मरता है, तो लोग कहते हैं कि बड़ी जल्दी मर गया ।
इसलिए यदि आपके पास ऐसी अवैज्ञानिक पोस्ट आई है तो उसे आगे भेजने की बजाय तुरंत डिलीट करें, तथा आगे तथ्यों पर आधारित वैज्ञानिक लेख पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ाये।
डायबिटीज़ दरअसल है क्या?
डाइबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में किसी को भी तब तक जानकारी नहीं मिलती, जब तक कि उसकी ब्लड शुगर की जांच ना हो जाये। सामान्यतः अन्य किसी बीमारी के सिलसिले में जब कोई व्यक्ति किसी अन्य वजह से अस्पताल पहुँचता है, तब चिकित्सक उसे अन्य जाँच के साथ ब्लड शुगर चेक करवाने को कहता है। तब उसे जानकारी मिलती है कि उसे डायबिटीज़ है।
चूँकि शरीर पर इसका कोई प्रत्यक्ष असर नहीं दिखाई देता इसलिए सामान्य लोग रक्त में 200 mg /dl (मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर ) से लेकर लगभग 450 mg/dl तक हो जाने पर भी डाइबिटीज से अनभिज्ञ रहते हैं।
इस बीमारी में आपको बाहर से भले कोई लक्षण न दिखाई देता हो लेकिन रक्त में शुगर लगातार बढ़ते जाने और हमेशा ब्लड शुगर के बढ़े होने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों के साथ साथ शरीर के आंतरिक अंग खराब हो जाते हैं। सबसे पहले खून की नलियों में खराबी होने लगती है।
धीरे धीरे शरीर के अंदरूनी अंग जैसे लिवर, किडनी, हार्ट, ब्रेन इत्यादि में भी ख़राबी आने लगती है। इसका आँखों पर परिणाम होता है और कई लोगों को मोतियाबिंद, काला मोतिया तथा डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण ठीक से दिखाई देना बंद हो जाता है।
डाइबिटीज का एक ख़तरनाक परिणाम यह है कि इसके कारण पुरुषों में नपुंसकता तथा महिलाओं में बांझपन इत्यादि होने लगता है। पुरुष तो अपनी यौन क्षमता की कमी को पहचान जाते हैं, लेकिन वे डाइबिटीज का उपचार करवाने की बजाय यौन क्षमता बढ़ाने के विभिन्न उपाय ढूंढते हैं।
इसके लिये वे शिलाजीत के सेवन वगैरह से लेकर जड़ी बूटियां, तेल आदि तक अनेक उपाय आजमाते हैं, और अनेक नीम हकीम या क्वैक जैसे यूपी वाले डॉ रहमान ( गुप्त रोग वाले हकीम, जिसका पोस्टर बस स्टैंड के मूत्रालयों में अक्सर दिखता है।) के चंगुल में फंस कर न केवल अपना शरीर बल्कि अपना समय और पैसा भी बर्बाद करते हैं।
इसके बाद मनोविज्ञानिक रूप से हारकर शराब तथा गांजे के नशे की गिरफ्त में चले जाते हैं। कुछ लोग अपने पुरुषत्व को परखने के लिये वैश्यावृति में लिप्त होकर अनेक प्रकार के दूसरे रोग जैसे सिफलिस या अन्य सेक्सुअली ट्रांस्मिटेड डिसीज़ वगैरह से ग्रस्त हो जाते हैं।
इसका एक दुखद पक्ष यह है कि ऐसे पुरुषों की पत्नियां धर्म कर्म के बहाने कुछ ऐसे बाबाओं के चुंगल में फंस जाती हैं जो न केवल उनका आर्थिक बल्कि यौन शोषण भी करते हैं। लेकिन इसका एक पक्ष जो हमेशा छुपा हुआ रहता है कि इस आड़ में ऐसे अक्षम, अविवेकी, अज्ञानी पुरुषों की स्त्रियाँ अपनी स्वाभाविक यौन जरूरत की पूर्ति कर लेती हैं। यह हमारे देश में सदियों से चली आ रही पाप रहित सर्वसम्मत अवधारणा है।
डाइबिटीज के अन्य प्रभावों में ब्लड प्रेशर का बढ़ना भी शामिल है। इसकी वज़ह से ब्रेन स्ट्रोक एवम हार्ट अटैक भी हो सकता है। ब्रेन स्ट्रोक से लकवाग्रस्त होकर व्यक्ति बिस्तर पर पड़ा रहता है, या फिर अपंगता पूर्ण जीवन व्यतीत करने को मजबूर रहता है।
डाइबिटीज के कारण लिवर फेल होना तथा किडनी खराब होना भी बहुत आम बात है। लेकिन उसे लोग तब ही जान पाते हैं जब कि वे अपनी तकलीफ़ को इतना अधिक बढ़ा चुके होते हैं कि तब तक उसका उपचार बेहद खर्चीला हो जाता है। फिर कई बार धन सम्पदा को नष्ट करने के अलावा कोई उपाय भी नहीं होता है । अनेक लोग पैसों के अभाव में कम उम्र में ही मृत्यु की गोद में समा जाते हैं ।
जब आप चिकित्सक के पास जाते हैं तो वे कहते हैं “डायबिटीज़ से इतना भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। डाइबिटीज के प्राथमिक उपचार से बीमारी को नियंत्रण में रखा जा सकता है।“ लेकिन साथ साथ उपचार के रूप में एलोपैथी चिकित्सक डाइबिटीज के मरीजों को भोजन में परहेज के बारे में भी बताते हैं, जिसे डाइट कंट्रोल या डाईट प्लान कहते हैं। इसके अनुसार भोजन में कार्बोहाइड्रेट 60 %, प्रोटीन 20% तथा वसा 20% रखने की आवश्यकता पर वे जोर देते हैं ।
अब यहाँ मेरा सवाल है कि कितने प्रतिशत भारतीय लोगों को भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन की जानकारी है? हम में से कितने लोग जानते हैं कि किस प्रकार के भोजन से क्या क्या मिलता है? तथा उसके प्रतिशत का निर्धारण कैसे होता है?
मेरे विचार से कम पढ़े लिखे अथवा निरक्षर तो क्या अधिकांश पढ़े लिखे लोग भी इस बात से अनजान हैं। अगर ऐसा है तो अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों से आप क्या अपेक्षा करेंगे? वैसे भी आजकल अकादमिक शिक्षा से अधिक व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी से लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में लगभग 30 % जनता कुपोषण की शिकार हैं।
भोजन से उसका यही सम्बन्ध है कि उसे भूख के वक्त में जो भी मिल जाये वही सही भोजन है। अब यदि गरीब खेत में काम करने वाला किसान रोटी, नमक, चटनी या बासी से तथा मजदूर थोड़े अच्छे खाने के नाम पर समोसा, भजिया ख़ाकर काम चला ले, तो उसके लिये क्या किया जाये?
भोजन की इस समस्या के बाद आती है व्यायाम या कसरत की बात। आज के आधुनिक समय में अनेक सुविधाओं के कारण कई लोगों को श्रम करने की आदत नहीं है। महिलायें घरेलू कामकाज में ही पूरा दिन बिता देती हैं। उनकी गलत फ़हमी यह है कि वे इसे ही व्यायाम समझती हैं। फिर टीवी तथा मोबाईल भी अनेक बच्चों एवम युवाओं को कसरत करने का समय नहीं देता है।
इसलिये व्यवस्थित रूप से जितनी शारीरिक ऊर्जा किसी व्यक्ति की प्रतिदिन खर्च होनी चाहिये वह नहीं हो पाती है। इसे सिडेंटरी लाईफ स्टाइल कहते हैं। यह भी डाइबिटीज को बढ़ाने में सहायक है। इसलिये हम चिकित्सकगण सभी को प्रतिदिन कम से कम एक घन्टा शारीरिक व्यायाम करने के लिए कहते हैं। केवल इसी तरह ब्लड शुगर नियंत्रण में रह सकती है।
इसके बाद तीसरे उपाय के अंतर्गत डाइबिटीज की रोकथाम के लिये चिकित्सक गण मरीज को मुंह से खाने वाली दवाईयां देते हैं। यदि एक दवा से शुगर नियंत्रण में ना आये तो एक से अधिक दवा दी जाती है । इसके पश्चात भी यदि ब्लड शुगर नियंत्रण के बाहर हो तो फिर इन्सुलिन लगवाने की सलाह देते हैं।
लेकिन अब आधुनिक समय में अनेक प्रकार की दवाएँ बाजार में आ गई हैं जिससे डाइबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित रखा जा सकता है । यह वही दवाएं हैं जिनका पिछले लगभग 40 साल पहले तक अभाव था और जिसकी वजह से अनेक लोग काल के गाल में समा गए।
अब इन्सुलिन और उसके कार्य के बारे में कुछ बातें। इन्सुलिन की खोज सन 1916 में करने वाले पहले वैज्ञानिक फ्रेडरिक जी बैंटिंग थे। शुरुवात में यह इन्सुलिन जानवरों यानी सुवर (Pig) या गाय (cow) (बैल, भैंस इत्यादि भी ) के पेन्क्रियास से निकला जाता था तथा उसे प्यूरीफाइ कर डाइबिटीज के मरीजों को लगाया जाता था। अनेक प्रयोगों के बाद इन्सुलिन यह बहुत काम की दवा साबित हुई।
इन्सुलिन के इस्तेमाल से डायबिटीज के मरीजों की उम्र बढ़ गई तथा इन्सुलिन लेने वाले मरीजों के आंतरिक अंग भी ठीक तरह से काम करते रहे यही नहीं उनके हार्ट, ब्रेन, किडनी, लिवर इत्यादि अंग भी बहुत अच्छी तरह काम करते रहे।
आजकल इन्सुलिन जानवरों के अग्नाशय से नहीं बल्कि आधुनिक आविष्कार से खोजे गए बैक्टीरिया तथा वाईरस या खमीर से तैयार किया जाता है जो मूल इन्सुलिन जैसा ही कारगर रहता है।
ध्यान रहे कि डाइबिटीज एक विश्वव्यापी बीमारी है। भारत आजकल डाइबिटीज बीमारी में विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। भारत की लगभग 7% जनता डाइबिटीज से पीड़ित है और यह संख्या लगातार बढ़ती ही ज रही है अब न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण व मेहनतकश जनता भी इसकी चपेट में आ रही है। मधुमेह ग्रस्त आधे से अधिक लोग इस बात से अनजान ही हैं कि वे डाइबिटीज की बीमारी से ग्रस्त है।
इसलिये अनेक लोग डाइबिटीज के मरीज की पहचान के लिये लगातार स्क्रिनिंग करते रहते हैं। मैं भी अपने लगभग सभी मरीजों को एवं जानपहचान के सभी लोगों को लगातार सचेत करता हूँ कि कोई तकलीफ हो अथवा न हो कम से कम वर्ष में एक बार अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिये ब्लड शुगर तथा ब्लड प्रेशर की जांच अवश्य करवाते रहें।
कैसे कन्फर्म हो कि आपको डायबिटीज़ है अथवा नहीं
अनेक लोग यह कहते हैं कि हमें कैसे कन्फर्म हो कि हमें डायबिटीज़ है अथवा नहीं है, इसलिए कि कभी जाँच में शुगर क्रायटेरिया से ज्यादा आती है तो कभी कम? ऐसी स्थिति में हम डायबिटीज़ बीमारी की पहचान तथा उसके स्पष्ट निर्धारण के लिये एक विशेष जांच जिसे हम Hb A 1 c ( ग्लाइसीकेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट) करवाने की सलाह देते हैं । इस जांच से हमें किसी व्यक्ति के शरीर में पिछले तीन माह में ब्लड शुगर की क्या स्थिति रही है इसकी जानकारी प्राप्त हो जाती हैं।
HBA1c के टेस्ट के अनुसार ब्लड शुगर की नॉर्मल वेल्यू 5.6% से लेकर 6.5% तक होती है । 6.5% से अधिक होने पर डाइबिटीज होना लगभग निर्धारित हो जाता है। डाइबिटीज की दवा देने के बाद इसे हम अधिकतम 7 % तक भी सामान्य कहते हैं। लेकिन यदि उसके बाद भी रीडिंग अधिक आती है तो इसे अधिक गंभीरता से नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपाय करना आवश्यक समझते हैं। अन्यथा बढ़ती बीमारी के कारण अन्य आंतरिक अंगों में अधिक क्षति होने की संभावना बढ़ जाती है।
अब उक्त अवैज्ञानिक पोस्ट की बात करें तो इसमें लिखा गया है कि ब्लड शुगर को उम्र के हिसाब से 100 + आयु होना चाहिए। ब्लड शुगर की वेल्यू निर्धारण करने वाली यह बात एकदम अवैज्ञानिक है।
बच्चों में भी डायबिटीज़ हो सकती है
उपरोक्त पोस्ट के लेखक को टाइप वन टाइप टू जैसे डाइबिटीज के विभिन्न प्रकारों की भी जानकारी नहीं है। जैसे कि छोटे बच्चों में जब उनके शरीर में इन्सुलिन का उत्पादन नहीं होता है, तो टाईप वन डाइबिटीज कहा जाता है। इन अवैज्ञानिक लेखक के उम्र के फार्मूले के अनुसार तो बच्चों में डायबिटीज़ होनी ही नहीं चाहिए।
दरअसल बच्चों को डाइबिटीज एक प्रकार की जैनेटिक बीमारी या आटोइम्मुन बीमारी के कारण होती है। ऐसे बच्चों को बीमारी की शुरुवात में ही इन्सुलिन देकर ही स्वस्थ रखा जा सकता है। किन्तु विडम्बना यह है कि बच्चों के माता पिता को जब तक उनके बच्चे की बीमारी के बारे में जानकारी मिलती है, तब तक अनेक बच्चे किसी अन्य बीमारी (जो कि डाइबिटीज के कारण ही हुई होती है) से ग्रसित हो चुके होते हैं।
सामान्यतः डॉक्टर भी जब तक अनिवार्य न हो या उनकी तकलीफों का कारण समझ मे न आ रहा हो तब तक बच्चों के डायबिटीज़ की जाँच कराने की सलाह नहीं देते। कई बार जानकारी के अभाव में ऐसे बच्चों की मृत्यु भी अत्यंत कम उम्र में हो जाती है। फिर यदि पता चल भी जाए तो गरीब आदमी के पास खाने के लिये ही पर्याप्त पैसे नहीं होते। आर्थिक अभाव के कारण उसके लिए ईलाज का खर्च उठाना भी मुश्किल होता है।
यदि सरकार ऐसे बच्चों को मुफ्त में इन्सुलिन का इंजेक्शन दे भी देती है फिर भी इन्सुलिन लगाने वाली सिरिंज एवं स्पिरिट को खरीदना सबके बस में नहीं होता तथा दिन भर में तीन बार इन्सुलिन लगाना भी हर व्यक्ति के लिए आसान काम नहीं होता है। फिर उसके स्कूल में पढने तथा साथ के बच्चों के जैसे टॉफी न खा पाने जैसी सामाजिक समस्याएँ भी रहती हैं।
उम्मीद है मेरे इस लेख के आलोक में अवैज्ञानिकता से भरे उक्त लेख द्वारा उपजी भ्रांतियों का निवारण हो चुका होगा। अतः आप सबसे मेरा विनम्र निवेदन है कि उक्त पोस्ट को डिलीट करें तथा भूलकर भी किसी को फारवर्ड ना करें। साथ ही महत्वपूर्ण अद्यतन शोधों एवं आधुनिक विज्ञान पर आधारित एलोपैथी चिकित्सा पद्धति को ही अपनाये।
डायबिटीज़ के लिए होम्योपैथी, नेचुरोपैथी, आयुर्वेद या गली मोहल्लों में दी जाने वाली जड़ी बूटी तथा डायबिटीज की बीमारी को जड़ सहित खत्म करने वाले नीमहक़ीम की शरण में न जाएँ तथा उनसे अपना उपचार ना करवायें।
मित्रों विज्ञान कभी भी एक जगह ठहरता नहीं हैं। अभी भी विश्व स्तर पर डायबिटीज़ नामक इस बीमारी पर सफलतापूर्वक नियंत्रण के लिये लगातार रिसर्च जारी है। अतः हिम्मत न हारें और जाँच में डायबेटिक पाए जाने पर भी धैर्य रखें। उत्तम स्वास्थ्य ही उत्तम जीवन है।
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