सोनेसिली से बेदखल किसानों के दर्द और आंसू ने घेरा राजधानी
द कोरस टीमदेश के राजधानी में किसानों के आंदोलन उसके बाद छत्तीसगढ़ में सिलेगर में किसानों के आंदोलन के बाद कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में सोनेसिली किसान आंदोलन भयानक रूप बन कर उभर कर आया है। मीडिया तथा किसानों के नाम पर आंदोलन करने वालों के द्वारा इसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने से इस आंदोलन से सरकार बेखबर हैं और किसान न्याय से कोसों दूर हैं।

लगभग 51 साल से कास्तकारी करते आ रहे कृषक सहकारी समिति ग्राम पंचायत सोनेसिली के 23 परिवारों को सरपंच, उपसरपंच द्वारा उनके जमीन से बेदखल कर दिया गया। बात यहीं तक नहीं रही बल्कि बोई हुई धान के फसल को मवेशी द्वारा चराई कराने से नाराज पीडि़त किसान परिवार आज रात से ही कृषि मंत्री के दरवाजे पर दस्तक दे दिए हैं।
गौरतलब है कि 24 जुलाई को ये परिवार बच्चों सहित पदयात्रा कर राजधानी के लिए निकले हुए थे। इस पर राजनैतिक दबाव के चलते इस कारवां को अभनपुर एसडीएम निर्भय साहू ने वनोपज जांच नाका मानाबस्ती के पास रोक कर सरपंच के बेदखली आदेश पर स्थगन आदेश जारी किया था जिससे संतुष्ट होकर ये परिवार वापस अपने घर लौट चले थे।
लेकिन 4 अगस्त को अचानक एसडीएम ने स्थगन आदेश रद्द कर दिया है। अब जीवन जीविका की सवाल को लेकर सुबह पांच बजे से ही किसान मंत्रियों का दरवाजा खटखटाने के बाद धरनास्थल बूढ़ातालाब पहुंच चुके हैं।
राजधानी रायपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर ग्राम सोनेसिली (नया पारा राजिम) से किसान करीब रात 12 बजे पैदल मार्च कर आज तडक़े सुबह 5 बजे रायपुर पहुंचे। महिलाओं और बच्चों के साथ पहुंचे सैकड़ों किसान कृषि मंत्री के निवास के सामने धरने पर बैठ गए थे। इनकी दर्द पर सुनवाई तो दूर राजधानी के पुलिस ने इन्हें खदेड़ दिया है आखिरकार हार थक कर ये किसान राजधानी के चर्चित धरनास्थल बूढ़ातालाब पर अपनी मांगों को लेकर बैठे हुए हैं।
धरना स्थल में डटी ग्रामईम रोते बिलखते मंत्री जयसिंह अग्रवाल के बंगले तक पहुंचे और कहने लगे कि वे धरना स्थल नहीं जाएंगे, इसी बीच एक ग्रामीण की तबीयत भी बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल भेजा गया। ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रही है।
पिछली बार जब वे रायपुर के लिये आ रहे थे तो बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाया था कि आंदोलन में ये अपने बच्चों को भी घसीट रहे हैं। अब सवाल ये है कि जब इन्हें अपने घर, अपनी जमीन और अनाज से बेदखल कर दिया है तो वो न्यायप्रिय आवाज अब आगे नजर आता नहीं दिख रहा है।
दरअसल, 1970 में भूमिहीन किसानों को खेती करने के लिए जमीन का पट्टा दिया गया था। किसान बेदखल किये गये जमीन से ही अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे, जिसकी ऋण पुस्तिका किसानों के पास है। किसान सिंचाई टैक्स भी देते हैं।
भूमिहीन गरीब किसानों का आरोप है कि गांव के सरपंच व उपसरपंच के द्वारा ग्रामीणों को उनकी जमीन से बेदखल कर वहां वृक्षारोपण करने का कार्य किया जा रहा है। आवारा मवेशियों को जबरन उनके खेतों में छोड़ दिया गया, जिसकी वजह से उनकी धान की फसलें बर्बाद हो गई है। पीडि़त परिवारों ने तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर को भी पत्र भेजा लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है।
51 साल पहले किसानों को पंचायत द्वारा प्रस्ताव कर जमीन दिया था, उन्होंने किसी तरह का कोई अतिक्रमण नहीं किया है। विडंबना है कि किसानों के पक्षधर मुख्यमंत्री के इस राज्य में वे इंसाफ या मौत मांग रहें हैं। अब देखना है कि गांव के करीब 23 पीडि़त परिवार तक न्याय पहुंच पाता है या नहीं।
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