अंधबिसवास के कांवर म लदाय मनखे
गनपत लालजब सावन ह आथे त चारो मूड़ा म हरियर-हरियर दिखथे। ए ला देखके मन ह बड़ उच्छाह ले नाचे ल धर लेथे। फेर का करबे पोंगापंथीमन सावन के महीना ल भूत-परेत, जंतर-मंतर, पूजा-पाठ अउ ठूआ-ठोटका के बता के रंग म भंग कर देहे। बड़े दुख के बात तो ए हरे कि हमर मेहनत-मजदूरी करइया भाईमन अंधबिसवास के कांवर ल धर के रेंगत-रेंगत सिवलिंग म पानी चघाय बर जाथे। भले उकर खेत म पानी पले चाहे मत पले। उकर घर म लइकामन बर दाना-पानी रहाय चाहे मत रहाय। फेर बोलबम के नारा लगावत गांजा-भांग पियत सिव के लिंग के पूजा करे बर जाथे।

हर साल सुने ल मिलथे कि झारखंड के बैजनाथधाम अउ देवघर म भगदड़ म कावरियामन मरत हे। अइसन इकर भक्ति म का कमी आ जथे। भगवान के दरसन करे बर जाथे अउ भगवान ल पियारा हो जथे।
ए भक्तमन ल ओकर दाई-ददा अउ ओकर बाई ह झन जा कही के बरजथे तभो ले नइ मानय।
घर जइसे पवितर मंदिर अउ दाई-ददा जइसे देवी-देवता ल लतिया के पखरा ल अपन बाप-महतारी समझथे। भले ओकर घरवाली ह तरिया-बोरिंग ले पानी डोहर-डोहर के बीमार पर जही फेर ए कांवरियामन घर के पानी लाय बर नइ सकय।
फेर कांवर म पानी धर के डीजे के कानफोड़ू धून म गांजा-भांग पिये अंड-बंड गारी बकत भगवान ल खुस करथे।
ए कइसन भगवान आय जउन ह सावन के मरमाड़े बाड़ आवत पानी म घलो भक्तमन ले पानी के मांग करथे।
कइ जगह तो कांवरियामन पानी के बाड़ म मर जथे त कई जगह गाज गिरे म सीधा ऊपर के टिकट मिल जथे। फेर महासक्तिसाली महादेव ह अपन भगत ल नइ बचा सकय।
पंजाब के एक मित्र के कहने पर हिंदी में अनुवाद- अंधविश्वास के कांवर में दबे लोग
जब सावन का महीना आता है तो प्रकृति पूरी तरह से हरियाली से लद जाती है। इस हरियाली को देखकर मन उत्साह से नाचने लगता है, लेकिन कुछ पोंगापंथियों ने इस महीना को भूत-प्रेत, जादू-मंत्र, पूजा-पाठ और टोने-टोटके का बता कर रंग में भंग कर दिया है।
बड़ी दुख की बात तो यह है कि हमारे मेहनत करने वाले मजदूर भाई इस अंधविश्वास में फंसकर कांवर लेकर पैदल कई किलोमीटर चलकर मंदिर के शिवलिंग को पानी चढ़ाते हैं। वे इतने मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं कि अपने घर-परिवार और खेत-खार भी भूल जाते हैं।
उनके खेत में सिंचाई नहीं होती और उनके बच्चें भूख से बिलखते रोते रहते हैं, लेकिन बोलबम के नारे लगाते हुए गांजा, भांग और शराब पीकर शिवलिंग की पूजा करते हैं।
हर साल खबर आती है कि झारखंड के बैजनाथधाम, देवघर और अन्य जगहों पर भगदड़ में कांविरयों की मौत हो गई। ऐसी इनकी भक्ति में क्या कमी रह जाती है जो भगवान के दर्शन के लिए गए रहते हैं, लेकिन भगवान को ही प्यारा हो जाते हैं।
इस कांवरियों को उनके घर वाले कांवर यात्रा न जाने के लिए बहुत मना करते है, फिर भी नहीं मानते। अपने मां-बाप और पत्नी की एक भी बात न सुनकर पत्थर के शिवलिंग को अपने मां-बाप समझते हैं।
इतनी मेहनत करके महादेव पर जल चढ़ाने वाले लोग अपने घर के काम-काज इतने लगन से नहीं करते।
उनकी पत्नी और मां घर-परिवार और मवेशियों के लिए तालाब और हैंडपंप से पानी भरती है, लेकिन वही कांवरिया अपने कांवर से इनकी मदद पानी लाने में नहीं करते।
भले उनकी मां और पत्नी दिनरात काम के दबाव में बीमार पढ़ जाए, लेकिन इन्हें कोई मतलब नहीं।
इन्हें तो सिर्फ शिव और उनके प्रसाद गांजा-भांग खूब पसंद है। कांवर में पानी लेकर डीजे की कानफोड़ू धुन में अश्लील गाली देते हुए भगवान को खुश करते हैं।
यह कैसा भगवान है जो हर साल हर सावन भारी बारिश और बाढ़ के दिनों में स्नान करने की मांग करते है।
कई जगह जल चढ़ाने जा रहे कांवरिया बाढ़ में और बिजली गिरने से मर जाते हैं। फिर भी महाशक्तिशाली महादेव अपने भक्तों को नहीं बचा पाते।
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