कला और संगीत की भूमि ने मूर्धन्य साहित्यकार चंदेल को किया याद
अप्रैल माह के 15 तारीख को छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार, आलोचक डॉ. गोरेलाल चंदेल का कोरोना बीमारी से निधन हो गया था। विगत दिनों पाठक मंच खैरागढ़ और प्रगतिशील लेखक संघ की संयुक्त तत्वधान में खैरागढ़ के ख्यातिनाम साहित्यकार डॉ. गोरेलाल चंदेल एवं उनकी पत्नी धर्मिन चंदेल तथा पाठक मंच के सदस्य कमलाकांत पाण्डेय के सुपुत्र मोनेंद्र पाण्डेय के नाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शासकीय बहुद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला खैरागढ़ के विज्ञान भवन में संपन्न हुआ।

इस अवसर पर चर्चित गायक ममता चंद्राकर ( कुलपति इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ) ने कहा कि मैं उनकी विधिवत शिष्य नहीं रही लेकिन संबंध के रूप में वे मेरे चंदेल सर रहे। उनके ही मार्गदर्शन के कारण आज खैरागढ़ के इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में आ पायी।
रवि श्रीवास्तव (अध्यक्ष छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन) ने कहा कि उनका और मेरा सफर अर्धशताब्दी का है। प्रेमचंद जयंती का लगभग 300 गांव की परिकल्पना और सफल आयोजन उनके ही कारण हो पाया। केवल किताब ही नहीं लिखते लोगों तक पहुंचा दो पहुंचाते भी थे। इस तरह समाज, साहित्य और मित्रों को दिशा दिखलाए।
विनोद साव ने कहा कि जिस तरह के लेखक-वक्ता थे, उनमें पारदर्शिता उनमें पारदर्शिता थी। उनकी यही उनकी विशेषता थी। वह आलोचना में सामाजिकता को खंगाल और मानवीकरण को तलाशते हैं। उनकी आलोचना का मूल स्वर आदमियत को तलाशना था।
विद्या गुप्ता ने कहा कि डॉ. चंदेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी उम्र लंबी चलेगी क्योंकि उन्होंने अपने वर्तमान में रहते हुए दुनिया के भविष्य को संवारा है। वे कई व्यक्तित्व वाले आदमी थे जैसा कि कोलाज में दर्शाया गया है। डॉक्टर इन्द्रदेव तिवारी (अंग्रेजी विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़)ने कहा कि सज्जनता ही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी।
सांस्कृतिक समझ उनकी विचारधारा को प्रभावित नहीं करती थी,बल्कि पोषित करती थी। कहने से ज्यादा सुनते थे, बोलने से ज्यादा पढ़ते थे और पढऩे से ज्यादा विचार करते थे। यह डॉ. चंदेल को चंदेल बनाते हैं। पीसी लाल यादव ने कहा कि मार्गदर्शक, लोक- चिंतक और प्रगतिशील विचार के पोषक का समन्वय चंदेल में अद्भुत है।
वे केवल कलमकार ही नहीं, हल चलाने वाले किसान थे तभी यह साहस उनमें था, कि वे प्रगतिशील मूल्यों और लोकजीवन के बीच संतुलन बनाते थे। यह ‘झेंझरी’ में देखने को मिलता है। अगर ‘झेंझरी ’ को नहीं पढ़े हैं तो उसे पढऩा उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
वीरेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि जब वह पढ़ते थे तो शब्दश पढ़ते थे और अपनी बात रखते थे। यह विलक्षण प्रतिभा बहुत कम में देखने को मिलती है। डॉ. योगेंद्र चौबे ने कहा कि मैंने नाटक की शिक्षा तो एनएसडी से ले लिया था पर नाटक को पढऩा उनसे सीखा।
कुबेर साहू ने कहा कि उनके वक्तव्य को सुनने के बाद सामने वाले के व्यक्तित्व में परिवर्तन आ जाता था। लोक जीवन और लोक कला की इतनी अच्छी समझ थी कि वे लोक तत्व में प्रगतिशीलता की बात रखकर चमत्कृत कर देते थे। जिला पंचायत सदस्य विप्लव साहू ने कहा कि साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों के लिए यह साल और खराब रहा और डॉ. चंदेल को खोकर बहुत नजदीक से इस तकलीफ को झेला है।
जीवन संपूर्ण होकर जाता है पर उनकी कमी हमें अपूर्णता का बोध करा रही है।
पूर्व विधायक गिरवर जंघेल ने कहा कि वे मेरे समधी तो थे पर व्यवहार दोस्त-हमउम्र की तरह था। उनके संपर्क में आने से मेरे व्यक्तित्व में निखार आया और मैं आज यहां तक पहुंच पाया।
पाठक मंच खैरागढ़ के संयोजक डॉ प्रशांत झा ने कहा कि इतिहास और वर्तमान की तुलना करते हुए द्वंद की पहचान कराने वाले चंदेल बहुआयामी व्यक्तित्व वाले थे। वे सभी चीजों में सभी से बड़े थे पर किसी को छोटे नहीं समझते थे। डॉ. जीवन यदु ने कहा कि वे आलोचक थे पर अपनी आलोचना को सीधे-सीधे स्वीकार करते थे। यही उनकी सहजता उन्हें और बड़ा बनाती थी।
आभार प्रदर्शन करते हुए पत्रकार प्रशांत सहारे ने कहा कि वे हमारे बीच को होनी कोहिनूर की तरह थे। उनकी याद को जिंदा रखने के लिए उनके किए गए कार्यों को सुचारु रुप से चालू रखना होगा।
आयोजन को सफल बनाने में कमलाकांत पाण्डेय, सुविमल श्रीवास्तव, टीए खान, बलराम यादव, डॉक्टर इन्द्रदेव तिवारी, विद्या गुप्ता, जगतुराम साहू, यशपाल जंघेल, डुमनलाल, वीरेंद्र बहादुर सिंह, डॉक्टर योगेंद्र चौबे, डॉक्टर नत्थु तोड़े, अनुराग तुरे, कोमल जंघेल, तीरथ चंदेल, डॉ प्रशांत झा, लोकबाबू, नथमल शर्मा, संगठन सचिव परमेश्वर वैष्णव ने डॉ. चंदेल के असमय निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह खास कर छत्तीसगढ़ साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
डॉ. चंदेल देश के वरिष्ठ कहानीकार, समालोचक माने जाते थे। उनका जन्म 1 दिसम्बर 1944 को हुआ था।
डॉ. चन्देल हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वरिष्ठ अधिकारी, प्रगतिशील लेखक संघ के वरिष्ठ सदस्य रहे। आकाशवाणी में वार्ता और रूपक प्रसारित होती रही। मंदराजी, भोरमदेव सम्मान सहित कई पुरस्कार से नवाजे गये थे। हाल ही में उनकी एक कृति आयी झेंझरी जो 1500 पेज में है।
भीष्म साहनी का साहित्य चेतना के विविध आयाम, संस्कृति की अर्थ व्यंजना,छत्तीसगढ़ी ददरिया का सात्विक अनुशीलन उनकी प्रमुख कृतियों में से हैं। करीब 67 वर्ष के डॉ. चंदेल खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं।
Add Comment