फूलन की कहानी

प्रेमकुमार मणि 

 

फूलन उम्र में मुझ से दस साल छोटी थीं। उन्हें जिंदगी बहुत थोड़ी मिली। 1963 में जन्मीं और 2001 में मार दी गईं। कुल अड़तीस साल का उन्हें जीवन मिला। न पढाई - लिखाई हुई, न ही जीवन के कुछ दूसरे सलीके सीखे; बन्दूक चलाना छोड़कर। नेहरू जी ने जीवन के नौ साल जेल में बिताए।

फूलन ने ग्यारह साल। आपके मन को ठेस पहुंची होगी कि मैं एक डाकू से नेहरू की तुलना क्यों कर रहा हूँ। बस यूँ ही मन हुआ। इसे गंभीरता से लेने की जरुरत नहीं। हाँ, कवि वाल्मीकि से उनकी तुलना बनती है और मैंने ऊपर ही की है।

जब मैं अपने जीवन के अट्ठाईसवें साल में था, तब हमारे बगल  के सूबे उत्तरप्रदेश में बेहमई काण्ड हुआ था। कोलकाता  से निकलने वाले संडे वीकली और अनेक दूसरे अखवारों में मैंने इस घटना के ब्योरे पढ़े थे।

उन दिनों समाजवादी चिंतक और राजनेता रामस्वरूप वर्मा जी बिहार यदा - कदा आते रहते थे। फूलन उनके ही इलाके की थीं। उन्होंने अपने अंदाज़ में फूलन की कथा सुनाई थी। वह संभवतः पहले राजनेता थे जिन्होंने  इस पूरी घटना को सामाजिक - आर्थिक और राजनीतिक नजरिये से देखा था।

उन दिनों कांग्रेस में द्विज वर्चस्व की राजनीति चल रही थी। इंदिरा जी के समाजवादी तेवर वाला दौर ख़त्म हो चुका था। संजय गाँधी की पसंद के विश्वनाथप्रताप सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। बेहमई काण्ड के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। पूरे उत्तर भारत में इस काण्ड की चर्चा थी।

फूलन तब बहुत कम उम्र की थीं। अठारह से कम की उम्र। उन्हें बंधक बना कर हप्तों बलात्कार होता रहा। डाकू दलों का अपना जातिवाद होता था। उसकी शिकार बच्ची फूलन बनी थी। प्रतिक्रियास्वरूप वह डाकू बनी और अपने अपमान का प्रतिशोध लिया।

उस पर बाईस ठाकुरों की हत्या का इल्जाम लगा। पूरा आर्यावर्त हिल गया था। कवि नागार्जुन ने फूलन को पौराणिक देवी दुर्गा की बेटी कहा है। दुर्गा की कहानी अपनी जगह है। उस पर मैंने बहुत साल पहले टिप्पणी की थी। संसद में दो रोज तक हंगामा होता रहा। उसे  दुहराऊंगा नहीं। लेकिन फूलन बस फूलन थी। निराला की एक कविता पंक्ति है -


' दुःख ही जीवन की कथा रही , 
क्या कहूं आज जो नहीं कही ..' 


फूलन की कथा भी दुःख की कथा थी। मैंने माला सेन की किताब भी पढ़ी है और शेखर कपूर की फिल्म भी देखी है। चालीस साल पहले जो अखबारों में पढ़ा - सुना था, वह सब भी स्मृति के किसी कोने में किसी न किसी अंश में शेष हैं।

लेकिन सबसे बड़ी बात कि वह दिल की धड़कन का भी हिस्सा हो चुकी हैं। छोटी - सी एक बच्ची, जिसने जिंदगी के जाने कितने दुःख देखे। उसका दोष बस एक ही था कि वह थोड़ी जिद्दी थीं। गरीब थी। ' छोटी जात '  से थीं;  लेकिन अनेक तकलीफों के बीच भी उन्होंने अपनी अस्मिता की थोड़ी परवाह की थी।

उनकी जीवन कथा रामायण - महाभारत की तरह लोगों को जुबानी याद है, इसलिए उसे दुहराने का कोई अर्थ नहीं है। हाँ, उनकी जीवन कथा एक विश्लेषण की मांग जरूर करती  है।

फूलन को डाकू जीवन से क्या कोई व्यामोह था? शायद नहीं। उन्हें विदेशों में ऐश करने केलिए धन नहीं बटोरने थे; न ही दूसरे नेताओं की तरह फार्म हाउस, मॉल और किले गढ़ने थे। जब वह जेल में थीं तब कुटिल डाक्टरों ने उनकी बच्चेदानी ऑपरेशन कर निकाल ली थी, ताकि फिर कोई दूसरी फूलन वह  नहीं जन्म दें।

इन तमाम दुखों, मुसीबतों और जिल्लतों को झेलते हुए उन्होंने समर्पण का मन बनाया और राजनेता अर्जुन सिंह ने इसे संभव किया। मुलायम सिंह जब अपनी राजनीति के क्रांतिकारी दौर में थे और 1993 में कांसीराम के सहयोग से जब मुख्यमंत्री बने थे, तब साहस कर के एक प्रशासनिक निर्णय लिया।

उन्होंने फूलन से सारे मुकदमे वापस ले लिए। 1996  में अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाया। फूलन लोकसभा में पहुंची। भारतीय लोकतंत्र को एक नई पहचान मिली। 

जब वह दूसरी दफा सांसद बनीं तब उन्होंने एकलव्य - सेना बनाई। निश्चित ही इन सबके पीछे कोई और रहा होगा। लेकिन इतना तो तय है कि फूलन बेहमई से आगे बढ़ना चाहती थीं। वह नफरत नहीं, प्यार की राजनीति में यकीन करती थी।

25 जुलाई 2001 को जिस शेरसिंह राणा ने उन्हें गोलियों का शिकार बनाया, वह उनसे मिल कर उनके सामाजिक मिशन का हिस्सा बनना चाहा था। वह नागपंचमी का दिन था। फूलन ने अपने इस अतिथि भाई के लिए खीर बनाई थी।

हत्यारे ने फूलन के हाथों खीर खाई और फिर गोलियों से छलनी कर दिया। मेरी नजर में यह उसके सामूहिक बलात्कार काण्ड से बड़ा छल था। लेकिन इसका जवाब देने के लिए अब फूलन नहीं थी।

हत्यारा शेरसिंह लम्बे समय तक अपने जाति भाइयों से चंदा वसूलता रहा कि मैंने अपनी जाति के बलात्कारियों के स्वाभिमान की रक्षा की है।

फूलन देवी की कहानी भारत में गरीबों और निम्नजातिवर्ण की स्त्रियों के संघर्ष की जीवन्त कथा है। उनका शोषण घर से शुरू होता है और उनके जीवन के हर मोड़ पर होता है। पिता, पति, रिश्तेदार, गाँव - जवार सब उसके विरुद्ध होते हैं। शास्त्र - पुराण कुछ भी उसके पक्ष में नहीं होता। पूरी सभ्यता स्त्री के तिरस्कार और शोषण पर टिकी होती है।

फूलन ने अपनी छोटी सी जिंदगी में एक सन्देश दिया कि जब एक स्त्री बन्दूक उठा लेती है, तब मर्दों की तथाकथित बहादुर दुनिया कैसे दुबक जाती है। लेकिन स्त्री बन्दूक नहीं पसंद करती। वह तो अनेक रूपों में प्यार उड़ेलना जानती है।

उसका बस एक रिश्ता है, जो  सेक्स केंद्रित है, वह है पति या प्रेमी का रिश्ता। बाकि रिश्ते में वह मां, बहन, बेटी और मित्र होती है। लेकिन यह पुरुष - दम्भ कि हम तो जन्मजात मर्द हैं और हमें स्त्रियों को अनेक रूपों में गुलाम बनाये रखने का अधिकार है, एक पाखण्ड का सृजन करता है।

फूलन की बंदूक इसी पाखण्ड को निशाना बनाती है। उनकी हत्या के बीस साल हो गए। अब कुछ लोग उनकी मूर्तियां बनाने में दिलचस्पी ले रहे हैं और कुछ लोग उन मूर्तियों से भी भय खा रहे हैं। मैं तो केवल यही आग्रह करूँगा कि फूलन जिन सवालों को छोड़ गई हैं, उन पर हम अपने विवेक से विचार करें।


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