दैनिक भास्कर से एक प्रतिशत भी सहानुभूति नहीं
अपूर्व भारद्वाजसुबह से अपने आप को पत्रकारिता का हरिश्चन्द्र बताकर विक्टिम कार्ड खेल रहे दैनिक भास्कर से एक प्रतिशत भी सहानुभूति नहीं है. प्रेस की आजादी की बहसबाज़ी से दूर सच सिर्फ इतना है कि मीडियापहले भी व्यापारी चलाते थे. अब भी व्यापारी चला रहे हैं.

जिस किसी को भी मुगालता हो वो दूर कर ले. हिंदी पट्टी का कोई भी अखबार जनसरोकार की पत्रकारिता नही कर रहा है. मीडिया कारपोरेट स्टायल से ही चल रहा है...
थोड़ा मेमोरी रिफ़्रेश कीजिए... 2015 की मन की बात देखिये मोदी जी खुद भास्कर का तारीफ करके खबरो को पॉजिटिव और नेगेटिव में बॉटने का खेल रचे थे. आज भी भास्कर मंडे को नो नेगेटिव न्यूज देता ह .
मोदी ने खबरों का एजेंडा और हेडलाइन मैनेजमेंट करने की शुरुआत वंही से की थी औऱ इस सब मे भास्कर उनका ब्रांड एम्बेसडर था
बिल्कुल व्हाइट और ब्लैक जैसा फेक्ट है भास्कर के मीडिया के अलावा कितने व्यापार है... वो किसी से छुपा है क्या?
मामूली अखबार से शुरू हुआ कारोबार अरबो के व्यापार तक पहुँच गया है और बड़े बड़े लोग इन्हें सत्य का हस्ताक्षर कह रहे है तो मुझे क्या किसी को भी उनकी बुद्धि पर तरस आएगा.
आप इन पर पड़ रहे छापे पर भोकाल मचा रहे है तो भैया सुन लो यह बड़े लोग है यह सब जगह से निकल जायँगे क्योंकि उन्हें पता है कि देश और नेता कैसे चलते हैं.इनके मुँह से मीडिया की आज़ादी बात तब बकवास लगती है.
जब यह सारे अखबार सरकार की गोद मे बैठकर सब्सिडी पर जमीन ले लेते है टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक को पत्रकारिता के नाम पर मात्र एक रूपए में जगह दी गई है जिस पर करोडों का किराया वसूल रहे हैं तो यह नैतिकता की बातें न करे तो बेहतर है.
मीडिया आज राजनीतिक दलाली और सरकारी ठेकों की लाइजनिंग की उपजाऊ जमीन है मालिकों को राज्यसभा जाना है या अपने वाले नेताओं को मन माफिक मंत्रालय देना है संबके पास सरकार के राज है जिसका इस्तेमाल सच्चाई को दबाने के लिए किया जाता है.
सरकार के डर से आप अपने पत्रकार को निकाल देते हैं... खुद करोड़ो कमा रहे है फिर भी पत्रकारों की तनख्वाह नही बढ़ा रहे है, महामारी के काल मे भी लोगो की नौकरी ले रहे है. सेठ जी आप अपने पत्रकारो के नही हो सकते तो... फिर आप पत्रकारिता के क्या होंगे.
केवल नाम मे भास्कर लिखने से कोई सूरज के समान सच्चा और तेज नही हो जाता, सच्चाई नैतिकता से आती है और आज की मीडिया में नैतिकता नाम की कोई चिड़िया नही है. पूरे कुँए ने भांग घुली हुई है और यही अंतिम सत्य है.
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