सरकार को जवाब देना चाहिए कि विदेशी ताकतों से मिलकर भारत की जासूसी कौन करा रहा है

बचा सिंह

 

हालांकि और भी कई राज नेताओं एवं नौकरशाही के कुर्सी पर विराजमान लोगों की भी जासूसी कराई जा रही है। उन्हीं 40 में से झारखण्ड के स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह पर भी जासूसी कराईं जा रही है।

उनके  लिखें हुए बहुत सारे लेख को हमने पढ़ा है और महसूस किया है कि झारखण्ड में जनता के ज्वलंत मुद्दों को ग्राउंड रिपोर्ट बनाकर पेश करना आज के स्थिति में गंभीर चुनौती के बराबर है।

झारखण्ड में जल, जंगल, जमीन की लूट, आदिवासियों - मुलवासियों पर दमन, नक्सलवाद के नाम पर झूठी मुकदमा बनाकर जेल भेजना,  फर्जी इनकाउंटर के जरिए हत्या करना आदि के उपर कई सारे लेख उन्होंने दमनकारी सरकार के खिलाफ सच्चाई और हिम्मत के साथ लिखा है।

जिस प्रकार से उन्होंने बीजेपी के मुख्यमंत्री रघुबर सरकार के समय मधुबन में कार्यरत डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या 9 जून 2017 को सीआरपीएफ कोबरा द्वारा कर दी गई थी, इस हत्याकांड का प्रथम खुलासा रुपेश कुमार ने अपनी लेखनी के माध्यम से जमीनी हकीकत के साथ जनता को रुबरू करवाया था।

मजदूर संगठन समिति को माओवादी के फ्रंटल संगठन बताकर प्रतिबंध लगाने और संगठन के कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमा यूएपीए लगाने को लेकर रघुबर सरकार का पर्दाफाश करते हुए सोशल मीडिया समेत कई सारे क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पत्रिकाओं में अपना लेख के जरिए आमजनों को सच्चाई से रुबरु कराया था।

जब फर्जी मुकदमा में पुलिस हमारा गिरफ्तारी करके छुपाए हुए रखा था उस समय भी पत्रकार रुपेश कुमार के कानों तक खबर मिलते ही सोशल मीडिया में डालकर पुलिस के बीच हलचल मचा दिया था उसके दूसरे दिन ही पुलिस हमें जेल भेजने का काम किया था।

रुपेश कुमार सिंह के लेखनी का ऐसे कई सारे उदाहरण है जिसके कारण सरकार की दमनकारी जनविरोधी चेहरा जनता के बीच उजागर होती रही है। ऐसे में स्वाभाविक है कि फासीवादी सरकार इस प्रकार से सच को सच लिखने का साहस रखने वालोें के खिलाफ उनके कलम की धार को रोकने के लिए जासूसी कराकर एक बड़ी साज़िश रचने का कोशिश कर रहे हैं।

मोदी सरकार अपने कुकर्मों को छुपाते हुए इस सच्चाई से मुंह मोड़ना चाहते हैं और जासूसी कांड करवाने से इन्कार कर रहे हैं, तब तो सवाल उठना और भी ज्यादा लाजमी हो जाता है कि हमारा देश आज कितना असुरक्षित हो गया है कि इजरायल द्वारा भारत में जासूसी करवा रहा है और हमारे देश की सरकार को यह पता तक नही है आसानी से यह बोलकर निकल जाना चाहते हैं।

जबकि भारत सरकार को अपनी गलती को स्वीकारना चाहिए या फिर अपने देश के सभी जांच एजेंसियों को यह जानकारी के लिए लगाना चाहिए कि हमारे देश में वैसे कितने गद्दार हैं जो विदेशी ताकतों से मिलकर चोरी-छिपे देश के जनपक्षीय स्वतंत्र पत्रकारों पर जासूसी करवा रहा है या फिर भारत सरकार को इस जासूसी के खिलाफ इजरायल से सीधा-सीधा पूछा जाना चाहिए।

मोदी सरकार को देश की जनता को यह बताना ही पड़ेगा की इतना बड़ा हरकत देश के साथ कौन सी ताकतों ने किया है,  या फिर सरकार को अपनी गलती स्वीकार करना चाहिए। 

भारत में जनपक्षीय स्वतंत्र पत्रकारों पर जासूसी करने वालों का विरोध करता हूं तथा असंवेदनशील मोदी सरकार के नाकामी का भर्त्सना करता हूं और मांग करता हूं कि केन्द्र सरकार जासूसी कराने वाले गद्दारों का नाम उजागर करें।


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