“प्रेस की स्वतंत्रता” एक “झूठ” संवैधानिक सच
निशांत आनंद“मैंने सच बोल है मुझे मार दिया जाना चाहिए। सच बोलने की सबसे लोकतान्त्रिक सजा है मौत।“ यह पढ़कर आपके अंदर का संवैधानिक सच इसे झुठलाने को कहेगा मगर जब आप अपने जीवन में इस सच को गुजरता हुआ पाते हैं तो यह वर्तमान व्यवस्था की हकीकत बयान करता है। रिपोटर विदाउट बॉर्डर्स ने 2020 का प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी किया है।

संस्था के महासचिव ने रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा कि पत्रकारिता कोरोना की महामारी के समय गलत सूचना के खिलाफ सबसे सटीक वैक्सीन है। रिपोर्ट ने खुले तौर पर स्पष्टता के साथ प्रेस स्वतंत्रता की गिरती दर को इंगित किया है, जिसका जिम्मेवार उसने तानाशाही सरकार को माना है।
“वर्तमान समय में छानबीन और तथ्यपरक पत्रकारिता करना एक बेहद मुश्किल कार्य है जहां आपको विभिन्न प्रकार की वैधानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और प्रतिक्रियावादी समूह का आतंक बढ़ने से पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़े है” रेपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स से बातचीत के दौरान एक पत्रकार ने अपने संघर्षों के बारे में साझा किया।
रिपोर्ट की माने तो पत्रकारिता के लिए विश्व का सबसे असुरक्षित क्षेत्र मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका है। जहां अल्जीरिया और मोरक्को जैसे देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता की आवाज को बंद करने के लिए न्यायपालिका का प्रयोग किया जा रहा है।
वहीं सऊदी अरबिया, ईरान जैसे देशों ने महामारी का बहाना लेकर लगभर सूचना के प्रसार को ठप्प सा कर दिया है और जबरदस्त सेंसरशिप का प्रयोग कर केवल राजकीय मीडिया को ही सूचना प्रसारण की इजाजत दी गई है।
संस्था ने इस बात का खुलासा किया है कि 2013 में जब से यह आँकड़े प्रसारित किए जा रहे हैं प्रेस स्वतंत्रता में 12% की गिरावट दर की गई है और मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका (MENA) का क्षेत्र लगातार पत्रकारिता के लिए कारगर रहा है।
पिछले वर्षों की तुलना में यूरोप की स्थिति भी बिगड़ती दिख रही है। लगातार बढ़ते फासीवादी प्रभाव के कारण पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं।
जहां वैश्विक स्तर पर पत्रकारों पर हमले में 17% का इजाफा हुआ है वही केवल यूरोपियन यूनियन और बल्कन राष्ट्रों में दोगुने की वृद्धि देखी गई है।
हाल ही में लंदन में, ब्लैक लाइवस मैटर प्रोटेस्ट के दौरान ऑस्ट्रेलिया की एक महिला पत्रकार पर एक व्यक्ति ने हमला किया था।
इसके पूर्व में भी स्पेन, फ़्रांस सर्बिया में दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी लोगों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लगातार कुचलने का प्रयास किया है। परंतु अन्य क्षेत्रों की तुलना में यूरोप व उत्तरी अमेरिका में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा बनी हुई है।
रिपोर्ट ने भारत को लाल श्रेणी में रखा है जिसका अर्थ है यह देश पत्रकारिक की स्वतंत्रता के लिए कब्रगाह है।
मौजूद 180 देशों के इस सूचकांक में भारत का स्थान 142वाँ है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट ने “प्रीडेटर”(परजीवी) की संज्ञा देते हुए एक विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
“नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्री बनने के साथ ही गुजरात के अंदर सूचनाओं को बाहर आने से रोकने के सारे हथकंडों को अपनाया था जिसकी एक बड़ी प्रयोगशाला समस्त भारत में 2014 में सत्ता में आने के साथ खोल दी गई।
उसने बड़े मीडिया कॉर्पोरेट घरानों को खरीद कर अपनी वीडियोज़ और झूठे विज्ञापनों के दम पर एक पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन) चेहरे के रूप में खुद को पेश किया।
उसने दो तारिक से इस कार्य को पूरा किया पहले तो अपने भड़काऊ बयानबाजी और झूठे लोकलुभावन वादों को मीडिया पर चलाने के लिए बाध्य किया, जिसमें ज्यादातर मीडिया हाउस की सहमति थी और कुछ को न मानकर अपने काम के समाप्त हो जाने का भय था।
वहीं दूसरी तरफ पहले के प्रभाव में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच बढ़ने के कारण मीडिया हाउस को भी अपने TRP ( टेलिविज़न रेटिंग पॉइंट) बढ़ने के कारण काफी मुनाफा हो रहा था।
आंकड़ों की माने तो अमेरिका में मात्र 12 बड़े व्यापारिक घराने मिलकर सभी मीडिया हाउस को चला रहे हैं। जिसका एक बाद उद्धरण तब देखने को मिला जब अमेरिका वेपन ऑफ मास डिस्टरकसन का हवाला देकर इराक पर युद्ध के समर्थन के लिए मुहिम चला रहा था तब अमेरिका के लगभर 244 समाचार चेनल एक सुर में इसी समाचार को लगातार प्रसारित कर रहे थे और लोगों के मस्तिष्क में एक “मिथ्या चेतन” (False Consciousness) भरने का काम कर रहे थे।
मोदी ने ‘योद्धा’ नाम के समूह को तैयार किया जो पत्रकारों को धमकाने और मारने की धमकी दिया करते थे। 2017 में गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई वही जो भी पारदर्शी पत्रकारिता थी उसे सेक्यलर और बीमार कह कर उसका उपहास बनाने की एक सामूहिक प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई।
राणा अयूब और बरखा दत्त जैसी महिला पत्रकारों को “प्रेसटीटूट्स” बोलकर अपमानित किया जाने लगा।
किसान आंदोलन में लगातार अपनी सक्रिय पत्रकारिता से लोगों तक सच्चाई पहुँच रहे मंदीप पुनिया को सिंघू बॉर्डर (दिल्ली) में पुलिस बल द्वारा सरेआम न केवल पीटा गया अपितु उन्हे जेल में पूरी रात बितानी पड़ी।
इसके अलावा केरल के मलयाली पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को उत्तर प्रदेश सरकार ने गैर कानूनी कार्य रोकथाम अधिनियम (UAPA) उस समय लगाया गया जब वह 2 दलित लड़कियों के रेप के मामले को कवर करने जा रहे थे।
इसके अलावा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।
दुनिया के अनेक क्षेत्रों में आपदा को अवसर बनाते हुए राजकीय दमन को तेज किया गया है और लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है।
वही उनकी खराब होती आर्थिक दशा के बाद सरकार ने उनके सारे विरोध करने के अधिकारों को छीन कर उन्हें मरने के लिए छोड़ किया है।
गिरती हुई समाचारों की विश्वसनीयता पर संस्था ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए यह स्पष्ट किया है कि 28 देशों के आंकड़ों को माने तो 59% लोग यह मानते हैं कि मीडिया यह जानते हुए भी की यह समाचार गलत है फिर भी लोगों को गुमराह करने के लिए वैसे समाचार दिखती या लिखती है।
इसका तात्पर्य साफ है मीडिया न केवल राज्य के गलत कार्यों को पर्दा देने का कार्य कर रही है अपितु वह लोगों के मध्य गलत प्रकार के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए प्रेरित भी कर रही है।
Malcolm X ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि “अगर आप मीडिया में छाप रही खबरों को पढ़ते समय सावधान नहीं तो यह शोषितों को शोषक और शोषकों को शोषित बता देगी।“
Important links:
1. Narendra Modi The Predator- https://rsf.org/en/predator/narendra-modi
2. Detailed Report of Reports Without Border- https://rsf.org/en/2021-world-press-freedom-index-journalism-vaccine-against-disinformation-blocked-more'30-countries
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