छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्न दृष्टा

द कोरस टीम

 

रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए थे। 1946 में उनको तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था। 

उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल से हुई। आगे की पढ़ाई रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से पूर्ण हुई। अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने नागपुर के रॉबर्ट्सन मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।

महात्मा गांधी के आव्हान पर अगस्त 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय योगदान के कारण ढाई साल जेल में रहे।

असहयोग आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और आंदोलन में शामिल हो गए। घर वालों के बार-बार बोलने और समझाने से उन्होंने पुन: एलएमपी (लेजिस्लेटिव मेडिकल प्रक्टिसनर) नागपुर में दाखिला लिया और साल 1923 में एलएमपी की परीक्षा पास की। बाद में एलएमपी को सरकार द्वारा एमबीबीएस का दर्जा दिया गया।

उनका पारिवारिक परिचय 

डॉ. खूबचंद बघेल का विवाह बहुत की काम उम्र में करा दिया गया था, जब वे अपनी प्राथमिक की पढ़ाई कर रहे थे तो सिर्फ 10 वर्ष के उम्र में उनका विवाह उनसे साल में 3 वर्ष छोटी कन्या राजकुंवर से करा दिया गया था।

उनकी पत्नी राजकुंवर से 3 पुत्रियां पार्वती, राधा और सरस्वती का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने पुत्र मोह के कारण डॉ. भारत भूषण बघेल को गोद लिया। 

सामाजिक सरोकार

पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में छुआछूत, ऊंच- नीच की भावना व्याप्त थी। उस समय नाई, सतनामी समाज के लोगों के बाल काटने को राजी नहीं होते थे इस व्यथा को देखकर सेठ स्व. अनंत राम बर्छिहा ने उनके बाल काटे और दाढ़ी भी बनाई इसी से क्षुब्ध होकर कुर्मी समाज ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया था।

जिसे देखकर ‘ऊँच-नीच’ नामक नाटक की रचना कर प्रदर्शन किया। जिसके प्रभाव से ही बर्छिहा का सामाजिक बहिष्कार को रद्द किया गया। 

डॉ. खूबचंद बघेल ने जब से अपना होश सम्हाला था तब से उन्हें जातिगत भेदभाव से चिढ़ थी, उन्होंने जातिगत भेदभाव के साथ साथ उपजातिगत भेदभाव को भी दूर करने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज के समय में कुर्मी समाज में व्याप्त उपजाति भेदभाव को दूर किया जा सका है।  

इस भेदभाव को मिटाने के लिए डॉ. बघेल स्वयं मनवा कुर्मी के थे परन्तु उन्होंने अपनी एक पुत्री का विवाह दिल्लीवार कुर्मी समाज में तथा सबसे छोटी बेटी का विवाह पटना के राजेश्वर पटेल से करवाया।

उन्हें समाज के क्रोध के कारण कुर्मी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। परन्तु वे हमेशा से इस उपजाति बंधन को तोडऩे में लगे रहे।  

डॉ. खूबचंद बघेल द्वारा सामाजिक उत्थान के भोजन के लिए बैठने वाली पंक्त्यिों का विरोध किया। इसी कुरीति को तोने के लिए डॉ. खूबचंद बघेल जी ने पंक्ति तोड़ो आंदोलन शुरू किया जिसका परिणाम आज आप लोगों के सामने है की सब अब मिल जुलकर किसी भी पंक्ति में भोजन कर पा रहे हैं। 

किसबिन नाच किसबा जाति द्वारा किया जाने वाला एकपुश्तैनी धंधा था जिसमें किसबा जाति के पुरुष अपने बहन-बेटियों को विभिन्न त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गंवाने का काम किया करते थे।

इस चलन को बंद करने के लिए डॉ. बघेल जी द्वारा समाज सुधार की दृस्टि से ‘भारतवंशी जातीय सम्मलेन’ का आयोजन मुंगेली में कराया गया जिसका असर किसबा जाति पर पड़ा और वे सब सामाजिक मुख्य धारा में लौट आये। 

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा

डॉ. रामलाल कश्यप (पूर्व कुलपति पंडित रविशंकर शुक्त विश्वविद्यालय, रायपुर) ने जब बघेल से पूछा- ‘आप छत्तीसगढ़ी आंदोलन के प्रेणता माने जाते हैं, तो आपके अनुसार छत्तीसगढिय़ा की परिभाषा क्या है?

डॉ. बघेल ने उत्तर दिया -‘जो छत्तीसगढ़ के हित में अपना हित समझता है। छत्तीसगढ़ के मान- सम्मान को अपना मान-सम्मान समझता है और छत्तीसगढ़ के अपमान को अपना अपमान समझता है, वह छत्तीसगढिय़ा हैं। चाहे वह किसी भी धर्म, भाषा, प्रांत जाति का क्यों न हो।’
 
राजनितिक जीवन

सन 1931 तक सरकारी पद त्याग कर उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया। इसके पूर्व अप्रैल 1930 में रायपुर महाकोसल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉक्टर बघेल ने भी हिस्सा लिया था। सन 1939 के त्रिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राजकुंवर देवी भी 6 माह के लिए जेल गई। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में बघेल निर्विरोध चुने गए।

इस तरह सन 1946 में बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया।

1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1951 के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। 1965 तक विधानसभा के सदस्य रहे। 1965 में राज्यसभा के लिए चुने गए राजनीति से 1968 तक जुड़े।

डॉ. खूबचंद बघेल का अवसान

डॉ. खूबचंद बघेल हमेशा से छत्तीसगढ़ को एक अलग पहचान दिलाने के लिए कार्य किया। वे हमेशा छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने के लिए अनेक प्रयास किये। वे हमेशा यही चाहते थे की छत्तीसगढ़ को लोग क्यों ऐसे हीन भावना से देखते हैं हमेशा इससे सौतेला व्यावहार क्यों करते हैं बस इन्ही बातों की चिंता उन्हें सताते रहती थी।

जातिगत भेदभाव, कुरीतियों को मिटाने वाले शख्सियत का निधन संसद के शीतकालीन सत्र में भाग लेने दिल्ली गए हुए थे वहां दिल का दौरा पडऩे से उनकी आकस्मिक निधन 22 फरवरी 1969 को हो गया। 


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