भारत का लोकतंत्र जासूसी के जद में, देश की संप्रभुता दांव पर
द कोरस टीमदेशद्रोह और यूएपीए जैसे धाराओं में कैद लोगों की असलियत अब धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है कि देश में शासक वर्ग देशद्रोही में उतर आया है और जेलों में कैद पत्रकार, स्वतंत्र पत्रकार, समाजसेवी और कुछ गिने चुने राजनेता ही वास्तक में देशभक्त हैं। 16 मीडिया संगठनों द्वारा की गई पड़ताल दिखाती है कि इजरायल के एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर द्वारा स्वतंत्र पत्रकारों, स्तंभकारों, क्षेत्रीय मीडिया के साथ हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, द वायर, न्यूज 18, इंडिया टुडे, द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था।

मीडिया संस्थानों द्वारा दुनिया भर में हजारों फोन नंबरों- जिन्हें इजरायली कंपनी के विभिन्न सरकारी ग्राहकों द्वारा जासूसी के लिए चुना गया था, के रिकॉर्ड्स की समीक्षा के अनुसार, 2017 और 2019 के बीच एक अज्ञात भारतीय एजेंसी ने निगरानी रखने के लिए 40 से अधिक भारतीय पत्रकारों को चुना गया था।
लीक किया हुआ डेटा दिखाता है कि भारत में इस संभावित हैकिंग के निशाने पर बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकार, जैसे हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक शिशिर गुप्ता समेत इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के कई नाम शामिल हैं।
द वायर के अनुज श्रीवास लिखते हैं कि इनमें द वायर के दो संस्थापक संपादकों समेत तीन पत्रकारों, दो नियमित लेखकों के नाम हैं। इनमें से एक रोहिणी सिंह हैं, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी निखिल मर्चेंट को लेकर रिपोर्ट्स लिखने के बाद और प्रभावशाली केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बिजनेसमैन अजय पिरामल के साथ हुए सौदों की पड़ताल के दौरान निशाने पर लिया गया था।
एक अन्य पत्रकार सुशांत सिंह, जो इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर हैं, को जुलाई 2018 में तब निशाना बनाया गया, जब वे अन्य रिपोर्ट्स के साथ फ्रांस के साथ हुई विवादित रफाल सौदे को लेकर पड़ताल कर रहे थे।
फ्रांस के एक मीडिया नॉन प्रॉफिट संस्थान फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास एनएसओ के फोन नंबरों का रिकॉर्ड था, जिसे उन्होंने पेगासस प्रोजेक्ट नामक की एक लंबी जांच के हिस्से के रूप में द वायर और दुनिया भर के 15 अन्य समाचार संगठनों के साथ साझा किया है।
एक साथ काम करते हुए ये मीडिया संगठन- जिनमें द गार्जियन, द वाशिंगटन पोस्ट, ल मोंद और सुडडोईच ज़ाईटुंग शामिल हैं- ने कम से कम 10 देशों में 1,571 से अधिक नंबरों के मालिकों की स्वतंत्र रूप से पहचान की है और पेगासस की मौजूदगी को जांचने के लिए इन नंबरों से जुड़े फोन्स के एक छोटे हिस्से की फॉरेंसिक जांच की है।
एनएसओ इस दावे का खंडन करता है कि लीक की गई सूची किसी भी तरह से इसके स्पायवेयर के कामकाज से जुड़ी हुई है। द वायर और पेगासस प्रोजेक्ट के साझेदारों को भेजे गए पत्र में कंपनी ने शुरुआत में कहा कि उसके पास इस बात पर ‘यकीन करने की पर्याप्त वजह है’ कि लीक हुआ डेटा ‘पेगासस का उपयोग करने वाली सरकारों द्वारा निशाना बनाए गए नंबरों की सूची नहीं’ है, बल्कि ‘एक बड़ी लिस्ट का हिस्सा हो सकता है, जिसे एनएसओ के ग्राहकों द्वारा किसी अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया।’
हालांकि, निशाना बनाए गए फोन की फॉरेंसिक जांच में सूची में शामिल कुछ भारतीय नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल की पुष्टि हुई है. साथ ही इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि सर्विलांस का यह बेहद अनधिकृत तरीका- जो हैकिंग के चलते भारतीय कानूनों के तहत अवैध है- अब भी पत्रकारों और अन्य की जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
पेगासस और भारत के बीच गणित
2010 में स्थापित एनएसओ ग्रुप को पेगासस के जनक के तौर पर जाना जाता है। पेगासस एक ऐसा स्पायवेयर है, जो इसे संचालित करने वालों को दूर से ही किसी स्मार्टफोन को हैक करने के साथ ही उसके माइक्रोफोन और कैमरा सहित, इसके कंटेंट और इस्तेमाल तक पहुंच देता है।
कंपनी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि पेगासस को निजी संस्थाओं या किसी भी सरकार को नहीं बेचा जाता है। असल में द वायर और उसके मीडिया सहयोगियों को लिखे पत्र में भी एनएसओ ने दोहराया कि वह अपने स्पायवेयर को केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को बेचता है।
एनएसओ इस बात की पुष्टि नहीं करेगा कि भारत सरकार इसकी ग्राहक है या नहीं, लेकिन भारत में पत्रकारों और अन्य लोगों के फोन में पेगासस की मौजूदगी और संभावित हैकिंग के लिए चुने गए लोगों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यहां एक या इससे अधिक आधिकारिक एजेंसियां सक्रिय रूप से इस स्पायवेयर का उपयोग कर रही हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक स्पष्ट रूप से पेगासस के आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल से इनकार नहीं किया है, पर यह उन आरोपों को खारिज करती रही है कि भारत में कुछ लोगों की अवैध निगरानी के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया जा सकता है। पेगासस प्रोजेक्ट के सदस्यों द्वारा इस बारे में भेजे गए सवालों के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसी बात को दोहराया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा लीक हुई सूची में शामिल कई देशों के लोगों के एक छोटे समूह के स्मार्टफोन के स्वतंत्र फॉरेंसिक विश्लेषण में आधे से अधिक मामलों में पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले हैं।
भारत में जांचे गए 13 आईफोन में से नौ में उन्हें निशाना बनाए जाने के सबूत मिले हैं, जिनमें से सात में स्पष्ट रूप से पेगासस मिला है। नौ एंड्राइड फोन भी जांचे गए, जिनमें से एक में पेगासस के होने का प्रमाण मिला, जबकि आठ को लेकर निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि एंड्रॉइड लॉग उस तरह का विवरण प्रदान नहीं करते हैं, जिसकी मदद से एमनेस्टी की टीम पेगासस की उपस्थिति की पुष्टि कर सकती है।
हालांकि, इस साझा इन्वेस्टिगेशन से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि वे सभी पत्रकार, जिनके नंबर लीक हुई सूची में मिले हैं, की सफल रूप से जासूसी की गई या नहीं। इसके बजाय यह पड़ताल सिर्फ यह दिखाती है कि उन्हें 2017-2019 के बीच आधिकारिक एजेंसी या एजेंसियों द्वारा लक्ष्य के बतौर चुना गया था।
एआई की सिक्योरिटी लैब द्वारा किए गए विशिष्ट डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण में लीक हुई सूची में शामिल छह भारतीय पत्रकारों के मोबाइल फोन पर पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले, जो इस लिस्ट में अपना नंबर मिलने के बाद अपने फोन की जांच करवाने के लिए सहमत हुए थे।
पेगासस प्रोजेक्ट की रिपोर्टिंग से सामने आई पत्रकारों की सूची को बेहद विस्तृत या निगरानी का निशाना बने रिपोर्टर्स का सैंपल भर भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह केवल लीक हुए एक डेटा सेट में एक छोटी अवधि में सर्विलांस के एक तरीके- यानी केवल पेगासस से हुई जासूसी के बारे में बात करता है।
किन किन पर थी नजर
लिस्ट में शामिल अधिकतर पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी के हैं और बड़े संस्थानों से जुड़े हुए हैं। मसलन, लीक डेटा दिखाता है कि भारत में पेगासस के क्लाइंट की नजर हिंदुस्तान टाइम्स समूह के चार वर्तमान और एक पूर्व कर्मचारी पर थी।
इनमें कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता, संपादकीय पेज के संपादक और पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अखबार मिंट के एक रिपोर्टर शामिल हैं।
अन्य प्रमुख मीडिया घरानों में भी कम से कम एक पत्रकार तो ऐसा था, जिसका फोन नंबर लीक हुए रिकॉर्ड में दिखाई देता है। इनमें इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (जो शिक्षा और चुनाव आयोग कवर करती हैं), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (जो रक्षा और सेना संबंधी रिपोर्टिंग करते हैं), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (जो इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक हैं), द हिंदू की विजेता सिंह (गृह मंत्रालय कवर करती हैं) शामिल हैं, और इनके फोन में पेगासस डालने की कोशिशों के प्रमाण मिले हैं।
द वायर में जिन्हें निशाना बनाया गया, उनमें संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु शामिल हैं, जिनके फोन की फॉरेंसिक जांच में इसमें पेगासस होने के सबूत मिले हैं। द वायर की डिप्लोमैटिक एडिटर देवीरूपा मित्रा को भी निशाना बनाया गया है।
रोहिणी सिंह के अलावा द वायर के लिए नियमित तौर पर राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड्स में मिला है। इसी तरह स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी को भी तब निशाना बनाया गया था, जब वे वायर के लिए लिख रही थीं।
द वायर का दावा है कि सर्विलांस के लिए निशाना बनाए जाने की बात बताए जाने पर झा ने कहा, ‘जिस तरह यह सरकार भारतीय संविधान का अपमान इसकी रक्षा करने वालों को ही फंसाने के लिए कर रही है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह खतरा है या तारीफ।’
द हिंदू की विजेता सिंह ने कहा, ‘मेरा काम स्टोरी करना है। खबर रुकती नहीं है, स्टोरी वैसी ही कही जानी चाहिए, जैसी वो है, बिना किसी फैक्ट को दबाए बिना सजाए-धजाये।’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह ‘अनुमान लगाना उचित नहीं होगा’ कि कोई उन्हें निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में क्यों देखेगा, ‘हम जो भी जानकारी इकट्ठा करते हैं, वो अगले दिन के अखबार में आ जाती है।’
सूची में द पायनियर के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर जे. गोपीकृष्णन का भी नाम है, जिन्होंने 2जी टेलीकॉम घोटाला का खुलासा किया था। उन्होंने कहा, ‘एक पत्रकार के तौर पर मैं ढेरों लोगों से संपर्क करता हूं और ऐसे भी कई लोग हैं जो यह जानना चाहते हैं कि मैंने किससे संपर्क किया।’
विश्लेषण से पता चलता है कि ऊपर उल्लिखित अधिकांश नामों को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 2018-2019 के बीच निशाना बनाया गया था।
एक युवा टीवी पत्रकार, जिन्होंने उनका नाम न देने को कहा है, क्योंकि वे किसी और क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए पत्रकारिता छोड़ चुकी हैं, ने वायर को बताया कि जहां तक उन्हें याद पड़ता है डेटा में दिखाई गई समयावधि में जिस स्टोरी के लिए उन्हें संभवतया निगरानी के लिए निशाना बनाया जा सकता है, वह सीबीएसई पेपर लीक से जुड़ी थी।
इससे पहले के पेगासस के निशाने
2019 में वॉट्सऐप ने कनाडा के सिटिजन लैब के साथ मिलकर इस ऐप की सुरक्षा में सेंध लगाने को लेकर हुए पेगासस हमले को लेकर इससे प्रभावित हुए दर्जनों भारतीयों को चेताया था. ऐसे कम से कम दो पत्रकार हैं, जिनका नाम पेगासस प्रोजेक्ट को मिले लीक डेटा में है, जिन्हें 2019 में वॉट्सऐप द्वारा उनके फोन हैक होने के बारे में बताया गया था।
इनमें विदेश मंत्रालय कवर करने वाले रिपोर्टर सिद्धांत सिब्बल (जो विऑन टीवी चैनल में काम करते हैं) और पूर्व लोकसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय का नाम है।
द वायर द्वारा जिस डेटा की समीक्षा की गई, उसके मुताबिक सिब्बल को 2019 की शुरुआत में चुना गया था, उन्होंने इसी साल के आखिर में बताया था कि उन्हें वॉट्सऐप ने उनके फोन से हुई छेड़छाड़ के बारे में चेताया था। रिकॉर्ड्स के अनुसार, भारतीय को भी संभावित लक्ष्य के तौर पर 2019 की शुरुआत में ही चुना गया था, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह बताया था कि उन्हें भी वॉट्सऐप द्वारा संदेश भेजा गया था।
दिल्ली से दूर अलग अलग राज्यों में
लीक हुए डेटा से उन पत्रकारों के नंबर शामिल हैं, जो लुटियंस दिल्ली और राष्ट्रीय चकाचौंध से बहुत दूर काम करते हैं। इसमें उत्तर-पूर्व की मनोरंजना गुप्ता, जो फ्रंटियर टीवी की प्रधान संपादक हैं, बिहार के संजय श्याम और जसपाल सिंह हेरन के नाम शामिल हैं।
हेरन लुधियाना स्थित पंजाबी दैनिक रोज़ाना पहरेदार के प्रधान संपादक हैं। पंजाब के हर जिले में अखबार के पत्रकार हैं, इसे व्यापक रूप से पढ़ा जाता है और राज्य में इसका खासा प्रभाव है।
उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर किसी भी तरह से निगरानी रखा जाना ‘शर्मनाक’ है. उन्होंने कहा, ‘उन्हें यह पसंद नहीं है कि उनके नेतृत्व में देश जिस दिशा में जा रहा है, हम उसकी आलोचना करें। वे हमें चुप कराने की कोशिश करते हैं।’
लुधियाना से दक्षिण पूर्व में 1,500 किलोमीटर दूर एक और पत्रकार मिले, जो फौरी तौर पर तो बेहद प्रभावशाली नहीं लगते हैं, लेकिन एनएसओ ग्रुप के भारतीय क्लाइंट की उनमें काफी दिलचस्पी नजर आती ह।. झारखंड के रामगढ़ के रूपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और उनसे जुड़े तीन फोन नंबर लीक हुए डेटा में मिले हैं।
रूपेश कुमार द कोरस से कहते हैं कि इस खबर में जिस रिर्पोटिग के बाद से उनकी जासूसी की बात छपी है वह 9 जून 2017 को हुई एक आदिवासी डोली मजदूर की हत्या थी। जिसे इनामी नक्सली कहकर प्रशासन द्वारा मार दिया गया था और इनाम की राशियों को बांट भी लिया गया था। इसमें उस समय के झारखंड के डीजीपी सहित बहुत से नाम शामिल थे और सबसे बड़ी बात थी कि वह नक्सल अभियान के फर्जीवाड़ा का एक बड़ा खुलासा कर रही थी। जिसमें बिल्कुल स्पष्ट था कि जिसे माओवादी बताकर मारा गया है वह एक डोली मजदूर मोतीलाल बास्के है और यह खबर पुलिस प्रशासन के दावे को एकदम से उलट रही थी।
रूपेश कहते हैं कि बात 12 जून 2021 के लातेहार में हुए ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह की हत्या हो चाहे 2020 में हुए रोशन होरो की हत्या हो। ये वे खबरें है जो प्रकाश में आई, जिसपर थोड़ी सुगबुगाहट भी हुई। जानकार बताते हैं कि ऐसी घटनाएं अक्सर घटती रहती हैं। लातेहार में भी ब्रह्मदेव सिंह की हत्या के कुछ महिने पहले भी ऐसे वारदात हो चुके हैं। पर आदिवासी जनता दबकर रह जाती है। वे तो एफआईआर भी नहीं कर पाती।
रूपेश कहते हैं कि हम इसे सिर्फ जासूसी तक ही सीमित नहीं कर सकते क्योंकि इस खबर में फोन टेपिंग की बात जब से छपी है उसी के बाद 4 जून 2019 को उन पर राजकीय हमला होता है और बिल्कूल बनावटी कहानी के साथ उन्हें फंसाने की कोशिश होती है। उन्हें जेल में डाला जाता है। उसके छ: महिने बर्बाद कर उनके सामाजिक पहचान पर चोट करने की कोशिश की जाती है। उनपर मानसिक दबाव बनाया जाता है। और जेल से आने के बाद भी आईबी द्वारा उनकी जासूसी के संकेत मिलते है। इंडायरेक्ट धमकाने की कोशिश भी की जाती है। जो अब भी उनकी लेखनी की धारा मोडऩे का दबाव बनाते रहने का एक प्रमाण है।
फॉरेंसिक विश्लेषण क्या कहता है?
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब ने सात पत्रकारों के फोन पर डिजिटल फॉरेंसिक जांच की। इसके नतीजों का सिटिजन लैब के विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण किया गया था, जबकि यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के एक संस्थान द्वारा व्यापक मेथडोलॉजी की समीक्षा की गई।
सिद्धार्थ वरदराजन द वायर में लिखते हैं कि इस प्रोजेक्ट के हिस्से के तौर पर इन नंबरों से जुड़े फोन के एक छोटे-से वर्ग पर की गई फॉरेंसिक जांच दिखाती है कि पेगासस स्पायवेयर के जरिये 37 फोन को निशाना बनाया गया था, जिनमें से 10 भारतीय हैं। फोन का तकनीकी विश्लेषण किए बिना निर्णायक रूप से यह बताना संभव नहीं है कि इस पर सिर्फ हमले का प्रयास हुआ या सफल तौर पर इससे छेड़छाड़ की गई है।
सूची में पहचान किए गए नंबरों का अधिकांश हिस्सा भौगोलिक तौर पर 10 देशों के समूहों- भारत, अजरबैजान, बहरीन, कजाकिस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में केंद्रित था।
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में आधारित डिजिटल सर्विलांस शोध संगठन सिटिजन लैब, जिसने 2019 में एनएसओ गु्रप के खिलाफ वॉट्सऐप के कानूनी मुकदमे की जमीन तैयार की थी, के विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी देशों में 2018 में पेगासस के सक्रिय ऑपरेटर्स थे।
वरदराजन कहते हैं कि इंडियन टेलीग्राफ एक्ट और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट ऐसी प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है, जिसका कानूनन निगरानी के लिए पालन किया जाना चाहिए। अलग-अलग देशों के अपने अलग-अलग कानून हैं, लेकिन भारत में किसी व्यक्ति- निजी या सरकारी, द्वारा हैकिंग करके किसी सर्विलांस स्पायवेयर का इस्तेमाल करना आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है।
आगे यह पूछे जाने पर कि ये ‘दूसरे मकसद’ क्या हो सकते हैं, कंपनी ने पैंतरा बदलते हुए यह दावा किया कि लीक रिकॉर्ड ‘सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध, एचएलआर लुकअप सर्विस जैसे प्रकट स्रोतों’ पर आधारित हैं- और इसका पेगासस या एनएसओ के किसी दूसरे प्रोडक्ट के कस्टमर टार्गेट्स की सूची के साथ कोई संबंध नहीं है।’
एचएलआर लुकअप सर्विस का इस्तेमाल यह परीक्षण करने के लिए किया जाता है कि दिलचस्पी वाला कोई नंबर वर्तमान में किसी नेटवर्क में है या नहीं और हालांकि इनकी भले ही टेलीमार्केटिंग वालों के लिए व्यावसायिक उपयोगिता हो, टेलीकॉम सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि एचएलआर लुकअप्स एक स्पायवेयर आधारित सर्विलांस का अभिन्न हिस्सा हो सकते हैं।
बर्लिन के सिक्योरिटी रिसर्च लैब्स के चीफ साइंटिस्ट कार्सटन नोल ने पेगासस प्रोजेक्ट को बताया कि ‘एक एचएलआर लुकअप को इस्तेमाल करने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इससे यह पता चल जाएगा कि फोन चालू है’- यानी हैकिंग के लिए उपलब्ध है।
This is the first time in the history of this country that all pillars of our democracy — judiciary, Parliamentarians, media, executives & ministers — have been spied upon. This is unprecedented and the PCI condemns unequivocally. The snooping has been done for interior motives.
— Press Club of India (@PCITweets) July 19, 2021
यह मानते हुए कि लीक हुए नंबर एचएलआर लुकअप सर्विस के आउटपुट को प्रदर्शित करते हैं, जैसा कि एनएसओ का खुद कहना है, यह तथ्य कि अतीत में ज्ञात तौर पर पेगासस का इस्तेमाल करने वाले कम से कम 10 सरकारों से लीक हुआ डेटा एक संकलित रूप में सामने आया, यह संकेत करता है कि ये सब या तो एक ही सर्विस प्रोवाइडर द्वारा निकाले गए या इन्हें किसी मकसद से एक जगह इकट्ठा करके रखा गया।
विचाराधीन सूचना की संवेदनशीलता- बड़ी हस्तियों को संभावित हैकिंग और सर्विलांस के लिए चुनने वाली सरकारें बिल्कुल भी नहीं चाहेंगी कि उनके लक्ष्यों के ब्योरे के बारे में किसी विदेशी सरकार या निजी संगठन को जानकारी हो- उस सवाल को मजबूती देती है, जो लीक हुए डेटाबेस और पेगासस के साथ इसके संबंधों को लेकर एनएसओ के जोरदार खंडन से उठता है।
द वायर के लिये सुकन्या शांता लिखती हैं कि निगरानी के लिए संभावित निशाने पर ‘कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स’ भी थी, जिससे जुड़े शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं के फोन नंबर भी पेगासस स्पायवेयर के जरिये हुए सर्विलांस वाले भारतीय फोन नंबरों की लीक हुई सूची में साल 2017 के मध्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी के फोन पर एक के बाद एक कई मैसेजेस आए। इसमें कश्मीर के संबंध में कई सारी मनगढ़ंत खबरें थी, जिसके जरिये गिलानी के ध्यान को खींचने की कोशिश की गई थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब के सहयोग से गिलानी के आईफोन, जिसे उनके परिजनों ने संरक्षित किया हुआ है, का फॉरेंसिक विश्लेषण कराया है और इस बात की पुष्टि कर सकता है कि फोन के साथ दो साल से अधिक समय तक छेड़छाड़ की गई थी।
गिलानी के फोन में पेगासस स्पायवेयर डाला गया था, जो इजराइल के तेल अवीव स्थित फर्म का नामी प्रोडक्ट है। पेगासस इसके ऑपरेटर को यूजर की इजाजत के बिना उसके मोबाइल पर अनाधिकृत पहुंच देता है।
गिलानी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में अरबी पढ़ाते थे, को संसद हमले के मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में अक्टूबर 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘सबूतों के अभाव’ में उन्हें बरी कर दिया गया था, जिस फैसले को बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2005 में बरकरार रखा था।
जेल में रहने के दौरान भारी समर्थन हासिल करने वाले गिलानी ने जेल में बंद लोगों के लिए काम करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिय।. उन्होंने अपने दोस्त रोना विल्सन, जो साल 2018 के एल्गर परिषद मामले में मुख्य आरोपी के रूप में नामजद हैं, के साथ मिलकर राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए एक समिति- कमेटी फॉर द रिलीफ ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स (सीआरपीपी) की स्थापना की।
देश भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कई मामलों से जुड़े रहे गिलानी बाद में जीएन साईबाबा की रक्षा और रिहाई के लिए 17 सदस्यीय समिति का मुख्य हिस्सा भी बने थे।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को प्रतिबंधित माओवादी संगठन के साथ कथित संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की कई धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 90 फीसदी से अधिक शारीरिक अक्षमता के चलते साईबाबा को जेल में गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ा है, लेकिन निचली और उच्च न्यायपालिका दोनों ने कई बार जमानत से इनकार कर दिया।
गिलानी के बेटे सैयद आतिफ गिलानी, जो दिल्ली में वकील हैं, ने अक्टूबर 2019 में अपने पिता के गुजरने के बाद भी उनके फोन को सुरक्षित रखा था। आतिफ गिलानी ने बताया कि फॉरेंसिक रिपोर्ट ने केवल उन आशंकाओं की पुष्टि की है जो वे दशकों से महसूस कर रहे थे।
हेनी बाबू सीआरपीपी और साईबाबा रक्षा समिति दोनों के कोर टीम के सदस्य भी थे। वे मुख्य रूप से प्रेस विज्ञप्तियों को संभालते थे और उनकी ईमेल आईडी और फोन नंबर आमतौर पर प्रेस स्टेटमेंट पर छपे होते थे।
संभावित निशाने के रूप में चुने जाने वाले साईबाबा रक्षा समिति और सीआरपीपी के अन्य सदस्य या करीबी समर्थक में सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी. हरगोपाल, रक्षा समिति के अध्यक्ष सरोज गिरि और राकेश रंजन, दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं और नियमित रूप दिल्ली की बैठकों में भाग लेते हैं, साईबाबा की पत्नी वसंता कुमारी और दो अन्य शिक्षाविद भी शामिल थे।
वसंता ने कहा कि साईबाबा की रिहाई की मांग को लेकर पूरे भारत में आयोजित कई महत्वपूर्ण बैठकों और विरोध प्रदर्शनों के दौरान ही ये निगरानी कराई गई है। उन्होंने कहा, ‘साईबाबा की सजा के तुरंत बाद रक्षा समिति ने विभिन्न शहरों में कई बैठकें आयोजित की थीं। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नियमित रूप से प्रकाशित प्रेस बयानों के साथ हमारे कार्यक्रम सार्वजनिक नजर में थे।’
रंजन और गिरि ने द वायर को बताया कि हालांकि वे समिति के पदाधिकारी नहीं हैं, लेकिन वे नियमित रूप से बैठकों में भाग लेते रहे हैं। रंजन ने पुष्टि करते हुए कहा, ‘साईबाबा की गिरफ्तारी और दोषसिद्धि का व्यापक रूप से विरोध किया गया था. अन्य लोगों की तरह मैं भी उन बैठकों में नियमित रूप से भाग लेता था।’
गिरि ने कहा कि साईबाबा और विल्सन दोनों के साथ उनके लंबे जुड़ाव ने उन्हें निशाने पर ला दिया। उन्होंने द वायर से कहा, ‘मैं उस समिति का अभिन्न अंग रहा हूं जो उनकी रिहाई की मांग कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में मैंने डीयू के प्रोफेसर जीएन साईबाबा के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश की है।’
द वायर के लिये सुकन्या शांता लिखती हैं कि एक साल बाद कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रोना विल्सन को एल्गार परिषद मामले में ‘मुख्य आरोपी’ बताते हुए छह जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था। तब से वे हिरासत में हैं।
बाद में केरल की यह यात्रा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा हेनी बाबू के साथ पूछताछ का केंद्र बन गई, जो 28 जुलाई, 2020 को उनकी गिरफ्तारी से पहले एक सप्ताह से अधिक समय तक चली थी।
छत्तीसगढ़ भी था निशाने में
विल्सन और हेनी बाबू के अलावा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुने गए अन्य लोगों में अधिकार कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, अकादमिक और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर शोमा सेन (उनका नंबर पहली बार 2017 में लिया गया है), पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वकील अरुण फरेरा और अकादमिक एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज शामिल हैं।
फ्रांस स्थित मीडिया नॉन प्रॉफिट फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने इन दस्तावेजों को प्राप्त किया है, जिसे उन्होंने दुनिया भर के 15 अन्य समाचार संगठनों के साथ एक सहयोगी इन्वेस्टिगेशन और रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के रूप में साझा किया है।
किन किन पर हमला
इनमें से अधिकांश से महाराष्ट्र की पुणे पुलिस और बाद में 2018 और 2020 के बीच एनआईए द्वारा पूछताछ की गई है। लीक हुए रिकॉर्ड में तेलुगू कवि और लेखक वरवरा राव की बेटी पवना, वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग, उनके सहयोगी वकील निहालसिंह राठौड़ और जगदीश मेश्राम, उनके एक पूर्व क्लाइंट मारुति कुरवाटकर (जिन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत कई मामलों में आरोपी बनाया था।
और वे चार साल से अधिक समय तक जेल में रहे थे तथा बाद में जमानत पर रिहा हुए थे) भारद्वाज की वकील शालिनी गेरा, तेलतुम्बडे के दोस्त जैसन कूपर, केरल के एक अधिकार कार्यकर्ता, नक्सली आंदोलन के विद्वान और बस्तर की वकील बेला भाटिया, सांस्कृतिक अधिकार और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे की पार्टनर रूपाली जाधव, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत के करीबी सहयोगी और वकील लालसू नागोटी के नंबर भी शामिल हैं।
डेटा से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब वरवरा राव को अगस्त 2018 में नजरबंद रखा गया था, उसी समय पवना के नंबर पर निगरानी शुरू की गई थी। बाद में पुणे पुलिस ने राव को हिरासत में ले लिया था। करीब 27 महीने जेल में बिताने के बाद 81 वर्षीय राव को इस साल फरवरी में सशर्त जमानत पर रिहा किया गया था।
भारद्वाज, गोंसाल्वेस, सेन और फरेरा के मामले में डेटा से पता चलता है कि उनके फोन जब्त किए जाने और उन्हें गिरफ्तार किए जाने के महीनों बाद भी लीक हुए डेटा में उनके फोन नंबर दिखाई देते रहे हैं।
भारद्वाज को 28 अगस्त, 2018 को नजरबंद किया गया था और अंत में 26 अक्टूबर, 2018 को उन्हें जेल भेज दिया गया। लेकिन लीक हुए डेटा से पता चलता है कि उनकी नजरबंदी और पुणे पुलिस द्वारा उनका नंबर लिए जाने के बाद तक उनकी निगरानी जारी रही।
दूसरे शब्दों में कहें तो डिजिटल साक्ष्य के रूप में फोन लिए जाने के बाद सील किया जाता है और उसे स्विच ऑन नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि एक छोटा-सा बदलाव भी सबूतों के साथ छेड़छाड़ के बराबर माना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि मीनल गाडलिंग का फोन उनके पति की गिरफ्तारी के महीनों बाद निगरानी के लिए चुना गया था।
सुकन्या कहती है कि इस महीने के पहले हफ्ते में अमेरिका के मैसाचुसेट्स की डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा की गई जांच में पता चला था कि एल्गार परिषद मामले में हिरासत में लिए गए 16 लोगों में से एक वकील सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को 16 फरवरी 2016 से हैक किया जा रहा था, जो कि 20 महीने से अधिक समय तक चला था और उसमें उन्हें आरोपी ठहराने वाले दस्तावेज प्लांट किए गए थे।
इस फॉरेंसिक फर्म की यह तीसरी रिपोर्ट थी। इससे पहले की दो रिपोर्ट- आठ फरवरी 2021 और 27 मार्च 2021 को प्रकाशित हुई थीं, जो एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग के साथ गिरफ्तार कार्यकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप से जुड़ी थीं, जिसमें बताया गया था कि विल्सन की करीब 22 महीने निगरानी की गई थी।
मामले में गिरफ्तार कई लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि इस साइबर हमले को ‘साधारण निगरानी’ के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
उन्होंने द वायर से कहा, ‘यह निगरानी से आगे की बात है, यह वास्तव में व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप है। मालवेयर व्यक्ति के डेटा और जीवन पर नियंत्रण पाने के लिए लगाया जाता है।’
मामले में जिन अन्य गवाहों से पूछताछ की गई थी, उन्हें भी इस तरह की निगरानी के तहत निशाना बनाया गया है. इसमें बस्तर की आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी, उनके भतीजे और पत्रकार लिंगाराम कोडोपी, भारद्वाज के करीबी कानूनी सहयोगी अंकित ग्रेवाल, वकील, जाति विरोधी कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान और श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के सहायक प्रोफेसर राकेश रंजन शामिल हैं। कोडोपी को छोडक़र बाकी सभी से एनआईए ने कई घंटों पूछताछ की है।
सोरी के अनुसार, एनआईए अधिकारी चाहते थे कि वे सुधा भारद्वाज के बारे में विशेष जानकारी दें, जिसमें उनकी निकटता और विभिन्न आंदोलनों में शामिल होने के बारे में बताया जाए।
सोरी से पुणे के शनिवारवाड़ा इलाके में 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम में भाग लेने के कारणों के बारे में भी पूछताछ की गई थी। ‘ब्राह्मणवादी राज्य व्यवस्था’ के विरोध में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से कई राजनीतिक विचारकों, कलाकारों और शिक्षाविदों ने भाग लिया था।
इसमें शामिल होने वाले सुधीर धावले, ज्योति जगताप, सागर गोरखे, रमेश गायचोर जैसे कुछ प्रतिभागियों को बाद में हिरासत में लिया गया और अब वे जेल में हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार के सूत्रों ने खुलासा किया है कि जांच में आवश्यक गंभीरता का अभाव था और बाद में जनसंपर्क के तत्कालीन निदेशक और अब राजनांदगांव जिले के कलेक्टर तारण सिन्हा द्वारा प्रस्तुत पैनल रिपोर्ट में दावा किया गया था कि सिटिजन लैब द्वारा किए गए दावों में ‘कुछ भी महत्वपूर्ण’ नहीं पाया गया।
पत्रकार और लेखक आशुतोष भारद्वाज कहते हैं कि पत्रकारों के फ़ोन रिकॉर्ड किया जाना कोई नयी बात नहीं है। कई बरसों से पुलिस वाले हमसे कहते आए हैं कि आपका फ़ोन सर्वेलियंस पर है।
लेकिन जो इस सरकार ने किया है, वह डरावना है और विकृत भी। जब कुछ वर्ष पहले जासूसी की यह तकनीक आयी थी, आपको कोई मेल या मेसिज आता था, और उस लिंक पर क्लिक करते ही पीगस नामक यह तंतु आपके फ़ोन में स्थापित हो जाता था। लेकिन उसके बाद से यह तकनीक कहीं विकसित हो गयी है, और अब बग़ैर क्लिक किए ही यह तंतु आपके फ़ोन में अपना घर बना लेगा।
एक बार फ़ोन में आ जाने के बाद पूरा फ़ोन उस व्यक्ति के क़ब्ज़े में है जो इसे बहुत दूर बैठा कंट्रोल कर रहा है। यानी आपके मेसिज, फ़ोन की तस्वीरें, कांटैक्ट सब कुछ उस व्यक्ति के पास पहुंच जाएगा।
लेकिन सबसे भयावह यह कि पीगस आपको बिना मालूम पड़े आपके फ़ोन का कैमरा चालू कर आपकी तस्वीरें खींच सकता है, आपके वीडियो बना सकता है। आपको बिना मालूम चले आपका माइक चालू कर आपकी बात सुन सकता है। कोई घिनौनी और विकृत मानसिकता का इंसान ही इस तरह एक आम नागरिक के बेडरूम में झांकेगा।
और हम जानते हैं कि जासूसी की यह तकनीक बहुत महंगी है, किसी इंसान को नहीं बल्कि संप्रभु सरकारों को ही बेची जाती है। कौन सी सरकार अपने नागरिक के बेडरूम में कैमरा लगाती है?
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