पुस्तक समीक्षा : पेरियार-दर्शन चिंतन और सच्ची रामायण
पेरियार के मूल लेखों का चयनित संकलन
जावेद अनीसई.वी.रामासामी पेरियार भारत में दलित आन्दोलन के प्रमुख नायकों में से एक हैं. फुले और आंबेडकर के साथ उनकी तिकड़ी ने बहुजन आन्दोलन को वैचारिक जमीन दी है. इन तीनों नायकों में पेरियार ब्राह्मणवाद के खिलाफ अपने तीखे विचारों के लिये जाने जाते हैं. ब्राह्मणवाद और हिंदू धर्म की कुरीतियों पर उन्होंने जिस तरह से तीखा प्रहार किया है वैसे उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं.

पेरियार अपने विचारों से बहुत क्रांतिकारी थे. उन्होंने अपने विवेक और तर्क से ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता को कटघड़े में खड़ा किया. वे जाति व्यवस्था के घोर विरोधी थे. उन्होंने ब्राह्मणवादी संस्कृति की जगह दलित, बहुजन, द्रविड़ संस्कृति को पेश किया और वे राम की जगह रावण को अपना नायक भी मानते थे.
दुर्भाग्य से पेरियार का बड़ा प्रभाव दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु तक ही देखने को मिलता है. हिंदी पट्टी में आज भी उनके विचरों के विविध आयामों से उन्हें अनजान है.
“सच्ची रामायण” पेरियार की बहुचर्चित और विवादित पुस्तक रही है जो 1944 में तमिल भाषा में प्रकाशित हुई थी जिसमें उन्होंने रामायण की ऐतिहासिकता पर सवाल उठाते हुये इसे कल्पना बताया है. दरअसल पेरियार मानते थे कि रामायण को धार्मिक नहीं बल्कि एक राजनीतिक किताब माना जाना चाहिय जिसे उत्तर भारत के आर्यों ने दक्षिण के अनार्यों पर अपने तथाकथित जीत, विजय और प्रभुत्व को स्थापित करने के लिये लिखा गया है.
“सच्ची रामायण” में एक तरह से रामायण की आलोचना पेश की गयी है और इसमें राम सहित सभी अच्छे माने जाने वाले पात्रों के विचारों पर सवाल खड़ा करते हुये रावण को नायक के तौर पर स्थापित किया गया है.
“सच्ची रामायण” की वजह से काफी विवाद हुआ था.
इस किताब में राम सहित रामायण के कई चरित्रों को खलनायक के रूप में पेश किया गया है. राम को बेहद साधारण व्यक्ति माना हैं. इसमें उन्होंने राम के विचारों को लेकर सवाल खड़े किए थे और राम-रावण की तुलना पर भी उनके अलग विचार थे.
वैसे तो “सच्ची रामायण” का हिंदी 1968 में ही किया जा चूका है जिसके प्रकाशक ललई सिंह यादव और अनुवादक राम आधार थे लेकिन उत्तरप्रदेश सरकार ने इसपर 1969 में पाबन्दी लगा दी गयी थी हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पाबंदी को हटा दिया था.
अब एक बार फिर ‘फारवर्ड प्रेस ने इसे ‘पेरियार: दर्शन चिंतन और सच्ची रामायण’ पुस्तक में प्रकाशित किया गया है. इस पुस्तक के तीन भाग है-पहले भाग में ‘पेरियार के 9 मौलिक लेखों का संग्रह है जो हिंदी के पाठकों को पेरियार के व्यापक चिन्तन और दर्शन से रूबरू कराते हैं. पुस्तक के पहले लेख “भविष्य की दुनिया” हैं जिसमें उन्होंने बिना ईश्वर और धर्म के दुनिया की कल्पना की है.
इसी प्रकार से पुस्तक के दूसरे लेख ‘सुनहरे बोल’में विभिन्न विषयों पर पेरियार के प्रतिनिधि उद्धरणों के चयनित संकलन को पेश किया गया है. इससे पता चलता है कि पेरियार के राजनीति, समाज, श्रमिकों, बुद्धिवाद को लेकर क्या सोचते थे और किस तरह का समाज बनाना चाहते थे.
पुस्तक के तीसरे लेख “बुद्धिवाद : पाखंड व अंधविश्वास से मुक्ति का मार्ग” में वे तर्कवाद से पैदा हुये ज्ञान को ही असली ज्ञान बताते हुये लिखते हैं कि “हमारे देशवासियों की स्थिति इस ज्ञान का उपयोग न करने के कारण बेहद खराब हो रही है.” चौथे लेख “ब्राह्मणवादी धर्म-ग्रंथों में क्या है?” में उन्होंने ब्राह्मणवादी साहित्य को अज्ञानता का साहित्य बताया है. पांचवें लेख का शीर्षक “दर्शन-शास्त्र क्या है?” में उन्होंने ईश्वर और धर्म पर गहनता से अपने विचारों को प्रस्तुत किया है.
“जाति का उन्मूलन” अपेक्षाकृत छोटा लेख है जिसमें वे सवाल करते हैं कि “यदि हमारे लोग जाति, धर्म, आदतों और रीति-रिवाजों में सुधार लाने को तैयार नहीं होते हैं, तो वे स्वतंत्रता, प्रगति और आत्म-सम्मान पाने की शुरूआत कैसे कर सकते हैं?”
वे लिखते हैं कि “हर व्यक्ति स्वतंत्र और समान है इस स्थिति को पैदा करने के लिए जाति का उन्मूलन जरूरी है”. पेरियार स्त्री-पुरुष समानता के प्रबल समर्थक थे. पुस्तक में इससे सम्बंधित उनके दो लेखों “महिलाओं के अधिकार” और “पति-पत्नी नहीं, बनें एक-दूसरे के जीवनसाथी” को शामिल किया गया है.
“महिलाओं के अधिकार” लेख में वे सवाल उठाते हैं कि “अगर किसी महिला को संपत्ति का अधिकार और अपनी पसंद से किसी को चुनने तथा प्रेम करने की स्वतंत्रता नहीं है, तो वह पुरुष की स्वार्थ-सेवा करने वाली एक रबड़ की पुतली से ज़्यादा और क्या है?”
इसी लेख में वे इस सवाल का जवाब भी देते हैं “प्रत्येक महिला को एक उपयुक्त पेशा अपनाना चाहिए ताकि वह भी कमा सके. अगर वह कम से कम खुद के लिए आजीविका कमाने में सक्षम हो जाए, तो कोई भी पति उसे दासी नहीं मानेगा.”
नौवें लेख “पति-पत्नी नहीं, बनें एक-दूसरे के जीवनसाथी” में वे पति और पत्नी जैसे उद्बोधनों पर सवाल उठाते हुये इस रिश्ते को “एक-दूसरे का साथी” और “सहयोगी” का नाम देते हुये लिखते हैं कि “विवाहित दम्पतियों को एक-दूसरे के साथ मैत्री भाव से व्यवहार करना चाहिए, किसी भी मामले में, पुरुष को अपने पति होने का घमंड नहीं होना चाहिए, पत्नी को भी इस सोच के साथ व्यवहार करना चाहिए कि वह अपने पति की दासी या रसोइया नहीं है.”
पुस्तक के दूसरे भाग में “सच्ची रामायण” के हिंदी अनुवाद को प्रस्तुत किया गया है. पुस्तक के तीसरे और अंतिम भाग परिशिष्ट में “सच्ची रामायण” के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को भी शामिल किया गया है.
इस पुस्तक की भूमिका “जाति का विनाश और पेरियार” को दक्षिण भारत की प्राख्यात लेखिका वी. गीता द्वारा लिखा गया है जिन्होंने पेरियार का गहनता के साथ अध्ययन किया है. इससे भी हिंदी पाठकों को पेरियार के बारे में कई नई जानकारियां मिलती हैं.
कुल मिलकार यह हिंदी भाषियों के लिये पेरियार के जीवन दर्शन विचारों को जानने में महत्वपूर्ण और जरूरी पुस्तक है. इसका हिंदी सहज और पठनीय है.
Add Comment