कहानी : ‘हिना’
मशहूर पत्रकार प्रियदर्शन की कहानी ‘हिना’
प्रियदर्शनहालांकि इस बात को हल्के ढंग से कहती हिना के दुख और डर दोनों बहुत बड़े थे। जिसका शौहर जेल में हो, उसकी जान ऐसे ही सूख जाती है। नई कमाई होनी नहीं है और अगर कुछ बचा हुआ है तो वह शौहर को छुड़ाने में चला जाएगा। लेकिन शौहर से ज़्यादा बड़ी एक और चिंता उसके सिर पर थी। यह ऐसा डर था जिसे अपने बातूनी स्वभाव के बावजूद वह किसी से साझा नहीं कर रही थी। उसका भाई दुबई से लौटा था। जिस दिन लौटा, उस दिन उसके पास ही रुका। दुबई के चमचमाते क़िस्से बताता रहा। यह भी कि कोरोना के बाद क्या हालत हो गई?

वार्ड में दो चूहे दौड़ते रहते थे- जैसे दो दोस्त खेल रहे हों। वे चप्पलों के ऊपर से निकल जाते। फ़र्श पर लेटी बुढ़िया का जिस्म शायद उन्हें छोटी पहाड़ी जैसा लगता जिसे वे दौड़ते हुए पार कर जाते।
बुढ़िया अपनी आधी नींद में कुनमुनाती, करवट बदलती, सो जाती। उसके पास चिंता करने या झल्लाने को इन दो चूहों से ज़्यादा बड़े मसले थे। उसकी बेटी शबनम अस्पताल में थी और बेटे अख़्तर को पुलिस ले गई थी। बेटी की बीमारी की वजह से पहले से ही छलनी हो चुका उसका सीना पुलिस के हाथों बेटे की पिटाई देख बिल्कुल धाड़ धाड़ कर फटने को था। उसकी बहू भी कलपती रही थी।
लेकिन यह कल की बात थी। अभी तो वह बहू कुछ झल्लाई हुई सी थी- अपनी किस्मत को कोसती हुई कि ऐसे घर में निकाह हुआ जहां सुख-चैन के चार दिन देखने को नहीं मिले। वार्ड में उसकी भन्नाई आवाज़ किसी तितली की तरह घूम रही थी- क्या ज़रूरत थी मारपीट करने की? बड़ा बदला लेने निकला था। पुलिस ने निकाल दिया सारा बदला'- बोलते-बोलते आवाज़ की तितली सिसकी में बदल गई थी और फिर भिंची हुई रुलाई में।
यह कहानी वार्ड में मौजूद रोगियों और उनके तीमारदारों को मालूम थी। बेटे की फलों की रेहड़ी किसी ने शिकायत करके हटवा दी थी और कई तरह की मुसीबतों से घिरे लड़के ने कुछ अपनी पूंजी और कुछ अपना रोज़गार छिनने की हताशा में एक और मुसीबत मोल ले ली थी- अपनी हैसियत जाने बिना मारपीट करने पहुंच गया था और उल्टे पुलिस की मार खाकर हवालात में था।
इस बीच बुढ़िया की बेटी ज़ोर से कराही- या तो वाकई दर्द की वजह से या फिर अपनी भाभी को चुप कराने की गरज़ से- या शायद दोनों वजहों से। जो भी हो, बहू अचानक चुप हुई, भन्नाई हुई तितली जैसी आवाज़ अचानक मुलायम खरगोश सी हो गई जो अब अपनी ननद का हाल ले रही थी- 'कुछ चाहिए शबनम? दर्द हो रहा है?
शबनम को बहुत कुछ चाहिए था। चौबीस की उम्र में उसकी शादी हो गई थी और अगले ही साल वह मां बनने वाली थी। लेकिन इस बीच उसके पांवों में अजीब सा दर्द रहने लगा था- कई बार उसे लगता, इनमें जान ही नहीं बची है। लेकिन संकोच में वह अपने शौहर को बता तक नहीं पाई। और एक दिन ऐसा आया जब वाकई इन पांवों में जान नहीं बची थी। वे सुन्न पड़े थे। वह बिस्तर से उठ नहीं पाई। दहशत में रोने लगी। ससुराल वालों ने फौरन उसके मायके में ख़बर की, उसे अस्पताल में भर्ती कराया और फिर सब मायके वालों पर छोड़ दिया। बीते दो हफ्ते से वह इस वार्ड में है। इन दो हफ़्तों में एक बार भी उसका शौहर उसे देखने नहीं आया है। अब उसे डर लग रहा है, वह उसे छोड़ न दे।
मगर अभी वह बस इतना चाहती थी कि भाभी उसके सुन्न पांवों को दूसरी तरफ़ कर दे ताकि वह करवट बदल सके।
भाभी ने बहुत सहजता से यह काम निबटाया। साथ में पूछ लिया, कुछ खाओगी भी? शबनम ने ना में सिर हिलाया। 'तो ये केले गल रहे हैं। दे देती हूं बंदरों को।' वार्ड की खिड़की से चिपका एक बंदर परिवार बड़ी उम्मीद से उनकी ओर देख रहा था। बंदर दंपती का मासूम सा गुलाबी बच्चा खिड़की से बिल्कुल चिपटा हुआ एक अख़बार फाड़ने में लगा था।
हालांकि वार्ड में एक दो आवाज़ें उठीं- अरे मत दो इनको। आदत पड़ जाएगी, यहीं झूलते रहेंगे। एक ने याद दिलाया कि अस्पताल वाले भी मना करते हैं कि बंदरों को कुछ खिलाएं नहीं।
लेकिन हिना इससे बेपरवाह थी। हां, बहू या भाभी का नाम हिना था। भन्नाई तितली से मुलायम खरगोश जैसी हुई उसकी आवाज़ अब कुलांचे भरती हिरनी जैसी हो गई थी- 'अरे मना करने दीजिए, यही बंदर इस अस्पताल की आधी गन्दगी साफ़ करते हैं। ये न हों तो अस्पताल और गंदा दिखे। फिर हम कुछ न दें तो ये खाएंगे क्या'। बोलते-बोलते उसकी आवाज़ में ऐसी स्निग्धता चली आई कि वार्ड में किसी ने उसकी बात नहीं काटी।
'बोतल में पानी भर के ला रही हूं अम्मा।' अब हिना अगले काम में लग गई थी। अम्मा चुप रही। उसकी नज़र खेल रहे चूहों पर थी। वह जानती थी कि जो मन करेगा, उसकी बहू वही करेगी। यह भी जानती थी कि बहू कई बार उल्टा-सीधा बोल जाती है, मगर सेवा में कोई कसर नहीं रखती। वह नहीं होती तो बीमार बेटी को वह अकेले कैसे संभालती- वह भी एक नालायक बेटे के साथ। बहू की बस एक ही बात उसे पसंद नहीं है- हर किसी के साथ बोलती-बतियाती रहेगी। वार्ड में भी हर तरफ़ हिना-हिना की आवाज़ लगी रहती है। दूसरे मर्दों से भी उसकी गप चलती रहती।
सास के ख़यालों से अनजान हिना अब भी अपने में मगन थी। बिस्तर के बगल में लगी छोटी सी मेज़ पर पानी की बोतल सजाती हुई किसी से बोल रही थी- 'क्या कहूं, अब अल्ला-ताला ने मेरे पांवों में दौड़ लिख रखी है तो दौड़ना ही पड़ेगा।'
हालांकि इस बात को हल्के ढंग से कहती हिना के दुख और डर दोनों बहुत बड़े थे। जिसका शौहर जेल में हो, उसकी जान ऐसे ही सूख जाती है। नई कमाई होनी नहीं है और अगर कुछ बचा हुआ है तो वह शौहर को छुड़ाने में चला जाएगा। लेकिन शौहर से ज़्यादा बड़ी एक और चिंता उसके सिर पर थी। यह ऐसा डर था जिसे अपने बातूनी स्वभाव के बावजूद वह किसी से साझा नहीं कर रही थी। उसका भाई दुबई से लौटा था। जिस दिन लौटा, उस दिन उसके पास ही रुका। दुबई के चमचमाते क़िस्से बताता रहा। यह भी कि कोरोना के बाद क्या हालत हो गई?
हवाई जहाज़ से आने-जाने में कितनी मुश्किल हुई। उस दिन अपने झुग्गीनुमा घर में बैठी हिना फिर भी मगन थी- दुबई से लौटा भाई उसको कितना मानता है। उसकी कितनी अच्छी नौकरी है। भाई अच्छे से जिए, यह भी उसके सुख के लिए बहुत है। लेकिन उसी शाम भाई को बुखार हो गया। वह तभी से डर गई थी। भाई भी डरा हुआ था। उसका कोरोना टेस्ट हुआ था। वह ख़ुद भाई को कोरोना सेंटर छोड़ने गई थी। अगर उसे कोरोना हो गया तो? तो फिर घर में सबका टेस्ट होगा। और टेस्ट होने के अलावा सबको क्वॉरन्टीन होना होगा। अगर वह क्वॉरन्टीन हो गई तो उसके शौहर को कौन देखेगा? उसकी अधमरी बुढ़िया सास तो ऐसे ही मर जाएगी?
उसका सारा ध्यान इस बात पर था कि वह ख़ुद को क्वॉरन्टीन होने से कैसे बचाएगी? उसकी परेशानी यह भी थी कि उसने इस जनरल वार्ड में दो-तीन लोगों को भाई के बारे में बता दिया था- यह भी कि उसका कोरोना टेस्ट हुआ है। अब सब पूछ रहे थे कि रिपोर्ट में क्या निकला। उसे मालूम था कि अगर रिपोर्ट गलत आई तो यही लोग उसके दुश्मन हो जाएंगे। उसने देखा था, किस तरह एक मरीज़ के कोरोना टेस्ट से पहले डॉक्टर और नर्स तक उसे छूने को तैयार नहीं थे। उसका बाथरूम जाना तक रोक दिया गया था। जब रिपोर्ट निगेटिव आई तो सबकी सांस में सांस आई और उस मरीज़ को बाथरूम जाने दिया गया।
हालांकि सब कहते हैं, कोरोना से बड़ा कोरोना का डर हो गया है। जो भी हो, उसे बच कर तो रहना ही होगा।
वह ख़ुद को क्वॉरन्टीन से कैसे बचाएगी? वह तेज़ी से योजना बनाने लगी थी। उसने हिसाब लगाया- किस-किस को उसने भाई के बारे में बताया है। एक तो बगल वाली को, जिसे रोज़ तीन इंजेक्शन पड़ते हैं और वही उसके लिए इंजेक्शन दुकान से खरीद लाती है, दूसरे वार्ड के दरबान को, जो इन दिनों उसके शौहर का दोस्त बना हुआ था। इस सरकारी अस्पताल में वह किसी बॉस की तरह घूमता रहता था। एक मरीज़ के साथ बस एक तीमारदार की इजाज़त थी। तो दरबान सूंघता रहता कि किसके साथ एक से ज़्यादा लोग हैं। उनको फ़ौरन बाहर का रास्ता दिखाता और बहस करने पर नियमों का हवाला देता।
यही नहीं, रात को जब तीमारदार बीमार के बिस्तरे के नीचे फ़र्श पर सोए रहते तो सुबह 5 बजे सबको पुकार-पुकार कर उठाने चला आता। एक-दो लोग झल्लाते तो जवाब देता- अस्पताल की सफ़ाई नहीं होगी? यहां सोने आए हो? रात भर सो लिया या नहीं। उसकी ऊंची आवाज़ पूरे वार्ड में गूंजती रहती। हालांकि इस वजह से वह एक-दो बार कुछ मरीज़ों से डांट भी सुन चुका था। लेकिन इसके बावजूद वार्ड में उसका जलवा कायम था। हिना के शौहर ने उससे धीरे-धीरे दोस्ती की थी। तीन-चार बार उसे चाय पिलाई थी। लेकिन दरबान चाय के लालच में उन लोगों का दोस्त नहीं बना था।
हिना यह समझती थी कि दरबान का चेहरा उसको देखकर कोमल हो जाता है। नहीं, नहीं, दरबान का कोई गंदा इरादा नहीं था, लेकिन परदेस में हिना जैसी हंस-बोल कर बतियाने वाली लड़की अचानक उसके ख़ाली जीवन में एक हरियाली सी पैदा कर देती थी। दरबान ने हिना और उसके शौहर को बताया था- इस अस्पताल में पहरेदारी के उसे बीस हज़ार रुपये मिलते हैं। बीस हज़ार...सुन कर हिना और उसके शौहर का मुंह खुला का खुला रह गया था।
‘और क्या? देस का सबसे नामी अस्पताल है। यहां भर्ती होने के लिए मंत्री लोग का सिफ़ारिस लगता है। जबकि एकाध बार हम लोग के कहने पर भी डाक्टर देख लेता है पेशेंट को।‘ दरबान ने दोनों पति-पत्नी के आगे डींग हांकी थी। हालांकि उसे मालूम था, डॉक्टर तक सीधे पहुंचने की औकात अभी उसकी हो नहीं पाई है। वह तो अस्पताल का कर्मचारी भी नहीं था। एक कंट्रैक्टर का आदमी था जिसने उसे यहां लगाया था।
हिना के शौहर ने बाक़ायदा प्रस्ताव रख दिया था- भाई हो सके तो मेरे लिए भी गुंजाइश देखना। फलों का ठेला उसके लिए बहुत मुनाफ़े का काम नहीं रह गया था। इन दिनों हर कोई सब्ज़ी और फल बेचने में ही लगा था। दरबान दो-तीन दिन तक हां-हां करता रहा और एक दिन उसने सच बोल दिया। उसे नौकरी पाने के लिए एक लाख रुपये देने पड़े थे। तो अगर वे लोग एक लाख देने को तैयार हैं तो वह बात करे।
उसने यह भी समझाया कि यह एक लाख तो इस अस्पताल की नौकरी के लिए है, बाहर किसी बिल्डिंग में तो ऐसे ही लग जाएगा, लेकिन वहां छह से आठ हज़ार रुपये तक ही मिलेगा। हिना और उसके पति कुछ मायूस हुए थे। लेकिन इस मायूसी को पीछे छोड़कर दोनों की दोस्ती ठीकठाक हो चली थी। दरबान रोज़ आता और हालचाल पूछता। जब पता चला कि अख्तर को पुलिस वाले पकड़ कर ले गए हैं, तब वह भी हिना के साथ थाने गया था। उसने किसी सिपाही से बात भी की थी। भरोसा दिलाया था कि वह जल्दी छूट जाएगा।
तो इसी दरबान को उसने नई मुसीबत भी बताई थी। भाई का कोरोना टेस्ट हुआ है। सिर हिलाता हुआ दरबान सब सुनता रहा था। उसके चेहरे पर भी चिंता दिख रही थी। फिर उसने कहा, बताइएगा, हम इसमें का मदद कर सकते हैं।
हिना ने तय कर लिया कि भाई की रिपोर्ट किसी को बताएगी ही नहीं। निगेटिव आया तो ठीक, अगर कोरोना निकला तब भी बोल देगी कि नहीं, कोरोना नहीं निकला है। बाक़ी भाई का इलाज तो अस्पताल वाले कर देंगे ही। लेकिन अगर उसे भी कोरोना हुआ तो? कहते हैं, छूत की बीमारी है? लेकिन उसने फ़ौरन इस ख़याल को झटक दिया। उसे तो कोरोना हो ही नहीं सकता।
इतनी हट्टी-कट्टी है। इतनी मेहनत करती है। उसने ख़ुद पर भरोसा करने की कोशिश की। उसने वार्ड में नज़र घुमा कर देखा। यहां उससे सेहतमंद कोई नहीं है। बगल वाले को टीबी है, उसके बाद वाली बेड पर जो बुढ़िया है, पता नहीं क्यों ख़ांसती रहती है। इन सबकी मदद भी वही करती है। अचानक वह पड़ोस वाले बेड की आंटी की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी- ‘का सोच रही है हिना? परेशान है न बहुत?
एकबारगी हिना को याद आया, उसे कितनी परेशानियों ने घेर रखा है। एक पल को उसकी आंख भरने को आई। लेकिन दूसरे ही पल उसने ध्यान भटकाया। ध्यान भटकाने की वजह भी मिल गई थी- एक तिलचट्टा आंटी को झोले पर चढ़ रहा था। ‘अरे आंटी, देखो”, लेकिन जब तक आंटी देखती, वहीं रखे अख़बार से उसने तिलचट्टे को हाथ में उठा लिया, और वार्ड की अधखुली खिड़की से बाहर उछाल दिया। ‘तिलचट्टा था”, वह हंसते हुए बोल रही थी।
आंटी हैरान थी, ‘तुझे डर नहीं लगता।‘ अब हिना की आवाज़ में तितली, खरगोश और हिरण को पीछे छोड़ एक कोयल चली आई थी। उसने बिल्कुल सुरीले लहजे में अरे...को बहुत लंबा खींचा और कहा, ‘तिलचट्टे से डरेंगे आंटी, यहां तो हर तरफ़ लोमड़ी, सियार और तेंदुआ घूमते रहता है।‘
आंटी भी उसकी बात समझ कर हंसने लगी थीं। ‘लाइए, आपकी दवा लानी है न? अभी ला देती हूं। अभी अम्मा बैठी है, शबनम को देख लेगी। दस मिनट में आ जाऊंगी।‘ आंटी कहलाने वाली अधेड़ औरत का चेहरा कुछ करुण हो गया- ‘भगवान तुम्हें खूब आसीस देंगे बेटी।‘
हंसती हुई हिना अब वार्ड के बाहर थी। लेकिन यहीं उससे एक चूक हो गई। वह मोबाइल फोन अम्मी के पास छोड़ आई थी। जब दस मिनट बाद दवा लेकर लौटी तो पाया कि अम्मी फोन पर धाड़-धाड़ रोए जा रही है। उसका जी धक्क रह गया। कहीं उसके शौहर को पुलिसवालों ने कुछ किया तो नहीं है? लेकिन अगले ही लम्हे उसे समझ में आ गया, बात कुछ और है।
दुबई से लौटे भाई का फोन था जिसने बताया था कि जांच में उसे कोरोना निकल आया है। अब अम्मी की रुलाई के बीच पूरे वार्ड में यह बात किसी से छुपी न रही थी। हिना ने माथा पकड़ लिया- जो बात वह सबसे छुपाना चाहती थी, वह अम्मी ने सबको बता दी। अब वार्ड में रहना मुश्किल हो जाएगा। कोई टिकने नहीं देगा।
लेकिन ऐसे में हिना का दिमाग़ सबसे तेज़ चलता है। उसने फ़ौरन बुढ़िया के हाथ से फोन छीना और भाई से बात करने लगी। हां, हां करती रही और फिर जोड़ा- ‘अरे अम्मा उलटा समझ गई थी, रोए जा रही है। अरे, तुम तो ठीक हो जाओगे। अच्छा करती हूं बाद में फोन।‘ उसे मालूम था कि भाई को समझ में ही नहीं आया होगा कि वह क्यों ऐसा कह रही है। लेकिन अभी उसे वार्ड का माहौल संभालना था।
उसने सबको सुनाते हुए बुढ़िया से कहा- ‘अम्मा, उलटा समझ लेती हो। उसने कहा, निगेटिव आई है जांच। तुमने समझ लिया कि ख़राब रिपोर्ट है। अरे, कोरोना में पॉज़िटिव होना ख़राब होता है, निगेटिव होना अच्छा- इसका मतलब ये हुआ कि भाई को कोरोना नहीं है।‘
अम्मा उसे हैरान देखती रहीं। इस बीच हिना की आवाज़ में आने वाले तितली, खरगोश, हिरण और कोयल को हटा कर एक गाय चली आई थी- करुणा से भरी हुई। वह बोले जा रही थी, ‘कितना तकलीफ़ झेल रहा है परिवार अम्मा।
शबनम अस्पताल में है, वो जेल में हैं, मेरा भाई दूसरे अस्पताल में है और तुम जो हो, ठीक से समझे बिना रोए जा रही हो। अल्ला बोलता है, ऐसे मौक़े पर सब्र सबसे ज़रूरी होता है। और हम परेशान क्यों हों, इतने सारे लोग अपने साथ हैं।‘
जिस आंटी की वह दवा लेकर आई थी, उन्होंने तेज़ी से सिर हिलाया- हां, हां, हम लोग हैं, परेशान न होना हिना। वार्ड के चेहरे पर तनी हुई चिंता की लकीरें कुछ ढीली पड़ गई थीं। दूर खड़ी एक नर्स सारा माजरा देख रही थी। फिर हिना ने चूहों की मदद ली। दोनों चूहे अब कोने वाले बेड की थाली पर नाच रहे थे।
‘संभालो-संभालो आंटी, अरे, अब जाकर धोओ बर्तन, इसे ढंक कर रखा करो पॉलिथीन में- नहीं तो सब हक़ जमाने लगते हैं।‘ वह हंसती हुई बोल रही थी। वार्ड अब चूहों से अपना सामान बचाने में लग गया था।
लेकिन हिना के चेहरे पर जितनी हंसी थी, मन में उतनी ही चिंता। अभी तो वार्ड वालों को उसने समझा दिया, लेकिन जब कोरोना वालों की टीम आएगी तो? वह वार्ड से बाहर निकल कर कुछ सोचना चाहती थी। लेकिन बाहर आते समय दरबान ने टोक दिया- अरे, कहां जा रही है हिना।
घबराई हुई काहे हैं? अब हिना को समझ में आया कि वार्ड के भीतर जो वह छुपा रही थी, वह उसके चेहरे पर दिख रहा है। अब उसका सब्र भी जवाब दे रहा था। वह दरबान को कुछ कहती, इसके पहले उसकी आंख भर आई। दरबान ने देखा तो हैरान रह गया- चल-चल, चल नीचे, बात करते हैं। उसने अपने साथी को हिदायत दी कि वह ड्यूटी पर ठीक से रहे और ख़ुद हिना के साथ नीचे उतर गया।
अब हिना को राज़ खोलना पड़ा। उसने बताया कि उसके भाई को भी कोरोना हो गया है। दरबान ने तसल्ली दी, अरे ठीक हो जाएगा। हिना ने कहा, इस बात की फिक्र नहीं है, अभी तो उसे क्वॉरन्टीन होना पड़ेगा। तो फिर घर के इतने काम कौन करेगा? अख़्तर को छुड़ाना है, शबनम को देखना है, सबकी रोटी का इंतज़ाम करना है। बोलते-बोलते वह रो पड़ी।
हूं-हूं करता दरबान फिर कुछ कातर हो गया। फिर उसने धीरज बंधाया- ‘अरे, सब ठीक हो जाएगा। तू ऐसा कर, बस क्वॉरन्टीन से बच जा।‘
‘लेकिन कैसे?’ हिना को मालूम था, कोरोना वाले आएंगे, घर के बाहर निशान भी लगा देंगे और सबके आने-जाने पर रोक भी।
रास्ता दरबान ने सुझाया था- अरे., वो चौबीस घंटे निगरानी थोड़े करेंगे। वो फोन पर नज़र रखते हैं। मोबाइल लेकर बाहर निकली तो समझ जाएंगे, तू क्वॉरन्टीन तोड़ रही है। तो तू घर पर मोबाइल छोड़ कर निकल जा। बुढ़िया को अपनी जगह क्वॉरन्टीन करा दे। उसको बोल कि वो निकलेगी नहीं।‘
हिना कुछ देर सोचती रही। पता नहीं, इससे काम बनेगा या नहीं। लेकिन इसके अलावा उपाय भी नहीं था। वह फिर वार्ड में लौटी। अपनी ननद शबनम से कहा कि वह कुछ देर अकेली रह ले, अम्मी को लेकर वह निकल रही है।
अम्मी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन वह बहू का विरोध करने की हालत में नहीं थी। उसे यह समझ में आ गया था कि बहू भाई की बीमारी छुपा रही है।
घर के रास्ते में हिना ने अम्मा को बताया- अम्मी, तुमको क्वॉरन्टीन रहना पड़ेगा।‘ बुढ़िया भौंचक्क उसे देखती रही थी। ख़ुशबू ने समझाया- देख अम्मी, पुलिसवाले अभी भाई के कंटैक्ट खोजते हुए आएंगे।
वो मुझे बोलेंगे कि मैं घर से न निकलूं। लेकिन अगर मैं न निकली तो काम कैसे होगा? तू तो कर नहीं पाएगी? लेकिन वो मुझे पहचानते तो हैं नहीं। तो तू हिना बन जाना। यानी मान लेना कि तू घर पर रहेगी। बिल्कुल नहीं निकलेगी। ‘
बुढ़िया डरी हुई थी- ‘लेकिन मोहल्ले में किसी ने शिकायत कर दी तो? सब जेल जाएंगे। अभी तबलीगी वालों का क़िस्सा नहीं सुना? कोरोना फैलाने वालों में हमें भी गिन लेंगे।‘
हिना ने ठंडी सांस ली- ये डर तो है। माहौल बहुत गंदा हो गया। मुसलमान पर सबकी नज़र है। कुछ भी होगा, बात का बतंगड़ बना देंगे। लेकिन ख़तरा तो उठाना होगा।
उसने फिर से अम्मी को समझाया- ‘अम्मी, मोहल्ले में किसे मालूम कि भाई के साथ क्या हुआ और तू उसे ले गई थी या मैं? एक तो कोई पूछने नहीं आएगा, दूसरे आया तो बता देना कि हिना तो अस्पताल में थी, तू ही भाई के साथ रही थी।‘
बुढ़िया के पास यह बात मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। तो दोनों घर पहुंचे। पहुंच कर पाया कि वाकई कोरोना वालों की एक टीम उनके बारे में पूछताछ कर रही है। हिना फ़ौरन छिटक कर दूर हो गई। बुढ़िया हां-हूं करती रही।
कुछ देर बाद उनके छोटे से घर के बाहर एक रस्सी लगी हुई थी- कोरोना का ठप्पा लगा हुआ था। डरी हुई सास घर के भीतर थी और बहू- यानी हिना- बाहर। वह ख़ुश थी कि उसका ‘प्लान’ काम कर गया।
अच्छी बात यह भी थी कि अब बुढ़िया से कोई मिलने नहीं आएगा- यानी यह खोदा-खोदी नहीं होगी कि किसे क्या हुआ और कौन किसके साथ गया। फोन भी हिना के पास ही रह गया। मोहल्ले वालों को बस यह पता चला था कि दुबई से लौटे हिना के भाई को कोरोना हो गया है।
तो हिना आज़ाद थी। अब अख़्तर को आज़ाद कराना था और शबनम को ढाढस बंधाना था।
दोनों काम आसान नहीं थे। लेकिन एक काम का रास्ता हिना को दिखने लगा था। वार्ड में एक आंटी इमरजेंसी में ऐडमिट हुई थीं- बड़े घर की- ये उनके पास का सामान बता रहा था। हिना उनसे भी घुल-मिल चुकी थी। उन्होंने बताया था कि उनके पति पुलिस में ऊंची पोस्ट पर हैं। रात को शुगर बहुत बढ़ गई तो ऐडमिट होना पड़ा। अभी किसी प्राइवेट हॉस्पीटल में जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं है। फिर ज़्यादातर अस्पताल बंद पड़े हैं- बस कोविड का इलाज हो रहा है।
तो हिना ने अपनी समस्या उनको बताई। चार दिन से हिना को दौड़ती-भागती देख रही आंटी ने कहा- अरे यह तो अभी मैं बात करती हूं। उन्होंने अपने पति को फोन किया। पति ने कहा- वह पता करके बताता है।
दो घंटे बाद पति का फोन आ गया- अख़्तर के ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं लगाया है। पुलिसवाले उसे अदालत में पेश करने वाले थे। लेकिन उन्होंने रुकवा दिया। शाम तक छोड़ देंगे।
हिना को लगा कि अस्पताल में भी ये ख़बर किसी ईद से कम नहीं। वह सबको लाकर मिठाई बांट दे। लेकिन माहौल फिर भी ऐसा नहीं था। सब बीमार लोग- यहां की परेशानी से उकताए हुए। इस वार्ड में बस चूहे और तिलचट्टे ख़ुश रहते हैं- बेख़ौफ़ हर जगह चक्कर काटते रहते हैं।
लेकिन अभी हिना भी ख़ुश थी। उसने एक बासी रोटी चूहों की ओर उछाल दी। बदक़िस्मती से यह करते हुए उसे एक नर्स ने देख लिया। वह चिल्लाने लगी- ये क्या कर रही है? उसे क्यों दे रही है रोटी? चूहे पालेगी भी और बाद में शिकायत भी करेगी कि वार्ड में चूहे घूमते हैं।
लेकिन हिना के लिए कोई डांट अभी डांट नहीं थी। वह हंसती रही। और उसकी हंसी में कुछ ऐसा था कि नर्स भी पहले चुप हुई, फिर हैरान होकर उसे देखती रही और फिर हंसती हुई चली गई- ये लड़की पागल है बिल्कुल।
उधर नर्स की आवाज़ सुन कर दरबान चला आया था। उसे लगा कि एक बार साहबी दिखाने का मौक़ा उसके सामने है। लेकिन उसने देखा कि मामला हिना का है तो वह गंभीरता से किनारे खड़ा हो गया।
फिर हिना ने उसे बताया और शबनम को भी- कि अख़्तर आज छूट जाएगा। दरबान बड़ा खुश हुआ। उसने कहा कि वह ड्यूटी खत्म होने के बाद अख़्तर को ले आएगा। शबनम भी बहुत ख़ुश थी। भाई जेल में हो तो भाभी कितना मन लगाकर उसका खयाल रखेगी।
लेकिन अख्तर को लाने की नौबत नहीं आई। शाम होते-होते वह ख़ुद अस्पताल पहुंच गया। चेहरा मुरझाया हुआ था, कुछ पिटा-थका भी लग रहा था, लेकिन खुश था। मगर उसे देखकर हिना की आंख भर आई।
वह कहना कुछ चाहती थी, मगर कोई डरी हुई हिरनी फिर चली आई और चिल्लाने-कलपने लगी- अब झगड़ा मत करना। हर जगह गरीब मार खाता है। कहना वह मुसलमान भी चाहती थी, लेकिन ये याद करके चुप रह गई कि वार्ड में ज़्यादातर हिंदू लोग हैं। यह भी कि वे भी उसके पूरे काम आ रहे हैं।
अक्सर उससे झगड़ा करने वाला अख़्तर अभी चुप था। जेल से छूट जाने की राहत बहुत बड़ी थी। उसे ये भी पता था कि हिना ने ही अस्पताल में किसी को बोल कर उसे छुड़वाया है। हिना ने उसे उनसे मिलवाया भी। उसने जल्दी से उनके पांव छू लिए।
अगली सुबह हिना के पांव में फिर से पंख लग गए थे। उसके साथ अख़्तर भी था और वह दरबान से गपशप कर रहा था। दरबान उसे दिलासा दे रहा था कि घूस देने के पैसे न भी हों तो दूसरी जगह की दरबानी तो वह उसे दिला ही देगा।
‘अरे नहीं, बंदूक चलाने जैसी बात नहीं होती। बस खड़ा रहना होता है, सबको सलाम ठोकना आता है। गेट खोलना-बंद करना- बस यही। नाइट ड्यूटी में कुछ ज्यादा पैसा मिलेगा।‘
अख़्तर सिर हिला रहा था। एक नई नौकरी की संभावना के बीच उसकी बीती हुई तकलीफ़ें जैसे घुल रही थीं। हिना घर से चाय बना कर लाई थी- एक प्याली उसने अख़्तर को दी और दूसरी प्याली शबनम को देने गई।
शबनम ने कहा- भाभी, उठाकर बिस्तर से टेक लगाकर बिठा दो। हिना ने बहुत एहतियात से यह काम किया। शबनम एक अख़बार देख रही थी- ‘भाभी बीएड का निकला है, टेस्ट दे दें का।‘ हिना ने फौरन कहा, हां, शबनम हां।
इतनी तकलीफ़ के बाद भी शबनम आने वाले कल के बारे में सोच रही है। ठीक हो जाएगी तो कोई न कोई रास्ता बन जाएगा। फिर शबनम ने धीरे से बताया, भाभी उनका फोन आया था। ‘तेरे शौहर का?’ हिना की आवाज़ में अचानक खुशी भरा कौतुहल भर आया। शबनम ने सिर हिलाया- हां, कहा है, आएंगे। कहा है, आगे की सोच।
यह दूसरी राहत की खबर थी जिसने चाय की इस सुबह को हिना के लिए कुछ और सुंदर बना दिया। वह
चाय की तीसरी प्याली अपने साथ लेकर बैठी हुई थी। अपने गालों से सटाए हुए, उसकी गर्माहट महसूस करते हुए। ज़िंदगी में इतना सुकून कब होता है। बहुत मुश्किल है, बहुत कमी है- न घर है, न खाने का ठिकाना, न नौकरी, न बीमारी से निजात। लेकिन फिर भी जीने का रास्ता निकलता रहता है। यह छोटी बात नहीं है।
तभी वह चिहुंकी। दोनों चूहे उसके पांव के ऊपर से पार हो गए। दूर आलमारी के पास से तिलचट्टा उसे देख रहा था। वह हंसने लगी- ये सब भी जी रहे हैं। हम तो आदमी हैं। निकाल लेंगे रास्ता जीने का।
अचानक उसने देखा, शबनम भी उसे देख रही है और अख़्तर भी। दोनों की आंखों में कोमलता है। वह झेंप सी गई। उसे अम्मी का खयाल आया जो उसकी जगह क्वॉरन्टीन है। उसने फोन मिलाया- अम्मी ठीक से तो हो, हम सब जल्दी लौटेगे। एक वार्ड के भीतर यह छोटा सा परिवार अब मुस्कुरा रहा था और बाक़ी वार्ड भी इस मुस्कुराहट में कुछ उजला लगने लगा था।
कथाकार पेशे से पत्रकार और लेखक
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