भरी सभा में विधायक से छिन ली माईक, चड्डी उतारने और दे दी समाज से बहिष्कार की धमकी

फूंका विधायक और मुख्यमंत्री का पुतला

उत्तम कुमार

 

बस्तर के सिलगेर गोलीकांड की लपटे राजनांदगांव जिले के मोहला तक पहुंच गई है। मंच पर आदिवासी नेताओं ने सरकार के प्रतिनिधि विधायक और पूर्व सांसद सोहन पोटाई के सामने मर्यादा, नैतिक शिक्षा भूल गये और भरे सभा में उनकी खाल उतारने लगे। किसी ने कहा कि चड्डी उतार देंगे, किसी ने कहा संविधान सिखा देंगे तो किसी ने कहा कि हम इनका सामाजिक बहिष्कार कर रहे हैं और वे ये भी भूल गये कि यह कोई सामाजिक बैठक नहीं हो रही थी।

इस पूरे मामले में स्थानीय तहसीलदार, एसडीएम, पुलिस के आला अधिकारी तमाशबीन बने नजारा देख रहे थे और इन गतिविधियों की वीडियो बना रहे थे। 

आदिवासी समाज ने राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुवे मोहला में मंचीय सभा आयोजित की थी। सर्व आदिवासी समाज के विरोध सभा के कार्यक्रम में विधायक तथा संसदीय सचिव इंद्रशाह मंडावी बेझिझक सभा स्थल में पहुंच गये। शायद वे इसलिए भी सभा में चले आये ताकि अपने निवास में आदिवासी नेताओं के रोष का शिकार ना हो जाये।

आंदोलनकारी यहीं नहीं रुके, भारी पुलिस बल के सामने मुख्यमंत्री और विधायक का सरे आम पुतला दहन कर दिया। इसके बाद स्थानीय प्रदर्शन स्थल पर माहौल तनावपूर्ण हो गया।

सर्व आदिवासी समाज के विभिन्न पदाधिकारियों व युवाओं के द्वारा सभा स्थल से बस स्टैंड में लाल श्याम शाम महाराज की मूर्ति के सामने अनुविभागीय दंडाधिकारी को राज्यपाल के नाम विभिन्न मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा गया है। जिसमें मोहला मानपुर समेत जिला प्रदेश के आदिवासी समाज के लोग उपस्थित रहे।

फूंका विधायक और मुख्यमंत्री का पुतला

गोंड़वाना समाज के युवाओं के द्वारा अचानक चलती हुई सभा के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व मोहला मानपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक मंडावी का पुतला दहन आनन-फानन में कर दिया गया। आदिवासी समाज के युवाओं के उग्र आंदोलन को शांत करने का प्रयास पुलिस विभाग द्वारा किया गया।

क्षेत्र मोहला मानपुर में के विधायक इंद्र शाह मंडावी आदिवासियों पर हो रहे हनन व आलोचना का प्रयास किया साथ ही उनसे प्रश्न पूछा गया जिसमें वक्ताओं ने चड्डी उतारने से लेकर मुख्यमंत्री के पिता से बात करने की बात कर डाली।

आदिवासी समाज के हजारों लोग उपस्थित होकर आंदोलन को एक ओर सफल तो दूसरी ओर आग में बदलने का प्रयास किया। जो प्रमुख नेता आये सभी ने माहौल में उबाल लाने का प्रयास किया। इस सभा को मुख्य रूप से सर्व आदिवासी गोंडवाना समाज के सोहन पोटाई, हेमलाल मरकाम, तुलसी रामायण मरकाम, सर्व आदिवासी के जिला अध्यक्ष सुरजू टेकाम मानपुर, किसान नेता सुदेश टीकम, लखन कलामे,  रमेश हिडामे, यशवंत घावड़े, प्रकाश नेताम, संजीत ठाकुर आदि के मुख्य भूमिका में सरकार के खिलाफ आम सभा ली जा रही थी। 

इसी दौरान पहले समाज को महत्व देने की मंशा लेकर बेझिझक निर्भय होकर जैसे ही  मोहला मानपुर विधायक इंद्र शाह मंडावी सभास्थल में दाखिल होते हैं माहौल तनावपूर्ण हो जाता है।

इस जमावड़ा में मुख्य रूप से सिलगेर में चल रहे हिंसा से लोगों को जागरुक करने का कोशिश की जा रही थी। मोहला में चल रहे आंदोलन के दौरान स्थानीय विधायक एवं संसदीय सचिव इंद्र शाह मंडावी ने कहा कि मैं सभी समस्याओं को मुख्यमंत्री तक पहुंचाऊंगा।

उल्लेखनीय है कि बस्तर के सिलगेर गोलीकांड घटना के विरोध में आदिवासी सामाजिक वेशभूषा, परंपरागत हथियारों के साथ हजारों की संख्या में महिला, पुरुष, युवा मोहला पहुंचे थे। इधर सरकार को कड़ा जवाब देने कांग्रेस व भाजपा के नेताओं के समक्ष सिलगेर मामलों को लेकर काफी गहमागहमी की स्थिति बन गई।

गौरतलब है कि 17 मई को बस्तर के सिलगेर में सुरक्षा बल के कैंप का विरोध के दौरान हुई पत्थरबाजी और गोलीकांड से 4 आदिवासियों की मौत हो गई और इस घटना में 20 से ज्यादा ग्रामीण घायल हुए हैं। इसे लेकर आदिवासी समाज में कांग्रेस सरकार -  भाजपा नेताओं के खिलाफ काफी आक्रोश है। जिसकी चिंगारी अब बस्तर से लेकर राजनांदगांव जिले में सुलग गई हैं।

भाजपा और कांग्रेस एक ही राह पर, 15 साल क्यों याद नहीं आई

विधायक ने अपना पक्ष रखते हुवे कहा कि पहले समाज फिर पार्टी इसीलिए वे सभा स्थल आये हैं और वे आदिवासी समाज के हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 15 सालों में जब कई घटनायें हुई है उस समय आप खामोश क्यों थे? 

सभा में मौजूद आदिवासियों ने सोहन पोटाई को घेरते हुवे कहा कि भाजपा की 15 साल तक चली सरकार ने सिर्फ आदिवासियों को गोली मारने का काम किया और अब कांग्रेस की भूपेश सरकार की गिरोह भी आदिवासियों को मौत के घाट उतार रही है जो नहीं होगा।

नेताओं ने कहा कि विधायकों का निवास स्थल घेरने का ऐलान सर्व आदिवासी समाज ने किया हुआ है। भाषणबाजी और सवाल जवाब की स्थिति इस राजनीतिक माहौल में उबाल ला दिया।

इन 70 सालों में हमारी राजनैतिक व मानसिक गुलामी करने की आदत तथा जाति उपजाति में भेदभाव और क्षेत्रीयता के नाम पर आपस में लडऩे मरने की बीमारी ज्यों के त्यों बनी हुई हैं। अब यह बीमारी परम्परा का रूप धारण करना शुरू कर दिया है और यह धारणा राजनीति का रूप लेता जा रहा है।
        
छत्तीसगढ़ में आदिवासी राज की बात एक स्वप्न है जो नींद में देखा तो जाता है किन्तु दिन के उजाले में विलुप्त भी हो जाता है। आदिवासी सरकार के बलबूते पहुंचे नेताओं की स्थिति थकान और रिटायमेंट की ओर आ गई है। यही स्थिति सामाजिक और राजनीतिक संगठनों की नेताओं की भी है। उनके पास आदिवासी राज्य के लिये कोई ब्लूप्रिंट नहीं है। 

टायगर और शेर ना जाने किस - किस रूप में गोंड़वाना सभ्याएं काम करती हैं। राज्य में राजनैतिक नेतृत्व प्रदान करने के लिए गोंड़वाना और आदिवासियों के बीच कोई काबिल नेता नजर ही नहीं आता है। लाल श्याम सिंह से लेकर आज तक मुख्य धारा की राजनीति में राज सत्ता में पहुंचने की करिश्माई लीडरशिप विगत 40 सालों से पूरी तरह नदारत है।

जिस समाज के पास ना तो प्रदेश स्तरीय शक्तिशाली संगठन हैं, संगठन तो गोली मारिये समर्पित और अनुशासित कार्यकर्ताओं का संघ और पार्टी कुछ भी इनके पास नहीं है। प्रतिभाशाली सर्वमान्य, सर्व गुण सम्पन्न नेतृत्वकर्ता तो है ही नहीं, ऐसे में वह समाज सत्ता के सिहांसन पर पहुंचना तो दूर मात्र हो रहे घटनाओं पर विलाप करने से ज्यादा कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। 


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