आपातकाल : देश के माथे पर कलंक
स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी ना भूलने वाला आपातकाल
कैलाश रावतइमरजेंसी क्यों लगी हजारों विश्लेषण और किताबों में लेख छप चुके हैं प्रतिवर्ष काला दिवस भारतवर्ष के लोग याद करते हैं इमरजेंसी को दूसरी गुलामी कहा जाता है। गिरफ्तार होने वाले लोकतंत्र सेनानी आपातकाल में नागरिकों के अधिकारों पर हमला हुआ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा था आर एस एस फासिस्ट है तो मैं भी फासिस्ट हूं।
संजय गांधी का तो यही सोचना था 20 या 25 एवं इससे अधिक वर्षों तक आपातकाल जारी रख सकते थे जब लोगों के सोचने का तरीका बदल जाता आपातकाल में लोकतांत्रिक संस्थाएं विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका और प्रेस की भूमिका सत्ता के दरवाजे में बंधक जैसी हो जाती।
संसद के 52 वा संशोधन लाकर हाई कोर्ट को रिट पिटिशन जारी करने का अधिकार प्रतिबंधित कर दिया आर्टिकल 368 में बदलाव करके अव्यवस्था बना दी संविधान के बदलाव पर जो भी सुप्रीम कोर्ट मेंरिव्यू ना किया जा सके।
लाखों राजनीतिक कार्यकर्ता जेल में बंद थे उनके परिवार बर्बाद हो गई ऐसा भाई का वातावरण बना दिया था। आम आदमी बाजू वाले से बात करने में डरता था पूरा देश जेल बन गया था जिलों में कई स्थानों पर अमानवीय व्यवहार और हिंसा की घटनाएं याचिकाएं दायर की गई न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया।
आपातकाल के बहाने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने और अपनी पार्टी में विरोधियों को ठिकाने लगा रही थी इमरजेंसी में गुंडे बदमाशों को पकड़ना चाहिए था। उनकी जगह नेताओं को पकड़ा जाने लगा गिरफ्तारी में पूरा समाजवाद था संजय गांधी के पांच सूत्री कार्यक्रम देश के भाग्य विधाता और ब्रह्म वाक्य था अनुशासन पर्व दूरदृष्टि कढा इरादा नसबंदी देशभर में हजारों लाखों कुंवारे बेऔलादो की नसबंदी कर दी गई।
घर घर मैं डर माहौल पैदा हो गया किसी को पकड़ कर कहीं भी नसबंदी की जा सकती थी आम जनता के बीच पार्टी की छवि सबसे ज्यादा बदनाम हो गई थी कांग्रेस के नेता मस्त थे की जनता उनके साथ है मीडिया उनकी पार्टी और सरकार की जय जयकार कर रही थी इमरजेंसी जालिम होने लगी तत्कालीन कांग्रेसी अध्यक्ष देवकांत बरुआ का नारा।
इंदिरा इज इंडिया
इंडिया इज इंदिरा
देश के समाचार पत्र इंदिरा गांधी संजय गांधी और उनके कारिनदो की खबरों से भरे पड़े रहते सभी जगह रैलियां सभाएं भीड़ भी ऐतिहासिक भीड़ जुटाने में सरकारी अमले का प्रयोग समूचे देश में ऐसा चल रहा था। प्रायोजित भीड़ ऐसा चकमा दे रही थी थी 1977 में भीड़ रैलियों में भीड़ ऐसी खुफिया रिपोर्ट की बजह से ही इंदिरा गांधी आम चुनाव कराने के लिए राजी हुई वरना आपातकाल ना जाने कब तक लगा रहता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से कांग्रेस पार्टी को इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की चाल चली बिखरे समाजवादी पुराने गांधीवादी भारतीय जन संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय लोक दल भी इस अभियान में जुड़ गया देशभर में विपक्षी एकता की लहर चल पड़ी सबके निशाने पर इंदिरा गांधी।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जन आक्रोश को समझने की जगह इसे शक्ति से कुचलने का अभियान चलाया उस दौरान इंदिरा जी के सामने सब बोने थे बांग्लादेश विजय ने इंदिरा जी का कद बहुत बड़ा कर दिया था।
अटल बिहारी वाजपेई जैसे नेता इंदिरा गांधी को दुर्गा कहकर महिमामंडित किया बैंकों का राष्ट्रीयकरण राजा महाराजाओं की पीवी पर्स बंद करने से सर्वहारा वर्ग के नेता बन चुकी थी जनसंघ का दायरा सिमटा हुआ था सोशलिस्ट के अधिकांश बड़े नेता कांग्रेसमें जा चुके थे सोशलिस्ट के खेवनहार लोकबंधु राजनारायण ही थे।
रीवा के 18 वर्षीय छात्र नेता और समाजवादी विधानसभा के सुभाष श्रीवास्तव को 18 वर्ष की उम्र में गिरफ्तार कर लिया गया। और उन्हें 18 महीने 6 दिन जेल में बंद रहे दिल्ली 7 मार्च 1975 को ऐतिहासिक रैली हुई इसमें 1000000 लोगों की उपस्थिति थी उसमें भी इन्होंने मध्य प्रदेश से बहुत सारी के साथ सक्रिय भागीदारी निभाई सुभाष श्रीवास्तव, राज नारायण के सहयोगी रहे आज युवा समाजवादी विचारधारा पर काम कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश से रघु ठाकुर, प्रेम लाल मिश्रा, चंद्र मणि त्रिपाठी, रमाशंकर सिंह, दिनेश चंद्र शर्मा, गुरु लक्ष्मी नारायण नायक, मंगन लाल गोयल, गया प्रसाद रावत, गौरी शंकर शुक्ला, जगदंबा प्रसाद निगम, पुरुषोत्तम कौशिक, मामा बालेश्वर दयाल, ओमप्रकाश रावल, रामबाबू अग्रवाल, रामस्वरूप मंत्री मोहन सिंह, कन्हैयालाल डूंगरवाल आदि लोगों ने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया।
विपक्ष में राज नारायण को छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं था जो इंदिरा गांधी की मनमानी के खिलाफ कुछ कह सकें लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दो-तीन वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट के चार जजो ने ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस की कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक वर्मा के खिलाफ महाभियोग की मुहिम चलाई जजों की नियुक्ति पर सवाल उठाए।
कांग्रेस के आपातकाल में तो समूची ज्यूडिशली ही बंधक थी जगमोहन लाल सिन्हा का आपातकाल में क्या हाल हुआ वकील बीएन खरे ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर कर दी इसी अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस कृष्णा अय्यर ने स्टे दे दिया बाद में वकील खेर साहब भारत के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए कुलदीप नैयर की आपातकाल में गिरफ्तारी हुई।
उनकी गिरफ्तारी को दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवैध घोषित कर दिया उसके जज रंगराजन का दिल्ली से गोहाटी ट्रांसफर कर दिया अन्य जज आर एन अग्रवाल को पदावनत कर हाई कोर्ट जज से सेशन जज बना दिया आपातकाल की वैधता का मामला सुप्रीम कोर्ट में आया सीजेआई ए एन रे ने पीठ गठित कर दी स्पीच में एचआर खन्ना, एमएच बैग बाय भी चंद्रचूड और पीएन भगवती थे जस्टिस एचआर खन्ना को छोड़कर सभी ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी को जायज ठहराया।
बाद में एचआर खन्ना को सुपर सीट करके एमएच बैग को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया आपातकाल में न्यायपालिका का जो भी जज आड़े आया उसे ठिकाने लगाया गया।
कांग्रेस पार्टी की स्वेच्छाचारी सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को बंधुआ बनाकर रखा था कम से कम उनका तो यही हक नहीं बनता कि वह इस शुचिता की दुहाई दे आपातकाल दूसरी गुलामी थी। इस दास्तान को जीवित बनाए रखना इसलिए आवश्यक है जिससे आने वाले सरकारें ऐसा कदम उठाने की हिम्मत ना कर सकें।
लोकबंधु राजनारायण को इसलिए भारत के लोकतंत्र का कबीर कहा गया। अगर भारत की राजनीति में यह कभी नहीं होता वह भारत का लोकतंत्र किस हाल में होता इसकी कल्पना नहीं की जा सकती इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का नतीजा रहा कि इंदिरा ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी 1977 में 19 महीने बाद सभी विपक्षी दल एकता के सूत्र में बंधे प्रजातांत्रिक तरीके से तानाशाही का अंत हुआ।
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