जाति है कि जाती नहीं

बिहार के पेरियार प्रो. रमाशंकर आर्य जी की जुबानी, जातिगत भेदभाव की कहानी

चन्द्रभूषण सिंह यादव

 

प्रो.रमाशंकर आर्य अपने जीवन मे घटित घटनाओं व जातिगत भेदभाव को तफसील से अपनी आत्मकथा "घुटन" (शिल्पायन प्रकाशन दिल्ली) में तफसील से लिखा है।

प्रो. आर्य जी बताते हैं कि अगर वे किसी परिचारक से पानी मांगते थे और यदि वह सवर्ण होता था तो किसी गैर सवर्ण परिचारक से वह पानी लाने को बोलता था।आर्य जी बताते हैं कि जब वे आरा में कुलपति पोस्ट हुये तो वहां नियुक्त तत्कालीन डीएम हुकुम सिंह मीणा ने बताया कि जब वह डीएम बनकर आये तो सवर्ण कुक (रसोइये) को हटाकर दलित कुक नियुक्त कर दिया गया क्योकि सवर्ण कुक एक आदिवासी का भोजन कैसे बना सकता था?

प्रो.आर्य ने बताया कि वे प्राइमरी में पढ़ते वक्त अपने अध्यापक पारस नाथ मिश्र के हाथों इसलिए पीट दिए गए कि वे दुसाध (दलित) होकर कैसे कुएं से पानी निकालकर बाल्टी से पानी पी लिए।

अध्यापक मिश्रा ने मारने के बाद सख्त हिदायत दिया कि वे आइन्दे से खुद पानी नहीं निकालेंगे। इसके बाद 1973 में आरा के कॉलेज में दलित होकर मेरे बोलने पर सवर्ण छात्रों ने चाकू मार दिया था।

प्रो.आर्य जी वाइस चांसलर के अलावे पटना विश्वविद्यालय में डीन, पटना कालेज में प्रिंसिपल, बीडी ईवनिंग कालेज मगध में प्रिंसिपल आदि पदों पर भी रह चुके हैं। वे बताते हैं कि सर्वत्र उन्हें कम - ज्यादा जाति का दंश भोगना पड़ा।

बीडी कालेज मगध में उनके प्रिन्सपल बनकर जाने के बाद उनके सवर्ण वाइस प्रिंसिपल विश तक करने नही आये जबकि अन्य स्टाफ ने भी उनके दलित होने का अहसास अपने आचरण से करवाया।

बिहार के पेरियार के रूप में प्रसिद्ध प्रो. रमाशंकर आर्य जी जाति के नाते जीवन पर्यन्त मिले अपमान व मेधा के नाते मिले विभिन्न क्षेत्रों के सम्मान को लिपिबद्ध कर आगे आनी वाली पीढ़ी के लिए "घुटन" आत्मकथा की रचना कर अपने दलित - दमित समाज को जातिगत रूढ़ियों से मुक्त हो अत्त दीपो भवः की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।
 


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