देश में आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में
लिंगाराम कोडोपीयह वीडियो लगभग बस्तर के हर पंत्रकार के पास हैं लेकिन किसीने खबर चलाया नहीं, और न ही किसी पंत्रकार ने माण्डवी सुक्का पिता माण्डवी कोसा से पूछा कि C.R.P.F. के जवान तुम्हे क्यो मार रहे हैं? तुम्हे कहाँ से पकड़े हैं? तुम्हे कब छोड़े हैं? सुक्का अभी अपने गाँव में अपने भाई व परिवार के साथ रहता है। मैं और आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, जेल रिहाई मंच के सचिव सुजित कर्मा हम सभी माण्ड़वी सुक्का से सिलगेर व तर्रैम के बीच बिठाये हुए C.R.P.F. कैम्प के विरोध में चल रहे आन्दोलन में मिले थे।

वीडियो देखकर लगता हैं कि C.R.P.F. फोर्स को मानव अधिकारों की शिक्षा देना पड़ेगा। C.R.P.F. फोर्स बस्तर के आदिवासियों के सुरक्षा के लिए या आदिवासियों के साथ अन्याय के लिए?
यह वीडियो लगभग बस्तर के हर पंत्रकार के पास हैं लेकिन किसीने खबर चलाया नहीं, और न ही किसी पंत्रकार ने माण्डवी सुक्का पिता माण्डवी कोसा से पूछा कि C.R.P.F. के जवान तुम्हे क्यो मार रहे हैं?
तुम्हे कहाँ से पकड़े हैं ? तुम्हे कब छोड़े हैं? सुक्का अभी अपने गाँव में अपने भाई व परिवार के साथ रहता है।
मैं और आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, जेल रिहाई मंच के सचिव सुजित कर्मा हम सभी माण्ड़वी सुक्का से सिलगेर व तर्रैम के बीच बिठाये हुए C.R.P.F. कैम्फ के विरोध में चल रहे आन्दोलन में मिले थे।
सोनी सोरी ने सुक्का से एक सवाल पुछा कि सिलगेर से टेकलगुड़ा कितना दूर हैं सुक्का ने बताया 15-20 किलोमीटर। दूसरा सवाल था कि आप सभी लोगों को पुलिस कैम्फ नहीं चाहिए सुक्का का जवाब था नहीं।
इस वीडियो को देख आप समझ गये होंगे कि सिलगेर में आदिवासी पुलिस कैम्फ का क्यों विरोध कर रहे है? पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन, राज्य शासन पहले आदिवासीयों का आत्मविश्वास जीते, किसी कि हत्या या डरा कर आप दिल और आत्मविश्वास नहीं जीत सकते।
यूट्यूब पर यह वीडियो अपलोड किया था, कम्युनिटी गाइडलाइंस का हवाला देते हुवे यूट्यूब ने हटा दिया। बस्तर अनुसूचित क्षेत्रों में सरकार C.R.P.F. कैम्फ बिठाते जा रहीं हैं, फोर्स आदिवासियों के साथ मनमानी अत्याचार कर रहीं हैं। मानव अधिकार की बात करे तो फोर्स कहती हैं कि हम केंद्र के बल हैं हमारा क्या उखाड़ लोगे।
बिचारे भोले भाले आदिवासी किसी से मदद भी नहीं मांग सकते। आज कल तो मदद के लिए भी लोग कीमत मांगते हैं। आदिवासियों के पास कीमत देने की क्षमता तो नहीं हैं इस वजह से पूंजीवाद की नजर आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन पर हैं।
आदिवासियों की जीविका जल, जंगल, जमीन है। आदिवासी कीमत के तौर पर अपनी जीविका पूंजीवाद या पूंजीवाद के समर्थकों को नहीं दे सकता। आदिवासी जान दे देगा जल, जंगल, जमीन नहीं देगा।
आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन चाहिए तो आदिवासियों की नक्सल के नाम पर हत्या, बलात्कार और फोर्स के जरिये आदिवासियों के साथ अन्याय करो आदिवासी सहेगा-सहेगा एक दिन हथियार उठा लेगा, उस दिन फोर्स कहेगी की बस्तर में सबसे ज्यादा नक्सलवाद हैं।
आदिवासियों के प्रतिनिधि राज्य में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति हैं। आदिवासियों के सरक्षणकर्ता राष्ट्रपति और राज्यपाल हैं। लेकिन लगता हैं राज्यपाल और राष्ट्रपति आदिवासियों का विनाश चाहते हैं।
आदिवासियों के मामलों में संयुक्त राष्ट्र या यूरोपीयन संगठन हस्तक्षेप करे तो भारत सरकार कहती हैं कि हमारे पास आदिवासियों को न्याय देने की व्यवस्था हैं आप हस्तक्षेप न करे। मैं भारत सरकार को सौ मामलें बता सकता हूं, आज तक किसी भी मामले में भारत सरकार ने आदिवासियों को न्याय नहीं दिया हैं।
भारत को आजाद हुए करीब 70 साल हो गये , इन 70 सालो में आदिवासियों के साथ किन - किन मामलो में भारत सरकार ने आदिवासियों को न्याय दिया हैं साक्ष्य प्रस्तुत करें।
इस वीडियो को शायद फेसबुक भी सामाजिक हिंसा बढ़ने का हवाला देकर हटा दें, लेकिन संयुक्त राष्ट्र व यूरोपियन संगठन से आदिवासी समुदाय मदद के लिए गुहार लगाएगा तो भारत सरकार कैसे रोकेंगी? भारत सरकार आदिवासियों के साथ अन्याय के अलावा कुछ नहीं दे सकती।
जंगल हमारा, जमीन हमारा, जल हमारा, हर चीज हमारी तो व्यवस्था भी आदिवासियों का होना चाहिए। आप कहेंगे आदिवासियों की कौन सी व्यवस्था हैं। आदिवासियों की व्यवस्था जल, जंगल, जमीन से हैं।
समझदार के लिए इशारा काफी हैं। मूलनिवासी अर्थात आदिवासी, आदिवासी भारत का राजा फिर आप अनुसूचित क्षेत्र में फोर्स को तैनात कर गुलाम कैसे बना रहे हैं?
वीडियो इस लिंक पर आकर देख सकते हैं।
लेखक बस्तर के चर्चित आदिवासी पत्रकार।
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02/07/2021
Utpal Basu
I want to know the real incidents. Okay , thank
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