सत्ता की विज्ञप्ति लिखने वाले सरकारी सहूलियत बटोरने लगे

सतीश कुमार चौहान की टिप्पणी

सतीश कुमार चौहान

 

इक दौर था जब हमारे शहर में नियमित रूप से साहित्यिक गोष्ठियां होती रहती थी , चुकी मोबाईल था नहीं फोन कुछेक के पास ही था.

पोस्टकार्ड से ही बड़े स्नेह और आदर भाव से आमंत्रण भेजा जाता था सेक्टर 6 भिलाई में संयंत्र प्रशासन ने एक कमरा दिया था जिसे लिटरली क्लब कहा जाता था.

साहित्य प्रेमियों द्वारा कुछ गद्दे लगा दिए थे जिस पर उत्साही साथी अपने घर से चादर लाकर बिछाते थे मटके में पानी भरा जाता था, फिर होती थी देश दुनिया पर गोष्ठी.

पड़ोस के ठेले से चाय कभी कभी सौजन्य समोसे भी आ आते थे, सच में ये गोष्ठी बड़ी सारगर्भित और सात्विक होती थी कवि गोष्ठी भी इसका हिस्सा होता था, फिर धीरे धीरे कुछ अतिमहत्वकांछी और राजनैतिक लोग इसमें घुसे सरकारी पैसे ने दरी छाप नितांत साहित्यक गोष्ठी को पांच सितारा सभा में बदल दिया.

साहित्य पर राजनैतिक विचारधारा का कलेवर चढ़ने लगा, इसमें भी जलेस, प्रलेस का कलेश भी सतह पर आ गया.

सत्ता की विज्ञप्ति लिखने वाले शहर के लेखक संपादक और साहित्यकार बन सरकारी सहूलियत बटोरने लगे.

आयोजन, विमोचन सरकारी अनुदान के ठेकेदार बन गए...

सिमटते चला गया पोस्टकार्ड का आमंत्रण दरी पर होती गोष्ठी और चाय समोसे का दौर और...मुक्तकंठ

लेखक चर्चित आलोचक और टिप्पणीकार हैं।


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