किसान आंदोलन के साथ "खालिस्तान-खालिस्तानी" शब्द का प्रयोग

प्रेमसिंह सियाग

 

अलग सूबे की मांग को लेकर पंजाबी भाषी लोग आजादी के समय से लगातार मांग कर रहे थे।1956 के प्रस्ताव को डाइल्यूट करने के लिए, इस आंदोलन को भटकाने के लिए विरोध में कई चरमपंथी समूहों को तैयार किया गया था। 1966 के बंटवारे में लालची राजनेताओं ने इन चरमपंथी समूहों को आधार बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

1967 में जगजीतसिंह चौहान नाम का एक शख्स पंजाब विधानसभा में विधायक चुनकर आता है।

जरनैल सिंह भिंडरावाले ने जब समाज सुधार कार्यक्रम शुरू किया तो यह शख्स बड़ी चालाकी से उसका फायदा उठाने के लिए 80 के दशक में समानांतर खालिस्तान यानी स्वतंत्र देश की मांग करने लगा।गिरफ्तारी के डर से यह लंदन चला गया।

खुद को खालिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया और अलग से मुद्रा भी जारी कर दी।

जरनैल सिंह भिंडरावाले के आंदोलन से इसका कोई वास्ता नहीं था। इसके कार्यों को लेकर संघियों ने भारत के सिक्खों को खालिस्तानी घोषित करने का प्रोपगंडा चलाया!

राज करेगा खालसा जैसे पवित्र नारे से मिलते-जुलते इस शब्द का सिक्खों को बदनाम करने के लिए जमकर उपयोग किया।

कुछ सिक्ख युवाओं को इस जाल में फंसाया व कुछ वेश बदलकर शामिल हुए।

जब सिक्खों का कत्लेआम हुआ तो यह शख्स व इनसे जुड़े लोग विदेशों में तिरंगे को जलाते हुए व खालिस्तान का झंडा लहराकर वीडियो जारी करते थे ताकि भारत के सिक्खों के नरसंहार को जायज साबित करार दिया जाएं।

1984 के बाद जब भी सिक्खों ने इंसाफ की मांग की ये लोग खालिस्तान की मांग का वीडियो जारी करते रहे।

ठीक 2001 में यह शख्स भारत आता है। उस समय केंद्र में पंडित अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार थी।पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से मुलाकात करता है और कहता है मैंने देश की एकता व अखंडता की शपथ ली है।

महेश योगी के आश्रम में प्रशिक्षण के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैंने जो चाहा वो हो गया अब मेरी दूसरी कोई इच्छा नहीं है। उसके बाद झंडेवाला, दिल्ली में तत्कालीन संघ प्रमुख के.सी.सुदर्शन से मैराथन बात करके खालसा राज की अवधारणा समझाई।

इस शख्स ने यह भी दावा किया कि उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज फाउंडेशन की पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां गजनी से भारत लाने में समर्थन किया है।

पृथ्वीराज फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष कैप्टन विक्रमसिंह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से मिलते समय जगजीतसिंह चौहान के साथ थे।

फिर यह शख्स दिल्ली से सीधे होशियारपुर में अपने गांव टांडा चला गया व 2007 में इसकी मृत्यु हो गई।

अलग राष्ट्र की मांग की मुहिम का मुख्या,खुद को राष्ट्रपति घोषित करने वाला, अलग मुद्रा चलाने वाला बिना देशद्रोह के केस में गिरफ्तार हुए सस्ता निपट लिया।वापिस लौटने का भी क्या टाइमिंग था!

यह पूरी स्टोरी The Tribune की न्यूज़ साइट पर है पड़ी है जिसकी फोटो संलग्न है।धरती के किसी टुकड़े पर खालसा राज नहीं होगा बल्कि खालसा राज पूरी कायनात पर होगा।

 


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