'शेरनी' एक जरुरी फ़िल्म
फ़िल्म चर्चा
पीयूष कुमारअभी रात में ही यह फ़िल्म देखी मैनें। इस फ़िल्म के पोस्टर से मुमकिन है बहुतों को एक रोमांचकारी घटनाक्रम का पूर्वाभास हो पर यह एक मार्मिक फ़िल्म है। यह फ़िल्म निर्देशक की है जो उसने फ़िल्म की टीम के साथ कमाल का प्रस्तुतिकरण किया है। अमित मसुरकर का नाम याद आता है? शायद नहीं।

खैर, 'न्यूटन' देखी है न? उन्हीं की निर्देशित फिल्म है। इस फ़िल्म को देखकर अमित मसुरकर के बारे में यह धारणा बनती है कि कैसे वास्तविक मुद्दों को सरकारी विभागों के तरीके से जाहिर किया जाए, उस पर उनकी बारीक पकड़ है।
वे बड़े मुद्दों को सिस्टम के नजरिये से दिखाना बखूबी जानते हैं। न्यूटन में लोकतंत्र था तो शेरनी में पर्यावरण उनका लक्ष्य है। यह सुखद है कि अब ऐसे जिम्मेदार डायरेक्टर भी आ रहे हैं।
विद्या (विद्या बालन) एक वन अधिकारी है जिसका मन इस सिस्टम में नहीं लगता है पर उसका मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता हसबेंड अपनी नौकरी जाने के भय से उसे नौकरी पर रहने का दबाव देता है। विद्या के क्षेत्र में एक शेरनी इंसानों पर हमले करती है और उससे इलाके में तनाव बढ़ता है।
इसमें करप्ट सिस्टम और राजनीति की रोटियों के सेंकनेवाले लोग मुद्दे को गर्म करते हैं। फ़िल्म मार्मिक ढंग से खत्म होकर दर्शकों को चिन्तन के लिए मजबूर करती है।
फ़िल्म में एक डायलॉग है, 'अगर विकास के साथ जीना है तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।’
यही कहानी का सार है। यह फ़िल्म आप अमेजन प्राइम पर देख सकते हैं। यह फ़िल्म वन्य जीव, उनके पर्यावास, मनुष्य के साथ उनके टकराव, उसके प्रति स्थानीय जागरूकता और इन सबमें शिकारियों, राजनीतिज्ञों और ठेकेदारों के घालमेल में ईमानदार और भावुक वन अधिकारी की स्थिति को बिल्कुल ही वास्तविक रूप में जाहिर करती है।
यहां विवाह का अर्थ, पुरुष सत्ता और भ्रष्टाचार भी स्वतःस्फूर्तता में दीख पाती है।
निर्देशक अमित मसुरकर की बड़ी खासियत यह है कि वे ओरिजिनल लोकेशन, स्थानीय लोग, उनकी भाषा और संस्कृति के साथ सेट का वातावरण बिल्कुल असल रखते हैं।
यह वास्तविक फिल्मों का नया सकारात्मक दौर है।
वे सभी कलाकारों से इस तरह काम लेते हैं कि एक्टिंग जैसा कुछ लगता ही नहीं।
विद्या बालन ने अपना काम बेहतरीन निभाया है। जब वे एकांत में दुखी होकर बैठी होती हैं, उनके एक्सप्रेशन को सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
यह फ़िल्म युवाओं - बच्चों को जरूर देखनी चाहिए।'शेरनी' एंटरटेनमेंट नहीं बल्कि बतौर मनुष्य हमें इस पर्यावरण में कैसा बर्ताव करना है, सिखाती है। इसे नेशनल अवार्ड में नॉमिनेशन मिलने की पूरी संभावना है।
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