कितने विनोद मारोगे?
भंवर मेघवंशीजैसे जैसे राजस्थान के विभिन्न इलाक़ों में दलित वर्ग के युवाओं में अम्बेडकरवादी चेतना का प्रचार प्रसार होने से जागृति आ रही है. ग़ैरदलित जातियों को यह नागवार गुजर रहा है. उन्हें अम्बेडकर की प्रतिमा से, तस्वीर से, जय भीम के सम्बोधन से और दलित युवाओं के नीले गमछे तथा नीले झंडे से दिक़्क़त है.

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की रावतसर तहसील के किंकरालिया गाँव में जातिवादी नस्ल के तत्वों ने डॉक्टर अंबेडकर का पोस्टर लगाने से पैदा हुए विवाद पर दलित युवक विनोद मेघवाल की हत्या कर दी, हत्या के आरोपी राकेश सियाग वह अनिल सियाग अभी भी फरार हैं.
अंबेडकरवादी युवा विनोद मेघवाल ने 14 अप्रेल को अम्बेडकर जयंती पर बाबा साहब के पोस्टर लगाये थे, जिन्हें जातिवादी तत्वों ने फाड़ दिया था. विनोद चूँकि भीम आर्मी से जुड़ा कार्यकर्ता था, उसने बाबा साहब के इस अपमान के विरुद्ध आवाज़ उठाई, गाँव की पंचायत बुलाई गई और बदमाशों को अपने कृत्य के लिए माफ़ी माँगनी पड़ी.
दलितों से माफ़ी माँगने की बात जातीय घृणा से ग्रस्त लोगों को नागवार गुज़री, उन्होंने विनोद को टार्गेट पर ले लिया और धमकाने लगे कि तू बहुत अम्बेडकर अम्बेडकर करता हैं, तुझे तो ठिकाने लगाना पड़ेगा...और अंतत: उन कायरों ने यही किया.
5 जून 2021 को जातिवादी तत्वों ने विनोद और उसके चचेरे भाई मुकेश को खेत पर जाते वक्त घेर कर हमला कर दिया,सिर पर गंडासे से ताबड़तोड़ प्रहार किए, जिससे वे गम्भीर रूप से घायल हो गये. विनोद ने हॉस्पिटल में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया. मुकेश भी गम्भीर रूप से घायल हो कर जीवन के लिए हॉस्पिटल में संघर्ष कर रहा है.
गौरतलब है कि विनोद को निरंतर धमकियाँ दी जा रही थी, उसने पुलिस को दो बार लिखित शिकायत भी दर्ज करवाई थी, लेकिन वक्त रहते पुलिस प्रशासन नहीं सक्रिय हुआ, नतीजा यह हुआ कि दलित समुदाय का एक उभरता हुआ सामाजिक कार्यकर्ता इस कायराना हमले में मारा गया. एफआईआर दर्ज होने और इतना हल्ला मचने के बावजूद हत्या के आरोपियों का नहीं पकड़े जाना प्रदेश में क़ानून और व्यवस्था की लगातार बिगड़ती स्थिति को बयान करता है.
कोविड जैसी भयावह महामारी के कारण राजस्थान भर के अम्बेडकरवादी युवा भले ही बड़ी संख्या में सड़कों पर आने से बच रहे हैं,लेकिन वे हर जगह पुरज़ोर आवाज़ उठा रहे हैं और विनोद के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.
राजस्थान में अगड़े हो अथवा कथित पिछड़े, मुस्लिम हो या सवर्ण सब दलितों पर अत्याचार करने में एकजुट और अग्रणी दिखाई पड़ रहे हैं. यह स्थित अगर नहीं बदली तो दलितों को आत्मरक्षा के अन्य विकल्प चुनने होंगे जो किसी के लिए भी शुभ नहीं होगा.
अंत में एक सवाल भी कि जातिवाद की गंध के बदबूदार तत्वों तुम कितने विनोद मारोगे, कितने अम्बेडकरवादियों को ठिकाने लगाओगे, अब हर घर से विनोद निकलेंगे, जो तुम्हारी विषमता की इस सामाजिक धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था को आग के हवाले कर देंगे. भस्म हो जाओगे, नेस्तनाबूद हो जाओगे.
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