सिलगेर जाने से रोका गया
द कोरस टीमछत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को आज बीजापुर जिले की सीमा पर बंगापाल गांव स्थित नेलसनार थाने में ही चार घंटे तक रोक लिया गया और बीजापुर जिला मुख्यालय तक भी जाने नहीं दिया गया। प्रशासन के इस रवैये के खिलाफ प्रतिनिधिमंडल ने थाने पर एक घंटे तक नारेबाजी की और अवरोध तोड़कर बीजापुर के लिए पैदल मार्च शुरू किया। इस मार्च को भी चार जगह पुलिस ने अवरोध डालकर रोका और अंततः प्रतिनिधिमंडल को वापस रायपुर के लिए रवाना होना पड़ा।

नेलसनार से लौटते हुए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधिमंडल में संयोजक आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते, एक्टू के प्रदेश महासचिव बृजेन्द्र तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया व इंदु नेताम आदि ने सिलगेर के आंदोलनरत आदिवासियों के नाम एक पत्र लिखकर एकजुटता व्यक्त की है, बस्तर को पुलिस राज्य में तब्दील किये जाने की कांग्रेस की नीतियों की तीखी निंदा की है और 14 जून के बाद फिर सिलगेर पहुंचने का वादा किया है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से जारी एक बयान में सामाजिक कार्यकर्ताओं को गैर-कानूनी तरीके से रोके जाने की बीजापुर प्रशासन और कांग्रेस सरकार के रवैये की निंदा की गई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रतिनिधिमंडल को सिलगेर पहुंचने से रोकने के लिए ही उसूर ब्लॉक को कन्टेनमेंट जोन बनाने का नाटक खेला गया है, जबकि राज्य के अन्य जिलों में इससे ज्यादा संक्रमण फैला हुआ है।
आंदोलन के नेताओं ने बताया कि पहले तो भैरमगढ़ तहसीलदार ने बीजापुर कलेक्टर का हवाला देते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन लिखित रूप से कोई भी आदेश देने से मना कर दिया। प्रतिनिधिमंडल द्वारा नेलसनार थाने पर नारेबाजी करने के बाद उन्होंने कहा कि बीजापुर जाने से पहले सभी सदस्यों का कोविड टेस्ट किया जाएगा, जिसका सभी ने विरोध किया और कल रात हुए टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाई, जिसे पोर्टल पर भी अपलोड किया गया था। तहसीलदार ने इस टेस्ट रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया, तो सभी ने दुबारा टेस्ट कराने से भी इंकार कर दिया।
इसके बाद प्रतिनिधिमंडल पुलिस के अवरोध को तोड़कर पैदल ही बीजापुर जाने के लिए मार्च करने लगा और वे दो किमी. आगे तक जाने में सफल भी हुए। इस बीच पुलिस ने चार जगहों पर सड़क पर अवरोध खड़ा किया, जिसे लांघने में प्रतिनिधिमंडल सफल रहा। इसी बीच प्रदेश के राज्यपाल से भी संपर्क किया गया।
उन्होंने कल प्रतिनिधिमंडल को मिलने की इजाजत दी है। राज्यपाल की इस इजाजत के बाद प्रतिनिधिमंडल ने आगे बढ़ने के बजाए रायपुर लौटना तय किया। कल सीबीए का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से भेंट करेगा और राज्य शासन के इस रवैये और आदिवासियों के प्रति उसकी नीति के खिलाफ विरोध व्यक्त करेगा और राज्यपाल से हस्तक्षेप करने की मांग करेगा।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का यह मानना है कि लोकतांत्रिक आंदोलनों के साथ इस सरकार को लोकतांत्रिक ढंग से व्यवहार करना चाहिए और उनकी सहमति-असहमति की आवाज को सुनना चाहिए, तभी प्रदेश में लोकतंत्र फल-फूल सकता है। हमारा यह मानना है कि प्रदेश के आदिवासी इलाकों में पांचवीं अनुसूची, पेसा और वनाधिकार कानूनों का पालन होना चाहिए और ग्राम सभा की हर कार्य मे सहमति और सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सिलगेर के आंदोलनरत आदिवासियों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए एक पत्र उनको लिखा है, जिसका संपूर्ण पाठ इस प्रकार है-
साथियों,
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का एक प्रतिनिधिमंडल आप लोगों से मिलने और आपके आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए सिलगेर पहुंचने के लिए आ रहा था, जिसकी पूर्व सूचना आप लोगों को थी। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए और राज्य प्रायोजित दमन के खिलाफ आपके लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण जन आंदोलन का हम समर्थन करते हैं।
हम यह समझते हैं कि लोकतांत्रिक ढंग से चुनकर आई हुई सरकार, जिसके पास आम जनता के अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी है, ने अपनी इस जिम्मेदारी का त्याग कर दिया है और अब पूर्ववर्ती भाजपा सरकार और वर्तमान कांग्रेस सरकार की आदिवासियों और उनके प्राकृतिक संसाधनों के प्रति नीतियों में कोई अंतर नहीं रह गया है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन यह समझता है कि पूरे प्रदेश में पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में सैन्य कैम्प सहित किसी भी परियोजना के लिए ग्राम सभा की स्वीकृति ली जानी चाहिए, लेकिन कांग्रेस-भाजपा दोनों पार्टियों की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों ने पूरे बस्तर को एक पुलिस राज्य में बदल दिया है और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को, पांचवी अनुसूची और पेसा कानून के प्रावधानों को और आदिवासी स्वशासन की परिकल्पना को कुचलकर रख दिया है। अब यह साफ है कि बस्तर के प्रशासन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।
हमारे प्रतिनिधिमंडल को रोकने के लिए पूरे उसूर तहसील को कन्टेनमेंट जोन बना दिया गया है। हमें गैर-कानूनी तरीके से बीजापुर तक जाने से भी रोक दिया गया है। हम आप सभी भाई-बहनों के आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं और राज्य प्रायोजित हत्याओं का विरोध करते हैं।
हम कोरोना प्रतिबंधों के हटने के बाद फिर से आने का वादा करते हैं। यदि सरकार बार-बार कन्टेनमेंट जोन बनाएगी, प्रतिबंध उठने के बाद हम हर बार आपके बीच पहुंचने की कोशिश करेंगे।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन प्रतिनिधिमंडल
आलोक शुक्ला, सुदेश टीकम, संजय पराते, बृजेन्द्र तिवारी, बेला भाटिया, अनुभव शोरी, सागरिका, राशि, गीत डहरिया, इंदु मंडावी, साधुराम ध्रुव, दिलीप गजेंद्र।
सीबीए प्रतिनिधिमंडल द्वारा मुख्यमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन का पूरा पाठ इस प्रकार है-
प्रति,
श्री भूपेश बघेल जी
मुख्यमंत्री,
छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
विषय : छत्तीसगढ़ सरकार की बस्तर के आदिवासियों के प्रति नीतियों के संबंध में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सुझाव
माननीय महोदय,
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से हम आपका ध्यान निम्न तथ्यों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं :
1. पूर्ववर्ती भाजपा राज के 15 सालों के कुशासन और उसकी आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ जनादेश के रूप में वर्तमान कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आई है। भाजपा राज की नीतियों से अलगाव और सकारात्मक बदलाव कांग्रेस का चुनावी वादा था। बस्तर में टाटा के लिए अधिग्रहित भूमि की वापसी ने इस सरकार के प्रति गरीब आदिवासियों में विश्वास का संचार किया था और उसे आशा बंधी थी कि अब आगे आदिवासी समुदाय के हितों की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों पर उनके नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा के उपाय के रूप में वनाधिकार कानून, 5वीं अनुसूची के प्रावधानों, पेसा कानून और अन्य संवैधानिक प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाएगा।
2. लेकिन पिछले डेढ़ साल के घटनाक्रमों से और इन घटनाओं के प्रति सरकार के रवैये और कार्य शैली से आदिवासी समुदाय और हमें भी निराशा हुई है और ऐसा लगता है कि कांग्रेस के राज में भी आदिवासियों के उत्पीड़न, दमन और उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के हनन की नीतियों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। इससे आदिवासी समुदायों में और उनके बीच लोकतांत्रिक ढंग से काम कर रहे संगठनों में भी सरकार के प्रति असंतोष पैदा हुआ है।
3. हाल ही में में कई फर्जी मुठभेड़ों की घटनाएं हुई हैं। अगर मई महीने का ही उदाहरण देखें तो 22 मई को जगरगुंडा थाना अन्तर्गत तौलेवर्ती गांव के एक व्यक्ति को नजदीक केम्प स्थापना के कुछ महीने बाद ही गांव में ही आम तोड़ते हुए व्यक्ति को गस्त में आई फोर्स ने दौड़ाकर गांव में ही गोली से मार दिया। इस घटना को किरन्दुल थाना दंतेवाड़ा जिले में हुई माओवादी से हुई मुठभेड़ बताया गया। दिनांक 30 मई नेलसनार थाना अंतर्गत नीलम गांव से में एक लगभग 18 वर्ष की सोती ही महिला को DRG फोर्स ने आकर अगुवा कर लिया । दूसरे दिन गीदम थाना अंतर्गत गुम्मलवार गांव में हुआ तथाकथित मुठभेड़ में मारी गई नक्सली महिला बताया गया। दुखद रूप से ऐसी घटनाओं की निष्पक्ष जांच तो दूर थाने में प्राथमिक शिकायत दर्ज करवाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
एफ आई आर या काउंटर एफ आई आर ( सुप्रीम कोर्ट के 2014 आदेशानुसार ) तो होती ही नही है।
ऐसी अनेक जहां आदिवासियों को सरकार से न्याय की अपेक्षा थी, लेकिन उन्हें अन्याय ही मिला और आपके अधीन प्रशासन का रवैया बेहद उत्पीड़नकारी रहा है।
4. वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने SPO विशेष पुलिस अधिकारी की भर्ती को प्रतिबंधित किया था । जिसमे अनके कारणों में एक कारण यह भी था कि इन ग्रामीण युवाओं का दुरुपयोग किया जा रहा था। वर्तमान में DRG का भी कुछ इसी तरह का चरित्र है जिसमे उनके द्वारा की गई हत्याओं के अनेक उदाहरण है जिससे आदिवासी समाज के अंदर तनाव स्थिति है ।
5. हमारे लिए ये घटनाएं और इसके प्रति सरकार का रूख बेहद चिंता का विषय है। इन घटनाओं के मूल सार में यही है कि वनाधिकारों की स्थापना किये बगैर आदिवासियों से उनकी भूमि छीनी जा रही है, ग्राम सभा की सर्वोच्चता को मान्यता नहीं दी जा रही है और किसी भी परियोजना को लागू करने से पहले ग्राम सभा की सहमति नहीं लेकर उनकी सहभागिता को सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है या ग्राम सभा की सहमति के फर्जी दस्तावेजों को तैयार किया जा रहा है। इसके खिलाफ लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलनों को बेरहमी से कुचला जा रहा है, गोलियां तक चलाई जा रही है और आंदोलनरत आदिवासियों पर झूठे मुकदमे लादे जा रहे हैं और सलवा जुडूम के समय की तरह उनकी राज्य प्रायोजित हत्याएं हो रही हैं।
6. इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बस्तर में सरकार नियंत्रित प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है और बस्तर पूरी तरह एक पुलिस राज्य में बदल गया है। नागरिक प्रशासन भी पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के अधिकारियों के इशारे पर ही काम कर रहा है, जहां उनकी सोच और मौखिक आदेशों ने ही कानून की जगह ले ली है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए घातक है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का यह मानना है कि आम जनता के वोटों और प्रचंड बहुमत से चुनी हुई सरकार को जनता के प्रति और लोकतांत्रिक आंदोलनों के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी होना चाहिए और प्रशासन का व्यवहार और उसकी कार्यशैली में सरकार का यह रूख झलके, इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
7. हम सिलगेर की घटनाओं से निपटने में प्रशासन की भूमिका की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते है। आम जनता के बीच काम कर रहे तमाम संगठनों के जांच-पड़तालों की तथ्यपरक रिपोर्ट यही बताती है कि कोरोना काल में सिलगेर में आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित करके अर्ध सैनिक कैम्प को स्थापित नहीं किया जाता और इसकी स्थापना के लिए संवैधानिक प्रावधानों का पालन किया जाता, तो गोलीबारी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की नौबत ही नहीं आती। सैनिक कैम्प की स्थापना के संबंध में आदिवासी समुदाय की राय को महत्व दिया जाना चाहिए। सिलगेर के आदिवासी लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। उन तक तमाम जन संगठनों के लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए प्रशासन जो हथकंडे अपना रहा है, वह गैर-कानूनी है और इससे सरकार के प्रति लोगों का विश्वास कमजोर होता है।
8. कल 7 जून 2021 को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के एक प्रतिनिधिमंडल को सिलगेर तक पहुंचने से रोकने के लिए बीजापुर जिले की सीमा स्थित नेलसनार पुलिस थाने से आगे बढ़ने नहीं दिया गया। इसके लिए पहले तहसीलदार भैरमगढ़ द्वारा कलेक्टर बीजापुर के मौखिक आदेश का हवाला दिया गया, जबकि लिखित आदेश दिए जाने से इंकार कर दिया गया। फिर कोरोना टेस्ट करने पर जोर दिया गया, जबकि प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों का 6 जून की रात को ही गीदम नाके पर एंटीजन टेस्ट प्रशासन करवा चुकी थी, सभी नेगेटिव थे और यह रिपोर्ट 72 घंटे तक वैध थी। लेकिन यह सरकारी रिपोर्ट पेश किए जाने के बावजूद बीजापुर प्रशासन ने इसे मानने से इंकार कर दिया। (आपके अवलोकन के लिए यह रिपोर्ट संलग्न है।) मकसद साफ था कि हमें बीजापुर तक भी नहीं जाने देना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति प्रशासन के इस गैर-कानूनी आचरण को स्वीकार करने के लिए हम तैयार नहीं है।
9. यह सामान्य प्रेक्षण की बात है कि पूरे बस्तर में लगभग सभी पुलिस थाने अर्ध सैनिक कैम्पों के अंदर आ गए हैं। इन कैम्पों से गुजरकर किसी भी नागरिक का पुलिस थानों तक पहुंचना और अपनी शिकायतें दर्ज कराना लगभग असंभव हो गया है। नागरिक प्रशासन के एक हिस्से के रूप में इन पुलिस थानों का अर्ध सैनिक बलों के कैम्पों का एक हिस्सा बन जाना लोकतंत्र को कमजोर करता है। जो लोग किसी भी तरह इन थानों तक पहुंच भी जाते हैं, उनकी लोगों की भी लिखित शिकायतें तक इन थानों में नहीं ली जाती और न ही कोई पावती दी जाती है, इन शिकायतों पर कोई न्यायसम्मत कार्यवाही होना तो दूर की बात है।
10. कांग्रेस पूर्ववर्ती भाजपा राज के समय आदिवासियों पर हुए दमन, उत्पीड़न, अत्याचार और जन संहार के खिलाफ खुलकर आगे आई थी। इससे आदिवासियों में यह आशा बंधी थी कि उन पर अत्याचार करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर अब यह सरकार कार्यवाही करेगी। दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय जनजाति आयोग और सीबीआई की रिपोर्टों में जिन अत्याचारों की पुष्टि की गई है, उसके लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी इस सरकार ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं की है।
11. इन तथ्यों की रोशनी में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन आपसे विनम्र आग्रह करता है कि-
1. आंदोलन के प्रतिनिधिमंडल को 14 जून के बाद सिलगेर जाने की इजाजत दी जाए और सरकार यह सुनिश्चित करे कि प्रशासन हमारी यात्रा पर कोई रुकावट खड़ी न करे।
2. प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए वनाधिकार कानून, पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों का पूर्ण पालन सुनिश्चित किया जाए और जन संगठनों व जन आंदोलनों के साथ एक लोकतांत्रिक सरकार और आम जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध एक नागरिक प्रशासन के रूप में व्यवहार सुनिश्चित किया जाए।
3. पिछली भाजपा राज सहित कांग्रेस राज में आदिवासियों पर अत्याचार, दमन व जनसंहार की तमाम घटनाओं की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए व दोषी अधिकारियों पर उदाहरणीय कार्यवाही की जाए।
4. हर हालत में आदिवासियों का उनकी भूमि से विस्थापन रोका जाये तथा ऐसा किये जाने से पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया और ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति ली जाए।
5. कोरोना की वास्तविक गंभीर बीमारी को नागरिक अधिकारों तथा शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलनों के दमन का हथियार न बनाया जाए।
6. सभी पुलिस थानों को अर्ध सैनिक बलों के कैम्पों के बाहर लाकर आदिवासियों तक उनकी पहुंच, उनकी शिकायतों को दर्ज कर उन पर उचित कार्यवाही होना सुनिश्चित किया जाए।
7. बढ़ते कोविड संकट के मद्देनजर आंदोलित आदिवासी अपने अपने वापिस गांव लौट पाए इसके लिए जरूरी है कि सिलेगर केम्प जो कुछ ही दूरी पर तररेम में ही स्थित दो सीआरपीएफ कंपनी का एक्सटेंसन है उसे वापिस लिया जाए। केम्प के नाम पर आदिवासियों से छीनी गई जमीनों को उन्हें वापिस लौटाया लौटाया जाए
8. इस मामले पर एक सर्वदलीय बैठक का भी आयोजन किया जाना चाहिए।
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