किसानों ने तीन कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई

द कोरस टीम

 

अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा, फिंगेश्वर ब्लॉक कमेटी के नेत्तृत्व में संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली के देशव्यापी आह्वान पर किसानों ने 5 जून को "संपूर्ण क्रांति दिवस" ​​ के रूप में मनाते हुए उप तहसील कार्यालय फिंगेश्वर के मुख्य द्वार पर केन्द्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों की प्रतियों को जलाकर विरोध प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन के दौरान फिंगेश्वर पुलिस द्वारा जलते हुए काले कृषि कानून की प्रतियों को छीनकर बुझाने की कोशिश की लेकिन किसान कार्यकर्ताओं द्वारा चारो तरफ घेराबंदी करते हुए काले कृषि कानून वापस लो, मोदी सरकार मुर्दाबाद की नारो के साथ प्रतियों को जलाया।

पुलिस के साथ हुई झूमा झटकी 

इस संदर्भ में जानकारी देते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के फिंगेश्वर ब्लॉक कमेटी के संयोजक रेखूराम साहू, प्रदेश उपाध्यक्ष मदन लाल और प्रदेश सचिव तेजराम विद्रोही व सदस्यगण कोमन ध्रुव, दीपकराज ने बताया कि 1974 में 5 जून को लोक नायक श्री जयप्रकाश नारायण ने पटना, बिहार में एक विशाल रैली से संपूर्ण क्रांति आंदोलन की घोषणा की थी।

संयोग वश यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि 5 जून 2020 वह दिन है जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र की भाजपा सरकार ने कोविड लॉकडाउन की आड़ में, पहले अध्यादेश के रूप में 3 काले कृषि कानून लाए थे। जिसके खिलाफ देश के किसानों ने 6 जून से ही विरोध करना शुरू कर दिया। अपने अपने राज्यों में इस कानून का विरोध करते हुए आज किसान पिछले छै महीने से दिल्ली सीमाओं जैसे सिंघु कुंडली, टिकरी, शाहजहांपुर, गाजीपुर के राष्ट्रीय राजमार्गो में आंदोलनरत है।

किसानों और और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ 11दौर की चर्चा के बाद भी समाधान निकाल पाने में केन्द्र सरकार गंभीर नहीं है क्योंकि किसानों ने सरकार को पहले ही बता दिया है कि कानून में काला क्या है और क्यों इस कानून को रद्द करने की आवश्यकता है। लेकिन कॉरपोरेट परस्त केन्द्र सरकार कॉरपोरेट गुलामी से निकलने और किसानों की जायज मांगों को मानने तैयार नहीं है। जिसके खिलाफ आंदोलन जारी है और जारी रहेगा। 

कार्यक्रम में मोहनलाल, सोमन यादव, नंदू ध्रुव, खेलन ध्रुव, केशव निषाद, खेलन ध्रुव, मुन्नालाल यादव, नीलकंठ, मायाराम, आशरू साहू आदि उपस्थित रहे।

भाजपा नेताओं के कार्यालयों, घरों के सामने जलाई प्रतियां

संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के विभिन्न घटक संगठनों ने आज गांव-गांव में किसान विरोधी काले कानूनों की प्रतियां जलाई। कई स्थानों पर ये प्रदर्शन भाजपाई नेताओं के घरों और कार्यालयों के आगे भी आयोजित किये गए।

ये प्रदर्शन किसान आंदोलन के 20 से ज्यादा संगठनों की अगुआई में कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग, कोरिया, बालोद, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों में आयोजित किये गए। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति व किसान सभा सहित कुछ संगठनों ने कोरबा व बिलासपुर में आज के इस प्रदर्शन को पर्यावरण दिवस के साथ भी जोड़कर मनाया। बिलासपुर में भाजपा सांसद अरुण साव के बंगले के सामने प्रदर्शन किया गया। इस कार्यक्रम में नंद कश्यप और डॉ. सुखऊ ने अपनी उपस्थिति दी है।

किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने इस सफल और प्रभावशाली आंदोलन के लिए प्रदेश के किसान समुदाय को बधाई दी है और कहा कि किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से जारी यह आंदोलन इन काले कानूनों की वापसी तक जारी रहेगा।

आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के नेताओं ने बताया कि पिछले साल 5 जून को ही इन किसान विरोधी कानूनों को अध्यादेशों के रूप में देश की जनता पर थोपा गया था। इन कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई दुगुनी वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है। 

उन्होंने कहा कि इस देश का किसान आंदोलन अपनी खेती-किसानी को बचाने के लिए इस देश के पर्यावरण और जैव-विविधता को बचाने तथा विस्थापन के खिलाफ भी लड़ रहा है। 5 जून 1974 को ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन केंद्र सरकार के तानाशाहीपूर्ण रूख के खिलाफ 'संपूर्ण क्रांति' का बिगुल फूंका था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार संपूर्ण क्रांति के आंदोलन ने देश की आम जनता को आपातकाल से मुक्ति दिलाई थी, उसी प्रकार कृषि कानूनों के खिलाफ यह देशव्यापी किसान आंदोलन भी देश की जनता को मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ रहा है। 

छत्तीसगढ़ किसान आन्दोलन की ओर से सुदेश टीकम, संजय पराते, आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, आनंद मिश्रा, दीपक साहू, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान संघ (सरिया) आदि संगठनों की ओर से जारी संयुक्त विज्ञप्ति)

बालोद तथा डौंडीलोहारा ब्लाक में भी काले कृषि कानून की प्रतियां जलाई गई 

केंद्र सरकार द्वारा किसान विरोधी तीनों काले कानून की प्रतियां किसानों द्वारा पूरे देश में जलाया गया। छत्तीसगढ़ में भी किसान संगठनों के द्वारा अपने -अपने क्षेत्रों में भी किसान विरोधी काला कानून की प्रतियां जलाया गया। इसी कड़ी में बालोद जिला के कई गांवों में भी जलाया गया। डौंडी लोहारा में भी आंम्बेडकर चौक में आंम्बेडकर प्रतिमा के सामने काला कानून की प्रतियां जलाई गई, जिसमें ग्राम सेमरडिही के पुसऊ राम, महारू राम समारू, ग्राम बैंहाकुंआ से आरतू राम,रिखीराम पाड़े, नियम पटेल, पंचराम, मिलन, तोरण लाल सेन, ग्राम कसही से साहू, ग्राम भालूकोन्हा से ब्रिजलाल कोस्मा, ग्रामडौंडी लोहारा से नवाब जिलानी ने केंद्र सरकार के विरोध में नाराबाजी करते हुए किसान विरोधी काला कानून की प्रतियां जलाई गई। डौडी लोहारा ब्लाक के ग्राम भीमपुरी, जुन्नापानी, बंजारी, कोंडेकसा, भिन्दों में भी काले कानून की प्रतियां जलाई गई।


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