बस्तर के लगभग 33 प्रतिशत वन पूरे छत्तीसगढ़ को बचाए रखा है
हम मौत का सामान जुटा रहे हैं
उत्तम कुमारवास्तव में पर्यावरण के बिगड़ते हालत बड़े विश्वयुद्ध से भी ज्यादा खतरनाक है। जब मनुष्य ही नहीं रहेगा तो वह अपने वर्चस्व और साम्राज्य के लिए युद्ध ही किससे करेगा। और बड़े धनी देशों में औद्योगिकीकरण ने प्रकृति के विनाश के डर को गहरा किया है। विश्व को पर्यावरण के दृष्टि से देखे तो हमारी धरती के भूमध्य, कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच का क्षेत्र, जो पृथ्वी की कुल जमीन का 7 प्रतिशत है उसमें पृथ्वी के आधे वन क्षेत्र सहित आधे से अधिक जैव विविधता को अपने में समाए हुए है, भले ही भूमध्य रेखा पृथ्वी के बीचोबीच है, सूरज की तेजी उसपर सीधे नहीं पड़ती, क्योंकि पृथ्वी 23 अंश झुकी हुई है, इसलिए सूर्य किरणें कर्क और मकर रेखा पर लम्बवत पड़ती है।

पेरिस समझौता से अमरीकी राष्ट्रपति का अलग होने की घोषणा के कदम को सारी दुनिया अपने विनाश के रूप में देख रही है। पर्यावरण सुधार के लिए हुए पेरिस समझौते से अमेरिका औपचारिक रूप से अलग हो गया था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस बाबत की गई घोषणा को पूरा करने वाली आवश्यक समयसीमा और प्रक्रिया पूरी हो गई है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए समझौते पर 197 देशों ने दस्तखत किए थे।
सन 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सक्रिय प्रयास के चलते यह समझौता हुआ था। विकासशील देशों को समझौते पर दस्तखत के लिए तैयार करने में भारत ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पृथ्वी के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए प्रयास करने के इस समझौते पर कुल 197 देशों ने दस्तखत किए थे।
अमेरिका अकेला देश है जिसके राष्ट्रपति ट्रंप ने जून 2017 में इस समझौते से अलग होने की मंशा जाहिर की थी। कहा था कि इस समझौते में शामिल होने के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
चार नवंबर, 2019 को अमेरिका ने इस समझौते से अलग होने का नोटिस संयुक्त राष्ट्र में दाखिल कर दिया था। वास्तव में पर्यावरण के बिगड़ते हालत बड़े विश्वयुद्ध से भी ज्यादा खतरनाक है। जब मनुष्य ही नहीं रहेगा तो वह अपने वर्चस्व और साम्राज्य के लिए युद्ध ही किससे करेगा। और बड़े धनी देशों में औद्योगिकीकरण ने प्रकृति के विनाश के डर को गहरा किया है।
विश्व को पर्यावरण के दृष्टि से देखे तो हमारी धरती के भूमध्य, कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच का क्षेत्र, जो पृथ्वी की कुल जमीन का 7 प्रतिशत है उसमें पृथ्वी के आधे वन क्षेत्र सहित आधे से अधिक जैव विविधता को अपने में समाए हुए है, भले ही भूमध्य रेखा पृथ्वी के बीचोबीच है, सूरज की तेजी उसपर सीधे नहीं पड़ती, क्योंकि पृथ्वी 23 अंश झुकी हुई है, इसलिए सूर्य किरणें कर्क और मकर रेखा पर लम्बवत पड़ती है।
दुनिया के घने वर्षा वन इन्हीं रेखाओं के नीचे हैं जब इस इलाके में औसत ताममान सबसे अधिक होता है, पूरी धरती के तापमान को अवशोषित कर उसे नियंत्रित करने का काम ये वर्षा वन करते हैं। यदि यह कहा जाए कि बस्तर के लगभग 33 प्रतिशत वन पूरे छत्तीसगढ़ को बचाए रखा है और उसके संरक्षक आदिवासी हैं तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिस तेजी से आदिवासियों को खत्म किया जा रहा है यह हमारे मौत को उसी तेजी से सुनिश्चित भी कर रही है। भले आप उसे किसी और नाम से विनाश के कगार में ले जा रहे हो।
पर्यावरण मामलों के जानकार नंद कश्यप कहते हैं कि बिलासपुर का 49.3 डिग्री सेंटीग्रेड में पहुंचना पर्यावरण असंतुलन का बिगडऩा है। यहां के सोनहत से कर्क रेखा गुजरती है 21अंश 47 मिनट उत्तरी अक्षांश से 23 अंश 8 मिनट उत्तरी अक्षांश में स्थित है जो कर्क रेखा के एकदम समीप है सूर्य के उत्तरायण में 1 जून या कभी 2 जून को सूर्य किरणें यहां लम्बवत पड़ती हैं और दक्षिणायन में 11 जुलाई को सूर्य किरणें लम्बवत पड़ती हैं।
प्रकृति ने इसलिए इसे घने वर्षा वनों का सौगात दिया है, ताकि वह सूर्य की सीधी किरणों के ताप को अवशोषित कर इस क्षेत्र को ठंडा रखे। परन्तु हम देखते हैं कि बाक्साइट और कोयला खनन के लिए क्षेत्र में वनों की निर्मम कटाई हुई उस पर बड़ी संख्या में ताप विद्युत गृहों का निर्माण, आज कोरबा जिले में स्थित हसदो वन क्षेत्र की हजारों एकड़ घने वन कोयला खनन के लिए दिया जा रहा है जो न सिर्फ गरमी को और बढ़ाएगा वरन अमानवीय विस्थापन को तेज करेगा।
अंधाधुंश वनों का विनाश पर अंकुश नहीं लगेगा तो हमारी मौत तय है। विकास के नाम पर चमचमाती सडक़ों के निर्माण में विशालकाय वृक्षों का कटना खतरनाक संकेत है और खदानों का बेहिसाब उत्खनन पर्यावरण सहित प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहा है। इस मामले में बस्तर में सुरक्षा बलों और आदिवासियों के बीच टकराव को हमें अविलंब रोकना होगा और आदिवासियों के पक्ष में उठ खड़ा होना होगा।
कांक्रीटीकरण के नाम पर सडक़ों व नहर नालियों के निर्माण ने जमीन के भूजल स्तर को घटाया है। जाने माने अधिवक्ता कनक तिवारी ने लिखा है कि अनुपम मिश्र पर्यावरण से संबंधित तुम्हारी किताबें मेरे पास हैं। इनमें तुम को ढूंढता रहता हूं। तुमने तो पर्यावरण दिवस में पर्यावरण पुरुष होने का खिताब अपने लिए सुरक्षित कर लिया है। लेकिन जो तुम्हारे नाम की डींग मारती हैं सरकारें! किसी सरकार ने तुम्हारे कहने से कुछ नहीं किया।
हमारे छत्तीसगढ़ में तो तालाब मिटाए जा रहे हैं। रायपुर का सबसे बड़ा तालाब बूढ़ा तालाब जिसमें अपनी तरुणाई में विवेकानंद तैरते थे। उसकी छाती पर मूंग दली जा रही है। राजस्थान में तो मरुस्थल उगाए जा रहे हैं। सब कुछ बर्बाद हो रहा है अनुपम! लेकिन तुम आबाद रहोगे इतिहास में।
निवास के नाम पर हम जिस तरह सीमेंटीकरण के रूप में विशालकाय निवास का निर्माण कर रहे है ये सब हमारे विनाश के गहरे बादल का निर्माण मात्र है और कुछ भी नहीं। पानी की कमी और बोतल में पानी पीने की परंपरा हमें पानी के विकराल समस्या की ओर ले धकेलेगा। अप्रत्यक्ष रूप से शौचालय का निर्माण अदृश्य मौत के कुआ का निर्माण कर रहा है। मोटर साइकिल से लेकर चार पहिया वाहनों का उपयोग और घरों में कूलर और एसी के उपयोग दिन पर दिन हमें उन्नति नहीं बल्कि अवनति की ओर धकेल रही हैं।
इसलिए सचेत हो जाए और वैज्ञानिक स्टीफन हाकिन्स की भविष्यवाणी कहीं सच न हो जाए कि यदि हम 100 वर्ष के अंतराल में इस ग्रह को नहीं छोड़ देंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी अस्तित्व भी किसी समय मौजूद डायनासोर की तरह विलुप्त न हो जाए।
कोशिश करनी होगी कि ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते सूरत को बिगडऩे से बनाने के लिए ओजोन छिद्र को बढऩे से रोके, हिमालय के पिघलने को गंभीरता से ले, सुंदर वन के डेल्टा के जलमग्न होने से रोके, पेड़ों को कटने से बचाए, अंधाधुंश खदानों के उत्खनन से बचे और आने वाली पीढ़ी के लिए पानी सहित बुनियादी जरूरतों के लिए काम करें न कि खुद को समृद्ध बनाने की दौड़ में मौत को गले लगाने वाले परिवार, सम्पत्ति और राज्य पर कब्जे की अपनी खतरनाक नीतियों पर गहराई से विचार करें।
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