दल्लीराजहरा में 1977 के ग्यारह शहीदों को याद करेंगे
द कोरस टीमछत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ/छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा 2-3 जून शहीद दिवस-शपथ दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा है। इस वर्ष भी 3 जून 2021 दिन गुरुवार को शहीदों की 44 वीं शहादत दिवस का कार्यक्रम दल्लीराजहरा में आयोजित है।

छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ/छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के बैनर तले आन्दोलनरत मजदूरों पर तातात्कालीन सरकार एवं उनकी पुलिस द्वारा 2 जून रात्रि एवं 3 जून 1977 की दोपहरी में बर्बरतापूर्वक गोली चालन करायी गयी थी, जिसमें बालक सुदामा सहित 11 मजदूर शहीद हो गये थे।
मोर्चा के नेता जनकलाल ठाकुर, नवाब जिलानी, बसंत साहू, प्रेमनारायण वर्मा तथा भीमराव बागड़े ने बताया कि उनकी शहादत के याद में सन् 1978 से अब तक लगातार छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ/छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा 2-3 जून शहीद दिवस-शपथ दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा है। इस वर्ष भी 3 जून 2021 दिन गुरुवार को शहीदों की 44 वीं शहादत दिवस का कार्यक्रम दल्लीराजहरा में आयोजित है।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा तमाम मजदूर किसान छात्र नौवजवान, बुद्धिजीवियों एवं मेहनतकश साथियों व दल्लीराजहरा के आम नागरिकों से अपील है कि 3 जून को सुबह 8 बजे सी.एम.एस.एस. (छत्तीसगढ़ माइन्स श्रमिक संघ) यूनियन कार्यालय में शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभा/संकल्प सभा में कोविड 19 कोरोना वायरस के तहत् शासन-प्रशासन के लॉकडाउन नियमों का परिपालन करते हुए कार्यक्रम में उपस्थित होकर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करने की अपील की है।
आगे कहा है कि कोविड 19 कोरोना वायरस के तहत् शासन-प्रशासन के लॉकडाउन नियमों का परिपालन करते हुए कार्यक्रम में उपस्थित होने की बात कही है।
1977 में दल्ली राजहरा के शहीदों की कहानी
छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के जन्म के बाद घर बनाने के लिए बांस बल्ली भत्ता की मांग लेकर आंदोलन कर रहे मजदूरों के आंदोलन को तोडऩे के लिए 2 जून, 1977 को यूनियन दफ्तर से पुलिस ने शंकर गुहा नियोगी को अगवा कर लिया।
अपने नेता की रिहाई की मांग को लेकर मजदूरों ने पुलिस के एक दल को घेर लिया। उस घेराव को तोडऩे के लिए पुलिस ने पहली बार 2 जून की रात, फिर अगले दिन जिला शहर से भारी पुलिस वाहिनी के आने के बाद दूसरी बार मजदूरों पर गोली चला कर घेराव में कैद पुलिसवालों को निकाला।
2-3 जून के गोलीकांड में ग्यारह मजदूर शहीद हो गये- अनुसुइया बाई, जगदीश, सुदामा, टिभुराम, सोनउदास, रामदयाल, हेमनाथ, समरु, पुनउराम, डेहरलाल और जयलाल। इन शहीदों की स्मृति में 1983 के शहीद दिवस पर शहीद अस्पताल का निर्माण हुआ।
मजदूर किसान मैत्री के प्रतीक खदान के सबसे वरिष्ठ मजदूर लहर सिंह और आसपास के गांवों में सबसे बुजुर्ग किसान हलाल खोर ने अस्पताल का शिलान्यास किया। उसदिन श्रमिक संघ के पंफलेट में नारा दिया गया- ‘तुमने मौत दी,हमने जिंदगी’- तुम शासकों ने मौत बांटी है, हम जिंदगी देंगे।
मजदूरों के श्रम से ही कोई अस्पताल का निर्माण हो पाता है, किंतु छत्तीसगढ़ के लोहा खदानों के मजदूरों के स्वेच्छा श्रम से बने शहीद अस्पताल ही भारत का पहला ऐसा अस्पताल है, जिसका संचालन प्रत्यक्ष तौर पर मजदूर ही कर रहे हैं। शहीद अस्पताल का सही मायने यह हुआ- ‘मेहनतकशों के लिए मेहनतकशों का अपना कार्यक्रम’।
अस्पताल शुरु होने से पहले डिस्पेंसरी के साथ डा.शैबाल जाना जुड़ गये। अस्पताल शुरु हो जाने के बाद 1984 में डां. चंचला समाजदार भी पहुंच गयीं और उसके बाद पुण्यब्रत गुण, पवित्र गुहा, डॉ. राजीवलोचन, डॉ. बिनायक सेन जैसे चर्चित डॉक्टरों ने इसकी नीवं रखी।
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