आदिवासी संघर्ष को समझने और सुनने के लिए धैर्य चाहिए
प्रियंका शुक्लादरअसल लोगो को मसाला चाहिए, और आदिवासी संघर्ष को समझने और सुनने के लिए धैर्य चाहिए होता है। सीधी सादी ज़िन्दगी जीनेवाला आदिवासी, कथित मुख्यधारा वालो को मसाला नही दे पाते।

उनकी बेटियों के साथ बलात्कार भी हो जाये, तो वो हम कथित संवेदनशील लोगों की तरह रियेक्ट नही कर पाते
रियेक्ट करे भी तो कैसे, ये हम बताते है।
क्योंकि उनका अपना रियेक्ट करने का तरीका, हम कथित प्रगतिशील लोगो को, नेचुरल नही लगता।
सही है, हमारे घर का एक व्यक्ति बीमारी से भी मर जाये, तो हम दहाड़े मारकर रोते है, महीनों सब काम भूल जाते है।
पर ये आदिवासी किसान भाई, बहने है कि हमारे तरह कथित नेचुरल व्यवहार करने के बजाय, घर वापस जाने के बजाय, तेरहवीं और दशगात्र पर रिश्तदारों को इकट्ठा करके खाना खिलाने के बजाय, कैम्प का विरोध करने में अभी भी लगे है।
मारे गए लोगो की हत्या की जांच की मांग कर रहे है।
सही है, जब हमारे तरह व्यवहार नही करते, हमारे तरह दुख प्रकट नही कर पाते, तो आखिर क्यों हम उनके साथ खड़े हो...
सही, चुप ही रहिये, मरने दीजिये, आप तो बस दिल्ली से देश देखिये।।
समझते रहिये कि आपके कहने से, फलाना पर हटा दिया गया।
पर बता दूं कि कार्यवाही तो उस पर भी नही हुई है।
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