सैन्य कैम्प का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर फायरिंग की जाँच करो, दोषियों के खिलाफ हत्या का अपराधिक मामला दर्ज करो
पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा के संवैधानिक दायित्व का पालन करे सरकार : छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन
द कोरस टीमसुकमा – बीजापुर सीमा पर स्थित सिलेगर गाँव में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा स्थापित किए गए केम्प के विरोध में प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण आदिवासियों पर सुरक्षा बलों द्वारा की गई फायरिंग की घटना का छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन कड़े शब्दों में भत्सर्ना कर इसकी उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमिटी गठित कर तत्काल, समयबद्ध जाँच की मांग करता है।

सैन्य कैम्प का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर फायरिंग की उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमिटी गठित कर तत्काल समयबद्ध जाँच करो, दोषियों के खिलाफ हत्या का अपराधिक मामला दर्ज करने की बात हो रही है।
फायरिंग में मारे गए आदिवासियों के परिजनों को सरकार तत्काल मुआवजा राशि प्रदान करे। घायलों के बेहतर इलाज की व्यवस्था कर उनको भी मुआवजा दिया जाये।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करता है और सरकार से अपेक्षा रखता है कि वह आन्दोलनरत आदिवासियों के साथ व्यापक विचार- विमर्श कर न सिर्फ उनकी चिन्ताओं का समाधान करेगी, बल्कि सुरक्षा बलों के द्वारा हो रहे दमन को रोकने कड़े कदम भी उठायेगी।
पिछले कुछ वर्षो से बस्तर में आदिवासी समुदाय का सरकार के खिलाफ न सिर्फ आक्रोश बढ़ता जा रहा है, बल्कि खनन परियोजनाओं और नए कैम्पों की स्थापना के खिलाफ मुखर विरोध भी हो रहा है।
राज्य सरकार आदिवासी आंदोलनों की मांगो को संवेदनशीलता के साथ विचार करने के बजाए उन्हें माओवादी बताकर दमन का रास्ता अपना रही है। बस्तर के मामले में वर्तमान सरकार पूर्ववर्ती रमन सरकार के रास्ते पर ही चलने की कोशिश कर रही है, जिसका परिणाम है कि आज भी फर्जी मुठभेड़ और दमन यथावत जारी है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के नंदकुमार कश्यप, विजय भाई, संजय पराते, रिनचिन, रमाकांत बंजारे, आलोक शुक्ला ने कहा है कि बस्तर संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है, जिसमें आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन की रक्षा के साथ उनकी आजीविका व संस्कृति की सुरक्षा के विशेष प्रावधान हैं।
इसके लिए विशेष उपबंध बनाने के लिए भी सरकारों को भूमिकाएं दी गई हैं।छत्तीसगढ़ सरकार को, जो आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की प्रतिबद्धता जताकर ही सत्ता में काबिज हुई है, को बस्तर के आदिवासियों के साथ बातचीत कर उनकी चिंताओं और समस्याओं को दूर करके विश्वास का माहोल तैयार करना चाहिए।
बैलाडीला से लेकर बोधघाट तक उन समस्त परियोजनाओं को तथा सैन्य कैम्पों का, जिनका आदिवासी मुखरता से विरोध कर रहे है, उन्हें सरकार को वापिस लेना चाहिए, जिससे आदिवासियों का भरोसा सरकार पर कायम हो।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का मानना है कि बस्तर की समस्या कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि सर्वसमावेशी और टिकाऊ विकास की विफलताओं से पैदा हुई समस्या है।
बस्तर में बढ़ते अर्धसैनिक कैम्प न सिर्फ दमन और हिंसा के प्रतीक हैं, बल्कि वह आदिवासियों को अलग-थलग कर उनके भीतर असुरक्षा पैदा करेगा और उन्हें हिंसा के लिए प्रेरित करने का काम करेगा। इसलिए सरकारों को आदिवासियों को विश्वास में लेकर विकास के स्वरुप में बदलाव लाने की जरूरत है, न कि कैम्प बढ़ाने की।
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