हार्वर्ड फास्ट के अनुवादक लाल बहादुर वर्मा अब नहीं रहे
सियाराम शर्मा, आलोचकयह अत्यंत ही अविश्वसनीय, अस्वीकार्य, अशांत और भीतर से आंदोलित कर देने वाली खबर है कि प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी, जन पक्षधर इतिहासकार, श्रेष्ठ शिक्षक, कुशल संपादक, बेहतर लेखक, प्रखर वक्ता और उससे भी बेहतरीन इंसान और सब के सच्चे दोस्त लाल बहादुर वर्मा अब हमारे बीच नहीं रहे।

दिल्ली के किसान आंदोलन से अपना लगाव और जुड़ाव जाहिर करते हुए उनके देहरादून जाने और कोरोना से संक्रमित होने की सूचना भाई रविंद्र शुक्ल के माध्यम से मुझे पहले से थी पर मन में गहरा विश्वास था कि वे एक योद्धा की तरह करोना की जंग जीत कर बाहर आएंगे और फिर से एक साथ कई सांस्कृतिक मोर्चों पर सक्रिय हो जाएंगे।
साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैचारिक और बौद्धिक क्षेत्र में उन्होंने जो निरंतर कार्य किया वह एक व्यक्ति से बढ़कर बहुत बड़ी संस्था का कार्य है। पढ़ने -लिखने की जब से होश संभाली वे एक इतिहासकार के रूप में विख्यात थे।
वे 'भंगिमा' पत्रिका का संपादन पहले ही कर चुके थे पर उनसे मेरे जुड़ाव का माध्यम 'इतिहास बोध' पत्रिका बनी। 90 के दशक के आखिरी वर्षों में जब सोवियत संघ में समाजवाद का विघटन हुआ तब उसी पत्रिका ने हमें यह समझ दी कि समाजवाद के ऊपरी खोखल के भीतर यह संशोधनवादी पूंजीवाद का पराभव है। इस पत्रिका से जुड़ाव ने ही 90-91 के उस निराशावादी माहौल में मुझे 'समाजवाद का संकट और मार्क्सवाद' जैसी पुस्तिका लिखने के लिए प्रेरित किया।
इसी जुड़ाव ने 1857 के 140 वीं वर्षगांठ पर जन संस्कृति मंच द्वारा भिलाई में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित करने का अवसर दिया और उन्हें नजदीक से जानने समझने का अवसर मिला। आगे चलकर यह जुड़ाव साझा सांस्कृतिक अभियान और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से भी बना रहा।
इतिहास की समझ को एक आंदोलन का रूप देने वाले और वर्तमान से उसे जोड़ने वाले वर्मा जी ने अपने लेखन कार्य के साथ-साथ एरिक हॉब्सबाम की ऐतिहासिक श्रृंखला की पुस्तकों के सफल संपादन एवं 'एज ऑफ एक्सट्रीम 'और 'द एज ऑफ रिवोल्यूशन' का अनुवाद कर उसे हिंदी पाठकों के लिए सुलभ कराया। हार्वर्ड फास्ट के 'अमेरिकन', 'तीन क्रांतियों का प्रवक्ता टॉम पेन' 'अपराजित 'और 'बसंती सुबह 'का उन्होंने बेहतरीन अनुवाद किया।
उन्होंने वितक्टर ह्यूगो के प्रसिद्ध उपन्यास 'ले मिजरेबल' का भी अनुवाद किया। उनके अनुवादों की श्रृंखला में जैक लंडन के उपन्यास 'आयरन हील' को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बाद में वे पूर्वोत्तर चले गए और उन्होंने 'उत्तर पूर्व' जैसा महत्वपूर्ण उपन्यास लिखा। 'मई अड़सठ पेरिस' उनका अन्य महत्वपूर्ण उपन्यास है ।
लाल बहादुर वर्मा सिर्फ विचारों से ही नहीं अपने व्यक्तित्व और व्यवहार से भी सच्चे वामपंथी थे। उनके विचार, व्यवहार और कार्य को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे हमारे सोच, विचार और आचरण में हमेशा शामिल रहेंगें।
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