ख़ुद के साथ खड़ा होना सीखो

नेहा साहू, रंगकर्मी

 

आज भी इनकी सुरक्षा के हज़ारों सवाल खड़े हैं।

क्या किसी महिला की इज़्जत करने के लिए ज़रूरी है कि वो हमारी मां, बहन, बीवी या बेटी हो।

क्या इतना काफी नही की वो एक औरत है?

क्यों किसी लड़की के साथ ग़लत हो जाने पर उसका साथ दिये जाने के बजाय उसके चरित्र, दिनचर्या और पहनावे पर सवाल उठाए जाते हैं।

ज़माना तो आगे आ गया पर ज़माने की सोच और इसकी मान्यताएं आज भी कहीं बहुत पीछे रूकी हुई हैं।

आज भी महिलाओ की सुरक्षा के लिए उन्हें पिता, भाई या पति की ज़रूरत पड़ती है।

जो लोग आज भी कहीं रूके थमे विचारों का प्रोत्साहन और पालन कर रहे हैं।

उन्हे ये बात समझनी होगी की स्कूल-काॅलेज में पढ़ने वाली, मार्केट में सामान ख़रीदने-बेचने वाली, सड़क पर चलने वाली, सिनेमा हाॅल में फिल्म देखने वाली औरत, उसके आंख सेंकने का सामान नही बल्कि ज़िम्मेदारी है।

उसके बुरे वक्त में उसकी मदद करने की और समझदारी है ज़रूरत पड़ने पर उससे मदद लेने की। 

कुछ कुमानसिकता और प्रतिबंधो ने महिलाओ को  कमज़ोर कर दिया है।

अब वक्त है की इन्हें अपने लिए खड़ा होना होगा।

चाहे हम कितना भी नारी सशक्तिकरण की बांतें कर लें।

चाहे कितना भी सेल्फ डिफेंस सिखा लें पर जब तक नारियां अपने लिए खड़े होना नही सीखेंगी तब तक असमाजिक तत्व उनकी अस्मिता और अस्तित्व को यूं ही कुचलते रहेंगे।

इसलिए स्वयं शिाक्षित होओ और अपने आसपास की बच्चियों को शिक्षित करो और उन्हें शिक्षा का महत्व समझाओ। 

उस दहलीज को लांघो जो बेड़ियां बनकर तुम्हारे पैरों में पड़ी हैं और तुम्हें अबला बनाकर रखे हुए है।

मन बना लो तो क्या नही हो सकता।

ख़ुद के साथ खड़ा होना सीखो ज़माना तुम्हारे साथ ख़ुद ब ख़ुद खड़ा होगा।

                                                                                                                               


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