क्या ईद खुशियों का त्योहार है?

शकील प्रेम

 

हज हो या कुम्भ होली हो या ईद यह सब दिमागी गुलामी का परिणाम ही तो हैं जिन समाजों ने अपने तमाम लोगों को खुशियां बांट दी हों सिर्फ उन्हें ही हक है की वे उल्लास करें या खुशियों का त्योहार मनायें लेकिन जो समाज अभी तक सभ्य ही न बन पाया हो वह अगर उल्लास करे उत्सव मनाए या खुशियों का त्योहार मनाए तो यह उसका मानसिक दिवालियापन ही है.

ईद अगर खुशियों का त्योहार है तो अभी तक सभी मुसलमान खुश क्यों नही हो पाये? 14 सौ साल में 14 सौ ईद मनाने के बाद भी खुश न हो पाये तो कैसी ईद? एक दिन के लिए नए कपड़े पहन लेना या मस्जिदों के बाहर सड़कों को जाम कर नमाज अदा कर लेना जकात इमदाद सदका खैरात बांट कर खुद को बड़ा नेकदिल समझ लेना और एक दिन के लिए एकदूसरे से गले मिलकर भाईचारे का दिखावा कर लेना क्या यही है खुशियों की ईद ? बाकी 364 दिन कौन किस हाल में है इसकी चिंता न तो मुसलमानों को है न अल्लाह को कोई मरता है तो मरे कोई दुखी है तो होता रहे किसी को कोई मतलब नही.

14 सौ साल पहले कोई बता गया था और हमे एक आसमानी किताब थमा गया था इसलिए हमें वह सब करते चले जाना है जिसका आज की दुनिया से कोई मतलब नही यह भेड़चाल नही तो और क्या है? 11 सौ साल पहले किसी ने हदीसें लिख दी थीं जिसके आधार पर हम सीरतुन्नबी पर चले जा रहे हैं यह भेड़चाल नही तो और क्या है? सदियों से हम अलग अलग फिरकों में बंटे हुए एक दूजे को झुठा साबित करने की जद्दोजहद कर रहे हैं और दुनिया भर को भाईचारे की तालीम देते हैं यह जहालत नही तो और क्या है? शिया सुन्नी बरेलवी देवबन्दी कादियानी सभी का खुदा मुहम्मद कुरान एक ही है लेकिन 364 दिन हम आपस में खूब लड़ते हैं और अपनी अपनी जहालत को बढ़ाते हुए लगातार दुखों को पैदा करते जाते हैं फिर एक दिन ईद के नाम पर खुशियों का त्योहार मना लेते हैं और खुद को मुसलमान कह कर फख्र करते हैं न कुछ सीखते हैं न कुछ सबक लेते हैं यह सब क्या है ?

पिछली ईद के बाद ही सीरिया में 10 लाख से ज्यादा मुसलमान मारे गये हैं पाकिस्तान में कई मस्जिदों में धमाके हुए इस दौरान यमन फिलिस्तीन सूडान लेबनान अफगानिस्तान इराक ईरान इन देशों में भी लाखों की तादाद में मुसलमान मारे गये हैं सब उसी अल्लाह के नाम पर हुआ जिसके लिए आज फिर से खुशियों की ईद मनाई जा रही है और खुशियों की इस ईद के बाद अगले 364 दिनों तक वही दुखों का इस्लाम अनवरत चलता रहेगा.

त्योहारों के जरिये भीड़ की मानसिक गुलामी को हर साल चेक किया जाता है इस काम में तमाम धार्मिक गिरोह बड़े माहिर होते हैं वे साल भर अपनी अपनी भेड़ों की कंडीशनिंग पर ध्यान रखते है और उनपर अपनी पकड़ ढीली नही होने देते जिसका परिणाम होता है की भक्तों की भीड़ त्योहारों के नाम पर हर साल इकट्ठी होकर अपनी दिमागी गुलामी का प्रदर्शन करती रहती है.

त्योहार प्रकृति के विरुद्ध तो होते ही है साथ ही ये मनावस्वभाव के भी विरुद्ध होते हैं धर्म के नाम पर भीड़ द्वारा किये गये व्यर्थ के जमावड़े से न तो मानव समाज का कोई लाभ होता है और न ही कुदरत का कुछ भला होता है बल्कि किसी खास दिन खास तरह के हुड़दंग से (जिसे हम खुशियों का त्योहार कह कर इतराते हैं) मुट्ठीभर परजीवियों का भला होता है जो सदियों से इन फिजूल की मानवीय बेवकूफियों पर पोषित होते आ रहे हैं.

एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हमे यह बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए की इंसानों की सामूहिक चेतना से समाज समृद्धि की ओर आगे बढ़ता है और इंसानी भीड़ की बेवकूफियों से समाज का हमेशा सर्वनाश ही होता है.


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment