दिल्ली की सीमा सिंघु बार्डर पर जारी किसान आंदोलन
तेजराम विद्रोहीकिसानों का आंदोलन जारी है यह आंदोलन अब केवल किसानों का न होकर जन आंदोलन का स्वरूप ले लिया है इस आंदोलन के कई सारे पहलू हैं जिसे अलग अलग भागों में लिखते हुए आपके बीच लाने का कोशिश करूंगा मेरा पूरा जोर रहेगा कि सभी वास्तविकता से अवगत होते रहे।

केन्द्र सरकार द्वारा कृषि सुधार के नाम पर पारित कानून आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020, कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020, और मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर करार (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अधिनियम 2020 को रद्द करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून लागू करने की मांग को लेकर दिल्ली सीमाओं जैसे सिघु-कुंडली, गाजीपुर, टिकरी, शाहजहांपुर, पलवल जो विभिन्न राज्यों को नेशनल हाईवे के जरिए दिल्ली को जोड़ता है वहां पर किसान 26 नवम्बर 2020 से डटे हुए हैं।
दिल्ली सीमाओं पर पहुंचने से पहले ही या हम ये कहे कि अध्यादेश लाए जाने के बाद व कानून बनने से पहले ही किसान संगठनों ने इस कानून के बारे में कि कैसे कॉरपोरेट हितैषी है, यह कैसे आम उपभोक्ता विरोधी है, कैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदी की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली कैसे समाप्त हो जाएगी जैसे तमाम विषयों को लेकर विरोध करना शुरू कर दिए थे। लेकिन इस विरोध को केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा एक स्वर से किसानों को विपक्षी दलों द्वारा भरमाया जाना बताकर किसानों व किसान संगठनों की विरोध को सुनने से इनकार कर दिया गया। यहां तक कि जब पंजाब के किसानों ने पंजाब में ट्रेन की पटरियों में लेटकर महीनों रेलगाड़ी की परिचालन प्रभावित कर रखे थे तब भी इसे कांग्रेस प्रायोजित कहकर केन्द्र सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
14 सितम्बर को हरियाणा में भाजपा सरकार द्वारा किसानों पर पानी की बौछारें डालकर, पुलिस की डंडो व आंसू गैस के गोलो के जरिए किसानों के आंदोलन को दबाना चाहा जहां पर किसान इतना ही मांग कर रहे थे कि मोदी जी जब आप यह कह रहे हो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य था, है और रहेगा, तो सभी कृषि उपजों की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर नहीं होगी इसकी एक कानून भी बना दो। जैसा कि पंजाब की राज्य सरकार ने अपने विधासभा में अध्यादेश पारित कराया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीदी करने पर जेल जाना पड़ेगा। लेकिन आज तक केन्द्र सरकार इस पर एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं।
किसानों का यह आंदोलन जब दिल्ली की ओर कूच कर गया जिन्हें भारी पुलिस बल, पैरा मिलिट्री फोर्स, सीमा सुरक्षा बलों द्वारा बैरिकेट लगाकर, सीमाओं पर लगाए जाने वाले नुकीले पत्तिनुमा कंटीले तार लगाकर दिल्ली सीमाओं पर किसानों को रोक दिया गया है और तो और 26 जनवरी 2021 के बाद सड़क के सामने, सीमेंट का पक्का दीवाल बनाकर और सरिया का कीले गाड़कर किसानों को किसी भी प्रकार से दिल्ली पहुंचने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है। जबकि ये किसान रामलीला मैदान दिल्ली में अपना विरोध प्रदर्शन करने 26 नवम्बर 2020 को पंजाब व हरियाणा से निकले थे। जिन्हे दिल्ली पुलिस जो केन्द्र सरकार यानी कि गृह मंत्री अमित शाह के अंतर्गत है ने किसानों को बुराड़ी मैदान जाने को कहा जहां किसान अपना विरोध प्रदर्शन करते रहे।
बुराड़ी मैदान एक ऐसा जगह है जहां पर कोई किसी को देखने वाला नहीं है जिसके कारण किसान रामलीला मैदान जाने पर ही अडे रहे। किसानों को प्रदर्शन के लिए रामलीला मैदान पर अनुमति देने के लिए कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी क्योकि वह स्थान बड़े धरना स्थल के लिए जाना जाता है जहां पर अन्ना हजारे ने कांग्रेस सरकार के समय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन किया था, रामदेव ने कालाधन लाने के लिए आंदोलन किया जो आधीरात सलवार सूट पहन कर भाग निकला तब से दोनों किसी आंदोलन से दूर है। लेकिन किसान आंदोलन के लिए रामलीला मैदान में न आने देने से किसान आज दिल्ली सीमाओं पर आंदोलन को मजबूर है।
सरकार और किसानों के बीच 11वें दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है। हालांकि इस बीच सर्वोच्च न्यायालय की ओर से कानून को स्थगित रखते हुए चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया जो सरकार द्वारा लाये गए कानून के संबंध में छानबीन कर न्यायाल में अपना प्रतिवेदन रखते। लेकिन किसानों के प्रतिनीधि मंडल को यह मंजूर नहीं हुआ क्योंकि न्यायालय ने जिन लोगों को लेकर कमेटी बनाया उन पर ही सवाल है कि उनका नाम किसने प्रस्तावित किया और जिनका नाम कमेटी में शामिल हैं उनका इस कानून के संबंध में क्या राय है। यहां हम उनके राय भी रख देते हैं- पहले सदस्य भूपिंदर सिंह मान का कहना है कि ' कृषि को प्रतियोगी बनाने के लिए ये कृषि सुधार जरूरी है ' ।
अनिल धनवट का कहना है कि " इन कृषि कानूनों ने किसानों के लिए किसानों के लिए अवसरों के दरवाजे खोल दिए हैं, इन्हें वापस लेने को कोई जरुरत नहीं है"। अशोक गुलाटी कहते हैं कि " इन कानूनों का आर्थिक औचित्य यह है कि ये किसानों को अपने उत्पाद बेचने और खरीददारों को खरीदने और भण्डारण करने के ज्यादा विकल्प और स्वतंत्रता उपलब्ध कराने वाले हैं और इस तरह कृषि व्यापार को ज्यादा प्रतियोगी बनाने वाले हैं।" कमेटी के चौथे सदस्य डॉ पी के जोशी का मानना है कि इन कानूनों को कमजोर करने की कोई भी कोशिश भारतीय कृषि को उभरते हुए वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने में बाधा डाल देगी।" न्यायालय द्वारा बनाए गए कमेटी के सदस्यों की विचारों से किसानों का प्रतिनिधि मंडल भाली भांति वाकिफ थे। जिस तरह बिल्ली दूध की सुरक्षा नहीं कर सकती है ठीक वैसा ही अनुमान किसानों को कमेटी से है। हालांकि किसानों के दबाव में कमेटी का एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान कमेटी से अलग हो गया।
सरकार और किसानों के बीच बातचीत का शिलसिला उस दिन से बंद सा हो गया है जब सरकार की तरफ से यह प्रस्ताव दिया गया कि कानून को डेढ़ साल तक स्थगित रखा जाएगा इस बीच किसान, सरकार और विशेषज्ञों का एक कमेटी बनाया जाएगा जो इन कानूनों पर विचार विमर्श कर आवश्यक बदलाव पर विचार करेगी। यह प्रस्ताव भी ठीक वैसे ही थे जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पेशकश किया गया था। लेकिन इस प्रस्ताव में भी इस बात का आभाव है कि पूरे साल भर मंडी के बाहर या मंडी के भीतर न्यूनतम समर्थन मूल्य में सभी कृषि उपजों की खरीदी को कानूनी गारंटी दिया जाए। जैसे कि मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी के सभी नेता यह कहते नहीं थकते की न्यूनतम समर्थन मूल्य था, है और रहेगा लेकिन सरकार खरीद की गारंटी देने की बात पर चुप्पी साध रखे हैं।
(भाग ')
लेखक अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव हैं।
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