ग्रामीण चिकित्सकों पर कार्यवाही अजीब! अस्पतालों में इलाज तो दूर जांच भी नहीं

विप्लव साहू

 

कोरोना से पूरी दुनिया प्रभावित है, लेकिन भारत ने सारे रिकॉर्ड तोड़ रखे हैं. स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की क्या हालत है सब जानते हैं, जांच नहीं होने से लेकर लाश देने तक मे स्वास्थ्य सेवा बेहाल है. आठों काल-बारहों महीनों, रात आपातकाल में इन्ही झोलाछाप के पास ये ही ग्रामीण इलाज के लिए आते हैं, और बाद में अखबारों में उनके खिलाफ हेडलाइन बनने पर उन्हें गरियाते भी हैं.

बीते 1 महीनों से जांच केंद्रों में सबकी जांच भी नहीं हो पा रही है, सैंकड़ो लोगों को लंबे लाइन में लगाकर बिना जांच किये वापस घर जाना पड़ा है, बिना रिपोर्ट के डॉक्टर मरीजों को देख भी नहीं रहे. व्यवस्था से निराश होकर जनता घर मे जैसे-तैसे दिन काटते-मरते ग्रामीण डॉक्टरों से थोड़ा बहुत इलाज करवा लेते है, तो गलत क्या है!

आखिर जिम्मेदार कौन? 

अगर ग्रामीण इनसे इलाज करा रहे हैं? अगर वे आम शब्द में झोलाछाप हैं तो इसके जिम्मेदार अतीत की सरकारें ही है जिनकी घटिया नीतियों से बेरोज़गार होकर इस क्षेत्र को अपनाना पड़ता है.

देश में 11000 हजार आदमी पर एक क्वालीफाई डॉक्टर, 900 आदमी पर एक नर्स हैं. एक साल में देश मे हमने मात्र 19461 वेंटिलेटर, 8648 ICU बेड और 94880 ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड बन पाया. 

इमरजेंसी में ये ही उपलब्ध  

आठों काल-बारहों महीनों, रात आपातकाल में इन्हीं झोलाछाप के पास ये ही ग्रामीण इलाज के लिए आते हैं, और बाद में अखबारों में उनके खिलाफ हेडलाइन बनने पर उन्हें गरियाते भी हैं यह विडंबना है.

स्वास्थ संरचना को दुरुस्त किये बिना ग्रामीण चिकित्सकों को पूरी तरह बन्द कभी नही किया जा सकता. बेहतर यही है कि उन्हें कुछ गाइडलाइन दिया जाए ताकि केस ज्यादा न बिगड़े।


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