वे बेबाकी से लिखते थे और बेलाग बोलते थे।

संजय पराते

 

उनकी पत्रकारिता जन पक्षधर पत्रकारिता थी। लेकिन पत्रकार से पहले वे एक कामरेड थे और आखिरी सांस तक कॉमरेड बने रहे।

वामपंथ से उनका जुड़ाव छत्र संगठन एसएफआई के जरिये हुआ। वे बेहद मिलनसार थे और अदभुत संगठन क्षमता के धनी उनकी इस खासियत को संगठन के नेताओं ने पहचाना एसएफआई के निर्माण में उनका अभूतपूर्व योगदान था।

आपातकाल के बाद 1980 के दशक में बिलासपुर में एसएफआई एक प्रमुख और मजबूत छात्र संगठन था शासकीय महाविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में पूरे पैनल के साथ एसएफआई मैदान में उत्तरी गणेश तिवारी सचिव पद के प्रत्याशी थे।

वे जीते और भारी बहुमत से जीते। इसी से उनकी लोकप्रियता का अंदाज लगाया जा सकता है। बिलासपुर, एसएफआई ने वामपंथी आंदोलन को जो तीन हीरे दिए उनमें से एक हीरा गणेश तिवारी थे।

जब मैं एसएफआई के जरिये वाम आंदोलन से जुड़, वे वरिष्ठ थे और मार्गदर्शक भी रेलों में किस तरह रैलियां लानी ले जानी है, किस तरह इन रैलियों में शामिल लोगों का ध्यान रखना है, और यह भी ध्यान रखना कि हमारे कारण किसी भी रेल यात्री को कोई परेशानी न हो चाहे वह आरक्षित हो या अनारक्षित यह सब उन्हीं से सीखा ठसाठस भरे डिब्बे में हर स्टेशन पर कुछ यात्रियों को घुसने देने की गुंजाइश बनाने की कला भी उन्हीं से सीखी।

इन डिब्बों में वे हमारे साथ ही रहते थे और हमारा जतन भी उसी तरह करते थे, जैसा कोई बुजुर्ग घर के किसी नवजात सदस्य का करता है। बिना कोई अहसास दिलाये वह सब सीखा गए, जो

गणेश तिवारी : याद रहेगा ये मुस्कुराता चेहरा

देश में आपदा ने दस्तक तो पिछले साल ही दे दी थी किन्तु हम न चेते और न जागे हमारे देश में नगर नियोजन यूरोप या अमरीका जैसा नहीं है। हमारे यहां अब्बल तो शहरों की बसाहट किसी दीर्घ योजना के तहत

नहीं होती और ऊपर से नियस्मृति शेष

एक अच्छा वामपंथी कार्यकर्ता बनने के लिए जरूरी है। इस % सीखने में पढ़ने की एक बड़ी प्रेरणा भी उन्हीं से मिली 1979 में बिलासपुर में एसएफआई का राज्य सम्मेलन हुआ था और मैं उस सम्मेलन में शामिल होने वालों में रायपुर से अकेला छत्र था। तब मैं 9वीं का छात्र था। इस सम्मेलन में 'कुछ' बोलने के लिए उन्होंने ही प्रोत्साहित किया था।

छात्र जीवन के बाद कुछ समय तक वे पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी रहे। इस दौरान कुसमुंडा- गेवरा-चाकी मोंगरा इलाके में कोयला मजदूरों को संगठित करने का काम भी उन्होंने किया। लेकिन वे

अक्खड़ थे। इस अक्खड़पन ने उन्हें पत्रकारिता के पेशे में धकेल दिया। इस क्षेत्र में उन्हें अपनी प्रतिभा का उपयोग करने का भरपूर मौका मिला।

वे सफल पत्रकार साबित हुए। लेकिन इस पत्रकारिता में भी उनकी पक्षधरता स्पष्ट थी औरों की तरह न वे निष्पक्ष पत्रकार थे, और न निरपेक्ष पत्रकार नवभारत में उपसंपादक के पद पर काम करते हुए भी उन्होंने पत्रकार जगत से जुड़े श्रमजीवी पत्रकारों व कर्मचारियों को संगठित करने, उनकी समस्याओं पर लड़ने और जरूरत पड़ने पर प्रबंधन से टकराने का भी काम किया। अपनी ईमानदारी

और विशिष्ट छवि के साथ वे बिलासपुर में वामपंथी आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे। शायद ही ऐसा कोई आंदोलन हो, जिसमें उनकी उपस्थिति दर्ज न की गई जीवन और व्यवहार के प्रति उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक था, इसलिए हर प्रकार के अवैज्ञानिक व्यवहार, सांप्रदायिकता और धर्माधता के खिलाफ खड़े रहे।

बिलासपुर एसएफआई ने वामपंथी आंदोलन को जो तीन हीरे दिए उनमें से एक हीरा गणेश तिवारी उनका जाना बामपंथी आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

एक शोषणमुक्त, समतामूलक समाज को बनाने की तड़प उनमें भरी हुई थी। यह तड़प उन्हें राजनीति में किसी भी समझौते के खिलाफ खड़ा करती थी। इसीलिए जहां उन्हें लगा कि वामपंथ अपने मूल्यों या सिद्धांतों के साथ कुछ समझौता कर रहा है, उसकी सार्वजनिक आलोचना से भी वे कभी नहीं चूके।

ऐसी आलोचना के कारण उन्हें दूसरे साथियों की नाराजगी भी झेलनी पड़ती थी, लेकिन वे कभी नाराज नहीं हुए और न ही किसी व्यक्ति को उन्होंने कभी निशाना बनाया। बस मुस्कुराते रहे। उनकी यह मुस्कान व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनिक थी। इस मुस्कान में उनका बौद्धिक अक्खड़पन अंत तक कायम रहा।

पत्रकारिता के साथ ही सोशल मीडिया में भी वे काफी सक्रिय थे। देश-दुनिया की ताजा खबरें हमें उनकी पोस्टों से ही सबसे पहले मिलती थी, लिंक के साथ दूसरे दिन के सबेरे के अखबार तो केवल उनकी पोस्टों का दुहराब भर बन जाते थे। कोरोना बीमारी जरूर है, लेकिन इसे महामारी और सांघातिकता का रूप देने में भाजपा की मोदी सरकार का ही योगदान है।

मुनाफे की हवस ने इस देश के दो लाख से ज्यादा बहुमूल्य जिंदगियों बेहतरीन और प्रतिभाशाली कलाकमियों, साहित्यकारों, संगीतज्ञों, संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों डॉक्टरों, इंजीनियरों, शिक्षकों को हमसे छीन लिया हैं। इनमें से एक गणेश तिवारी भी हैं। वामपंथी आंदोलन के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।

लेखक छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव हैं


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