खरीदने के लिए टीका उपलब्ध ही नहीं तो अमीर-गरीब का तर्क कैसा?

राजेश राज

 

सवा लाख वैक्सीन है, लगना करोड़ों लोगों को है। महामारी पर काबू भी पाना है। हर किसी की जान भी बचानी है। ऐसे में फैसला सोच विचार कर किया जाना था। फैसला ऐसा होता कि हर वर्ग के लोगों को संतोष होता, उनके साथ पक्षपात का अहसास न होता, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं.

छत्तीसगढ़ में अभी भी कोरोना वॉरियर कहे जाने वाले हजारों लोग टीके से वंचित हैं। इनमें शिक्षक, मीडियाकर्मी, सफाईकर्मी जैसे लोगों से लेकर मेडिकल दुकानों पर काम करने वाले, सब्जी बेचने वाले, ऑनलाइन सामानों की डिलिवरी करने वाले, राशन, फल, दूध बेचने वाले तक शामिल है।

पूरे कोरोना काल में शिक्षकों की ड्यूटी अस्पताल से लेकर कोविड सेंटर, और कांट्रैक्ट ट्रेसिंग से लेकर दवा-किट वितरण तक लगाई गई। लेकिन इन्हें टीका नहीं लगाया गया। दावा है कि 378 शिक्षकों ने कोरोना से जान दी है।

जितने सरकारी कर्मचारी कोरोना से मरे हैं, उनमें आधी संख्या इन्हीं की है। क्या ये उपेक्षा अमानवीय नहीं। केंद्र सरकार ने नहीं सुनी, लेकिन अब जब मौका राज्य सरकार के पास है, तब भी पहल नहीं,क्यों।

मीडियाकर्मी जान जोखिम में डालकर खबर कवर कर रहे हैं। सरकार का संदेश जनता तक पहुंचा रहे हैं, कोरोना व्यवस्था पर जनता को जागरुक कर रहे हैं। लोगों के दुख-तकलीफ को आवाज देते संक्रमितों और उनके परिजनों तक पहुंच जा रहे हैं। इतने हाई रिस्कके बाद भी सरकार इनकी भी सुध लेने को तैयार नहीं है।

मेडिकल दुकानों पर काम करने वाले लोग, ऑनलाइन डिलिवरी में शामिल लोग, घर घर तक राशन, दूध, सब्जी पहुंचाने वाले लोग, वित्तीय हालात को संभाले बैंक कर्मचारी.. ये सारे लोग फ्रंट लाइन वर्कर हैं और प्राथमिकता से टीका पाने के अधिकारी हैं। इसलिए नहीं कि केवल इनकी और परिवार वालों की जान खतरे में हैं, इसलिए भी कि ये वर्ग संक्रमित रहा तो सुपर स्प्रेडर की तर संक्रमण फैलाने का जोखिम भी है।

जब टीके कम हैं और महामारी की चुनौती है तो सरकार तार्किक आधार पर फैसला करना चाहिए था। इन्हें टीका देकर लोगों की जान भी बचाई जा सकती है, संक्रमण भी कम किया जा सकता है। फिर इन लोगों में गरीब, अंत्योदय वर्ग के लोग भी तो शामिल हैं।

महामारी पर नियंत्रण का प्रयास भी होता, गरीबों का ध्यान भी रख लिया जाता।

लेकिन सरकार ने जो फैसला लिया उससे प्रदेश के बहुत सारे लोग सहमत नहीं दिख रहे हैं। राजनीतिक विरोध तो हो ही रहा है, बड़ी संख्या में आम लोग भी इस फैसले के विरोध में सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं। सवाल है, अच्छी मंशा होने के बावजूद सरकार के फैसले से लोग खफा क्यों हैं। बहुत संभव है, सरकार ने व्यवहारिक फैसला लेने में चूक की है।

एक और बिंदु है, जिस पर सरकार और उसके संवेदनशील अंग को ध्यान देना होगा। यह महामारी काल है। जान अमीर-गरीब, सवर्ण-विपर्ण सभी की जा रही है।

तो ख्याल भी सबका एक साथ रखा जाना चाहिए। टीका कम है, सिर्फ इस आधार पर समाज के एक बड़े तबके को यूं ही निस्सहाय नहीं छोड़ा जा सकता है।

चुंकि सरकार के अतिरिक्त टीका कहीं अन्यत्र मौजूद नहीं है, इसलिए यह तर्क दो दिया ही नहीं जाना चाहिए कि समान्य वर्ग के लोग तो टीका खरीदकर भी लगवा लेंगे, गरीब कहां जाएंगे।टीके की जरुरत आज , हर किसी को है।

इसे सिर्फ एक वर्ग तक सीमित रखना अन्य वर्ग के साथ सीधा सीधा अन्याय होगा। इसलिए जो भी उपल्ब्ध टीका हो, उसे फ्रंट वर्कर को प्राथमिकता से लगाने के बाद, आधे गरीबों के लिए निशुल्क रखा जाए और आधे को समान्य वर्ग के लिए उपलब्ध कराया जाए। समान्य वर्ग के लिए सशुल्क भी रखा जाता है, तब भी इसका विरोध नहीं होगा।

सरकार को एक सिस्टम बनाना ही चाहिए। सरकार के पास विशेषज्ञों की राय प्राप्त करने की सुविधा है। इसमें डॉक्टर, महामारी विशेषज्ञ की सेवा ली जाए। और तय किया जाए कि जैसे जैसे टीके उपलब्ध होते जाएंगे, किन किन वर्गों के लोगों को टीका पहले दिया जाए।

ऐसा कभी नहीं होगा कि राज्य को एक साथ करोड़ों टीके मिल जाए और सबकी आकांक्षा पूरी हो जाए। इसलिए बेहतर हो कि सरकार तर्क सम्मत, सर्व वर्ग हित में सिस्टम तैयार करे और फिर फैसला ले। महामारी में जन आकांक्षाओं को नजरअंदाज करना उचित नहीं।


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