बीएसपी के दोस्तों के नाम
सुदीप ठाकुरमैंने जैसे ही उससे कहा कि तुम्हें कैसा लग रहा है, तुम्हारे भिलाई स्टील प्लांट से ऑक्सीजन सारे देश में जा रही है, मोबाइल पर आ रही उसकी आवाज में गहरा संतोष मैं महसूस कर सकता था।

यह आलोक श्रीवास्तव Alok Shrivastava है, मेरे बचपन का दोस्त और भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत सीनियर मैनेजर। उसके लिए एक पत्रकार का यह सवाल चौंकाने वाला था, क्योंकि भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत सैकड़ों इंजीनियरों को पत्रकारों से बातचीत के मौके कम ही मिलते हैं।
उसने कहा, सचमुच अच्छा लग रहा है कि हम उस भिलाई इस्पात संयंत्र का हिस्सा हैं, जहां तैयार हो रही ऑक्सीजन महामारी के समय पूरे देश के काम आ रही है।
महामारी से उपजी गहरी हताशा के बीच जब भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) से ऑक्सीजन की आपूर्ति किए जाने की खबर आई तो निजी तौर पर मेरे लिए भी यह गर्व की बात थी। बीएसपी में मेरे बीसियों दोस्त या सहपाठी रहे इंजीनियर काम करते हैं।
पिछले दो-तीन दिनों के दौरान मैंने बीएसपी में काम कर रहे अपने अनेक इंजीनियर दोस्तों से बात की। दरअसल एक समय मैं खुद भी बीएसपी में काम करने के बारे में सोच रहा था।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहल पर चार फरवरी 1959 में अस्तित्व में आए भिलाई इस्पात संयंत्र ने छत्तीसगढ़ को विशिष्ट पहचान दी है। इस संयंत्र के साथ ही विकसित हुए भिलाई शहर ने देश में विशिष्ट जगह बना ली। दोनों ओर पेड़ों से घिरी इसकी चौड़ी-चौड़ी सड़कें और नियोजित आवासीय सेक्टर इसकी पहचान बन गए। देखते ही देखते बीएसपी छत्तीसगढ़ के मध्य वर्गीय सपने का हिस्सा बन गया।
छत्तीस-सैंतीस साल पहले 1984-85 में भिलाई के पड़ोस में स्थित शासकीय दुर्ग पॉलिटेकनिक से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद फाइनल ईयर में आते-आते मुझे लगने लगा था कि मैं चाहे कुछ और बन जाऊं इंजीनियर नहीं बनना चाहता। हालांकि पढ़ाई करने के बाद मैं भी चाहता था कि बीएसपी में नौकरी लग जाए। इसकी दो वजहें थीं।
जब पढ़कर निकला था, तब मशहूर श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी बीएसपी और छत्तीसगढ़ के अन्य संयंत्रों तथा खदानों में कार्यरत श्रमिकों के हक के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनके अलावा बीएसपी में एटक, सीटू और इंटक जैसे संगठन भी सक्रिय थे। मुझे लगा कि बीएसपी में नौकरी करते हुए मैं भी यह कर सकता हूं।
दूसरी वजह थी कि भिलाई साहित्यिक रूप से बेहद सक्रिय जगह थी। प्रगतिशील लेखक संघ और मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा लेने मैं वहां जा चुका था।कुछ कविताएं भी लिख रखी थी। उन्हीं दिनों बीएसपी में कार्यरत मित्र नासिर अहमद सिकंदर ने अपनी कविताओं के साथ राष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दी थी।
बरसों बाद देशबंधु में काम करते हुए और अक्षर पर्व का संपादन करते हुए मुझे भिलाई इस्पात संयंत्र पर केंद्रित एक प्यारा-सा लघु उपन्यास प्रकाशित करने का मौका मिला। उपन्यास का नाम था, 'लौह वलय 'और लेखक का नाम याद नहीं कर पा रहा हूं, संभवतः उनका सरनेम पाल था।
पिछले कुछ दिनों से जबसे भिलाई से मेडिकल ऑक्सीजन देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जाने की खबरें आईं तो बरबस ही बीएसपी की याद आ गई। वहां काम कर रहे दोस्त Prashant Dave ने मेरे फोन करने के कुछ देर बाद ही कुछ ग्राफिक्स भेज दिए जिनसे पता चलता है कि बीएसपी के ऑक्सीजन संयंत्र से किन-किन राज्यों को यह जीवनरक्षक वायु भेजी जा रही है।
बीएसपी में दो ऑक्सीजन संयंत्र हैं और उनसे मुख्य रूप से संयंत्र में इस्पात बनाने के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। मेरे दोस्त बहुत उत्साह से बताते हैं कि कैसे लौह अयस्क से इस्पात बनाने के दौरान ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है।
बीएसपी में कार्यरत मेरे एक और दोस्त Mukund Rao Hadge बताते हैं कि बीएसपी के ऑक्सीजन संयंत्र से प्लांट के अलावा भिलाई के सेक्टर नौ में स्थित जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर को भी ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है।
सेक्टर नौ अस्पताल के नाम से मशहूर रहा यह अस्पताल एक समय छत्तीसगढ़ के लोगों की आखिरी उम्मीद हुआ करता था।
वास्तव में कोविड की पिछली लहर के समय ही पिछले साल बीएसपी ने देश के कुछ हिस्सों में ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति की थी, लेकिन चूंकि उस समय ऑक्सीजन की कमी को लेकर आज जैसी मारा-मारी नहीं थी, इसलिए यह खबर चर्चित नहीं हो पाई।
बीएसपी के दोस्तों को सलाम, आपके इरादे इस्पात की तरह मजबूत रहें और आप हर जरूरतमंद तक ऑक्सीजन की आपूर्ति करते रहें....
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