JCCJ नेताओं ने महामारी पर सरकार के ख़िलाफ़ जारी किया श्वेत-पत्र 

द कोरस टीम

 

तीनों नेताओं ने महामारी-सम्बंधित निर्णयों की समीक्षा करने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार की 11 बुनियादी ग़लतियों को श्वेत पत्र के माध्यम से बेनक़ाब किया है।

JCCJ नेताओं ने सरकार के ख़िलाफ़ जारी श्वेत पत्र में महामारी के रोकथाम और उपचार की आवश्यक सामग्रियों की माँग की अपेक्षा का मात्र 8% सप्लाई, मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बीच संवाद और समन्वय का अभाव, जीवन-रक्षक दवाओं की कालाबाज़ारी में सत्ता की संलिप्तता, सरकारी अस्पतालों की दूर्दशा, राजधानी अस्पताल आगज़नी में लीपा-पोती, विपक्ष के नेताओं के सुझावों को अनसुना करना, राजनीतिक दबाव में छत्तीसगढ़ का ऑक्सिजन UP भेजना, शवों का अपमान और सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का निजी अस्पतालों द्वारा नकारना जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाएँ हैं।

JCCJ नेताओं ने टीकाकरण अभियान में छत्तीसगढ़ सरकार को कटघरे में खड़े करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का 50 लाख टीकों का क्रय-आदेश देने का दावा क़ानूनी तौर पर पूरी तरह ग़लत है। उन्होंने कहा कि आदेश में न तो टीका कम्पनियों को सरकार ने एक पैसा दिया गया है और न ही टीका कम्पनियों के सरकार को जानकारी दी है कि वे कब और कैसे टीके की 50 लाख खुराकें सरकार को देंगी। इसको ऑर्डर नहीं बल्कि ज़ुबानी जमा-खर्च कहते हैं।

 
मुख्य प्रवक्ता भगवानु नायक ने जहाँ एक तरफ़ भारत सरकार ने आबादी के अनुपात में सबसे अधिक टीकों की खुराक छत्तीसगढ़ को दी है, वहीं दूसरी तरफ़ आज तक छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संसाधनों से किसी को भी एक खुराक तक नहीं लगाई है बल्कि सत्ता के नज़दीकी  सैकड़ों अपात्र लोगों को मुफ़्त में टीका लगाया गया है। देशव्यापी संघीय टीकाकारण योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ सरकार अपने प्रदेश के युवाओं के टीकाकरण की अपनी जवाबदारी का 17% भी पूरा नहीं कर पा रही है। 

JCCJ नेताओं ने कहा कि यह समय प्रदेश के युवाओं को नौकरी, नियमितिकरण और ₹2500 मासिक बेरोज़गारी भत्ता जैसे एक नया झुनझुना पकड़ाने का नहीं है। राज्य सरकार को बाक़ी 2.40 करोड़ खुराक का मौखिक नहीं बल्कि क़ानूनी क्रय-आदेश देना चाहिए ताकि सही समय पर छत्तीसगढ़ के युवाओं को टीका लगाके उनकी जान बचाई जा सके क्योंकि युवा-लाशों को टीके की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

कोरोना की दूसरी लहर पर छत्तीसगढ़ शासन के 25 मार्च से 28 अप्रेल 2021 तक के निर्णयों की समीक्षा
 
छत्तीसगढ़ सरकार में कोरोना की दूसरी लहर की अभूतपूर्व चुनौती का सामना करने में नीति और नियत के अभाव के कारण प्रदेश में महामारी विकराल रूप धारण कर चुकी है। प्रदेश के एकमात्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) ने इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ शासन के 25 मार्च से 28 अप्रेल 2021 के दौरान लिए विभिन्न निर्णयों का शूक्षमता का विश्लेषण लिया है जिसका सारांश इस श्वेत पत्र में है। 

1. माँग की अपेक्षा महामारी के रोकथाम और उपचार की आवश्यक सामग्रियों का 8% सप्लाई- कोरोना की दूसरी लहर के शुरुआती दिनों में 25 मार्च और 13 अप्रेल के बीच संचालक स्वास्थ्य सेवाएँ (DHS) ने राज्य सरकार को कुल 8 पत्र लिखे जिसमें इस घातक दूसरी लहर को रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के विभिन्न उपचार केंद्रों के ICU (गहन चिकित्सा कक्षों) के लिए 100 वेंटिलेटर, 200 मल्टी-पैरामीटर मॉनिटर, 200 सिरिंज पम्प और 500 जम्बो ऑक्सिजन सिलेंडेर, लोगों की व्यापक टैस्टिंग के लिए 6.10 लाख RTPCR और 12 लाख रैपिड (ऐंटिजेन) टेस्ट किट, संक्रमण से बचाव के लिए 4 लाख N-95 और 20 लाख ट्रिपल लेअर मास्क और इलाज के लिए 1.40 लाख रेमदेसिविर इंजेक्शन समेत 32 अन्य जीवन-रक्षक दवाइयों की तत्काल पूर्ति की माँग की थी लेकिन आज तक इसके विरुद्ध मात्र 90 हज़ार रेमदेसिविर इंजेक्शनों (जो आवश्यकता का 65% ही है) का ऑर्डर दिया गया है। 

2. मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बीच संवाद और समन्वय का अभाव- संचालक स्वास्थ्य सेवाएँ के उपरोक्त माँग पत्रों की प्रतिलिपियाँ स्वास्थ्य मंत्री को न भेजना और स्वास्थ्य मंत्री की मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में महामारी-सम्बंधित सभी ‘वर्चूअल बैठकों’ से अनुपस्थिति अंगित करती है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार के दो सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में समन्वय और संवाद की कमी है, जिसका नुक़सान भी आमजनता को हो रहा है।     
 
3. दवाओं की कालाबाज़ारी में सत्ता की संलिप्तता- यही कारण है कि आज प्रदेश के मरीज़ों को ₹ 899- ₹4750 के एक रेमदेसिविर इंजेक्शन को ₹ 30 हज़ार में कला बाज़ार में ख़रीदना पड़ रहा है- जिसके बाद भी उनके जान बचने की कोई गैरंटी नहीं है। इस कालाबाज़ारी में भी सत्तदल के करीबी लोगों के नाम सामने आ रहे हैं। 

4. सरकारी अस्पतालों की दूर्दशा- केंद्र सरकार द्वारा संचालित AIIMS- जिसको रायपुर में खोलने में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री अजीत जोगी और तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज का विशेष योगदान रहा है- को छोड़ प्रदेश के बाक़ी सभी सरकारी अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सिजन, दवाइयों और स्टाफ़ की कमी के कारण भारी अव्यवस्था है। 16 अप्रेल को दुनिया के तीन सबसे प्रभावशाली अख़बारों- अमरीका के ‘द न्यू यॉर्क टाइम्ज़’, फ़्रान्स के ‘ल मोंड’ और जर्मनी के ‘डर स्पीगल’- ने अपने प्रथम पृष्ट पर छत्तीसगढ़ के अस्पतालों की दुर्दशा के बारे में लिखा कि “छत्तीसगढ़ के अस्पतालों के शव-गृहों में शवों को रखने की जगह समाप्त हो चुकी है”। 

6. राजधानी अस्पताल हादसे में लीपा-पोती- 17 अप्रेल को रायपुर के एक निजी ‘राजधानी अस्पताल’ में आग लगने के कारण 4 कोरोना-संक्रमित मरीज़ों की दर्दनाक मौत हो गई। इस अस्पताल के ‘फ़ायर सेफ़्टी सर्टिफ़िकेट’ की अवधि पिछले साल 22.9.20 को ही समाप्त हो चुकी थी। घटना के समय न तो मौक़े पर फ़ायर इक्स्टिंग्विशर थे, न कोई स्प्रिंक्लर सिस्टम और न ही कोई अग्नि-निकासी योजना थी किंतु आज तक दोषियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई है। 

7. विपक्ष के नेताओं के सुझावों को अनसुना करना- 18 अप्रेल को मुख्यमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। जब नेता प्रतिपक्ष और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) बात रखने की पारी आयी, तब मुख्यमंत्री अपने बैठक-कक्ष से बाहर चले गए हालाँकि महामहिम राज्यपाल ने न केवल JCCJ प्रदेश अध्यक्ष के सभी सुझावों को गम्भीरता से सुना बल्कि अपने उद्बोधन में उन्होंने उनका नाम लेते हुए, सरकार को उनको लागू करने के स्पष्ट निर्देश भी दिए। 

8. राजनीतिक दबाव में छत्तीसगढ़ का ऑक्सिजन UP भेजना- 24 अप्रेल को मुख्यमंत्री ने श्रीमती प्रियंका गांधी-वाड्रा के एक फ़ोन पर ऑक्सिजन सिलंडरों से लदे ट्रक लखनऊ रवाना कर दिए जबकि खुद छत्तीसगढ़ में 12000 लीटर ऑक्सिजन की भीषण कमी है। 

9. शवों का अपमान- 25 अप्रेल को सोशल मीडिया में जब रायपुर के सड्डु क्षेत्र के शमशान घाट का एक विडिओ वाइरल हुआ जिसमें स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि रायपुर नगर निगम द्वारा अध-जले कोरोना-संक्रमित शवों को कुत्ते नोंच-नोंच के खा रहे हैं, तो अपनी इस अमानवता पर प्रायश्चित करने की जगह विडिओ बनाने वाले हमारे दल के युवा नेता श्री अजय देवांगन के विरुद्ध FIR दर्ज कर दी गई। 

10. 50 लाख टीका क्रय-आदेश का दावा ग़लत- 26 अप्रेल को मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा पूछे जाने पर उनसे ₹400 प्रति खुराक की भारत सरकार द्वारा निर्धारित दर से भारत बायोटेक और सीरम इन्स्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया को 50 लाख टीके का ख़रीदी ऑर्डर देने का दावा किया। यह कई कारणों के बिलकुल सही नहीं है। 

A. ऑर्डर नहीं बल्कि ज़ुबानी जमा-खर्च- अनुबंध के क़ानून में ‘ऑर्डर’ तब माना जाता है जब माँग के प्रतिफल में क्रेता द्वारा विक्रेता को कुल क़ीमत या उसके कुछ हिस्से का भुगतान किया जाए और विक्रेता माँग की आपूर्ति की निर्धारित समय सारिणी पर अपनी सहमति दे। छत्तीसगढ़ सरकार के इस ‘ऑर्डर’ में न तो टीका कम्पनियों को एक पैसा दिया गया है और न ही टीका कम्पनियों के सरकार को यह जानकारी दी है कि वे कब और कैसे टीके की 50 लाख खुराकें सरकार को देंगी। इसको ‘ऑर्डर’ नहीं बल्कि ‘ज़ुबानी जमा-खर्च’ कहना ज़्यादा उपयुक्त होगा क्योंकि क़ानून की नज़र में इसकी कोई मान्यता नहीं है। 

B. संघीय-टीकाकारण योजना में भारत सरकार ने आबादी के अनुपात में सबसे अधिक टीके छत्तीसगढ़ को दिए- देशव्यापी संघीय-टीकाकारण योजना के अंतर्गत 18-45 आयु के लक्षित समूह के अलावा राष्ट्र के अन्य सभी वर्गों को भारत सरकार ने टीका लगाने की ज़िम्मेदारी ली है जिसके अंतर्गत अभी तक छत्तीसगढ़ के लगभग 60 लाख प्रदेशवासियों को टीका लगाया भी जा चुका है जो कि पूरे देश की सबसे अधिक टीकाकरण-दर है। इन खुराकों का पूर्ण रूप से सप्लाई भारत सरकार ने किया है।

C. सत्ता के अपात्र लोगों को मुफ़्त में टीका- संघीय-टीकाकारण योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संसाधनों से प्रदेश के किसी भी नागरिक को एक भी खुराक नहीं लगाई है बल्कि केंद्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य कर्मियों, प्रथम-पंक्ति कार्यकर्ताओं और 45 आयु से अधिक के लोगों के लिए भेजीं खुराकों को बड़ी संख्या में इन लक्षित समूह से अपात्र कम आयु के लोगों को सत्ता के करीबी होने के कारण टीके लगाए जा रहे हैं। 

D. यदि तर्क के लिए छत्तीसगढ़ शासन के मुख्यमंत्री के 50 लाख टीकों का ख़रीदी आदेश देने के दावे को स्वीकार भी कर लिया जाता है, तब भी देश में 2021 में होनी वाली जनगणना के प्रारम्भिक अनुमान के अनुसार छत्तीसगढ़ की 3.29 करोड़ जनसंख्या में राज्य सरकार के लिए 18-45 आयु वालों के 1.51 करोड़ नौजवानों के लक्षित समूह को 3 करोड़ खुराक देने की आवश्यकता है। 

E. छत्तीसगढ़ सरकार युवाओं के टीकाकरण की अपनी जवाबदारी का 17% भी नहीं कर रही- जवाबदारी 50 लाख टीका-खुराकों के ख़रीदी आदेश से छत्तीसगढ़ सरकार अपने हिस्से में आए 18-45 आयु के लक्षित समूह की आश्यकता की 17 प्रतिशत पूर्ति भी नहीं कर पा रही है। शेष 83 प्रतिशत नौजवानों को पूरी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार ने असहाय कर दिया है। यह समय प्रदेश के युवाओं को- नौकरी, नियमितिकरण और ₹2500 मासिक बेरोज़गारी भत्ता जैसे- झुनझुना पकड़ाने का नहीं है। राज्य सरकार को बाक़ी 2.40 करोड़ खुराक का मौखिक नहीं बल्कि क़ानूनी रूप से लागू किया जा सकने वाला क्रय-आदेश तत्काल देना चाहिए ताकि सही समय पर छत्तीसगढ़ के युवाओं को टीका लगाके उनकी जान को सुरक्षित किया जा सके क्योंकि युवा-लाशों को टीके की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

11. सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को निजी अस्पतालों द्वारा नकारना- छत्तीसगढ़ सरकार की कोरोनाकाल की सबसे महत्वकांशी घोषणा- ‘ख़ूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना’ के अंतर्गत सभी राशन कार्ड धारी कोरोना संक्रमितों का ₹5 लाख तक का निशुल्क इलाज- का धरातल में कोई अता-पता नहीं है। सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम ₹ 6250 प्रतिदिन उपचार दर के विरुद्ध कई निजी अस्पतालों द्वारा ₹ 30-50000 प्रतिदिन नगद वसूला जा रहा है। छत्तीसगढ़ से ज़्यादा उत्तर प्रदेश की चिंता करने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री वहाँ के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ की तरह निजी अस्पतालों में सभी कोरोना-संक्रमितों का निशुल्क इलाज कराने की योजना लागू करनी चाहिए।


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