मानवाधिकार स्वाभिमान के लिए डोला यात्रा
लखन सुबोधसतनाम आंदोलन की एक प्रसिद्ध घटना है। 'मानवाधिकार स्वाभिमान डोला यात्रा' इस डोला यात्रा में सतनामियों एवं सामंतवादी ताकतों के बीच बहुचर्चित संघर्ष हुआ था। यह घटना इतना प्रसिध्द हुआ कि, लोकगीतों में भी इसकी गूंज सुनाई देती है। लोंकनाचा में 'रन खेत माड़गे संगी रे चिरहला के लड़ाई म रन खेत माड़गे' (अर्थात् सुनो संगी चिरहुला में एक जबर्दस्त रन लड़ाई हुआ)।

यह घटना करीब 1883 ई. के आप-पास की है। यह उस दौर की बात है जब सतनाम दमनकारियों, सामंतों ने गुरूघासीदास के दूसरा पुत्र गुरू बालकदास की हत्या को अंजाम देकर, उसकी जगह षडयंत्र पूर्वक एक ऐसे व्यक्ति को गुरु गद्दी में बैठा दिया गया था, जिससे सतनाम आन्दोलन को बहुत बड़ा नुकसान हुआ। इससे सतनाम आंदोलन को तोड़ने, लोकदमनकारियों से सतनामी प्रमुखों की मिलीभगत का अध्याय शुरू हुआ।
लेकिन इसके बावजूद आम सतनामी जनों में सतनाम आंदोलन के उद्देश्यों के प्रति जज्बा बरकरार था, विशेषकर नवगढ़िया क्षेत्रों में नवागढ़ राज (वर्तमान बेमेतरा - मुंगेली जिला इलाका) के ग्राम नवलपुर (ढारा) सतनाम आंदोलन का एक महत्वपूर्ण गढ़ रहा है।
सतनाम आदोलन के प्रमुखों में से एक साहेब भुजबल महंत यहीं के निवासी थे। एक समय भुजबल महंत साहब अपने घोड़े में सवार होकर पूरे आन-बान-शान से मानवोचित गिरमानुरूप वस्त्र पगड़ी पहने, अपने सहयोगियों के साथ नवागढ़ मुंगेली की ओर ( नवागढ़ मुंगेली मार्ग पर अपने पुत्र दयालदास की शादी के लिए वधु खोजने जा रहे थे। रास्ते में पुरान नामक गांव में किचिंत विश्राम करने, घोड़ा को पानी पिलाने, वहां के एक तालाब के पास रूके।
उन्हें वहां गांव के एक सामंती व्यक्ति अमोली सिंह राजपूत रुककर यह समझकर कि वे किसी जगह के गौंटिया स्वामी या राजकीय अधिकारी होंगे। अमोली सिंह ठाकुर ने अभिवादन करते भुजबल महंत साहब को पायलागी ठाकुर साहब कहा।
उसके अभिवादन पर भुजबल महंत ने 'सतनाम साहेब' कहा। अमोली को इससे जबर्दस्त धक्का लगा और वह समझ गया कि यह कोई ठाकुर नहीं, सतनामी है। वे घायल सांप की तरह फुंफकार कर बोला अरे तुम सतनामी हमारे गांव में आकर राजसी ठकुराई पगड़ी वस्त्र धारण कर घोड़ा में आये हो, तुरन्त घोड़ा छोड़कर पगड़ी पनही उतारकर, अपने सिर में जूता रखकर माफी मांगो और कभी ऐसा नहीं करने की चेतावनी देने लगा।
प्रत्युतर में भुजबल महंत साहब ने कहा कि हम मनुष्य हैं। हम किसी के गुलाम नहीं है। वातावरण में तना तनी बढ़ती गई। भुजबल महंत एवं उनके साथियों के पास अस्त्र-शस्त्र देखकर और गांव में अल्प संख्या में सामंती होने के कारण भुजबल महंत पर सीधे हमला करने की हिम्मत अमोली ठाकुर की नहीं हुई।
उन्हें पता था कि ऐसा करने से आसपास हल्ला - दंगा होगा और बहुसंख्या में सतनामी यहां आ धमकेंगे, तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जायेगा। उन्होंने रणनीति से काम लेते हुए कहा कि तुम्हें इसका मजा चखाया जायेगा। इस पर भुजबल महंत ने कहा कि ठाकुर साहब मुझे चाहे जो भी मजा चखाया जायेगा, वह तो समय आने पर देख लेंगे। लेकिन यह मामला न तुम्हारा है न मेरा।
यह समस्त मानव समाज के सम्मान या अपमान का है। हम सतनामी मानव के स्वाभिमान व अधिकार के पक्षधर हैं और आप इसके विरोधी। हम दोनों अपने अपने पक्षधरों को बता- बुलाकर दुनिया के आमने सामने होकर यह बतायें कि आखिर हमारे बीच लड़ाई किस बात के लिए है।
यहां हमें गांव में अकेले एकपक्षीय झूठे आरोप लगाकर आप हल्ला कर सकते हैं कि, हम यहाँ डाका डलाने आये हैं तो सच्चाई छिप जायेगी। इसलिए जगजाहिरी तौर पर इस लड़ाई के मुद्दा को दुनिया जाने। इस तरह भुजबल महंत आगे बढ़ गए और इसकी जानकारी सूचना सर्वत्र सतनामियों को दी गई। इधर सामंती ठाकुरों ने अपने लोगों को सतनामियों के इस घोर पाप की सजा देने के लिए षडयंत्र रचने के प्रयास में लग गये।
भुजबल महंत साहब ने आगे चिरहुला गांव जाकर समाज की बैठक लेकर सारा वृतांत बताया। वहां बखरिया भंडारी ने यह कहा कि मेरी बेटी सुन्दरिया का विवाह भुजबल महंत के पुत्र दयालदास से करूंगा। सभी ने इसका स्वागत करते हुए यह तय किया कि सतनाम मुखियागण यह निर्णय लें कि इस शादी में वर वधु को डोला में बिठाकर विदा किया जायेगा और बारात का आगमन प्रस्थान पुरान गांव के रास्ते से ही होगा।
हम डरकर रास्ता नहीं बदलेंगे ! हम सतनामी जन मानवाधिकार के लिए स्वाभिमान के साथ डोला लेकर यात्रा करेंगे। इसकी जानकारी सभी जिला राज के लोगों को दिया जाय। कौन मनुष्य के बराबरी सम्मान के पक्ष में है और कौन इसके विपक्ष में यह भी दुनिया को मालूम हो जायेगा।
न्याय अन्याय का संघर्ष तभी सार्थक होगा। सरकार को भी इससे अवगत कराने नागपुर (तात्कालिक छत्तीसगढ़ सी.पी.एण्ड बरार की राजधानी) जाकर सतनामियों का एक मुखिया मंडल गवर्नर से भेंट कर कहा कि हम सतनामी जन मनुष्यता की समानता मे विश्वास कर अपनी बहू को डोला में बिठाकर सम्मान देंगे।
जो लोग अपनी बहू को ऐसा पारंपरिक सम्मान देते-करते हैं और हमारे द्वारा ऐसा करने का विरोध कर रहे हैं, वे मानवाधिकार का उल्लंघन करने के दोषी है। इसलिए ऐसे लोगों पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करना चाहिये।
हम शांतिपूर्ण ढंग से अपने मान-सम्मान से जीना चाहते हैं, लेकिन हमें कोई ऐसा करने से रोकता है, और इस पर हमला करता है तो हमें अपनी आत्म-रक्षा करने का पूरा अधिकार है। इस पूरे वाक्या से तात्कालिक प्रशासन व सामाजिक-राजनीतिक हल्कों में सरगर्मियाँ बढ़ गयी।
लोकचेतनकारी सिद्धांतों को मानने वाले सतनामियों के इस प्रयास को सही ठहराते और लोकदमनकारी सामंती तत्व सतनामियों को नीचा दिखाने व कड़ी सबक सिखाने के लिए अनेक तरह के झूठा प्रचार कर उपद्रव फैलाने के काम में लगे रहे।
शादी की पूरी तैयारी करके नवलपुर से बहुत बड़ी संख्या में लोग चिरहुला के लिए डोला के साथ बारात लेकर निकले। सभी लोग अपने आत्मरक्षार्थ विविध हथियारों से लैस होकर मानवोचित गरिमा के साथ वस्त्र - पगड़ी साज - समान के साथ बारात में शामिल थे।
बारात पुरान गांव से होकर गुजरा, लेकिन बारात पर कोई रोक टोक नहीं हुआ। सतनाम आंदोलनकारियों के संगठन ने अपनी सर्तकता टीम से यह पता लगा लिया था कि लोकदमनकारियों ने एक विशेष रणनीति यह बनाया था कि बारात के जाने के समय नहीं बहू लेकर वापसी में रोकना व हमला करना है। 'खाली डोला को नहीं उनकी बहू के साथ डोला लूटना है। बारात का आन-बान-शा चिरहुला में स्वागत हुआ।
विवाह संस्कार निपटने के बाद भोर अंधेरे में विदाई हुई। चिरहुला और पुरान के बीच एक छोटी सी टेसुआ नामक नदी है। पुरान के पास में लगा गांव - नवागांव, घोरपुरा है। यहीं पर सामंतों ने बारात पर हमला करने घेराबंदी हमला करने की रणनीति बनाया था। जमीन में खंदक बनाकर वे छिपे बैठे थे | सतनामी संगठन को अपनी सतर्कता टीम से यह भी जानकारी हो गई थी कि, वे खंदक से अचानक निकलकर हमला करेंगे और डोला के साथ बहू को भी उड़ायेंगे।
सचेत, होशियार बारातियों ने (अग्रिम सुरक्षा दस्ता) ने खंदकों में छिपे गुंडों पर औचक ही दूट पड़े। डोला की ओर आते गुंडों से स्वयं वधु सुन्दरिया माता ने तलवार लेकर हमलावरों के सामने आ डटी । सारे सतनामी योद्धा एक साथ हमलावरों पर टुट पड़े। हमलावरों को यह उम्मीद नहीं थी कि उनकी रणनीति का खुलासा होजायेगा । वे इधर उधर भागने लगे।
सरकार - प्रशासन के लोग सामने नहीं आये। वे लोकदमनकारी से मिलीभगत कर अदृश्य बने रहे। सतनामियों ने अपने आत्म रक्षार्थ हथियार चलाये। हमलावर भाग खड़े हुए और सतनामी अपनी इज्जत स्वरूप डोला-वधु को ससम्मान नवलपुर लेकर बारात वापस आयी।
इस घटना का समस्त जगहों में इतना प्रभाव पड़ा कि सतनामियों को जहां मानवाधिकर की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में प्रसिद्धि मिली। लेकिन लोकदमनकारियों एवं असमानता पोषक सामंती समाज के बीच सतनामियों के प्रति दुश्मनी एवं बदले की भावना बलवती होती गई।
चिरहुला व आसपास के गांवों के प्रशासनिक रिकार्ड व थाने के वर्तमान अभिलेखों में भी इस तरह के वृतांत मौजूद है कि किस तरह सामंती तत्वों ने सतनामियों पर घोर जुल्म ढाए। इन जुल्मों के खिलाफ सिर्फ आम सतनामी जन लड़े मरें, लेकिन सामाजिक, राजनैतिक कथित मुखियाओं गुरू-महंतों ने जन संघर्षो कोई मदद नहीं किया।
उस समय और आज भी ये अपनी स्वार्थ – सिद्धि के लिए अपने को सतनामियों के गुरू महंत-मुखिया कहते बताते हैं। लेकिन अपमान - अन्याय के खिलाफ इन ऐतिहासिक संघर्षों को कभी मान नहीं देते। वे लोकदमनकारियों के पिछलग्गू मिलीभगत से गद्दारी करने का ही काम करते हैं।
ऐतिहासिक घटना को विश्व समुदाय को अवगत कराने एवं समानता के लिए सतत संघर्ष करने के लिए प्रेरित कराने हर वर्ष नवलपुर से चिरहुला में मानवाधिकार स्वाभिमान डोला यात्रा का आयोजन किया जाता है। इसमें बिना किसी जाति, धर्म, लिंग नस्ल, राष्ट्रीयता के भेदभाव के सभी लोगों को समानता के आधार पर आमंत्रित करते हैं, लेकिन समाजघातियों की कोशिश इसके उलट होती है।
Your Comment
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29/04/2021
Dr saheb Lal adile
Excellent effort Godi media does not give space to the voice of voiceless dalit hence it is the much needed action.
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28/04/2021
KUMAR LAHARE
सर जी
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