रेमडेसिविर : दो बात जो अब तक समझ में नहीं आई
प्रफ़्फ़ुल ठाकुरपहली, डब्ल्यूएचओ से लेकर तमाम बड़े रिसर्च इंस्टीट्यूट ये बोल रहे हैं कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना के इलाज में कारगर नहीं है। देश के बड़े-बड़े अस्पतालों के डॉक्टर भी यही बात बोल रहे हैं कि रेमडेसिविर जान बचाने की गारंटी नहीं है। यही बात छत्तीसगढ़ के डॉक्टर भी बोल रहे हैं। पर यही बात सरकार क्यों नहीं बोल पा रही है?

स्वास्थ्य विभाग क्यों नहीं बोल पा रहा है ? उल्टे सरकार इसे भारी-भरकर दाम पर खरीद रही है। सरकार के इस उलट रवैये के कारण अस्पताल इस इंजेक्शन को लिख रहे हैं और मरीजों के परिजन इसके लिए परेशान हो रहे हैं।
दूसरी बात, रेमडेसिविर इंजेक्शन स्टॉकिस्ट के माध्यम से सीधे अस्पतालों को देने का नियम है। अस्पताल रोजाना अपनी जरूरत बताते हैं, जिसके मुताबिक उन्हें इंजेक्शन दिए जाते हैं। अलग-अलग अस्पतालों के लिए अलग-अलग स्टॉकिस्ट तय किये गए हैं।
जब स्टॉकिस्ट के माध्यम से इंजेक्शन अस्पतालों को ही सीधे देने का नियम है तो फिर ये अस्पताल वाले मरीज के परिजनों को इंजेक्शन लाने क्यों परेशान करते हैं?
सरकार यह बात जानती है, फिर भी अस्पतालों को ऐसा करने से मना क्यों नहीं करती है? उनके ऊपर निगरानी क्यों नहीं है ? ये जो इंजेक्शन की कालाबाजारी हो रही है, उसके पीछे का खेल क्या है ?
नोट - स्टॉकिस्ट के अलावा केवल रेडक्रॉस की दवा दुकान से रेमडेसिविर इंजेक्शन मिल रहा था, जिसे सरकार ने शनिवार से बंद कर दिया है। अब जनता कितना भी भटक ले, माथा रगड़ ले या नाक इंजेक्शन नहीं मिलने वाला। रेमडेसिविर की खरीदी से लेकर इसकी बिक्री और सप्लाई सब में कुछ गड़बड़झाला है।
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