समीक्षा : पत्रिका लोक असर का अंक अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष को सादर समर्पित
के. मुरारी दासलगभग 6 साल तक साप्ताहिक समाचार पत्र के रूप में सेवा देने के बाद विगत 2 वर्षों से यह समाचार, पत्र से अब पत्रिका के रूप में नए साज सज्जा व नए कलेवर के साथ जिले व क्षेत्र के पाठकों के मध्य स्थापित होने जा रहा है. साथ ही साहित्य व पत्रकारिता के रूप में एक बार फिर अपनी रचनात्मक सेवाएं देने तत्पर है. इसी तारतम्य में पत्रिका लोक असर का फरवरी-मार्च का संयुक्त अंक अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष को सादर समर्पित किया है.

पत्रिका की शुरुआत धारदार संपादकीय से शुरू होता है जांबाज़ महिलाओं को नमन करते हुए संपादक लिखते हैं- महिला सशक्तिकरण की जरूरत सिर्फ भारत या विकासशील मुल्कों का मसला नहीं है, बल्कि हर विकसित राष्ट्र का भी मसला है यह प्रत्येक पुरुष प्रधान समाज में सामाजिक आर्थिक राजनीतिक व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण का सवाल एक वैश्विक पहल है.
नारी मुक्ति और भारतीय समाज के माध्यम से पत्रिका की सब एडिटर ज्योति किरण लिखती हैं -जब पति प्रेम की बात होती है तब राधा मीरा और सीता सावित्री को प्रेम और भक्ति की मिसाल दिया जाता है लेकिन वैदिक काल के रोमाला,घोषाल,सूर्या, अपाला, बिलोमी, कामायनी गार्गी और मैत्री की गाथाएं हर घर में लड़कियों को क्यों नहीं सुनाई जाती?
महिला सशक्तिकरण की दशा और दिशा पर भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा सावित्री फुले स्मृति आदर्श शिक्षक सम्मान से सम्मानित और इस पत्रिका की स्तंभ लेखिका पूर्णिमा सरोज ने 7 पृष्ठ की लंबी परिचर्चा में 30 महिला विचारकों से प्रतिक्रिया साझा की है.
जिसमें व्याख्याता, प्राचार्य, अधिकारी, कर्मचारी, समाजसेवी, व्यवसाई छात्रा, कवित्री, प्राध्यापक, मंत्री व गृहणीयों के विचार सम्मिलित किए गए हैं इसमें मुझे शिक्षिका द्वय श्रद्धा वासनिक व संगीता मौन के विचार ज्यादा समीचीन लगे ये कहती हैं- महिलाएं किसी परंपराओं का अनुपालन करने से नहीं अपितु विज्ञान से सशक्त होंगी. महिलाओं को स्वयं को पढ़ने व तर्क आधारित जागरूकता के माध्यम से खुद को समझने की आवश्यकता है.
भारत की वो 10 बहादुर महिला पत्रकार जो बनी कट्टरपंथियों के आंखों की किरकिरी किस प्रकार सरकार की किरकिरी बनी इस पर 'द कोरस' के संपादक उत्तम कुमार ने कलम चलाने का प्रयास किया. जिनमें किसी को मार दिया गया, तो कोई जातीय घृणा के शिकार हुई, किसी को नौकरी से निकाल दिया गया, तो किसी को किराए का घर भी नसीब नहीं हुआ, आखिर कौन है भारत के 10 जांबाज़ महिला पत्रकार.
इसमें लेखक जिक्र करते हैं गौरी लंकेश का कि किस प्रकार दक्षिणपंथी विचारधारा द्वारा उनके लेखों और भाषणों पर उन्हें हत्या की धमकियां मिलती रही है मसरत जहरा पत्रकारों के खिलाफ लगातार होती कार्रवाई यों के बीच जम्मू पुलिस ने श्रीनगर स्थित फोटोजर्नलिस्ट मसरत जहरा को किस प्रकार हिरासत में रखा गया राना अय्यूब तहलका समाचार पत्र व वॉशिंगटन पोस्ट की पत्रकार जिनपर नरेंद्र मोदी व भाजपा सरकार की आलोचना के कारण क्रिमिनल केस फाइल किया गया.
रोहिणी सिंह गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के कारण इस महिला पत्रकार पर आपराधिक मानहानि केस किया गया. सजीला अली फातिमा केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर प्रदर्शन की तस्वीर कैराली टीवी के बहादुर फोटोजर्नलिस्ट सुशीला अली फातिमा पुरुषों के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है.
मीना कोटवाल बीबीसी की पूर्व पत्रकार मीना कोटवाल ने ही अपनी जाति का मुद्दा नौकरी में इंटरव्यू में उठाया था वजह से उन्हेंआत्महत्या की कोशिश करनी पड़ी. आरफा खानम शेरवानी टेलीविजन दुनिया की जानी - मानी एंकर व पत्रकार द पायोनियर व एशियन एज व एनडीटीवी के साथ जर्मनी में भारत की मीडिया एंबेसडर रह चुकी वे अपने ब्लॉग में अंधभक्ति फेक न्यूज़ के दौर में जहां गरीबी बेरोजगारी न्याय और बराबरी जैसी असली समस्याओं से आपका ध्यान भटका कर हर शाम टीवी स्टूडियो हमसे नफरत वह सांप्रदायिक देश के नारों और झूठे विकास के दावों में आपको उलझाने की कोशिश हो रही है.
मालिनी सुब्रमण्यम इन्हें छत्तीसगढ़ के जेलों में बंद गरीब आदिवासियों के लिए आवाज उठाने के बदले बस्तर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. इरा झा वर्षों से सिंचाई विहीन क्षेत्र में सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराने हेतु प्रकाशित लेख के लिए सुर्खियों में आई. पूजा पवार सोशल मीडिया में आदिवासियों के हित में पत्रकारिता के लिए असल मीडिया में उनकी उपस्थिति जन सरोकार के लिए निष्पक्ष निडर और निर्भीकता को दर्शाती है.
एक अन्य आलेख - डॉ. अंबेडकर ने लिखी थी हिंदू महिलाओं की किस्मत जो सबसे बड़ी क्रांति कहलाती है इसमें लेखक लिखते हैं यदि डॉ. आंबेडकर ना होते तो भारतीय महिलाओं को जो इतने अधिकार मिले थे जैसे तलाक अधिकार दूसरी शादी करने का अधिकार विधवा पुनर्विवाह का अधिकार तथा पिता या पति की संपत्ति में हिस्सेदार का अधिकार मेंटेनेंस पाने का अधिकार आदि संभव नहीं हो पाता.
दो किस्तों की लंबी धारावाहिक कहानी तारा का घर तथा कथाकार कुबेर की कहानी गौरैया मार्मिक बंन पड़ी है इसी तरह सीमा साहू की लघु कथा फौजी मार्मिक व पठनीय लगे. इसके अतिरिक्त संपादक ने प्रो. वेदवती मंडावी व धमतरी संवाददाता द्वारा पंडवानी लोक गायिका खेमिन यादव का साक्षात्कार भी इस विशेषांक का हिस्सा बन पड़ा है इसी क्रम में संपादक ने घोर नक्सली क्षेत्र में घुसकर नक्सलगढ़ के पंचायत सीताकसा की युवा सरपंच सुशील चंदा मंडावी भी घोर लाल आतंक के बीच में कार्य कर रही हैं महिला दिवस पर सामग्री के रूप में पढ़ने मिला है.
महिला दिवस पर गीतकार रमेश यादव की कविता मैं नारी हूं शिवकुमार अंगारे की अपनी कविता बिंदिया तथा दिवंगत प्रोफेसर त्रिभुवन पांडे को श्रद्धांजलि स्वरूप गिरीश पंकज की चार कविताएं, नारायण लाल परमार व डोमन लाल ध्रुव की कविता इस अंक का हिस्सा बन पड़ा. कुल मिलाकर शुरुआत से अंत तक पूरी की पूरी सामग्री महिलाओं पर केंद्रित होने से यह अपने आप में पठनीय व संग्रहणीय लगे.
आलोच्य पक्ष में इतना ही कहना चाहूंगा कि, इसी प्रकार से हिंसक समाचारों से काफी दूर इस अंक में अतिथि संपादक के रूप में किसी वरिष्ठ साहित्यकार या पत्रकार महिला को दायित्व अवश्य देना चाहिए था फिर भी इस अंक की सामग्री संकलन, संयोजन, संपादन व प्रकाशन के लिए श्री दरवेश आनंद निसंदेह बधाई व धन्यवाद के पात्र हैं.
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