सुरगी में कोरोना का कहर

कमलेश सिमनकर

 

जिले में कोरोना की चैन को तोड़ना सम्भव ही नहीं वरन असम्भव सा प्रतीक हो रहा है। आधी अधूरी सीमाओं को सील करना समस्या का समाधान नहीं, दूसरे प्रदेशों से लोगों की आवाजाही बदतसुर जारी है, जांच के नाम पर केवल खाना पूर्ति हो रही हैं।

राजनांदगाँव शहर के लोगों को जैसे- तैसे इलाज का लाभ मिल जा रहा है, ये बात और है, की मदद मिलने में देर हो रही है। कारण प्रशासन की विवस्ता नजर आती है, हॉस्पिटलों में बेड नहीं मिलते, ऑक्सीजन की कमी स्वास्थ्य विभाग का कोई पीआरओ नहीं जो जिले में काम कर रहे करोना वारियर्स को नियमित जानकारी उपलब्ध करवाए, जिससे समय रहते लोगों की मदद की जाए।

हाल तो बुरा है वनांचल क्षेत्रों का जहां कोविड टेस्ट नहीं हो रहे हैं।हॉस्पिटल तो है, लेकिन उन हॉस्पिटलों में स्टाफ नहीं है जो है वे संक्रमित हो गए है, गांव का आदमी जैसे - तैसे कोविड जांच करवा भी रहा है, और पॉजिटिव आ रहा है ,तो गाँव में कोई व्यवस्था नहीं पॉजिटिव व्यक्ति अपने परिवार के साथ ही होम आइसोलेट हो जाता है, अपने साथ परिजनों को भी संक्रमित कर रहा है, और धीरे-धीरे पूरा गांव संक्रमण के चपेट में आ जा रहा है।

शहरों तक पहुंचने की हिम्मत वनांचल क्षेत्र के लोगों की नही क्योकि लगातार सोशल मीडिया में शहर के मेडिकल कॉलेज में स्थित कोविड सेंटर में बेड नहीं मिल रहा है, वही निजी नर्सिंग होम भी फूल है बताए जा रहे है, ऐसे हालात में वनांचल क्षेत्र का व्यक्ति अपने आप को लाचार महसूस कर रहा हैं।

और गांव में ही सांसे गिन रहा है

डॉ. रमन सिंह जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और राजनांदगाँव विधानसभा के विधायक थे तब जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर सुरगी गांव को गोद लिया था।

आज उस गांव में महज 3 सप्ताह के अन्तराल में करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है, और मौत का सिलसिला बराबर जारी है, मरने वालो में सभी 45 से नीचे के युवावर्ग के लोग हैं। मृतकों के परिजनों को इतना भी समय नहीं मिल पाया कि वे हॉस्पिटल की तरफ कूच करें। तबियत बिगड़ते ही कुछ ही घण्टो में युवकों की मौत हो जा रही है।

घटना से पूरा गांव भयभीत है

कल और परसो की बात करे तो परसो देर रात एक 24 साल के अविवाहित युवक की मौत हुई, वही कल देर रात एक 26 साल के विवाहित युवक ने दम तोड़ा, गांव में लगभग सभी को खांसी और सांस लेने की तकलीफ हो रही है। लोग कोरोना जांच नहीं करवा कर बैगा गुनिया के चक्कर में पड़ गए हैं।

पिछले सप्ताह 3 दिन के अंतराल में पति - पत्नी चल बसे उनके तीन बच्चे 2 लड़कियां और एक लड़का बेसहारा हो गए, ऐसे कई उदाहरण है, जो गांव में जो गाँव व्यथा बताते है। जो लोग मर रहे है, उनके शवों में लेट- लेट कर परिजन बिलख रहे है, कोई मास्क नही।

और ना ही शवों का टेस्ट करवाया जा रहा है, शासन- प्रशासन का प्रोटोकॉल मानो शहरों तक ही सिमट कर रह गया है। शव यात्रा में पूरा गांव सम्मिलित होता है। 

अब ये बताना मुश्किल की कोरोना की चैन का विकल्प क्या सिर्फ लॉक डाउन ही है, या उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को काम करने की जरूरत है।

लॉक डाउन कोरोना से लड़ने का अंतिम विकल्प नहीं हो सकता जब तक स्वास्थ्य अमला मैदानी स्तर पर सजग ना रहे। ग्राम सुरगी एक उदहारण है कि गांव के हालात कैसे हैं।

इस गांव में यदि डोर टू डोर कोरोना जांच कराई जाए तो हर दूसरा व्यक्ति पॉजिटिव आएगा। शासकीय आंकड़े में मरने वालों की सँख्या 7,8 या 10 बताई जा रही है, लेकिन जिले के वनांचल क्षेत्रों में लगातार काम के दौरान महसूस किया कि रोज मरने वालों की संख्या 35 से 40 के आसपास है।

शासन- प्रशासन मौत के आंकड़े भी सही नहीं बता पा रही है। यदि मौत के सही आंकड़े आम जनता तक पहुंचे है, तो शासन- प्रशासन की कलई खुल जाएगी।

खबर का उद्देश्य डराना कतई नहीं है, बस आम जनता को शासन- प्रशासन की जमीनी हकीकत से वाकिफ करना है। इस भीषण कोरोना महामारी में कोई किसी की मदद नहीं कर पायेगा, आपको अपनी और परिवार की मदद खुद ही करना है, मास्क लगाए सोशल डिस्टनसिंग का पालन करें अत्यधिक आवश्यकता होने पर ही घरों से बाहर निकले।


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