कोराना वायरस का कहर और हल ढूँढने की कोशिश

द कोरस टीम

 
एक साल में प्रदेश सहित पूरा देश का शासक वर्ग किसी ना किसी रूप में उत्सव के आगोश में समाया रहा। आम लोग लॉकडाउन, विस्थापन और नये नये कानून  और बदहाली से उबरने में जूझते रहे। किसी ने भी इस बीमारी से निजाद की दवाई नहीं तलाशी। जल्दबाजी में वैज्ञानिकों ने टीका खोज निकाला है और इस एक साल में लोगों के ऊपर इसका प्रयोग भी चल रहा है।

लोग इसके इतने भयावह ढंग से फैलने को लेकर स्तब्ध है। बीमारी और उसके इलाज के तरीके ने आदमी को आदमी से दूर करते जा रहा है। लोग एक दूसरे का मदद करने के लिये भी डर रहे हैं। देश में सभी डॉक्टर हो गये हैं। सभी अपने हिसाब से बीमारी का इलाज बता रहे है। जिम्मेदार सरकार नाकाम साबित हो गया है। अस्पताल की स्थिति यह है कि मरीजों का इलाज असंभव सा हो गया है। किसी को कुछ भी नहीं सूझ रहा है। 

जो सामाजिक संगठन पिछले साल लोगों का मदद कर रहे थे उनका ग्राफ घट रहा है। आंकड़ों के अनुसार जितनी मौत और स्वस्थ होने का आंकड़ा गिनाई जा रही है। वह वास्तविकता से कोसों दूर हैं। सभी अपने आप को बचाने के लिये लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहे हैं।

लॉकडाउन के बावजूद मौत और स्वस्थ होने के आंकड़ों में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है। अस्पतालों की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह सभी लोगों के स्वास्थ्य की देखरेख कर सके।

पूरे एक साल में अस्पताल और उसके इन्फ्रास्टक्चर में किसी ने ध्यान नहीं दिया है। समस्त कोविड सेंटर को बंद कर दिया गया। विदेशों से तथा एक राज्य से दूसरे राज्यों की ओर जाने वाले लोगों का जांच पड़ताल बंद कर दिया गया था। यहां तक कि टेम्प्रेचर और आक्सीलेबल की जांच कहीं भी नहीं होती थी। सेनेटाइजर और मास्क लगाना लगभग लोगों ने बंद कर रखा था।

गांवों की स्थिति यह है कि त्योहार और मढ़ई मेला में लोग मस्त रहे। लोगां ने मास्क लगाना छोड़ दिया था। लोग मास्क तो दूर सेनेटाइजर का उपयोग करना बंद कर दिया था। जिस लॉकडाउन के समय कलेक्टर के हस्ताक्षर से फरमान जारी होता है वैसा फरमान बाकी दिनों में बंद हो चुका था। 

इस पूरे एक साल में अस्पताल, सिलेंडर, वेंटीलेटर की व्यवस्था नहीं हो सकी। लोगों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। जिन लोगों को टीका लगाया गया है उनकी भी मौत टीका लगाने को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। 

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार भारत  में पहली बार कोरोना वायरस से एक दिन में जान गंवाने वालों का आंकड़ा दो हजार के पार कर गया, जिसके बाद मृतक संख्या बढ़कर 1.82 लाख से अधिक हो गई है। संक्रमण के सर्वाधिक 295,041 मामले दर्ज होने के बाद कुल मामले बढ़कर 15,616,130 हो गए। विश्व में संक्रमण के कुल 14.29 करोड़ से ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 30.43 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।  

देश में कोरोना वायरस संक्रमण के करीब तीन लाख (295,041) नए मामले आने से संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 15,616,130 हो गई, जबकि सर्वाधिक 2,023 और मरीजों की मौत हो जाने से मृतकों की संख्या 182,553 हो गई है।

यह (2,023 मरीजों की मौत) एक दिन में इस महामारी से जान गंवाने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या है। यह पहली बार है, जब एक दिन में मरने वालों की संख्या दो हजार का आंकड़ा पार गई। 17 अप्रैल से यह लगातार पांचवां दिन है, जब एक दिन में मरने वालों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज हुई है।

आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 15 अप्रैल से लगातार सातवें दिन संक्रमण के दो लाख से अधिक दैनिक मामले सामने आए हैं। 11 अप्रैल के बाद यह लगातार 11वां दिन है, जब देश में एक दिन में 1.5 लाख से अधिक मामले सामने आए हैं। इसके अलावा सात अप्रैल के बाद यह लगातार 15वां दिन है, जब एक लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए गए हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बुधवार को सुबह आठ बजे अद्यतन किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में संक्रमण के 295,041 नए मामले आने से उपचाराधीन मरीजों की संख्या 21 लाख से अधिक हो गई।

देश में लगातार 42 वें दिन मामलों में बढ़ोतरी से उपचाराधीन मरीजों यानी सक्रिय मामलों की संख्या 2,157,538 हो गई है, जो कि संक्रमण के कुल मामलों का 13.82 प्रतिशत है। देश में ठीक होने की दर भी घटकर 85.01 प्रतिशत रह गई है।

देश में अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण से 13,276,039 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि मृत्यु दर 1.17 प्रतिशत हो गई है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के मुताबिक, 20 अप्रैल तक 271,053,392 नमूनों की जांच की जा चुकी है, जिनमें से 1,639,357 नमूनों की जांच मंगलवार को की गई।

आंकड़ों के मुताबिक, देश में 110 दिन में कोविड19 के मामले एक लाख हुए थे और 59 दिनों में वह 10 लाख के पार चले गए थे।
भारत में कोविड 19 संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 10 लाख से 20 लाख (7 अगस्त 2020 को) तक पहुंचने में 21 दिनों का समय लगा था, जबकि 20 से 30 लाख (23 अगस्त 2020) की संख्या होने में 16 और दिन लगे। हालांकि 30 लाख से 40 लाख (5 सितंबर 2020) तक पहुंचने में मात्र 13 दिनों का समय लगा है।

वहीं, 40 लाख के बाद 50 लाख (16 सितंबर 2020) की संख्या को पार करने में केवल 11 दिन लगे. मामलों की संख्या 50 लाख से 60 लाख (28 सितंबर 2020 को) होने में 12 दिन लगे थे। 60 से 70 लाख (11 अक्टूबर 2020) होने में इसे 13 दिन लगे। 70 से 80 लाख (29 अक्टूबर को 2020) होने में 19 दिन लगे और 80 से 90 लाख (20 नवंबर 2020 को) होने में 13 दिन लगे। 90 लाख से एक करोड़ (19 दिसंबर 2020 को) होने में 29 दिन लगे।

इसके 107 दिन बाद यानी पांच अप्रैल को मामले सवा करोड़ से अधिक हो गए, लेकिन 19 अप्रैल को संक्रमण के मामले डेढ़ करोड़ से अधिक होने में महज 15 दिन का वक्त लगा।

वायरस के मामले और मौतें

24 घंटे में सामने आए संक्रमण के नए मामलों की बात करें तो 20 अप्रैल को 259,170, 19 अप्रैल को 273,810, 18 अप्रैल को 261,500, 17 अप्रैल को 234,692, 16 अप्रैल को 217,353, 15 अप्रैल को 200,739, 14 अप्रैल को 184,372, 13 अप्रैल को 161,736, 12 मार्च को 168,912, 11 अप्रैल को 152,879, 10 अप्रैल को 145,384, नौ अप्रैल को 131,968, आठ अप्रैल को 126,789, सात अप्रैल को 115,736, छह अप्रैल को 96,982, पांच अप्रैल को 103,558, चार अप्रैल को 93,249, तीन अप्रैल को 89,129, दो अप्रैल को 81,466 और एक अप्रैल को 72,330 नए मामले सामने आए थे।

इसी तरह 24 घंटे में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 20 अप्रैल को 1,761, 19 अप्रैल को 1,619, 18 अप्रैल को 1,501, 17 अप्रैल 1,341, 16 अप्रैल को 1,185, 15 अप्रैल को 1,038, 14 अप्रैल को 1,027, 13 अप्रैल 879, 12 मार्च को 904, 11 अप्रैल को 839, 10 अप्रैल को 794, नौ अप्रैल को 780, आठ अप्रैल को 685, सात अप्रैल को 630, छह अप्रैल को 446, पांच अप्रैल को 478, चार अप्रैल को 513, तीन अप्रैल को 714, दो अप्रैल को 469 और एक अप्रैल को 459 रही थी।

मार्च में 24 घंटे के दौरान सर्वाधिक 68,020 मामले 29 मार्च को सामने आए थे और महामारी से जान गंवाने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या 31 मार्च को दर्ज की गई. इस दिन 354 लोगों की मौत हुई थी, जो साल 2021 की पहली तिमाही (जनवरी से मार्च) का सर्वाधिक आंकड़ा है।
फरवरी माह में 24 घंटे में संक्रमण के सर्वाधिक 16738 मामले 25 फरवरी को सामने आए थे और इस महीने सर्वाधिक 138 लोगों की मौतें भी इसी तारीख में दर्ज है।

जनवरी में 24 घंटे के दौरान संक्रमण के सर्वाधिक 20,346 मामले बीते सात जनवरी को दर्ज किए गए थे. वहीं इस अवधि में सबसे अधिक 264 लोगों की मौत छह जनवरी को हुई थी।

इससे पहले दिसंबर महीने में 24 घंटे के दौरान पांच दिसंबर को संक्रमण के अधिकतम 36,652 मामले सामने आए थे और चार दिसंबर को संक्रमण से अधिकतम 540 लोगों की मौत हुई थी।
नवंबर महीने 24 घंटे के दौरान सात नवंबर को संक्रमण के अधिकतम 50,356 मामले सामने आए थे और पांच नवंबर को संक्रमण से अधिकतम 704 लोगों की मौत हुई थी।

अक्टूबर महीने की बात करें तो एक तारीख को अधिकतम 86,821 और 28 अक्टूबर को न्यूनतम 43,893 मामले 24 घंटे के दौरान सामने आए थे. अक्टूबर में 24 घंटे में मरने वालों की अधिकतम संख्या 1 अक्टूबर को 1,181 थी।

सात सितंबर को 90,802 और 30 सितंबर को 80,472 नए मामले दर्ज किए गए थे. सात से 30 सितंबर के बीच नए मामलों की संख्या घटती बढ़ती रही. इस अवधि में 22 सितंबर को 75,083 (न्यूनतम) और 17 सितंबर को 97,894 (अधिकतम) मामले दर्ज किए गए थे।

छह सितंबर को संक्रमण के नए मामले पहली बार 90 हजार (90,632) के पार हो गए थे। 28 अगस्त को पहली बार 70 हजार (75,760) के पार, सात अगस्त को पहली बार 60 हजार (62,538) के पार, 30 जुलाई को पहली बार 50 हजार के पार हो गए थे।

इसी तरह 20 जुलाई को यह पहली बार 40 हजार के पार, 16 जुलाई को पहली बार 30 हजार के पार, 10 जुलाई को पहली बार 25 हजार (26,506) के पार, तीन जुलाई को पहली बार 20 हजार के पार, 21 जून को पहली बार 15 हजार के पार और 20 जून को संक्रमण के नए मामलों की संख्या पहली बार 14 हजार के पार हुई थी।

सितंबर महीने में एक दिन में मरने वालों की बात करें तो एक सितंबर को इनकी संख्या 819 और 29 सितंबर को न्यूनतम 776 थी। इन दो तारीखों के अलावा पूरे महीने हर दिन मरने वालों की संख्या एक हजार से अधिक रही है। 16 सितंबर को 1290 लोगों की जान गई, जो बीते साल को सर्वाधिक आंकड़ा है।

10 अगस्त से 31 अगस्त तक बीते 24 घंटे या एक दिन में मरने वालों की संख्या 1007 से अधिकतम 1,092 (19 अगस्त का आंकड़ा) के बीच रही. 24 जुलाई से नौ अगस्त के बीच एक दिन या 24 घंटे में मौत का आंकड़ा 700 से लेकर 933 (आठ अगस्त का आंकड़ा) के बीच रहा है. एक जुलाई से 23 जुलाई के बीच यह आंकड़ा 507 से 1,129 के बीच रहा।

11 जून से 30 जून के बीच मरने वालों की संख्या 300 से 500 के अंदर रही है. 22 जून को एक दिन में मरने वालों की संख्या पहली बार 400 से अधिक रही थी. और 11 जून को पहली बार मरने वालों की संख्या 300 के आंकड़े को पार कर गई थी। जान्स हापकिन्स यूनिवर्सिटी के रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 574,299 केसेस हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के अनुसार 574299 केसेस, वर्तमान में कुल सक्रिय 125688 हैँ। 6274 लोगों की मौत बताया जा रहा है।छत्तीसगढ़  के गावों की स्थिति ठीक नहीं है राजनांदगाँव से लगे से सुरगी में 17 तथा टिकरी में 10 लोगों की कोरोना से मौत की खबर है

दुनियाभर में मामले 14.29 करोड़ से ज्यादा, 30.43 लाख से अधिक लोगों की मौत दर्ज की गई है।

अमेरिका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, पूरी दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 142,947,608 हो गए हैं और अब तक 3,043,957 लोगों की जान जा चुकी है।

दुनियाभर में महामारी से अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश है. यहां संक्रमण के अब तक 31,792,509 मामले सामने आए हैं, जबकि मरने वालों की संख्या 568,461 हो चुकी है.

संक्रमण से दूसरा प्रभावित देश भारत है. भारत के बाद तीसरे संक्रमण प्रभावित देश ब्राजील में संक्रमण के अब तक 14,043,076 मामले मिले हैं और 378,003 लोग दम तोड़ चुके हैं।

ब्राजील के बाद चौथे सर्वाधिक प्रभावित देश फ्रांस में संक्रमण के 5,401,305 मामले आए हैं और 101,713 लोगों ने जान गंवा दी है. फ्रांस के बाद पांचवें सर्वाधिक प्रभावित देश रूस में संक्रमण के 4,665,553 मामले आए हैं, जबकि 104,545 मरीजों की मौत दर्ज की जा चुकी है।
रूस के बाद छठे सर्वाधिक प्रभावित देश ब्रिटेन में संक्रमण के 4,408,644 मामले आए हैं, जबकि 127,557 मरीजों की मौत के मामले सामने आए हैं।

ब्रिटेन बाद सातवें सर्वाधिक प्रभावित देश तुर्की में संक्रमण के 4,384,624 मामले सामने आए हैं और 36,613 मौतें हुई हैं. तुर्की के बाद आठवें सर्वाधिक प्रभावित देश इटली में संक्रमण 3,891,063 मामले दर्ज हुए हैं जबकि 117,633 मौतें हुई हैं।

इटली के बाद नौवें प्रभावित देश स्पेन में संक्रमण के 3,428,354 मामले (मंगलवार तक) सामने आए हैं और 77,102 मौतें हुई हैं. स्पेन के बाद 10वें सर्वाधिक प्रभावित देश जर्मनी में संक्रमण के 3,198,524 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि 80,680 लोगों की यह महामारी जान ले चुकी है.

मीडिया विजिल में छपे संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री के जिस संबोधन या संदेश को बाकी के अखबारों ने लगभग एक ही शीर्षक से लीड या सेकेंड लीड बनाया है उसे टेलीग्राफ ने सिंगल कॉलम में छापा है और शीर्षक है, प्रधानमंत्री का लक्ष्य : देश को लॉकडाउन से बचाना। यह शीर्षक उन लोगों को बताना जरूरी है जो कहते और समझते हैं प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का विकल्प है ही नहीं। और यह उनके भाषणों का एक जैसा शीर्षक लगाकर साबित करने की कोशिश की जाती है।

कोविड19 से एक दिन में 2007 लोग मर गए, 2, 93,534 नए मामले दर्ज किए गए और अभी तक 1,82,557 मौतें हो चुकी हैं। अभी तक एक करोड़ 56 लाख आठ हजार 423 लोग संक्रमित हुए हैं। आप कह सकते हैं कि संक्रमित होने वालों की कुल संख्या एक प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा है और मरने वाले तो अभी दो लाख भी नहीं हुए हैं। शायद इसीलिए यह खबर आज मेरे किसी भी अखबार में लीड नहीं है। द हिन्दू में यह खबर सिंगल कॉलम में है। हिन्दुस्तान टाइम्स और

टीओआई ने इसे पहले पन्ने पर दो कॉलम में छापा है वरना प्रमुखता वहां भी सिर्फ राजधानी के मामले को है। देश की राजधानी दिल्ली का मामला कम दिलचस्प नहीं है। ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है, कल 28,000 नए संक्रमण सामने आए। अकेले दिल्ली में कल 277 मौतें हुईं। अस्पतालों में जगह नहीं है। टाइम्स आफ इंडिया ने छापा है कि कोविड के मरीजों के लिए सिर्फ सात वेंटीलेटर बेड बचे हुए। सबसे बड़ी बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से आॅक्सीजन की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार कह रही है कि दिल्ली को पूरे कोटे की आपूर्ति की जा चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पेज दो पर छपी एक खबर के अनुसार, सरकार और आपूर्तिकतार्ओं के पास स्टॉक है और यह एक दिन के आवंटन के मुकाबले डेढ़ गुना है। 

इसमें कोटा और आवंटन जैसे शब्द गौर करने लायक हैं और इसी से पता चलता है कि स्टॉक की कमी को स्वीकार करने की बजाय कोटा और आवंटन का सहारा लिया जा रहा है। यहां जरूरत की कोई चर्चा ही नहीं है। मांग और पूर्ति के बुनियादी सिद्धांत को तो भूल जाइए। मुद्दा उद्योगों को आक्सीजन की आपूर्ति रोकने और इसे लोगों की जान बचाने के लिए लगाने का है।

इससे संबंधित एक खबर का शीर्षक है, हाईकोर्ट : क्या हम आक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों से 22 अप्रैल तक इंतजार करने के लिए कह सकते हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि ऑक्सीजन की कमी है पर उद्योगों का ऑक्सीजन लोगों की जान बचाने के लिए लगाया जाए इसके लिए लोगों को अदालत की शरण लेनी पड़ी और अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि उद्योगों को ऑक्सीजन का उपयोग करने से रोका जाए और इस गैस को कोविड 19 के मरीजों के उपयोग के लिए दिया जाए। द हिन्दू में यह खबर चार कॉलम में है। हिन्दू में चार कॉलम में यह खबर भी है कि दिल्ली के कुछ अस्पतालों में 4-5 घंटे के लिए ही ऑक्सीजन है। दिल्ली के अस्पताल में ऑक्सीजन की यह स्थिति और प्रधानमंत्री का संबोधन सिर्फ लॉकडाउन पर केंद्रित था। कुछ और होता तो हिन्दू ऑक्सीजन की दो खबरें छापने की बजाय उसे क्यों नहीं छापता। या दूसरे अखबारों में क्यों नहीं है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अंदर के पन्ने पर दिल्ली में ऑक्सीजन से संबंधित सारी खबरें एक साथ रखी हैं पर क्या आपके अखबार में इस खबर को महत्व मिला है? मेरी समझ यही है कि सरकार ने काम स्वयं समय पर नहीं किया होगा, लोगों और संबंधित संस्थाओं के कहने-निवेदन करने पर नहीं सुना होगा तभी मामला हाईकोर्ट में गया होगा। पर अखबारों की खबरों से ऐसा लगता है क्या? अदालत के आदेश की ही बात करूं तो आज अखबारों में छपा है कि उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में लॉक डाउन लगाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया है। मैं फैसला, आदेश या स्टे पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ यह रेखांकित करना चाहता हूं कि सब ठीक चल रहा होता तो लोग अदालत में क्यों जाते? और अदालत में या अखबारों में किन मामलों को प्राथमिकता मिल रही है। 

उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में लॉकडाउन के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश (सरकार) ने कहा कि यह उसके अधिकार क्षेत्र में दखल है, इससे डर फैलेगा। यह बात इंडियन एक्सप्रेस ने अपने शीर्षक में बताई है। मुझे याद आता है कि महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश को इसी बिना पर चुनौती दी गई थी पर उसे नहीं माना गया। मुझे लगता है कि पाठकों की जानकारी और संदर्भ के लिए ऐसी सूचना दी जाती रहनी चाहिए। पर अब ऐसा नहीं होता है।   

दूसरी ओर, आज सभी अखबारों में प्रधानमंत्री के कल के संबोधन की खबर लीड या सेकेंड लीड है। पश्चिम बंगाल में दो चरण का मतदान रह गया है। इस बीच प्रधानमंत्री ने कल राष्ट्र को संबोधित किया तो उसकी खबर पहले पन्ने पर ही क्यों होनी है यह मैं नहीं समझ पाया फिर भी अखबारों में जो छपा है वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि पहले ही पन्ने पर इतनी प्रमुखता से छापा जाए। आज की खबर का सबसे लंबा शीर्षक इंडियन एक्सप्रेस का है। छह कॉलम में दो लाइन का। हिन्दी में होता तो कुछ इस तरह होता, लॉकडाउन टालने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने की आवश्यकता है, राज्यों को इसका उपयोग अंतिम उपाय की तरह ही करना चाहिए : प्रधानमंत्री देश से।

इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, निराश मत होइए, हम यह लड़ाई जीतेंगे। कुल मिलाकर, लड़ाई हम यानी प्रधानमंत्री, सरकार और देश सब जीतेंगे लेकिन जीतने या लड़ने के लिए राज्य लॉक डाउन अंतिम उपाय के रूप में ही लगाए। वैसे तो पीएम के साथ, टू नेशन (राष्ट्र से) लिखने की कोई जरूरत नहीं थी और ना ही ऐसा कोई रिवाज है पर पता नहीं जगह बच गई थी या अतिरिक्त सम्मान में अखबार ने बताया है कि प्रधानमंत्री ने यह बात मुख्यमंत्रियों से नहीं देश से कही है। आप जानते हैं कि पिछली बार 500 लोगों के संक्रमित होने पर ही प्रधानमंत्री ने अचानक लॉक आउट कर दिया था और बाद में पता चला कि इसके लिए उन्होंने किसी से सलाह नहीं ली थी। किसी बैठक आदि का कोई विवरण मांगने पर नहीं मिला। 

अब उसी प्रधानमंत्री का सिर्फ यह कहना कि लॉक डाउन बहुत जरूरी हो तभी किया जाए कितने बड़े ज्ञान की बात है या कितनी बड़ी सूचना है कि इसे इतनी प्रमुखता मिली है। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के पास कोई योजना नहीं है ना कुछ करने की इच्छाशक्ति या क्षमता, फिर भी वे सारे मामले को नियंत्रण में होना बताना चाहते हैं और लॉकडाउन से होने वाली परेशानी को मुख्यमंत्रियों के सिर डालने की कोशिश में यह बयान दिया है जिसे प्रचारकों ने छह कॉलम में तान दिया है। इस खबर से लग रहा है कि प्रधानमंत्री को कुछ करना ही नहीं है। सारा मामला राज्यों को देखना है और वे देख लेंगे, बस निर्देश की जरूरत थी वह पूरी हो गई। यह स्थिति तब है जब पिछली बार ताली-थाली भी प्रधानमंत्री बजवा रहे थे और 21 दिन में कोरोना की लड़ाई जीतने का दावा भी किया था।

लेकिन प्रचार सक्षम चौकीदार न देश में कोरोना के प्रवेश के लिए जिम्मेदार माना जाता है और न ही फैसलों में देरी या अराजकता जैसी स्थिति के लिए। जो फैसले लिए उनसे जो कबाड़ी हुआ वह तो अलग ही है। यही हमारा मीडिया है जो बिना इमरजेंसी लगाए शायद झुकने के लिए कहने पर रेंगने लगा है। प्रधानमंत्री के जिस संबोधन या संदेश को बाकी के अखबारों ने लगभग एक ही शीर्षक से लीड या सेकेंड लीड बनाया है उसे टेलीग्राफ ने सिंगल कॉलम में छापा है और शीर्षक है, प्रधानमंत्री का लक्ष्य : देश को लॉकडाउन से बचाना। यह शीर्षक उन लोगों को बताना जरूरी है जो कहते और समझते हैं प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का विकल्प है ही नहीं।

और यह उनके भाषणों का एक जैसा शीर्षक लगाकर साबित करने की कोशिश की जाती है। द टेलीग्राफ की दूसरी खबर का शीर्षक है, सरकार योजना बनाने में नाकाम रही। प्रवासी फिर मुश्किल में। इसके साथ अखबार ने बताया है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को याद दिलाया है कि उन्होंने राज्य के गरीबों के लिए टीके खरीदने की अनुमति 24 फरवरी को ही मांगी थी। ममता बनर्जी ने इस संबंध में चिट्ठी लिखी है। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में है पर विपक्ष के हवाले से। 

देश में अभी 45 साल से कम के लोगों को टीका लगना शुरू नहीं हुआ है और टीके की कमी के साथ कोरोना की दवा की कमी से संबंधित खबरें भी छप रही हैं। कल के अखबारों में खबर छपी थी कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को एक मई से टीका लगना शुरू होगा और कल ही पता चला कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस के भतीजे तन्मय ने कल टीके की दूसरी खुराक लगवा ली। वे सिर्फ 21 साल के हैं। कल सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा थी लेकिन आज अखबारों में यह खबर दिखी क्या?

इंडियन एक्सप्रेस में फोटो के साथ पहले पन्ने पर है। यह साधारण नहीं है कि भाजपा नेता ऐसे काम करते हैं और कार्रवाई तो छोड़िये खबर या फॉलो अप भी नहीं होता है। गुजरात भाजपा अध्यक्ष के पास दुर्लभ इंजेक्शन की अत्यधिक मात्रा होने की खबरों के बाद देवेंद्र फडनवीस के बारे में भी ऐसी खबरें थीं फिर गिरफ्तार अधिकारी के बचाव में थाने जाने और अब भतीजे को पहले ही टीका लग जाने जैसी खबरों पर किसी कार्रवाई की सूचना आपको मिली क्या? मास्क नहीं लगाने पर कार्रवाई की खबरें खूब आ रही हैं।  

आज अगर अस्पतालों में ऑक्सीजन के कोटे और आवंटन की बात हो रही है तो निश्चित रूप से कल श्मशान में लकड़ी की बात भी होगी। मैं इंतजार कर रहा हूं जब किसी अखबार में छपेगा कि फलाने साब या पार्टी की सक्रियता से इतने दिनों तक रोज इतनी लाशें जलीं पर लकड़ी की कमी नहीं हुई। निश्चित रूप से ऑक्सीजन का कोटा और आवंटन का मामला अगर है तो उसे बहुत पहले ठीक हो जाना चाहिए था और यह कोई तर्क नहीं है कि कोटा भर आवंटन हो चुका है मरीज मरते हैं तो मरें। हालांकि, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल आक्सीजन की बबादी पर चिन्ता जताने वाला एक ट्वीट कर चुके हैं। 

बहरहाल प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कलेक्टर और मुख्यधारा में रहते हुए इस आफत से बाहर आने के लिए नई नई रास्ते निकालिये। यकीनन रास्ता अवश्य निकलेगा।


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment