PM केयर्स फंड के वेंटिलेटर खरीदी की असलियत जान लीजिए 

गिरीश मालवीय

 

आज देशभर के अस्पतालों में सबसे अधिक वेंटिलेटर बेड की कमी है इसलिए यह जान लेना समीचीन है कि PM केयर फंड से जो वेंटिलेटर खरीदे गए थे उनका क्या हुआ!

PMO ने 13 मई 2020 को 3100 करोड़ रुपए के खर्च की जानकारी दी थी। उसके अनुसार, 2 हजार करोड़ रुपए से 50 हजार मेड इन इंडिया वेंटिलेटर खरीदने की बात हुई। उस वक्त देश में सबसे ज्यादा वेंटिलेटर की कमी थी।

PM केयर फंड से ऐसी कम्पनियों को ठेका दिया गया जिन्होंने खराब माल बनाया उसके वेंटिलेटर किसी भी काम के नही थे। यह रिपोर्ट देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी लेकिन तब भी समय रहते न कोई कार्यवाही नहीं की गयी ओर न ही दूसरा इंतजाम किया गया, नतीजा आज हम भुगत रहे हैं।

ऐसी कम्पनी को ठेका दिया गया जिसे कोई अनुभव ही नही था ऐसे लोगो को PM केयरर्स फंड के पैसे पर वेंटिलेटर्स बनाने का कॉण्ट्रैक्‍ट दिया गया जो बीजेपी नेताओं के करीबी थे।

गुजरात की एक कम्पनी ज्योति सीएनसी को वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया गया।जबकि आप नाम से ही समझ लीजिए कि यह क्या कम्पनी होगी, ज्योति CNC को 121 करोड़ में 5000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया गया था।

इस फर्म की तरफ से बनाए गए धमण 1 वेंटिलेटर्स में कई कमियां थीं और इनकी आलोचना भी हुई थी। इसने जो वेंटिलेटर बनाए उसके वेंटिलेटर्स को अहमदाबाद सिविल अस्पताल ने ही नकार दिया उन्होंने कहा कि इस से गंभीर मरीजों को कोई राहत नही दी जा सकती।

अगस्त 2020 में एक RTI के जवाब में हेल्थ मिनिस्ट्री ने बताया कि आंध्र सरकार की कंपनी AMTZ और गुजरात की निजी कंपनी ज्योति CNC के बनाए वेंटिलेटर्स क्लिनिकल ट्रायल में फेल हो गए हैं।

बाद में अखबारों में भी आया कि ज्योति CNC कंपनी के प्रमोटर भाजपा के नेताओं के करीबी हैं। कंपनी के प्रमोटर्स उसी उद्योगपति परिवार से जुड़े हैं, जिन्होंने साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका नाम लिखा सूट तोहफे में दिया था। मई महीने में कुल मिलाकर 22.5 करोड़ रुपए की एडवांस पेमेंट मिली। जो पीएम केयर्स के पैसे से आवंटित किये गए।

सिर्फ यही नही PM केयर्स फंड से नोएडा की AgVa को 10,000 वेंटिलेटर बनाने का कॉण्ट्रैक्ट दिया गया। बाद में खबर आई कि इस कम्पनी के बनाए गए वेंटिलेटर लगातार दो क्लिनिकल ट्रायल में फेल हो गए हैं, सरकार की क्लिनिकल इवैल्युएशन कमिटी ने कहा था कि इन्हें हाई एंड वेंटिलेटर का विकल्प ना माना जाए। इस सस्ते वेंटिलेटर्स को लेकर कई शिकायतें हैं, लेकिन उसके बावजूद उसे लिस्ट से हटाया नही गया कम्पनी ने वेंटिलेटर बनाना जारी रखा।

हाल ही में AgVa के CEO दिवाकर वैश ने कहा था, 'सरकार के ऑर्डर पर हमने 10 हजार वेंटिलेटर बना दिए हैं। लेकिन एक साल बाद भी सरकार पांच हजार डिवाइस ही उठा पाई है। पांच हजार अब भी हमारे गोदाम में पड़े हैं।'

इसी तरह से बाकी जिन कम्पनियो ने वेंटिलेटर बनाए वो ऐसी ही गड़बड़ियों के कारण रखे रह गए और जो अस्पतालों तक पहुंचे वो किसी काम के नही निकले।

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से राज्य को 1000 वेंटिलेटर भेजे गए थे, लेकिन इन्होंने दो-ढाई घंटे बाद ही काम करना बंद कर दिया। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 69 में से 58 वेंटिलेटर खराब होने की बात सामने आई है।

एक ओर बात है- वेंटिलेटर दरअसल अत्याधुनिक मशीन होती है इन मशीनों के इंस्टालेशन की जिम्मेदारी वेंटिलेटर निर्माता की ही होती है इन्हें चलाने के लिए अस्पताल के कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता होती है, वेंटिलेटर कोई भी नहीं चला सकता। यह ट्रेनिंग दिलवाने की जिम्मेदारी भी वेंटिलेटर निर्माता कम्पनी की है क्योंकि उसने इन नए वेंटिलेटर में क्या तकनीक इस्तेमाल की है वही सबसे बेहतर बता सकता है।

अब ऐसी कम्पनियों को ठेके देंगे तो वो लोग क्या इंस्टालेशन, ट्रेनिंग और आफ्टर सेल्स सर्विस की गारण्टी लेंगे आप खुद सोचिये!


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